पंजाब स्थानीय निकाय चुनावों में बीजेपी चढ़ गयी किसान आंदोलन की भेंट

पंजाब के स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा इतना तो जानती थी कि उसकी हार निश्चित है लेकिन इतनी बुरी दुर्गति होगी और वह भी भाजपा के शहरी हिंदू सीटों पर इसका अंदाज उसे नहीं था। चुनाव परिणाम को किसान आन्दोलन से जोड़ना पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि ये चुनाव शहरी निकाय के थे जो भाजपा के पसंदीदा क्षेत्र रहे हैं। भाजपा की इस दुर्गति का एक बड़ा संकेत है कि पंजाब की शहरी जनता में भी भाजपा के खिलाफ काफी ज्यादा आक्रोश है।

पंजाब के आठ में से सात नगर निगमों पर कांग्रेस ने कब्जा जमा लिया है, जबकि आठवें का नतीजा भी नहीं आया है। नगर निगम के अलावा नगर पालिका परिषद और नगर पंचायत में भी भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया है। कभी भाजपा की सबसे बड़ी सहयोगी और इस चुनाव में भाजपा के प्रतिद्वंदी शिरोमणि अकाली दल का भी बैंड बज गया है।आम आदमी पार्टी के लिए भी नतीजे निराशाजनक हैं। ये नतीजे ऐसे वक्त में आए हैं, जब पंजाब में विधानसभा का चुनाव एक साल की दूरी पर है।

राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन के बीच पंजाब से भाजपा के लिए एक बुरी खबर सामने आई है। यहां हुए नगर निकाय चुनावों में बीजेपी का लगभग सूपड़ा साफ हो चुका है। वहीं कांग्रेस ने क्लीन स्वीप किया है।भाजपा के खिलाफ शहरी मतदाताओं में कितना गुस्सा है, इसे  समझने के लिए फजिल्का जिले के अमोहा शहर के नतीजों पर नजर डालें, जहां से बीजेपी विधायक हुआ करते हैं। यहां की नगर निगम चुनाव की 50 सीटों पर बीजेपी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई। यानी पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया।

पंजाब के होशियारपुर में भाजपा को करारी हार मिली है। यहीं से भाजपा के केंद्रीय मंत्री सोमप्रकाश आते हैं, जो यहां के सांसद भी हैं।यहां भाजपा को 50 में से सिर्फ 4 सीटें मिली हैं। इसके बाद अगर गुरदासपुर जिले के बटाला की बात करें तो यहां भी बीजेपी को 50 सीटों में से सिर्फ 4 ही सीटें मिल पाई हैं। यहां से सनी देओल बीजेपी के सांसद हैं।पठानकोट में भाजपा का प्रदर्शन थोड़ा सा बेहतर हुआ और यहां 50 में से बीजेपी को 11 सीटें मिली हैं, लेकिन फिर भी हार का सामना करना पड़ा है।

इन चुनावों में पार्टी की बड़ी जीत हुई है।सिर्फ मोगा ऐसा क्षेत्र रहा है, जहां पर किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं हुआ है।लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि बठिंडा में कांग्रेस ने अकाली दल और भाजपा के गढ़ में सेंध लगा दी है।यहां 53 साल बाद कांग्रेस की जीत हुई है।

ये किसान आंदोलन के बाद पंजाब में सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण चुनाव था।इन चुनाव के नतीजों में भाजपा की करारी हार एक बड़ा संकेत है कि पंजाब की जनता में बीजेपी के खिलाफ काफी ज्यादा गुस्सा है, जिसका नुकसान पार्टी को आने वाले चुनावों में भी झेलना पड़ सकता है। शिरोमणि अकाली दल से दशकों पुराना नाता टूटने के बाद भाजपा के लिए पंजाब में सबसे पहले चुनौती ये शहरी निकाय चुनाव थे। अभी तक भाजपा और शिअद मिलकर चुनाव में किस्मत आजमाते थे। ये निकाय चुनाव के परिणाम 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पंजाब के रुख को भी बता रहे हैं । आंकड़ों की यदि हम बात करें तो सूबे की कुल आबादी 27743338 में से 10399146 लोग शहरी क्षेत्रों में निवास करते हैं।

अभी तक के हुए चुनावों में यह बात सामने आती थी कि भाजपा का अधिकांश कैडर वोट शहरी क्षेत्रों में निवास करता है। इसके साथ ही पंजाब की हिंदू आबादी लगभग 6282072 के करीब शहरी क्षेत्रों में ही रह रही है। कुल हिंदू आबादी का लगभग 70 फीसदी वोट भाजपा के ही खाते में जाता रहा है।पर इस चुनाव परिणाम ने इस पर गम्भीर सवाल पैदा कर दिया है और शहरी हिन्दू मतदाताओं ने यह दिखा दिया है कि उनका वोट फॉर ग्रांटेड नहीं है।  

2015 में हुए पिछले निकाय चुनावों में कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही थी। शिरोमणि अकाली दल को 813 और भाजपा को 348 सीटें मिली थीं। दोनों दलों का गठबंधन 1161 सीटों पर जीता था।इस बार मुख्‍य विपक्षी पार्टी शिरोमणि अकाली दल के लिए चुनाव नतीजे बेहद निराश करने वाले हैं। वहीं, पहली बार निकाय चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी अपनी छाप छोड़ने में पूरी तरह से नाकामयाब रही।

पंजाब में 8 नगर निगम और 109 नगर पालिका-नगर परिषदों पर गत 14 फरवरी को चुनाव हुए थे। बुधवार को आए नतीजों में पूरी तरह कांग्रेस का दबदबा रहा। बठिंडा, होशियारपुर, कपूरथला, अबोहर, बटाला और पठानकोट नगर निगम में कांग्रेस जीत हासिल कर चुकी है। मोगा नगर निगम के नतीजे देर रात तक आने की बात कही जा रही है। हालांकि अब तक यहां कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। वहीं, आठवें नगर निगम मोहाली में 19 फरवरी को नतीजे आएंगे।

 (वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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