थाली बजाइये, कोरोना भगाइये; सरकार से कोई उम्मीद मत करिए!

प्रधानमंत्री जी, थाली बजाने से अगर कोरोना वायरस ख़त्म हो जाता तो पूरी दुनिया इस समय यही काम रही होती। दो दिनों से देश में प्रचारित किया जा रहा था कि पीएम मोदी 19 मार्च को रात में 8 बजे देश को संबोधित करेंगे। इसको लेकर तरह-तरह की अफ़वाहों का भी बाज़ार गर्म था। कोई लॉक डाउन की आशंका जता रहा था तो कोई नोट बंदी जैसी किसी दूसरी तरह के भय का। बाज़ार से आपात ख़रीदारियाँ शुरू हो गयी थीं। मजबूरन सरकार को यह सफ़ाई देनी पड़ी कि ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है। लेकिन आख़िरी तौर पर जब पीएम देश की जनता से रूबरू हुए तो उनकी जेब से कोरोना के पहाड़ से लड़ने के लिए थाली की चुहिया और एक दिन के जनता का कर्फ़्यू निकला।

देने के लिए पीएम के पास जनता को भाषणों के सिवा कुछ नहीं था। और न ही इस घातक बीमारी से भविष्य में लड़ने की सरकार की तैयारियों और उसका कोई प्लान उनके पास था। यानि कुल मिलाकर सरकार भी ऊपर वाले के ही भरोसे है। दरअसल पीएम इवेंट के शौक़ीन व्यक्ति हैं। उनको लगा कि कोरोना पर भी एक इवेंट कर ही देना चाहिए। लिहाज़ा उन्होंने जनता कर्फ़्यू का ऐलान कर शाम को थाली बजाने की घोषणा कर दी। और इसके साथ ही उनकी तरफ़ से कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई पूरी हो गयी।

पीएम मोदी ने यह नहीं बताया कि अगर जनता कर्फ़्यू लगेगा और इसी तरह की स्थितियाँ बनी रहेंगी तो फिर जो लोग घरों में रहने के लिए मजबूर हैं उनके इस दौरान रोजी-रोटी की क्या व्यवस्था होगी। दिहाड़ी मज़दूरों के उस हिस्से का क्या होगा जो रोज़ कमाता है और रोज़ खाता है। उन मज़दूरों का जीवन कैसे चलेगा जो छोटी फ़ैक्टरियों में काम करते हैं। और उन फ़ैक्टरियों और उनके मालिकों का क्या होगा जिनका पूरा भविष्य दांव पर लगा है।

मध्यवर्गीय उन कर्मचारियों के लिए क्या विकल्प है जिनके पास घर से काम करने की सुविधा नहीं है। ये और इसी तरह के ढेर सारे सवाल थे जिनके जवाब की लोग मोदी से प्रतीक्षा कर रहे थे। लेकिन पीएम ने जवाब भी दिया तो ताली बजाने का। धन्यवाद देने का। आख़िर किस बात का धन्यवाद मोदी जी? क्या हम लड़ाई जीत गए हैं? कोरोना के ख़िलाफ़ युद्ध पूरा हो चुका है? अगर नहीं तो फिर कैसी जीत, कैसा जश्न और फिर किस बात का ऐलान? 

अपनी जनता को राहत देने के मामले में आप कनाडा, अमेरिका, फ़्रांस, स्पेन, चीन समेत तमाम उन देशों से सीख सकते थे जो इस समय इस महामारी से जूझ रहे हैं। उन्होंने अपने व्यवसायियों से लेकर आम कर्मचारियों और जनता के लिए व्यापक पैमाने पर सहायताओं की घोषणा की है। कनाडा में तो ट्रूडो ने सारे टैक्स माफ़ कर दिए हैं। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि ज़िंदगी से बढ़कर कुछ भी नहीं है। इस लिहाज़ से उन्होंने 56 बिलियन डॉलर की एकमुश्त राशि की घोषणा की है।

अमेरिका ने इस मद में 1.2 ट्रिलियन, इंग्लैंड ने 39 बिलियन, फ़्रांस ने 45 बिलियन, इटली ने 28 बिलियन और साउथ कोरिया ने 10 बिलियन डालर की सहायता राशि आवंटित की है। फ़्रांस ने इस बात का प्रावधान किया है कि इस दौरान जनता को जो भी घाटा होगा उसकी भरपायी सरकार करेगी। यानी कि अपनी जनता को हर तरीक़े से उसने सुरक्षित कर दिया है। स्पैनिश सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों को अपने क़ब्ज़े में लेकर उनका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।

लेकिन भारत में जनता को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। और उम्मीद की जा रही है कि वह ख़ुद ही इस बीमारी से निपट लेगी। कोरोना पीड़ितों की संख्या भारत में कम होने की बात कहकर सरकार भले ही अपनी पीठ थपथपा ले। लेकिन इसकी जो सच्चाई सामने आ रही है उसमें भविष्य की भयावह तस्वीर भी छुपी हुई है। डब्ल्यूएचओ ने कोरोना पर जो गाइडलाइन जारी की है उसमें उसका बुनियादी ज़ोर टेस्ट पर है। 

इसीलिए उसने टेस्ट-टेस्ट-टेस्ट का नारा दिया है। लेकिन भारत सरकार इस बुनियादी नारे के ही ख़िलाफ़ खड़ी हो गयी है। यहाँ अभी तक टेस्ट सिर्फ़ उन लोगों का किया रहा है जो बाहर से आ रहे हैं या पहले से आकर अपने घरों में बैठ गए हैं। लेकिन उसके बाद उनके द्वारा प्रभावित किए गए या फिर किसी भी तरह से इन जाँचों से बच गए लोग इसकी कार्यसूची में शामिल नहीं हैं। जबकि बड़े पैमाने पर टेस्टिंग और संक्रमित लोगों का क्वैरंटाइन ही इसका एक मात्र इलाज है। टेस्टिंग के नाम पर सरकार के पास कुछ केंद्र हैं। बताया जा रहा है कि इसके लिए पूरे देश में केवल 61 लेबोरेटरी हैं। यहाँ तक कि राज्यों में एक दो सेंटर ही टेस्टिंग के लिए अधिकृत किए गए हैं। प्राइवेट सेक्टर की स्वास्थ्य सेवाओं को अभी भी टेस्टिंग की अनुमति नहीं मिली है।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में अभी यह दूसरे स्टेज पर है। यानी बाहर से आए लोगों या फिर सीधे उनसे संक्रमित लोगों तक यह बीमारी पहुँची है। लेकिन सामुदायिक स्तर पर संक्रमण की क्या तस्वीर है न तो इसका अभी तक कोई आँकड़ा आ पाया है और न ही इस दिशा में कोई ठोस काम हुआ है। सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियान से जुड़े डॉ. अभय शुक्ला का कहना था कि अगर यह बीमारी सामुदायिक आदान-प्रदान के ज़रिये आगे बढ़ने में सफल हो जाती है तब देश के एक चौथाई से ज्यादा लोगों को संक्रमित होने से कोई बचा नहीं सकता है।

ऐसे में उस स्तर के संक्रमण से निपटने के लिए सरकार के पास क्या तैयारी है? क्या उसके पास टेस्टिंग किट हैं? क्वैरंटाइन सुविधाएं हैं? यहाँ तक कि बाज़ार में मास्क तक उपलब्ध नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि भविष्य के इन संभावित ख़तरों से निपटने के लिए सरकार के पास कोई तैयारी भी नहीं दिख रही है। कल पीएम मोदी के भाषण में इन्हीं स्थितियों के लिए सरकार की तैयारियों को लोग जानना चाहते थे। लेकिन पता नहीं सरकार किस गुमान में और किसके भरोसे है।

यह बात किसी से छुपी नहीं है कि इस तरह के किसी भी संकट में सबसे ज़्यादा मार गरीब पर पड़ती है। और उसमें भी दिहाड़ी मज़दूर उसका सबसे ज़्यादा शिकार होता है। लोगों का कहना है कि यह बीमारी अगर निचले स्तर पर पहुंच गयी तो फिर उसे संभाल पाना किसी के लिए मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि सरकार के पास न तो उस तरह की स्वास्थ्य सुविधाओं का कोई ढांचा है और न ही उसकी कोई वैकल्पिक तैयारी। न ही हम चीन हैं जो इस इच्छाशक्ति और इतने संगठित तरीक़े से काम करें कि बीमारी एक जगह से दूसरी जगह न फैले। और पैदा होने की जगह ही उसे दबा दिया जाए।

लेकिन एक काम सरकार ज़रूर कर सकती है। वह यह कि निर्माण मज़दूरों के नाम पर सेश के तौर पर जमा हज़ारों करोड़ रुपये के फंड का संकट के इस मौक़े पर उनके लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। बैंकों में जमा इस रक़म का मज़दूरों के हक में सरकार कोई इस्तेमाल नहीं कर पा रही है। जबकि इसको बनाया ही गया है मज़दूरों के कल्याण के लिए। इसको लेकर सरकार के पास अपनी कोई योजना नहीं है। लेकिन अब जबकि संकट की घड़ी है और इस तबके के सामने जीवन-मरण का प्रश्न है तो सरकार की यह ज़िम्मेदारी बन जाती है कि उसके पैसे को वह उसके हवाले कर दे। और इस बात की घोषणा करे कि इस दौरान होने वाली उसकी पूरी दिहाड़ी उनके उसी फंड से दी जाएगी।

इस मामले में प्रधानमंत्री को कहीं बहुत दूर भी नहीं जाना था। ख़ुद अपने ही एक सूबे केरल के मुख्यमंत्री और उनकी सरकार द्वारा किए गए उपायों पर वह नज़र भर डाल लेते। तो उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता था। तारा शंकर ने अपनी एक पोस्ट में उन उपायों के बारे में विस्तार से बताया है। केरल सरकार ने 20 हज़ार करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है जो उसके यहाँ पिछले दिनों आयी बाढ़ के पैकेज से भी ज़्यादा है। यहाँ दो महीने के वेलफ़ेयर पेंशन को एडवांस में दिया जाएगा। इसमें वृद्धा-विधवा और सरकारी पेंशन सब शामिल हैं।

एपीएल और बीपीएल समेत सभी को महीने भर का राशन मुफ़्त देने की घोषणा की गयी है। कोरोना से निपटने के लिए 500 करोड़ रुपये की हेल्थ स्कीम बनायी गयी है। केरल के लोगों को एक महीने तक बिजली और पानी के बिल नहीं देने होंगे। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार मुहैया कराने के लिए 2 हज़ार करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गयी है। इसके अलावा दिहाड़ी मज़दूरों समेत किसी स्कीम में न आने वाले शख़्स को 1000 रुपये एकमुश्त सहायता राशि देने की घोषणा की गयी है। साथ ही पूरे सूबे में एक हज़ार फ़ूड स्टाल लगाए जा रहे हैं जिनमें 20 रुपये प्रति थाली के हिसाब से भोजन मिलेगा।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के संपादक हैं।)  

महेंद्र मिश्र
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