यूपी में आ गयी हिंसा की असलियत सामने, फिरोजाबाद में पुलिस के संरक्षण में असामाजिक तत्वों ने की मुस्लिम घरों पर पत्थरबाजी

नई दिल्ली। नागरिकता कानून के खिलाफ यूपी में हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई का हरजाना योगी सरकार मुसलमानों से वसूल रही है। जबकि नई सच्चाई जो सामने आ रही है वह बेहद चौंकाने वाली है। संपत्ति का नुकसान ज्यादातर असामाजिक तत्वों या फिर सीएए समर्थक या फिर कहें कि पुलिस के साथ घूमने वाले तत्वों ने किया है। फिरोजाबाद से इसी तरह का एक वीडियो सामने आया है। जिसमें पुलिसकर्मियों के साथ सादे कपड़ों में ढेर सारे नौजवानों को मुस्लिम बस्ती को निशाना बनाकर पत्थर फेंकते देखा जा सकता है।

इस वीडियो में मौके पर मौजूद युवक लगातार पत्थर फेंकते जा रहे हैं। लेकिन पुलिस न तो उन्हें मना कर रही है और न ही उस पर किसी तरह का एतराज जता रही है। कुछ पुलिसकर्मियों को भी उस पत्थरबाजी में शामिल होते देखा जा सकता है। इतना ही नहीं इस वीडियो में एक पुलिसकर्मी बाकायदा राइफल से गोली चला रहा है। यह बताता है कि पुलिसकर्मियों और असामाजिक तत्वों के बीच एक किस्म का गठजोड़ था और सूबे में जो बड़े स्तर पर हिंसा हुई है उसमें इन दोनों का हाथ है।

इसी वीडियो में इस पत्थरबाजी से हुए नुकसान को भी दिखाया गया है। इसमें घरों के दरवाजों के शीशे टूटे हैं। और जगह-जगह उससे हुआ नुकसान वीडियो में कैद है।

इस वीडियो के सामने आ जाने के बाद यह बात साफ होती जा रही है कि इस आंदोलन में जहां भी हिंसा हुई उसमें असामाजिक तत्वों का हाथ था और उन्हें प्रोत्साहन भी किसी न किसी स्तर पर प्रशासन और पुलिसकर्मियों का मिला है। जामिया की घटना में भी जिस तरह से चीजें सामने आयी हैं वह भी इसी बात की पुष्टि करती हैं। यहां गिरफ्तार 10 लोगों में सभी असामाजिक तत्व थे और उनका न तो किसी पढ़ाई लिखाई और न ही जामिया विश्वविद्यालय से कोई रिश्ता था। यह तथ्य ही इस बात को साबित करता है कि जामिया की हिंसा के पीछे बिल्कुल एक सोची-समझी साजिश थी। जिसमें आंदोलन को हिंसक बनाने के बाद उसके दमन की रणनीति पहले ही तैयार कर ली गयी थी।

पटना में एक मासूम आमिर की कई दिनों बाद मिली लाश भी इसी तरफ इशारा करती है। जिसमें बताया जा रहा है कि हिंसा उस समय शुरू हुई जब जुलूस एक कोने पर पहुंचा और सामने से हाथों में पत्थर लिए असामाजिक तत्वों ने प्रदर्शनकारियों पर हमला बोल दिया। और फिर उसी समय पुलिस को लाठीचार्ज का मौका मिल गया। जिसमें पहले तो वह युवक लापता हुआ और फिर कुछ दिनों बाद उसकी लाश पायी गयी।

यानि कुल मिलाकर इन प्रदर्शनों को हिंसक बनाने और फिर उनका दमन करने की मॉडस आपरेंडी एक ही है। जिसे जगह-जगह पुलिस औऱ प्रशासन के लोगों ने दोहराने का काम किया।

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