आरबीआई की नई नीतिः नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या जैसों को मिलेगी खुली छूट

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8 जून, 2023 को भारतीय रिजर्ब बैंक (आरबीआई) ने एक सर्कुलर जारी किया। इसमें कहा गया है कि इरादतन चूक और बैंक धोखाधड़ी करने वालों के मामलों में बैंकों के साथ समझौता किया जा सकता है, जिससे कि उन बैंकों को पैसा मिल सके। इरादतन चूक को अंग्रेजी में ‘विलफुल डिफाल्टर्स’ कहते हैं। इस अधिसूचना से धोखाधड़ी वाले खातों और ‘विलफुल डिफाल्टर्स’ से समझौते के लिए निदेशक मंडल के स्तर पर नीतियां बनाने के प्रावधान के बारे में भी बात की गई है।

‘विलफुल डिफाल्टर’ होते कौन हैं? बैंकों से ऐसे ऋण हासिल करने वाले जो ऋण की शर्तों का पालन नहीं करते हैं। वे अक्सर जिस मद में ऋण लेते हैं, उस मद में खर्च न करके किसी और ही काम में लगा देते हैं, अन्य जगहों में उन पैसों को भेज देते हैं। ऐसे में ये डिफाल्टर जानबूझकर धोखाधड़ी, गड़बड़ी और चूक को अंजाम देते हैं। यदि वे ऐसा करते हैं, तो यह बैंक की पुरानी नीति के तहत न सिर्फ अपराध था, साथ ही बैंकों से ऋण हासिल करने के योग्य भी नहीं माने जाते थे।

अब भारत का रिजर्व बैंक एक ऐसी संरचना बनाने का प्रावधान कर रहा है जिससे कि ऋण लेने वाले और बैंक के बीच समझौते की स्थिति बनाई जा सके। सीधा कहा जाये तो जिसे अपराधी माना जा रहा था, उसे अपराधी न मानकर उसके साथ समझौते की पेशकश की जाये, और मामले को अपराध की श्रेणी से निकाल कर व्यवसायिक रुख अपनाया जाये। ऐसे में, अपराध की श्रेणी से बाहर लाकर उन्हें उन जिम्मेवारियों से मुक्त कर दिया जायेगा जिसके लिए वे बैंक और वित्त की सामान्य नीतियों के प्रति जिम्मेवार थे।

भारत का रिजर्व बैंक सिर्फ बैंक और ‘विलफुल डिफाल्टर’ के बीच समझौते की स्थिति ही बनाने का प्रावधान नहीं करता है। वह यह भी कहता है कि समझौता संपन्न होने के 12 महीने बाद ये डिफाल्टर बैंकिंग की व्यवस्था में प्रवेश योग्य हो जायेंगे। यानी एक बार फिर वे ऋण पाने का आवेदन कर सकेंगे। इस तरह वे एक फिर ऋण हासिल करने की योग्यता में वापस आ जायेंगे।

जाहिर कि ये डिफाल्टर बैंक के साथ समझौते में तभी जायेंगे जब उनकी अदायगी लिये गये ऋण के अनुपात में कम हो। यह कितना कम होगा, इसे तय करने में कई खिलाड़ी होंगे। इसमें राजनीतिक हस्तक्षेप, बैंक निदेशकों की पक्षधरता और डिफाल्टर की अपनी पहुंच एक निर्णायक भूमिका वाले तत्व होंगे। यह एक भ्रष्टाचार से निकलकर दूसरे भ्रष्टाचार में घुसते हुए अंत में डिफाल्टर एक शुद्ध तत्व बनकर निकलेगा और थोड़े आराम के बाद फिर से बैंक से पैसा निकालने का आवदेन कर सकेगा।

22 मार्च, 2022 तक संसद में सरकार द्वारा दिये गये बयान के मुताबिक सबसे ऊपर के 50 ‘विलफुल डिफाल्टर’ बैंकों से 92,570 करोड़ रुपये का लोन लिये हुए थे। इसमें मेहुल चोकसी का 7,848 करोड़ रुपये था। नीरव मोदी, किंगफिशर एयरलाइन्स आदि भी इसी श्रेणी के डिफाल्टर हैं। और वे बैंकों का पैसा अदा न करने की वजह से देश से भागे हुए हैं। आरबीआई के इन प्रावधानों से अब उनकी वापसी संभव है और वे अब अपराधी की तरह नहीं एक समझौते के लिए उत्सुक डिफाल्टर की तरह वापसी की संभावना देख सकते हैं, यदि बैंक इस संदर्भ में पेशगी करे और नियामक संस्थान इसमें दखलंदाजी करे।

‘ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन’ और ‘ऑल इंडिया बैंक इम्पलाइज एसोसिएशन’ ने कहा है कि, ‘बैंकिंग उद्योग के महत्वपूर्ण हितधारक के रूप में हमने हमेशा इरादतन चूककर्ताओं से सख्ती से निपटने की वकालत की है।’ यूनियन की नजर में इरादतन ऋण नहीं लौटाने और उस धन को गलत दिशा में ले जाने के साथ सख्ती करने की बजाय उन्हें इनाम देना गलत है और इससे इमानदार कजदारों के बीच गलत संदेश जायेगा। 

यहां चिन्हित करना जरूरी है कि ऋण देते समय उत्तरदायी कर्मचारियों को भी उत्तरदायी ठहराने और समय के साथ देय संपत्ति में आई मूल्य गिरावट आदि को नजर में रखा जायेगा। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें कर्मचारियों का उत्तरदायित्व तो बढ़ रहा है और उसके दंडित होने की स्थितियां बन रही हैं लेकिन जो डिफाल्टर है, उसे बाजार मूल्य के अनुपात में उसकी संपत्ति के गिरते मूल्य के आधार पर छूट या इनाम दिया जायेगा।

यही रिजर्व बैंक इस प्रावधान के पहले तक यह मानता था कि जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों की पूंजी बाजार में नहीं उतरेगी और न ही उन्हें नये कर्ज दिये जायेंगे। हालांकि आज भी वह ऐसे डिफाल्टरों के अपराध को कम करके न देखने की बात कर रही है, लेकिन समझौते की स्थिति बनाकर उन्हें पुनः कर्ज लेने की स्थिति में पहुंचाने और बाजार में उन्हें सक्रिय बना देने का प्रावधान, ऊपर की कही बात से मेल नहीं खाता है।

कांग्रेस ने 14 जून के प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक इस जारी अधिसूचना को तुरंत वापस ले। कांग्रेस का दावा है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में एनपीए में 365 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है, और 10 लाख करोड़ से ज्यादा की राशि को बट्टे खाते में डाल दिया गया है, सिर्फ 13 प्रतिशत ही कर्ज की वसूली हो सकी है।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस प्रावधान पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा ‘हाल ही में 29 मई, 2023 को रिजर्व बैंक के गवर्नर (शक्तिकांत दास) ने उन तरीकों को लेकर चेतावनी दी थी जिनके माध्यम से चूककर्ताओं और जालसाज संकटग्रस्त ऋणों की वास्तविक स्थिति को छिपाते हैं। क्या मोदी सरकार ने इस यू-टर्न के लिए दबाव डाला है? क्या इस पर रिजर्व बैंक का स्पष्टीकरण आयेगा?’

जयराम रमेश ने प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि ‘किसान, छोटे और मझोले उद्यम और मध्य वर्ग मासिक किस्त के बोझ तले दबे हुए हैं। उन्हें कभी भी कर्ज पर बातचीत करने या इसके बोझ को कम करने का अवसर नहीं दिया जाता है, लेकिन सरकार ने अब नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या जैसे जालसाजों एवं इरादतन चूककर्ताओं को फिर से उनकी पहले की स्थिति में वापस आने का रास्ता दे रही है।’

‘इंडियन एक्सप्रेस’ की आरटीआई के जबाब में आरबीआई ने बताया था कि पिछले 10 सालों में देशभर के बैंकों ने 13 लाख 22 हजार 309 करोड़ की रकम बटटे खाते में डाल दिया है। यदि हम 2022-23 के वित्त वर्ष में बैंक का कुल मुनाफा जोड़ें तब यह 2 लाख 40 करोड़ रुपये बनता है। एनपीए और मुनाफा के राशि की यदि हम तुलना करें तब यह स्थिति एक खतरनाक संतुलन में दिखेगी और यह कभी भी दिवालिया होने की ओर जा सकती है। नई अधिसूचना इस खतरनाक संतुलन को डिफाल्टरों के पक्ष में ले जाते हुए दिखती है।

आरबीआई की इस अधिसूचना से एनपीए बढ़ने की संभावना बढ़ेगी और साथ ही बैंकों के दिवालिया हो जाने के खतरा और भी तेज हो जाएगा। पिछले वर्षों में हमने कई बैंकों को डूबते हुए देखा। इन बैंकों में आम लोगों की मेहनत की कमाई डूब गई जबकि बैंकों के बड़े अधिकारी और इन बैंकों से ऋण लेने वालों पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। अब तो उन्हें उनके अपराध के लिए दंडित करने की बजाय, समझौते की मेज पर उन्हें फिर से पवित्र कर दिया जायेगा और वे फिर लोन लेने की स्थिति में वापस आ जायेंगे। ऐसी ही स्थिति हम अडानी के संदर्भ में देख रहे हैं।

यह लूट की खुली छूट का जुमला नहीं है, यह भारत की वित्त-व्यवस्था है और यह इस ओर बढ़ती ही जा रही है। जबकि, किसान अपनी फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य हासिल करने के लिए लाठियां खा रहे हैं और अपनी चीखों से पक्षधरता से बहरी हो चुकी सरकार से अपने हक मांग रहे हैं, इन हकों के लिए कुछ प्रावधानों को बना देने की मांग कर रहे हैं। सरकार धनिकों के हितों की खातिर बहरी होती जा रही है।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

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