खिलाड़ियों के आंसू, जुल्म के खिलाफ बगावत की ताकत बनेंगे              

3 मई की बारिश से दिल्ली में कई सड़कें धंस गई और बहुत सारी जगहों पर जाम लग गया। यह असामान्य बारिश की वजह से था। मई का महीना आमतौर पर गर्म रहता है। इस बारिश ने शहर को चाहे जितनी राहत दी हो, जंतर-मंतर पर धरना दे रहे खिलाड़ियों, खासकर महिला पहलवानों के लिए एक मुश्किल खड़ी कर दी। उन्होंने सोने के लिए कुछ चारपाई की व्यवस्था की। इसी व्यवस्था को बनाने के दौरान खिलाड़ियों के साथ पुलिस की भिड़ंत हो गई।

कुछ खिलाड़ियों को गंभीर चोट लगने की बात सामने आर रही है। महिला पहलवानों ने प्रेस कांफरेंस में कहा कि उनके साथ शराब के नशे में धुत पुलिस ने मारपीट, गालीगलौज, धक्कामुक्की किया और उन्हें धमकाया गया। सोशल मिडिया पर आये कुछ फुटेज से यह जरूर दिखाई दे रहा है कि कवर कर रहे कुछ पत्रकारों के साथ भी बदसलूकी की गई है।

एनडीटीवी के सौरभ शुक्ला की रिपोर्ट ज्यादा भयावह है, जिसमें वह राहुल नाम वाले पहलवान की गंभीर स्थिति की रिपोर्ट कर रहे थे और बता रहे थे कि उन्हें गंभीर चोट लगने के बावजूद एमब्युलेंस को आने में एक घंटे लग गये। यह स्थिति जंतर-मंतर की है। खबर तेजी से फैली है और महिला खिलाड़ियों के समर्थन में वहां आने वालों की संख्या बढ़ रही है।

प्रेस कांफ्रेंस के दौरान बजरंग पुनिया ने पूछा, ‘क्रिमिनल कौन है?’ यह सवाल अपने भीतर कई सारे सवालों को समेटे हुए है। सबसे पहले दिल्ली पुलिस ने महिला खिलाड़ियों द्वारा एफआईआर दर्ज करने से मना करती है। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय दखल देती है। इसके बाद ही एफआईआर, जिसमें से एक पोस्को के तहत है, दर्ज किया जाता है। इसके बाद भी बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी नहीं होती है और वह छुपे और खुले तौर पर महिला खिलाड़ियों के खिलाफ धमकाने की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं।

इसी बीच महिला खिलाड़ियों के खिलाफ कुछ और बयान सामने आते हैं और सोशल मिडिया पर उनके खिलाफ अभद्र प्रचार का दौर भी शुरू हो जाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ीयों की स्थिति इतनी बदतरी की ओर ले जाया जाता है कि वे अपने को एथलीट होने की सार्थकता पर खुद ही सवाल उठाने लगी हैं। उनका कैमरे के सामने फूट-फूटकर रोना, उनकी सिर्फ बेबसी नहीं है, वे अपनी मेहनत से हासिल की हुई पहचान की निरर्थकता पर भी रो रही हैं।

यहां आपको एक ऐसे ही खिलाड़ी पान सिंह तोमर की एक साक्षात्कार का उद्धरण सामने रख रहा हूं। इंडियन एक्सप्रेस, पटना के हेमेंद्र नारायण ने पान सिंह तोमर का साक्षात्कार मार्च के महीने में लिया था। 2 अक्टूबर, 1981 को एक मुठभेड़ में पान सिंह की एक एनकाउंटर में ग्वालियर के नजदीक मार दिया गया था। इसी रिपोर्ट में साक्षात्कार का एक हिस्सा उद्धृत हैः ‘‘मैंने एक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी के बतौर मैंने कई सारे साक्षात्कार दिये और मुझे एक नायक की तरह छापा गया। लेकिन, अब मुझे एक अपराधी की तरह अखबारों में चित्रित किया जा रहा है।’’ आज जंतर-मंतर पर धरना दे रहे खिलाड़ी यही पूछ रहे हैंः ‘‘क्रिमिनल कौन है?’’

पान सिंह तोमर के सामने घर और जमीन का मसला था। 1970-80 का दशक जमीन हदबंदी, उपज का मूल्य, मजदूरी और मजदूर की इज्जत के लिए लड़ी गई लड़ाईयों से जुड़ा हुआ था। पुलिस और राज्य की अन्य संस्थाएं दबंग जातियों, जमींदारों के साथ देकर उनके बर्चस्व को बनाये रखने में खूब योगदान दिया। पान सिंह जब गांव लौटे तब वहां के हालात ने उनके एक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी की पहचान को छीन लिया और वे सिर्फ और सिर्फ एक बेबस किसान बन गये। फिर, इस अपने हाल के खिलाफ जिस बगावत का रास्ता लिया उसमें राज्य की संस्थाओं की कोई जगह नहीं थी। उनका संघर्ष एक गांव से दूसरे गांव, जवार और फिर इलाकों में फैलता गया। एक विद्रोही जिसके लिए कानून-सम्मत भाषा का अर्थ नहीं रह गया था।

आज जंतर-मंतर पर धरना दे रहे खिलाड़ी जब पूछ रहे हैं, क्रिमिनल कौन है?, तब यह महज बृजभूषण सिंह पर लगे यौन-उत्पीड़न के आरोपों से ज्यादा गहरे संकट को भी दिखा रहा है। आज के इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी पड़ताल में पाया है कि खेल के 30 फेडरेशन में से 16 में यौन उत्पीड़न कानून के उपयुक्त व्यवस्था ही नहीं है। इसमें या तो आंतरिक शिकायत निवारक कमेटी नहीं है या इसके लिए आमंत्रित सदस्य का अभाव है।

जिमनॉस्ट फेडरेशन, टेबल टेनिस फेडरेशन, हैंडबॉल फेडरेशन, रेसलिंग फेडरेशन, बॉलीबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया में तो आंतरिक शिकायत की कमेटियां तक नहीं हैं। ये महिला पहलवान खिलाड़ी जब पहली बार अपनी शिकायत लेकर सामने आई थीं, तब प्रधानमंत्री ने इसे खेल मंत्री पर छोड़ दिया कि वही इसे हल करेंगे। इसके बाद वार्ता का दौर हुआ, लेकिन समस्या का हल नहीं निकला। फिर धरना-प्रदर्शन का सिलसिला चलना शुरू हुआ।

यहां समस्या को सुलाझाने के लिए कानून सम्मत प्रयास के बजाय इसे व्यक्तिगत तौर पर सुलझाने में बदल दिया गया। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री और उसके बाद खेल मंत्री के ऊपर जिम्मेदारी अधिक जाती है, जिन्होंने इस समस्या को जानने के बावजूद इस समस्या को हल करने के लिए संस्थागत और कानूनी प्रयास नहीं किये गये। आज जब आरोप एफआईआर में बदल गये हैं, तब भी बृजभूषण सिंह का पद पर बने रहना, प्रधानमंत्री की ओर इस सदंर्भ में कोई कार्रवाई न करना, खेल मंत्री की चुप्पी और दिल्ली पुलिस द्वारा खिलाड़ियों के साथ बदसलूकी एक ऐसी मोर्चेबंदी को दिखाता है जिसमें एक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी अपनी ही पहचान को खो रहा है।

वह बेबसी के साथ बोल रहा है, कि इस पदक को रखने की जरूरत ही क्या है, इसे लौटा देना ही बेहतर होगा। लगभग, चालीस साल पहले पान सिंह तोमर ने भी यही कहा था। वह गांव के अंतर्विरोधों को सुलझाते हुए ‘डकैत’ हो गया और अंत में ‘मुठभेड़’ में मारा गया। महिला खिलाड़ी ठीक दिल्ली के केंद्र में बैठे हैं। वे संस्थागत अंतर्विरोधों को सुलझाने में लगी हुई हैं। वे जितनी सुलझाने के लिए कोशिश कर रही हैं, स्थितियां सुलझने की बजाय उन्हें ही दबोच लेने वाली बन रही हैं। आने वाले समय में खिलाड़ियों के आंसू निश्चय मिट्टी में गिरकर यूं ही सूख नहीं जायेंगे। उनकी हिचकियां लाखों लोगों के दिलों में लंबे समय तक बनी रहेंगी और जुल्म के खिलाफ लड़ने का साहस पैदा करेंगी।

( अंजनी कुमार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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