दिल्ली हाईकोर्ट की चार पीठों में बहस के बाद भी ‘पीएम केयर्स फंड’ मामला लंबित

“मैंने 4 पीठों के समक्ष पीएम केयर्स फंड मामले पर बहस की है”- वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने दिल्ली हाईकोर्ट में रोस्टर में बदलाव के कारण सुनवाई लंबी चलने का संकेत दिया। मामले की सुनवाई 15 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी गयी। दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद इसकी सुनवाई करेंगे।

वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि उन्होंने चार अलग-अलग पीठों के समक्ष पीएम केयर्स फंड को ‘राज्य’ घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं पर बहस की है, लेकिन मामला अभी भी समाप्त नहीं हुआ है।

31 जनवरी, 2023 को दीवान ने मुख्य न्यायाधीश शर्मा और न्यायमूर्ति प्रसाद की पीठ के समक्ष अपनी दलीलें पूरी की थीं। हालांकि, गर्मी की छुट्टियों के बाद हाईकोर्ट का रोस्टर बदल गया और मुख्य न्यायाधीश अब जस्टिस संजीव नरूला के साथ बैठ रहे हैं ।

जैसा कि गुरुवार को मामले की सुनवाई हुई, यह बताया गया कि मामला पिछली पीठ के समक्ष आंशिक रूप से सुना गया है। इसलिए, अदालत ने मामले को 15 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया।

हाईकोर्ट ने वर्ष 2020 और 2021 में सम्यक गंगवाल द्वारा दायर दो मामलों को जब्त कर लिया है। उनमें से एक भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत पीएम केयर्स फंड को ‘राज्य’ घोषित करने का है, जबकि दूसरा यह घोषणा चाहता है कि सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत फंड एक ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ है।

दीवान ने शुरू में न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह के समक्ष पीएम केयर्स फंड में आरटीआई अधिनियम की प्रयोज्यता के संबंध में मामले पर बहस की थी। हालांकि, दूसरी याचिका दायर होने के बाद, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली पीठ ने दोनों मामलों को टैग कर दिया। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह के समक्ष मामले पर विस्तार से बहस हुई।

मुख्य न्यायाधीश पटेल 12 मार्च, 2022 को सेवानिवृत्त हो गए, जिसके बाद कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ के समक्ष मामले पर नए सिरे से बहस हुई। जून 2022 में न्यायमूर्ति सांघी को उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और मामला अंततः मुख्य न्यायाधीश शर्मा और न्यायमूर्ति प्रसाद के सामने आया। इस बेंच ने रोस्टर में बदलाव से पहले मामले की सुनवाई की।

याचिकाकर्ता का मानना है कि उपराष्ट्रपति जैसे सरकार के उच्च पदाधिकारियों ने राज्यसभा सदस्यों से उस फंड में दान देने का अनुरोध किया था, जिसे सरकारी फंड के रूप में पेश किया गया है।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि पीएम केयर्स फंड के ट्रस्टी भारत के प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृहमंत्री और वित्त मंत्री हैं और इसके गठन के तुरंत बाद, इसे भारत सरकार द्वारा स्थापित और संचालित किए जाने के रूप में पेश किया गया था।

याचिका में कहा गया है कि अभ्यावेदन में उच्च सरकारी पदाधिकारियों द्वारा लिखे गए पत्र, कई मंत्रालयों/विभागों द्वारा जारी अधिसूचना/कार्यालय ज्ञापन शामिल थे, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि पीएम केयर्स फंड भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया है।

हालांकि, केंद्र ने पीएम केयर्स फंड को ‘राज्य’ घोषित करने की मांग वाली याचिका के जवाब में एक हलफनामा दायर किया जिसमें  केंद्र सरकार ने कहा कि यह फंड संविधान या संसदीय कानून के तहत नहीं बनाया गया है, बल्कि एक स्वतंत्र सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में स्थापित किया गया है। इसमें यह भी कहा गया कि केंद्र और राज्य सरकारों का फंड के कामकाज पर कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं है। सरकार ने आगे कहा कि न्यासी बोर्ड में सार्वजनिक कार्यालय धारकों की उपस्थिति केवल प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए है और यह सरकारी नियंत्रण या प्रभाव का संकेत नहीं देती है।

यह कहा गया है कि न्यासी बोर्ड की संरचना जिसमें पदेन सार्वजनिक कार्यालय के धारक शामिल हैं, केवल प्रशासनिक सुविधा और ट्रस्टीशिप के सुचारू उत्तराधिकार के लिए है। केंद्र ने कहा कि पीएम केयर्स फंड में स्वैच्छिक दान शामिल है और यह सरकारी समर्थन प्राप्त नहीं करता है या बजटीय स्रोतों से योगदान स्वीकार नहीं करता है। केंद्र या राज्य सरकारों का इसके कामकाज पर कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं है।

इसमें आगे कहा गया है कि सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 2 (एच) (डी) के अर्थ के तहत पीएम केयर्स एक “सार्वजनिक प्राधिकरण” नहीं है और इसलिए, आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों को इस पर लागू नहीं किया जा सकता है।

गौरतलब है कि जुलाई 2022 में हाईकोर्ट द्वारा उसके पहले के जवाब पर नाराजगी व्यक्त करने के बाद केंद्र ने जवाब दाखिल किया था।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने तर्क दिया कि सरकार के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने राज्यसभा सदस्यों से दान देने का अनुरोध किया था और पीएम केयर्स फंड को सरकारी फंड के रूप में पेश किया था।

सरकार ने कहा कि न्यासी बोर्ड में सार्वजनिक कार्यालय धारकों की उपस्थिति प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए है और यह सरकारी प्रभाव का संकेत नहीं देती है। सार्वजनिक कार्यालय के पदेन धारकों से युक्त न्यासी बोर्ड की संरचना केवल प्रशासनिक सुविधा और ट्रस्टीशिप के सुचारू उत्तराधिकार के लिए है।

केंद्र सरकार ने कहा कि पीएम केयर्स फंड पारदर्शी तरीके से काम करता है और इसका ऑडिट एक चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा किया जाता है, जिसकी रिपोर्ट वेबसाइट pmcares.gov.in पर उपलब्ध है।

हलफनामे में कहा गया है कि पीएम केयर्स फंड को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (पीएमएनआरएफ) की तर्ज पर प्रशासित किया जाता है क्योंकि दोनों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं।

अवमानना मामले में एस गुरुमूर्ति ने माफी मांगी

दिल्ली हाईकोर्ट ने तमिल राजनीतिक साप्ताहिक “तुगलक” के संपादक और आरएसएस विचारक एस गुरुमूर्ति को 2018 में जस्टिस एस मुरलीधर के खिलाफ उनके ट्वीट के लिए दायर आपराधिक अवमानना मामले में उनकी माफी को स्वीकार करने के बाद आरोप मुक्त कर दिया। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली डिवीजन बेंच ने कहा कि हम एस गुरुमूर्ति की माफी और गहरे पश्चाताप की अभिव्यक्ति को स्वीकार करते हैं और वर्तमान अवमानना याचिका में उन्हें जारी किए गए कारण बताओ को खारिज करना उचित मानते हैं। इसके साथ ही उन्हें डिस्चार्ज किया जाता है।

अदालत 2018 में एस गुरुमूर्ति के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा दायर आपराधिक अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान, वकीलों के संगठन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ने कहा कि गुरुमूर्ति द्वारा व्यक्त माफी, साथ ही उनके बयान कि न्यायपालिका के लिए उनके मन में सर्वोच्च सम्मान है और किसी भी अपराध के लिए वास्तव में खेद है, को स्वीकार किया जाना चाहिए।

पीठ ने तब पाया कि गुरुमूर्ति पहले भी अपनी इच्छा से व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश हुए थे और ट्वीट के लिए खेद व्यक्त किया था। गुरुमूर्ति को डिस्चार्ज करते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि उसने पार्टियों की ओर से व्यक्त किए गए कानून के मुद्दों पर कोई राय व्यक्त नहीं की।

सुनवाई की प्रारंभिक प्रक्रिया के दौरान जस्टिस मृदुल ने वकीलों के संगठन के वकील से मौखिक रूप से कहा, “कभी-कभी इलाज बीमारी से भी बदतर होता है। इस सारे विवाद में एक माननीय न्यायाधीश का नाम अनावश्यक रूप से घसीटना, हर समय रिपोर्ट करना, चाहे किसी भी कारण से, आपको लगता है कि हम अपनी गरिमा के लिए अखबार की रिपोर्टों और ट्वीट्स पर भरोसा करते हैं? जैसा कि हमने पहले भी कई निर्णयों में कहा है, हमारी गरिमा एक निश्चित स्तर पर टिकी हुई है। हम अपनी गरिमा के लिए उचित या अनुचित आलोचना पर निर्भर नहीं हैं।

मामला गुरुमूर्ति द्वारा किए गए एक ट्वीट से संबंधित है जहां उन्होंने एक सवाल पोस्ट किया था, जिसमें पूछा गया था कि क्या जस्टिस मुरलीधर वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम के जूनियर थे। यह ट्वीट आईएनएक्स मीडिया मामले में जस्टिस मुरलीधर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ द्वारा कार्ति चिदंबरम को अंतरिम सुरक्षा दिए जाने के बाद किया गया था।

जस्टिस मुरलीधर ने स्पष्ट किया था कि उनका पी चिदंबरम के साथ किसी भी प्रकार का कोई संबंध नहीं है और उन्होंने कभी भी उनके जूनियर के रूप में काम नहीं किया है।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

जेपी सिंह
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