लखीमपुर किसान हत्याकांड पर पंजाब में जबरदस्त रोष

लखीमपुर-खीरी में किसान हत्याकांड बीते दस महीनों से चल रहे किसान आंदोलन का सबसे बड़ा खूनी हादसा है। उत्तर प्रदेश से भी ज्यादा इसका विरोध पंजाब में हो रहा है। आज सूबे के तमाम जिलों, कस्बों और गांवों में इसके विरोध में जबरदस्त धरना प्रदर्शन और रोष रैलियां निकालीं गईं। चंडीगढ़ से लेकर सुदूर मानसा तक किसान संगठन और तमाम गैर भाजपाई संगठनों ने सड़कों पर आकर शांतिपूर्वक ढंग से इस हत्याकांड के विरोध में अपने गुस्से का इजहार किया।

कथित तौर पर उत्तर प्रदेश को सियासत की प्रयोगशाला कहा जाता है और पंजाब के ज्यादातर लोग आज यह कहते मिले कि किसानों के साथ जो सुलूक लखीमपुर में किया गया वह भाजपा शासित अन्य राज्यों तथा दिल्ली में भी किया जा सकता है। सूबे के कोने-कोने तक शिद्दत से आवाज उठी कि अगर तमाम विपक्ष को इस तरह नाजायज तौर पर हिरासत में ले लिया गया तो आखिर लोकतंत्र बचा ही कहां? यूपी सरकार की बेशर्मी और सच छुपाने की कवायद देखिए कि राज्य के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को लखनऊ तक भी आने की इजाजत नहीं दी गई। मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से यूपी प्रशासन को कई बार सूचित किया गया कि पंजाब के मुख्यमंत्री मृतकों से संवेदना प्रकट करने के लिए लखीमपुर जाना चाहते हैं लेकिन इंकार कर दिया गया। जबकि उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा को भी लखनऊ नहीं उतरने दिया गया। पंजाब सरकार का कहना है कि इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने बकायदा शासनादेश जारी किए। माना जाता है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। सूबे में चौतरफा सवाल यह भी उठ रहा है कि योगी सरकार आखिर छुपाना क्या चाहती है।

बहरहाल, बेशक यूपी सरकार की तरफ से मृतक किसानों को मुआवजा देने की घोषणा दोपहर ही कर दी गई थी लेकिन पंजाब में किसानों और मजदूर संगठनों का गुस्सा शांत नहीं हुआ है। 4 अक्टूबर को अमृतसर, तरनतारन, जालंधर, नंवा शहर, होशियारपुर, लुधियाना, रोपड़, मानसा, बठिंडा, फरीदकोट, फिरोजपुर, बरनाला, संगरूर, मोहाली, कपूरथला, मलेरकोटला सहित तमाम जिलों के उपायुक्त दफ्तर किसानों ने घेरे और उपायुक्तों के जरिए केंद्र को विरोध पत्र भेजे। चंडीगढ़ में भी राज्यपाल निवास के बाहर बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ जिसकी अगुवाई नवजोत सिंह सिद्धू ने की। उन्हें हिरासत में भी लिया गया। इसके अतिरिक्त सात किसान संगठनों ने भी एकजुट होकर राज्यपाल निवास का घेराव किया।
गौरतलब है कि सूबे के तमाम किसान संगठन लखीमपुर किसान हत्याकांड के विरोध में बड़े आंदोलन की तैयारी में हैं। उधर, पंजाब के तमाम गैर भाजपाई सियासी दल इस हत्याकांड के विरोध में एकसुर होकर बोल रहे हैं। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी कहते हैं, ” इस सबकी जितनी निंदा की जाए उतनी कम है।

उससे भी ज्यादा योगी सरकार के रवैए की। वहां की सरकार तनिक भी गंभीर होती तो विपक्ष को वहां जाने से नहीं रोकती। कहीं भी आना जाना हमारा संवैधानिक अधिकार है और संवेदना व्यक्त करना सामाजिकता का शिखर लेकिन अंधी भाजपा यूपी को क्या पूरे देश को ही अपनी कॉलोनी मानती है। यह कहां की जम्हूरियत है। खुद मुझे वहां जाने से रोक दिया गया जबकि मैं प्रोटोकॉल से लैस हूं।”

शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने भी आज दो जगह धरनों की अगुवाई की। उनके मुताबिक, “लखीमपुर में जो हुआ वह भाजपा के मत्थे पर बहुत बड़ा कलंक है। अकाली दल किसानों की पक्षधर पार्टी है। इस हत्याकांड के विरोध में हम राज्यव्यापी आंदोलन चलाएंगे।” आम आदमी पार्टी के विधायक प्रिंसिपल बुधराम कहते हैं कि, “तत्काल केंद्रीय गृह राज्यमंत्री और उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री का इस्तीफा होना चाहिए। वस्तुतः यह लोग साजिश करते हैं। गृह राज्यमंत्री के बेटे की गिरफ्तारी में इतना वक्त क्यों लग रहा है जबकि तमाम चश्मदीद मीडिया के आगे बोल चुके हैं। सभी एकमत हैं कि हत्याकांड को गृह राज्य मंत्री के बेटे ने अंजाम दिया।” संयुक्त किसान आंदोलन में सक्रिय और देशभक्त यादगार हाल के ट्रस्टी तथा पंजाब लोक मोर्चा के संयोजक अमोलक सिंह दो टूक कहते हैं कि बीजेपी का शासन दमनकारी है और लखीमपुर की हौलनाक वारदात से यह फिर से साबित हुआ है।

गौरतलब है कि लखीमपुर के बहुत सारे किसान मुद्दत पहले पंजाब से गए थे और उनकी सूबे में रिश्तेदारियां हैं। लखीमपुर में इंटरनेट स्थगित कर दिया गया है और इधर पंजाब में बैठे उनके परिजन उनसे संपर्क न हो पाने की वजह से परेशान हैं। फैलती सरगोशियों से इसमें इजाफा हो रहा है। जालंधर जिले के करतारपुर निवासी ज्ञान सिंह का कहना है कि उनका सारा परिवार लखीमपुर में है और वह बेचैन हैं वहां के हालात जानने के लिए। अब सिर्फ मीडिया सहारा है लेकिन वह भी कितना बता रहा है इस सच-झूठ का कुछ पता नहीं। खैर, लखीमपुर से किसी तरह बाहर निकले एक किसान ने जालंधर स्थित अपने परिजन को फोन पर बताया कि यूपी सरकार ने पूरे इलाके को एक किस्म के किले में तब्दील कर दिया है।

किसान आंदोलन वैसे भी भाजपा के गले की हड्डी बन चुका है और अब लखीमपुर कांड कहीं न कहीं परिणिति को छू लेगा, तय है। अतीत के सबक हैं कि मुआवजा माफी और नतीजा नहीं होता!
(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक सिंह की रिपोर्ट।)

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