मन नहीं मुनाफे की बात! जीओ के बाद पीएम मोदी बने रिलायंस के खिलौने के ‘ब्रांड अम्बेसडर’

नई दिल्ली। पीएम मोदी ने कल रविवार को अपने मन की बात में जब कहा कि भारत खिलौने का हब बनता जा रहा है और लोगों को देश में निर्मित खिलौने खरीदने चाहिए तो यह सुनकर लोगों के अचरज का ठिकाना नहीं रहा। लोग सोचने लगे कि इस समय जब देश कोरोना महामारी के महासंकट से जूझ रहा है। और रोजाना सैकड़ों लोग अकाल मौत के मुंह में समा जा रहे हैं तब देश के प्रधानमंत्री को खिलौना कैसे याद आ सकता है? लेकिन शायद एक बात लोग भूल जाते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के खून में व्यापार है। 

यह बात वह खुद बड़े गर्व से देश को बताते रहे हैं। आपको याद होगा जब रिलायंस अपना जीओ शुरू करने वाला था तो पीएम मोदी ने उसका विज्ञापन किया था। और देश भर के तकरीबन हर अखबार के पहले पेज पर हाथ में जीओ मोबाइल लिए पीएम मोदी की तस्वीर थी। उस विज्ञापन को देखकर लोगों की आंखें खुली की खुली रह गयीं। हर तरफ से यह सवाल उठा कि आखिर देश का पीएम किसी प्राइवेट कंपनी के सामान का प्रचार कैसे कर सकता है? लेकिन यह तो मोदी हैं वह कुछ भी कर सकते हैं और उनके भक्त अपने इस भगवान पर भला कैसे अंगुली उठा सकते हैं? 

प्रधानमंत्री मोदी एक बार फिर अपने उस चहेते उद्योगपति की मदद के लिए उतरे हैं। इस बार उन्होंने बस तरीका दूसरा अपनाया है। सीधे हाथ में कंपनी का लोगो या फिर सामान लेने की जगह दूसरे तरीके से उसका प्रचार किया है। दरअसल मुकेश अंबानी ने कोविड-19 शुरू होने से ठीक पहले 260 साल पुरानी खिलौने की एक ब्रांड कंपनी हैमलीज को अधिग्रहीत कर लिया है। इसके लिए रिलायंस ने कंपनी के मालिक को 92 मिलियन डॉलर अदा किए हैं।

लंदन आधारित यह कंपनी घाटे में चल रही थी। इसके 16 देशों में 179 स्टोर हैं। 2019 का इसका एकाउंट बताता है कि यह 13 मिलियन डॉलर के घाटे में है। ब्रांड खरीदने के बाद रिलायंस ने उसके विस्तार पर काम शुरू कर दिया है।

इकोनामिक टाइम्स के मुताबिक इसके तहत कंपनी ने कोविड-19 संकट गहराने के बावजूद योयो मॉडल से लेकर हवाई जहाज जैसे उत्पादों को बनाने का फैसला लिया है। विस्तार योजना में नये स्टोरों को खोलने के साथ ही ऑनलाइन व्यवसाय को तरजीह दी जाएगी। ऐसा रिलायंस ब्रांड्स के चीफ एग्जीक्यूटिव आफिसर सुमित यादव ने इकोनामिक टाइम्स को बताया। उनका कहना था कि विस्तार अपने आप में ब्रांड में विश्वास और रणनीति की जीत का परिचायक है। आपको बता दें कि पिछले 15 सालों में कंपनी को अपने 4 मालिक बदलने पड़े।

उन्होंने कहा कि यह यात्रा घटनाओं से भरी है। लेकिन लंबे समय तक जो निवेश की योजना हमने बनाई है उसको हम रोकने नहीं जा रहे हैं।

हैमलीज को 1760 में विलियम हैमली ने शुरू किया था। हाल के सालों में इसे काफी संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ा। इसके पुराने मालिक फ्रांस के लुडेंडो ग्रुप और चीन की सी बैनर इंटरनेशनल होल्डिंग लिमिटेड बिक्री में और वैश्विक स्तर पर विस्तार दोनों में पूरी तरह से नाकाम रही।

लेकिन रिलायंस को विश्वास है कि वह दुनिया के पैमाने पर इसकी मार्केट बनाने में सफल होगा। उसका कहना है कि वह कपंनी की फ्रेंचाइजी के जरिये पिछले 10 सालों से उसके साथ काम कर रहा है। भारत की फ्रेंचाइजी रिलायंस के पास ही थी। और इस तरह से ब्रांड के साथ उसका नजदीकी ताल्लुक है। हालांकि कंपनी के सीईओ डेविड स्मिथ ने इस्तीफा दे दिया है। वह 7 महीने के भीतर ही अपना पद छोड़ दिए। रिलायंस ने स्मिथ के जाने पर कुछ भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया।

इस बीच, लंदन के रिजेंट स्ट्रीट में स्थित सात फ्लोर वाले कंपनी के स्टोर को फिर रंग-रोगन कर तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा मैनचेस्टर, लिवरपूल और न्यूकैस्टल, इंग्लैंड के स्टोरों में पॉप-अप रियायत देने पर विचार चल रहा है। इसके साथ ही इसकी पश्चिमी यूरोप, आस्ट्रेलिया, अमेरिका और कनाडा में विस्तार की योजना है।

साथ ही कंपनी कोविड चुनौती से निपटने के लिए जबकि शारीरिक तौर पर तमाम पाबंदियां लगी हुई हैं, आनलाइन व्यवसाय पर ज्यादा जोर दे रही है। इसके लिए वेबसाइट को फिर से लांच करने का फैसला लिया गया है।

हालांकि इस मद में रिलायंस कितना निवेश कर रहा है इसको बताने से यादव ने इंकार कर दिया। इशारों में ही कहा कि एक 260 साल पुराने किसी ब्रांड की जो कीमत हो सकती है उसके हिसाब से निवेश किया जा रहा है।

तो इस तरह से पीएम नरेंद्र मोदी ने मन की बात में न केवल खिलौनों का जिक्र करके बल्कि पूरी बात उस पर ही केंद्रित करके अपने गुजराती व्यवसायी मित्र को फायदा पहुंचाने का काम किया है। अगर किसी ने यह सोचा हो कि पीएम मोदी की पहल बच्चों के प्रति उनके प्यार का नतीजा है तो उन्हें यह भ्रम दूर कर लेना चाहिए। यह शुद्ध रूप से मन नहीं बल्कि मुनाफे की बात थी।

लेकिन शायद जनता भी अब इस बात को समझने लगी है। उसके लक्षण पीएम मोदी के ‘मन की बात’ के आधिकारिक यूट्यूब पर लाइक से कई गुना डिसलाइक करने वालों की संख्या में देखे जा सकते हैं। यह घटना केवल यही नहीं बता रही है कि लोग उनके इस खास कार्यक्रम से असहमत हैं बल्कि इस बात के भी संकेत देती है कि इस बीच उनकी लोकप्रियता में बड़े स्तर पर गिरावट आयी है।

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