उम्र के ढलान पर चौधरी वीरेंद्र सिंह के सियासी पैंतरे

हिसार। हरियाणा की राजनीति में अरसे से मुख़्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाले पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह अलग-अलग तरह से खुद को प्रासंगिक बनाने का प्रयास करते रहते हैं। 42 साल कांग्रेस के साथ रहने के बाद भी जब कांग्रेस में मुख्यमंत्री की अभिलाषा पूरी होती नहीं दिखाई दी तो 2014 में उन्होंने मोदी लहर के प्रभाव में भाजपा का दामन थाम लिया। उस वक्त कोई राजनीतिक डील हुई थी या नहीं, यह कभी सार्वजनिक नहीं हुई लेकिन वीरेंद्र सिंह ने ख़ुशी और हौसले से संकेत अवश्य दिए थे कि प्रदेश में एक बड़ी भूमिका वो पा लेंगे। लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद उनको प्रदेश से अलग केंद्र में स्थान मिला। हरियाणा प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सपना वहां भी उनको मात दे गया। 

भारत के बड़े किसान नेता सर चौधरी छोटू राम के नाती होने की विरासत लिए वीरेंद्र सिंह ने राजनीति में कदम रखा और 1977 में देश में कांग्रेस विरोधी लहर में उचाना क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव जीता। इस जीत ने वीरेंद्र सिंह को कांग्रेस में एक खास पहचान दिलवाई, जिसके कारण वीरेंद्र सिंह को लगने लगा कि हरियाणा कांग्रेस में उनसे बड़ा कोई नेता नहीं है।

वीरेंद्र सिंह 1980 में हरियाणा युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 2 साल पद पर रहे। 1985 में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनने के बाद 1987 में कांग्रेस कार्य समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य चयनित किये गए। 5 बार विधायक, 2 बार सांसद और प्रदेश सरकार में कई मंत्रालयों के मंत्री रहे वीरेंद्र सिंह हरियाणा में सर्वमान्य नेता बनाने में सफल नहीं हो पाए, जिसके पीछे उनके व्यक्तित्व में खुद की छवि को हमेशा ही बहुत उच्च मानने की धारणा रही है।

इस वर्ष जून में वो सोनीपत के सेक्टर-14 स्थित अग्रसेन भवन में अपने कार्यकर्ताओं के साथ मुलाकात करने पहुंचे थे। इस दौरान वीरेंद्र सिंह ने संकेत दिया कि वो जींद में 2 अक्टूबर को एक रैली करेंगे जिसमें वो अपनी कोई नई पार्टी का ऐलान कर सकते हैं। कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए वीरेंद्र सिंह ने प्रदेश की भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार की नीतियों की भी आलोचना की।

वर्तमान सरकार व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की खुलकर आलोचना करते हुए उन्होंने कहा था कि प्रदेश में अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है, युवा अपने भविष्य के लिए अपनी जमीन बेच कर विदेशों की ओर पलायन करने लगे हैं। हरियाणा में शिक्षा व स्वास्थ्य की समस्या को सबसे गंभीर बताते हुए उन्होंने सवाल खड़े किये थे। वीरेंद्र सिंह यह आरोप लगाने से भी नहीं चूके कि प्रदेश सरकार जाट बहुल क्षेत्रों में विकास कार्य करवाने में भेदवाव कर रही है। 

वीरेंद्र सिंह के विरोधियों का कहना है कि वे अपने अनुकूल राजनीतिक स्थितियों को न पा कर अक्सर बागी तेवर अपनाने से गुरेज नहीं करते। विगत में भी अपनी पार्टी की नीतियों पर सवाल उठाने से वो नहीं चुके। सुविधा व सहजता की राजनीति करने के पक्षधर वीरेंद्र सिंह के खाते में कोई कठोर राजनीतिक संघर्ष दर्ज नहीं है। अब किसानों और बेरोजगार युवाओं की बात करने वाले वीरेंद्र सिंह ने किसानों और बेरोजगारों की मांगों के लिए कभी कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया।

वीरेंद्र सिंह की सियासी पारी को मापने के लिए उनके समर्थकों द्वारा 2 अक्टूबर के दिन जींद शहर में एक रैली ‘मेरी आवाज़ सुनो’ का आयोजन किया था, जिसको अराजनीतिक कार्यक्रम के रूप में प्रचारित गया, इस कार्यक्रम में कोई बड़ी घोषणा करने के संकेत वीरेंद्र सिंह पिछले कुछ महीनों से देते रहे। आयोजकों ने दावा किया था कि पूरे प्रदेश से लाखों की संख्या में उनके समर्थक पहुंचेंगे और वीरेंद्र सिंह किसी नयी पार्टी की घोषणा भी कर सकते हैं।

उन्होंने एक इंटरव्यू में कुछ दिन पहले कहा था कि 2024 में हरियाणा के विधानसभा चुनाव में उनकी राजनीतिक विचारधारा का समर्थन करने वाले लोगों को करीब 30 सीटों पर चुनाव लड़ाया जा सकता है।

जींद में हुई रैली में वीरेंद्र सिंह ने अपने समर्थन में हरियाणा प्रदेश के किसी बड़े नेता को मंच पर प्रस्तुत नहीं किया। अपनी बात को सामाजिक समस्याओं के इर्द गिर्द रखते हुए उन्होंने बेरोजगारों व किसानों की प्रति सरकार की नीतियों की बात की और जजपा नेताओं पर भष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाए। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ‘जजपा के एक बड़े नेता ने लोगों को इतना बड़ा धोखा दिया है, जितना हरियाणा के किसी अन्य नेता ने नहीं दिया।’

रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अगर भाजपा सोचती है कि जजपा के साथ गठबंधन द्वारा 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव में गठबंधन के वोट ले सकती है, तो वह गलत है। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, “जजपा को अपने वोट भी नहीं मिलने वाले हैं।” वीरेंद्र सिंह ने भाजपा नेतृत्व को चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगर भाजपा-जजपा का गठबंधन जारी रहा तो वो वहां नहीं रहेंगे।

चौधरी वीरेंद्र सिंह की रैली के भाषण का सीधा सरल अर्थ यह है कि यदि भाजपा और जजपा का समझौता जारी रहा तो वीरेंद्र सिंह को भाजपा से न तो हिसार लोकसभा का टिकट मिलेगा और न ही उचाना विधानसभा का टिकट मिलेगा क्योंकि ये दोनों टिकट जजपा समझौते के तहत ले जाएगी। यदि जजपा-भाजपा का समझौता टूटता है तो ही हिसार लोकसभा और उचाना विधानसभा का टिकट वीरेंद्र सिंह को मिल सकता है। यह समझौता कैसे टूटे, सारी कवायद इसी जुगत में की गयी ज्यादा लगती है। ढलती उम्र में इस तरह की राजनीति को भाजपा कैसे संतुलित या नियंत्रित करती है ये चुनाव की दहलीज़ पर तय होगा।  

(जगदीप सिंह सिंधु वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

जगदीप सिंह सिंधु

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