भारत जोड़ो यात्रा पार्ट-2: गेम चेंजर साबित हो सकती है बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे पर राहुल गांधी की यात्रा

नई दिल्ली। मंगलवार को सदन की कार्यवाही में बाधा डालने के लिए नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, कांग्रेस नेता शशि थरूर, मनीष तिवारी, कार्ति चिदंबरम और एनसीपी की सुप्रिया सुले सहित 49 लोकसभा सांसदों को निलंबित कर दिया गया। इसके साथ, संसद के इस शीतकालीन सत्र में अब तक कुल 141 सांसदों को निलंबित किया जा चुका है। लोकसभा से 95 और राज्यसभा से 46 विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया है। सोमवार को लोकसभा के 33 सदस्यों और राज्यसभा के 45 सदस्यों को निलंबित कर दिया गया, जो सभी विपक्षी इंडिया समूह से संबंधित थे, जिनमें से अधिकांश को शीतकालीन सत्र के शेष भाग के लिए निलंबित कर दिया गया। पिछले सप्ताह चौदह विपक्षी सांसदों को शेष सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था।

लोकसभा में कांग्रेस के नेता सदन अधीर रंजन चौधरी सोमवार को संसद से निलंबित किए गए 78 विपक्षी सांसदों में से एक हैं। एक दिन और एक सत्र में सांसदों के निलंबन की यह रिकॉर्ड संख्या है। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि मोदी सरकार “संसद नहीं चलाना चाहती” और उसे “संसदीय प्रणाली में रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं है”।

3 अन्य सांसदों को विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट आने तक निलंबित रखा गया है। इस निलंबन के पीछे इन सांसदों का संसद की सुरक्षा में हुई भारी चूक के मुद्दे पर देश के गृहमंत्री अमित शाह के इस्तीफे से लेकर सदन में आकर बयान देने के मुद्दे पर सदन के भीतर विरोध और हाथों में तख्तियां लेकर शोर-शराबा करने का हवाला दिया जा रहा है।

इन विपक्षी सांसदों को शायद आभास नहीं कि वे पुरानी संसद में नहीं बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा निर्मित नई संसद के भीतर हैं। ये सब विरोध और सरकार की गलतियों पर सदन और देश का ध्यान दिलाने के लिए सदन में प्रदर्शन और हंगामा खड़ा करने के दिन चले गये। वैसे भी पीएम मोदी और गृहमंत्री की ओर से संसद के बाहर जब मीडिया वालों को इंटरव्यू दिया जा चुका है तो फिर बेमतलब का संसद का बहुमूल्य समय क्यों नष्ट किया जा रहा है?

जाहिर सी बात है कि 2024 आम चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, नरेंद्र मोदी और अमित शाह ऐसी किसी भी चूक को विपक्ष के सामने स्वीकार नहीं करने जा रहे, जिससे भाजपा के देश की सुरक्षा के मामले में सबसे चाक-चौबंद रहने वाले दल के रूप में चला आ रहे नैरेटिव की मिट्टी पलीद हो जाये। विपक्ष को यह बात समझ में आ जानी चाहिए थी, लेकिन अधिकांश सांसद आज भी पुरानी लीक पर चलने वाले लोग हैं। इन्हें लगता है कि संसद की गरिमा, परंपरा और पार्लियामेंट की सुरक्षा में चूक पर वे मोदी सरकार को आसानी से घेर सकते हैं।

शायद विपक्ष में राहुल गांधी ने इस तू-तू मैं-मैं वाली रूटीन कवायद के अंजाम के बारे में पहले ही समझ लिया था। इससे पहले भी विपक्ष ने कई बार सरकार को घेरने की कोशिश की है, लेकिन हर बार अंत में आंशिक नैतिक जीत के अलावा विपक्ष कुछ भी सार्थक परिणाम हासिल कर पाने में असफल रहा है। इसका कारण यह है कि यह सरकार आजादी के बाद से भारतीय संसदीय इतिहास की सबसे अनूठा आचरण करने वाली पार्टी रही है।

इसे नोटबंदी और कोरोना की शुरुआत में अचानक से देश को संभलने का मौका दिए बगैर लॉकडाउन में डालने, महिला पहलवान खिलाड़ियों के साथ हुए यौन उत्पीड़न पर अपने एक सांसद पर कार्रवाई करने, गृहराज्य मंत्री के बेटे द्वारा आंदोलनरत किसानों पर गाड़ी चढ़ा देने या मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर विपक्ष की ओर से अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए मजबूर होने जैसे अनेकों मामलों से आसानी से समझा जा सकता है।

राहुल गांधी को अब शायद इस बात का गहराई से अहसास हो गया है कि इस सरकार को उसकी कमियों के बारे में बताकर उसकी आलोचना करने, नीचा दिखाने में अपनी मेहनत जाया करने से कोई फायदा नहीं है, उल्टा भाजपा के द्वारा इसे सिरे से खारिज करने और अपने काउंटर नैरेटिव को गोदी मीडिया, आईटी सेल और तमाम संगठनों के माध्यम से फ़ैलाने से विपक्षी दलों को ही नाकारा और देश की प्रगति में बाधक साबित किया जाता रहा है।

यह 2014 के बाद की सरकार है, जिसके पास अपना खुद का प्रचार-तंत्र है, जिसके ग्राहक वे करोड़ों वोटर हैं, जिन्हें राष्ट्रवाद, मर्दाना विदेश नीति, घर में घुस कर मारने वाली छवि से अंधभक्ति है। ऐसे लोग आज भी बड़ी संख्या में हैं, जिन्हें पक्का विश्वास है कि मोदी जी के कारण देश का मुसलमान खामोश है, वरना कांग्रेस अब तक न जाने क्या-क्या करवा देती देश का।

उन्हें भारत की आजादी के 75 वर्ष और अमृत काल ही नहीं विश्व गुरु बनने की राह में तेजी से बढ़ते भारत पर भी पूरा यकीन है। जब तक ऐसे करोड़ों लोग हैं, और उन्हें व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी से मिलने वाली शिक्षा पर पूरा-पूरा यकीन है, तो सरकार को क्या पड़ी है विपक्षी दलों के आरोपों पर ध्यान देने की? कांग्रेस सहित विपक्ष लगातार दो हार के बाद भी यदि कारणों की खोज कर इलाज ढूंढ पाने में असफल है तो इसके लिए दोषी वह खुद है।

असल बात तो यह है कि कारणों की खोज वो ही कर सकता है जो कोशिश करे और विफल हो। यह काम देश में राहुल गांधी के अलावा कोई ओर कर भी नहीं रहा था। वे कोशिश करते हैं, और नाकाम होते हैं। फिर दूसरी कोशिश और नाकामी। विजय माल्या, राफेल विवाद, चौकीदार चोर है से लेकर अडानी के मुद्दे को विपक्ष में मुखरता से यदि किसी ने उठाने की कोशिश की तो वह राहुल गांधी ही थे, जिनके खिलाफ भाजपा ने सबसे लंबा और सघन अभियान चलाया।

मोदी के ‘आलू से सोना बनाने’ की स्कीम का उदाहरण देने वाले राहुल गांधी के वीडियो को कैसे कांट-छांटकर आईटी सेल ने उन्हें पप्पू बनाकर पेश किया, वह देश के गांव-देहात में आज भी भाजपा के काम आ रहा है। सही मायने में कहें तो पिछले वर्ष ‘भारत जोड़ो’ यात्रा के दौरान ही राहुल को असली भारत से जुड़ने का मौका मिला, और देश को भी उन्हें देखने-परखने का मौका मिला।

यह भी सही है कि इससे पहले राहुल की छवि राजनीति को एक पार्ट-टाइम के रूप में लेने वाले की बनी हुई थी। यह काफी हद तक सही भी लगती है। कांग्रेस मुख्यालय से अपने राजनैतिक कैरियर की शुरुआत करने वाले के लिए वैसे भी दो ही आप्शन बचते हैं। पहला या तो वह पॉवर पॉलिटिक्स का माहिर खिलाड़ी बन जाए या फिर उसे राजनीति से ही पूरी तरह से अरुचि हो जाये।

2014 और 2019 में दोनों बार बुरी तरह हार से अंदर तक टूट चुकी कांग्रेस की नैया अब नदी किनारे रेत में धंस चुकी थी, और कांग्रेस में कई दशकों तक सत्ता की मलाई खा रहे लोग अब खुली बगावत पर आमादा थे। ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के नारे के साथ नरेंद्र मोदी के दावे को दिन-प्रतिदिन मजबूती मिल रही थी।

ऐसे में कुछ सौ नौजवानों के साथ भारत भ्रमण की यात्रा पर निकले राहुल गांधी को 5 महीने में देश की झलक देखने को मिली। इस अभियान को शुरू से ही गोदी मीडिया से दूर रखा गया। कांग्रेस को निश्चित ही इससे लाखों लोगों से सीधे मिलने और उनके सरोकार जानने-समझने का मौका मिला।

यही कारण है कि तेलंगाना में जीत के बाद नव-निर्वाधित मुख्यमंत्री को बधाई देने के बाद, जब भाजपा 3 हिंदी प्रदेशों में अपनी जीत का जश्न मना रही थी, तो अगले 6 दिनों तक राहुल गांधी का एक भी ट्वीट नहीं आया। संसद की सुरक्षा में चूक के मसले पर भी राहुल ने कुछ नहीं कहा। और जब चुप्पी तोड़ी तो उसमें वो बात निकली, जिसे असल में देश सुनना चाहता था।

ये उन 7 बेरोजगार युवाओं की कहानी है, जो इस देश के बहुसंख्य आमजनों की पीड़ा का प्रतिनधित्व कर रहे हैं। राहुल गांधी ने अपने बयान में कहा कि संसद की सुरक्षा में चूक तो सही बात है, लेकिन असल बात तो यह है कि वे ऐसा करने के लिए क्यों बाध्य हुए। देश बेरोजगारी और महंगाई की मार से बुरी तरह से त्रस्त है, और इसके लिए मोदी सरकार की 10 साल की नीतियां जिम्मेदार हैं।

इसी के साथ बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे पर ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पार्ट-2 की भी शुरुआत की घोषणा कहीं न कहीं एक बड़ा ही रणननीतिक रूप से अहम फैसला कहा जा सकता है। ये नौजवान भी कहीं न कहीं पूरे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार और पश्चिम बंगाल के युवा हिंदुओं में उच्च जाति से लेकर दलित वर्ग तक का प्रतिनिधित्व करते हैं। सभी शिक्षित हैं, लेकिन उन्हें उनकी शिक्षा के अनुरूप सम्मानजनक काम देश में नहीं मिल रहा। यही हाल देश के अधिसंख्य युवाओं का है।

भगत सिंह के आदर्शों पर चलने का मंतव्य रखने वाले इन युवाओं के परिवार के बयानों को देश बेहद ध्यान से सुन रहा है। देश की संसद आज विपक्ष की आवाज को सुनने को तैयार नहीं है। जब देश के कुछ चंद सौ निर्वाचित सासदों तक को सरकार सुनने को तैयार नहीं है, तो भला देश की 140 करोड़ आम जनता की तकलीफ को सुनने का समय, धैर्य भला यह सरकार कैसे रखेगी?

इस विपक्ष को तो चाहिए था कि महुआ मोइत्रा के खिलाफ जब सरकार की ओर से तालिबानी फैसला सुनाया जा रहा था, उसे उसी समय देश के सामने सामूहिक रूप से इस्तीफ़ा सौंप देना चाहिए था। संसद के अंदर रहते हुए भी वे लाख चाहकर जनविरोधी कदमों का रुख मोड़ पाने में लगातार विफल थे, इसलिए इसकी सारी जिम्मेदारी सरकार पर डालते हुए वे लोग एक बड़ी लकीर खीचकर 2024 की तैयारी में जुट सकते थे।

आज रोज दर्जनों की संख्या में निलंबित होकर वे अपने लिए न्याय की मांग करते हैं, तो दयनीय ही नजर आने वाले हैं। जनता हमेशा जमकर लड़ने वालों वरना विजेता की ही सुनती है। जो आम लोगों से अपने लिए न्याय की मांग करे, उसे जनता चुनकर अपना प्रतिनिधि क्यों बनाना चाहेगी?

ऐसे में स्वाभाविक रूप से राहुल गांधी की ओर से ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का उठाया गया कदम निर्णायक हो सकता है। संसद में बेरोजगार युवाओं के प्रतिरोध की गूंज पूरे देश के जेहन में लंबे समय तक रहने वाली है। उस आवाज को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और गहराई देने जा रही है। इसका अर्थ हुआ जिस बात को देश महसूस कर रहा है, उसे राहुल गांधी और युवा कांग्रेस आवाज देने का काम करेगी।

जो देश के मन में है, वह यदि इस यात्रा का मूलमंत्र बनकर उभरता है तो यह नरेंद्र मोदी के विकसित भारत, विश्व गुरु और तीसरे कार्यकाल में दुनिया की तीसरी अर्थव्यस्था के रूप में भारत के उभरने के दावों की असलियत भी खोलने वाला साबित हो सकता है। मोदी सरकार के इन दावों को ट्विटर, प्रेस कांफ्रेंस के जरिये विपक्ष कभी परास्त करने की हैसियत नहीं रखता, लेकिन अपनी यात्रा में वह इसे जरुर कामयाबी के साथ करने में सफल रहेगा।

इसके साथ ही कांग्रेस ने राज्यों में भी नेतृत्व परिवर्तन कर साफ़ संकेत दे दिया है कि कांग्रेस 2024 के मुकाबले के लिए प्रतिबद्ध है, और 2019 की गलतियों से सबक लेकर वह इस बार जी-जान से दो-दो हाथ करने के लिए कमर कसे हुए है। इस संदर्भ में 19 दिसंबर को I.N.D.I.A गठबंधन की बैठक अहम है।

आज से कांग्रेस पार्टी की ओर से पार्टी के 138 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आम लोगों से आर्थिक सहयोग की अपील भी एक और कनेक्ट बनाने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है। यह राजनीति में शुचिता, जनता के प्रति जवाबदेही और विपक्षी दलों के हाल के वर्षों में भाजपा के बरक्श आर्थिक रूप से बेहद कमजोर दिखने का भी आम लोगों में एक जरूरी संदेश का काम करेगा।

सोमवार को दिल्ली में कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से 1.38 लाख रुपये के चंदे से शुरुआत कर विधिवत शुरुआत हो चुकी है। यह विपक्षी दलों की ओर से आम लोगों को अधिकार-संपन्न बनाने की दिशा में एक स्वागत योग्य कदम है।

कुल मिलाकर कहा जाये तो 3 राज्यों में कांग्रेस की हार को लगता है कांग्रेस ने राज्यों में जड़ जमाए पुराने कांग्रेसियों को हटाकर युवा नेतृत्व को मौका देने, जो सामाजिक रूप से कहीं अधिक समावेशी होने के साथ-साथ सॉफ्ट-हिंदुत्व की नीति को अपनाने के बजाय सांप्रदायिक शक्तियों से दो-दो हाथ करने के लिए तत्पर नेतृत्व के बल पर हिंदी प्रदेशों की मुर्दनी को तोड़ने में काफी हद तक कामयाब बनाने में कारगर साबित हो सकती है।

भाजपा के लिए 3 राज्यों में जीत भले ही कुछ समय के लिए अपनी जीत को निर्विवाद बताने में कारगर साबित हो सके, लेकिन 2024 के चुनावों में उसकी जीत को सुनिश्चित बनाने के लिए इन जीतों का कोई मतलब नहीं है।

उल्टा, यदि कांग्रेस इन राज्यों में यदि अपने विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को दुहरा पाने में सफल रही, और साथ ही चंद क्षेत्रीय पार्टियों के साथ कुछ सीट साझाकर संयुक्त I.N.D.I.A गठबंधन के बैनर पर चुनाव लड़ती है, तो उसे कम से कम 25-30 सीटें हासिल हो सकती हैं, जो उसके 2019 के प्रदर्शन की तुलना में 22-27 सीटें अधिक दिलाने में कारगर साबित हो सकती है।

यही करण है कि भाजपा ने आज शिवराज सिंह चौहान को दिल्ली बुलाया है, क्योंकि इस जीत को मोदी के चेहरे की जीत बताकर जिस प्रकार से भाजपा द्वारा इन दिग्गजों को निपटाया गया है, उसमें शिवराज सिंह चौहान और कुछ हद तक वसुंधराराजे सिंधिया इसे कभी स्वीकार नहीं करने वाले हैं।  

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)    

रविंद्र पटवाल

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रविंद्र पटवाल