लाल किले से: सपनों के सबसे शातिर सौदागर हैं पीएम मोदी

इस सच इंकार से करना तथ्यों से मुंह मोड़ना होगा कि नरेंद्र मोदी हमारे समय में सपनों के सबसे शातिर सौदागर हैं। इस मामले में उनके सामने दुनिया का कोई नेता नहीं ठहरता है। वे अतीत की अपनी सारी नाकामी एवं असफलता को भविष्य का शानदार सपना दिखाकर पूरी तरह छिपा लेते हैं। वे यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि कौन-कौन सा सपना कब-कब और कैसे बेचा जा सकता है और किन-किन सपनों के कौन-कौन से समुदाय और वर्ग खरीदार हैं। वे सबसे पहले खरीदारों की आकांक्षाओं की पहचान करते हैं, फिर उन्हें उनका मनचाहा माल बेचते हैं।

बेचने की सबसे जरूरी शर्त यह  होती है कि अपने खराब से खराब माल की (चाहे वह सपना ही क्यों न हो) खूबियों को ऐसी भाव-भंगिमा एवं भाषा के साथ बेचने के लिए प्रस्तुत किया जाए कि खरीदने वाला खरीदने के लिए लालायित हो जाए। खरीदार को माल की गुणवत्ता पर थोड़ा भी शक न हो, बल्कि उसे लगे यह तो वही चीज है, जिसकी मुझे वर्षों से चाह थी। सच तो यह है कि मोदी जी शातिर सौदागर की तरह  गोबर को भी हीरे के भाव बेच सकते हैं और पिछले 6 वर्षों से वे ऐसा ही कर रहे हैं, यही काम उन्होंने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए भी किया।

तय सी बात है कि ऐसा सौदागर होने के लिए गहरे स्तर पर बहुत ही शातिर ठग, फरेबी, धूर्त, मक्कार, आदर्शहीन और मूल्यहीन होना जरूरी है। ऐसे ठगों की कहानियों से साहित्य का भंडार भरा पड़ा है, जो अपने शब्दों के जाल में  फंसाकर लोगों को लूट कर कंगाल बना देते  थे और तुर्रा यह कि जिसे-जिसे लूटा जाता था, उसे पता ही नहीं चलता था कि कब और कैसे उसे लूट लिया गया और वह पूरी तरह से कंगाल हो गया। यह सब कुछ करके ठग फरार हो जाते थे और लुटे हुए लोगों के पास हाथ मलने और अफसोस करने के सिवाय कुछ नहीं बचता था। 

आज लाल किले से प्रधानमंत्री ने डेढ़ घंटे तक सपना बेचा और अपने हर भाषण की तरह अपनी उपलब्धियों के लिए खुद की पीठ भी थपथपायी। लाल किले से उन्होंने सबसे बड़ा सपना भारत को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ देश बनाने का दिखाया, जो हर मामले में दुनिया में सबसे आगे होगा। प्रधानमंत्री जी ने अपने भाव-भंगिमा और भाषा से यह भी संकेत दिया कि यह सपना बहुत जल्दी ही पूरा होने वाला है। अपने भाषण के अंत के निचोड़ को उन्होंने इसी सपने के साथ रखा। भारत को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देश के रूप में देखने का सपना अधिकांश भारतीयों का सपना है, बल्कि लंबे समय की पराजय की हीनताबोध से पीड़ित भारतीयों की कुंठा को यह सपना पंख लगा देता है।

डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका फर्स्ट का नारा देकर अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे और  उन्होंने अमेरिका को और गर्त में धकेल दिया, यही हाल ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सनारो का भी है। हिटलर ने भी जर्मनी को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ देश बनाने का सपना दिखाकर ही करोड़ों लोगों को अपने साथ किया था और उन्हें जर्मनी का सर्वश्रेष्ठ देश बनाने का सपना पूरा करने के लिए यहूदियों का कत्लेआम करने और दूसरे देशों का विध्वंस करने के लिए भी तैयार कर लिया था। प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की पराजय की कुंठा ने इसमें अहम भूमिका निभाई थी। व्यक्ति हो या राष्ट्र सर्वश्रेष्ठता की चाह और दावेदारी, होती बहुत आकर्षक है, इसका मोहपाश बहुत प्यारा होता है, लेकिन यह विध्वंसक एवं विनाशक भी होता है, जो अंततोगत्वा व्यक्ति एवं राष्ट्र को विनाश की ओर ले जाता है। 

 एक कुटिल एवं शातिर सौदागर की तरह प्रधानमंत्री ने भूल से इसका जिक्र नहीं किया कि पिछले 6 वर्षों में भारत को सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाने की दिशा में उन्होंने ठोस तौर पर क्या किया और उसमें उनकी कामयाबी एवं नाकामयाबी क्या है? उन्होंने एक फरेबी की तरह यह भी नहीं बताया कि क्यों और कैसे भारत सभी बुनियादी आर्थिक पैमानों पर पिछले 6 वर्षों में पिछड़ गया है, जीडीपी की विकास दर भी घटकर औसत 8 प्रतिशत (यूपीए के काल) से करीब 4 प्रतिशत हो गई और बेरोजगारी ने 45 वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया, वह भी कोरोना से पहले ही। अर्थव्यवस्था की इस हालत के लिए मोदी जी की नोटबंदी की सनक और आपाधापी में जीएसटी लागू करना सबसे बड़ा कारक रहा। खैर नरेंद्र मोदी जैसे आत्ममुग्ध प्रधानमंत्री से किसी तरह की असफलता या नाकामयाबी की स्वीकृति की उम्मीद करना किसी शातिर ठग से ईमानदारी की उम्मीद करने जैसा है।

भारत को सर्वश्रेष्ठ देश बनाने के सपने के साथ मोदी जी ने सबसे बड़ा सपना कृषि एवं किसानों की उन्नति एवं समृद्धि का दिखाया। यह हमारे देश के नेताओं द्वारा दिखाया जाने वाला हमेशा का सपना रहा है, इस बार मोदी जी ने इसे पूरा कर दिखाने का जो-शोर से संकल्प लिया। फिर उन्होंने मध्म वर्ग को कुछ बड़े सपने दिखाए, जिसमें अपने घर का सपना भी शामिल है। यह वही मध्यवर्ग है जिसकी कमर वे पिछले 6 वर्षों में करीब तोड़ चुके हैं और रही-सही कसर पूरा करने का कार्यक्रम भी उन्होंने विभिन्न रूपों में प्रस्तुत कर दिया है, जिसमें हाल में उनके द्वारा घोषित टैक्स सुधार भी शामिल है। देश के कम विकसित क्षेत्रों को विकसित क्षेत्रों में बदलने का सपना भी दिखाया गया।

इसके लिए रोड मैप भी प्रस्तुत किया गया। पिछले एक वर्ष में ( अनुच्छेद 370 हटने एवं राज्य का दर्जा खत्म होने के बाद) जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख में क्या-क्या बेहतर हुआ है, इसके लिए अपनी पीठ थपथपाते हुए प्रधानमंत्री जी ने इन क्षेत्रों को स्वर्ग बनाने का ख्वाब ऐसे प्रस्तुत किया जैसे, इसके पहले ये पिछड़े हुए नरक थे। प्रधानमंत्री जी ने महिलाओं को भी नए-नए ख्वाब दिखाए। मजदूरों का जिक्र करते हुए उन्होंने उन्हें मुफ्त राशन देने के लिए खुद को शाबाशी दी। मजदूरों, किसानों एवं महिलाओं के सामने खुद की दाता की छवि प्रस्तुत करने से इस बार भी वे बाज नहीं आए, जो कुछ इन वर्गों को सरकार द्वारा दिया गया है, उसके वर्णन के तरीके से लगा, जैसे यह उनका हक नहीं था, बल्कि प्रधानमंत्री जी की कृपा थी।

कोरोना महामारी के संबंध में भी प्रधानमंत्री ने सपना ही दिखाया। उन्होंने बताया कि भारत में में तीन अलग-अलग टीकों के निर्माण पर हमारे वैज्ञानिक तपस्वी की तरह कार्य कर रहे हैं और जल्द ही टीका तैयार हो जाएगा, सारे भारतीयों को उपलब्ध हो जाएगा और इस तरह छू-मंतर में कोरोना संकट का समाधान हो जाएगा। सारे तथ्य बता रहे हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यूएचओ) ने भी चेतावनी दी है कि भारत में कोरोना का संकट विश्व में सबसे ज्यादा गंभीर होता जा रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री ने इस संदर्भ में एक शब्द भी नहीं बोला। हां उन्होंने मास्क बनाने, पीपी किट बनाने, वेंटिलेटर बनाने और टेस्टिंग सुविधा बढ़ाने के संदर्भ में अपनी पीठ जरूर थपथपाई। वर्तमान में कोरोना से निपटने के सवाल को भविष्य में आने वाले टीके के सपने के भरोसे छोड़ दिया और इस तरह कोरोना से निपटने में अपनी नाकामी को छिपा लिया।

एक शातिर सौदागर या नेता की सबसे बड़ी सफलता यह होती है कि जिस मामले में वह पूरी तरह नाकारा एवं असफल साबित हुआ हो, उस मामले में भी अपनी सफलता का भरोसा दिला दे, यह कार्य उन्होंने बखूबी चीन के साथ सीमा पर सैन्य टकराव के संदर्भ में किया। यह जगजाहिर तथ्य है कि चीन अपनी दावेदारी के अनुसार भारत के एक हिस्से पर नियंत्रण कर लिया है और इस संदर्भ में हुए सैन्य टकराव में भारत के 20 सैनिक मारे भी गए। इस सारे घटनाक्रम ने यह साबित किया कि मोदी की चीन के राष्ट्रपति के शी जिनपिंग के साथ व्यक्तिगत स्तर पर संबंध कायम करने और उसे अपनी सफलता बताने की कार्यनीति पूरी तरह नाकाम हुई, लेकिन सैनिकों के बलिदान का नाम लेकर मोदी ऐसे बोल रहे थे, जैसे भारत ने ही चीन को सबक सिखा दिया हो और पूरे टकराव में भारत की स्थिति मजबूत हो।

जबकि तथ्य इसके उलट हैं। यही बात पड़ोसी देशों के साथ संबंध के मामले में भी लागू होती है, करीब सभी पड़ोसी देश भारत का धीरे-धीरे साथ छोड़कर चीन के साथ अपने रिश्ते घनिष्ठ कर रहे हैं, जिसमें नेपाल एवं बांग्लादेश भी शामिल हैं, लेकिन मोदी जी ऐसे बोल ( झूठ) रहे थे, जैसे सारे पड़ोसी उनके साथ खड़े हों। दुखद है कि भारत की जनता का एक बड़ा हिस्सा उनके झूठ को भी स्वीकार कर लेता है, बल्कि बढ़-चढ़कर उसका प्रचार भी करता है। यह एक शातिर नेता की सबसे बड़ी सफलता होती है।

मोदी जी ने जितने सपने दिखाए, उसको पूरा करने के लिए उन्होंने आत्मनिर्भर होने का मंत्र दिया और इसके लिए सुधार जरूरी बताए यानि सारे सपने तब पूरे होंगे, जब देश के प्राकृतिक संसाधनों, सार्वजनिक इकाइयों और सार्वजनिक धन ( बैंक- भारतीय जीवन बीमा ) को देशी-विदेशी पूंजीपतियों को सौंप दिया जाएगा और सरकार का काम टैक्स वसूलना तथा सच्चाई को उजागर करने वाले लोगों एवं जन के साथ संघर्ष करने वाले लोगों को देशद्रोही ठहराना और जेल भेजना रह जाएगा।

आज का पूरा भाषण भी इस बात का सबूत है कि नरेंद्र मोदी सपनों के एक शातिर सौदागर हैं। इसके साथ यह भी सच है कि इस ठग सौदागर द्वारा दिखाए जाने वाले सपनों पर देश के एक बड़े हिस्से को भरोसा भी है, चाहे भले उसके द्वारा दिखाए गए पिछले सपने पूरे न भी हुए हों, जैसे अच्छे दिन का सपना, काला धन वापस लाने का सपना, सबके लिए रोज़गार का सपना और भ्रष्टाचार की समाप्ति का सपना।  इसका कारण यह है कि इस ठग सौदागर की ठगी को जो लोग जानते और पहचानते हैं और फिर उसको उजागर कर सकते हैं, उनका उस जनता से कोई सीधा रिश्ता नहीं है, जिन्हें नरेंद्र मोदी अपने सपने बेचते हैं। नरेंद्र मोदी के सपने की ठगी की हकीकत को पहचनाने वाले अधिकांश लोग अपने आरामगाहों में आराम फरमा रहे हैं या हवा में लाठियां भाज रहे हैं।

ये लोग अधिकांश मध्यमवर्गीय एवं उच्च मध्यम वर्गीय बुद्धिजीवी हैं, जिनके बहुलांश हिस्से का जनता से कोई सीधा नाता नहीं है, न ही उनके पास वह भाषा है, इस शातिर सौदागर की सच्चाई को आम जन तक पहुंचा सके।  विपक्षी राजनीतिक पार्टियां या तो इस ठग के सामने समर्पण कर चुकी हैं या ट्वीट-ट्वीट का खेल खेल रही हैं। हां एक छोटा सा हिस्सा सच को उजागर कर रहा है, लड़ रहा है, लाठी गोली खा रहा है, जेल जा रहा है, लेकिन विपक्षी पार्टियां और बुद्धिजीवियों का बड़ा हिस्सा इंतजार कर रहा है कि जनता एक दिन अपने आप इस शातिर सौदागर की ठगी को समझ लेगी और इसे सत्ता से बाहर कर देगी। लेकिन शायद तब तक इस देश और समाज के लिए बहुत  देर हो चुकी होगी।

(डॉ. सिद्धार्थ जनचौक के सलाहकार संपादक हैं।)

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