कोर्ट और राजभवन के वेंटिलेटर पर पायलट

राजस्थान हाईकोर्ट से पायलट खेमे को राहत मिल गई है और राजभवन कोरोना के नाम पर विधानसभा का सत्र बुलाने पर राजी नहीं हो रहा है। लोकतंत्र में राजभवन और न्यायपालिका की निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लग गया है। उच्चतम न्यायालय और राजभवन एक ही हैं पर कर्नाटक और मध्य प्रदेश के मामले में उनका कुछ और रुख देखने को मिला। पर राजस्थान के मामले में कुछ और रुख देखने को मिल रहा है। जहाँ फायदा भाजपा को है कानून और संविधान की व्याख्या कुछ और है जहाँ भाजपा को नुकसान है वहां कुछ और। इसी को चीन्ह चीन्ह के न्याय कहते हैं। फ़िलहाल कोर्ट और राजभवन के वेंटिलेटर पर पायलट और उनके समर्थक विधायक हैं क्योंकि अंकगणित उनके पक्ष में नहीं है।

राजस्थान हाईकोर्ट से पायलट खेमे को राहत  अर्थात स्पीकर सीपी जोशी फिलहाल पायलट समेत 19 विधायकों को अयोग्य घोषित नहीं कर सकते। अब पूरा मामला सोमवार को उच्चतम न्यायालय में होने वाली सुनवाई के बाद तय होगा। फैसला कुछ भी हो पायलट खेमे के विधायकों के लिए विधायकी बचाना बहुत मुश्किल लग रहा है। पायलट खेमे के 19 विधायकों के पास विधायकी बचाने के दो रास्ते हैं पहला घर वापसी और दूसरा कांग्रेस के 53 विधायक और तोड़ना। अगर पायलट खेमे की मानी जाए तो 30 विधायक उनके पक्ष में हैं। उच्चतम न्यायालय ने पायलट खेमे के पक्ष में फैसला सुनाया तो विधायकी से इस्तीफा देकर अयोग्यता से बच सकते हैं 19 विधायक। फिलहाल कांग्रेस के 88 विधायकों के अलावा गहलोत के पास 10 निर्दलीय, 2 बीटीपी और आरएलडी-सीपीएम के एक-एक विधायक का समर्थन है।

राजस्थान के सियासी संकट में अब राज्यपाल बनाम मुख्यमंत्री के बीच जंग छिड़ती नजर आ रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से कहा गया है कि उन्होंने विधानसभा सत्र बुलाने की अपील की है, लेकिन राज्यपाल कलराज मिश्र की ओर से अभी कोरोना संकट का हवाला दिया गया है। अभी राज्यपाल की ओर से विधानसभा सत्र के बारे में कोई अंतिम निर्णय आना भी बाकी है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि राज्यपाल पर केंद्र की ओर से दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन उन्होंने संविधान की शपथ ली है और ऐसे में उन्हें किसी के दबाव में नहीं आना चाहिए। सीएम ने कहा कि अगर राज्य की जनता आक्रोशित होकर राजभवन का घेराव कर लेती है, तो फिर उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। अशोक गहलोत का दावा है कि उनके पास पूर्ण बहुमत है, ऐसे में सत्र बुलाकर राज्य के संकट के साथ-साथ इस संकट पर भी चर्चा हो जाएगी और सब कुछ जनता के सामने आ जाएगा।

विधानसभा अध्यक्ष की ओर से सचिन पायलट और 18 अन्य विधायकों को अयोग्य करार देने संबंधी नोटिस को चुनौती वाली याचिका पर फैसला आ गया है। उन्हें कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महंती और न्यायमूर्ति प्रकाश गुप्ता की अदालत ने फैसला सुनाया है। उन्होंने इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी किया है। इससे पहले याचिका पर कोर्ट ने मंगलवार को 24 जुलाई तक फैसला सुरक्षित रख लिया था।

राजस्थान में विधानसभा अध्यक्ष ने सचिन पायलट और 18 अन्य विधायकों को अयोग्यता का नोटिस दिया। उनसे 17 जुलाई को दोपहर तक जवाब मांगा गया था। 16 जुलाई को नोटिस के खिलाफ पायलट खेमा हाईकोर्ट का रुख किया। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने सुनवाई की और मामला दो जजों की बेंच में भेज दिया। मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महांती और न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की अदालत ने 18 जुलाई को सुनवाई तय की। 18 जुलाई को सुनवाई के बाद 20 जुलाई को आगे की सुनवाई के लिए डेट दी गई। विधानसभा अध्यक्ष से कहा गया कि वे 21 जुलाई तक नोटिस पर कार्रवाई नहीं करें।

10 जुलाई को एसओजी ने हॉर्स ट्रेडिंग की कॉलिंग पर राजद्रोह और आपराधिक षड्यंत्र का मामला दर्ज किया। 11 जुलाई को सीएम गहलोत, तत्कालीन डिप्टी सीएम पायलट सहित 16 विधायकों को नोटिस जारी किया। पायलट गुट के विधायक मानेसर में जमा हो गए। गहलोत समर्थकों की जयपुर में बाड़ेबंदी कर दी गई। विवाद तब बढ़ गया जब पायलट ने बयान दिया कि उनके पास 30 विधायक हैं, गहलोत सरकार अल्पमत में है। यहीं से शह और मात का खेल शुरू हो गया और मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंच गया है। पायलट और उनके 18 विधायकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए चीफ व्हिप महेश जोशी ने 14 जुलाई को स्पीकर से शिकायत की। स्पीकर ने सभी 19 विधायकों को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। नोटिस का जवाब 17 जुलाई तक दिया जाना था।

राजस्थान मामले पर गुरुवार को उच्चतम न्यायालय में भी सुनवाई हुई। विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील रखी। सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में 1992 के होटो होलोहॉन मामले में दिए संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि इस फैसले के मुताबिक अयोग्यता के मसले पर स्पीकर का फैसला आने से पहले कोर्ट दखल नहीं दे सकता है। अयोग्य ठहराने की प्रकिया पूरी होने से पहले कोर्ट में दायर कोई भी याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने मामले में सोमवार को अगली सुनवाई की तारीख दी।

जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने सिब्बल से सवाल किया कि क्या स्पीकर अगर किसी एमएलए को सस्पेंड करते हैं या अयोग्य करते हैं तो कोर्ट दखल नहीं दे सकता? सिब्बल ने कहा कि जब स्पीकर अयोग्य ठहरा दें या सस्पेंड कर दें तब जूडिशियल रिव्यू हो सकता है। अयोग्या के फैसले से पहले कोई भी रिट विचार योग्य नहीं हो सकता है। जस्टिस मिश्रा ने सवाल किया कि क्या हाई कोर्ट ने इस पहलू पर आपको सुना है। सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का हाल का जजमेंट है, जिसमें स्पीकर से कहा गया था कि एक तयसमय सीमा में वह अयोग्यता पर फैसला लें। सिब्बल ने कहा कि पार्टी चीफ ने व्हीप जारी कर मीटिंग में आने को कहा था।

पीठ  ने सवाल किया कि अयोग्य ठहराए जाने के लिए क्या आधार लिया गया है। सिब्बल ने कहा कि इन विधायकों ने पार्टी मीटिंग में शामिल नहीं हुए। ये एंटी पार्टी गतिविधियों में शामिल थे। ये फ्लोर टेस्ट के लिए मांग कर रहे थे। तब जस्टिस मिश्रा ने कहा कि एक आदमी जो चुनाव में निर्वाचित हुआ है क्या उसे असहमति जताने का अधिकार नहीं है? अगर असहमति के आवाज को दबाया जाएगा तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। मामला सिर्फ एक दिन का है आप इंतजार क्यों नहीं कर लेते। तब सिब्बल ने कहा कि लेकिन हाई कोर्ट स्पीकर को निर्देश कैसे जारी कर सकता है। पीठ  ने कहा कि यानी आपकी दिक्कत निर्देश वाले शब्द से है। लेकिन आदेश में हर जगह आग्रह है। मुकुल रोहतगी और हरीश साल्वे सचिन पायलट की ओर से पेश हुए।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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