चंद्रयान-3: सफल लैंडिंग के बाद चंद्रमा पर पानी, बर्फ और भूकंप की जानकारी जुटाएगा रोवर

चंद्रयान-3 लैंडर से एक सीढ़ी की मदद से नीचे उतरने के बाद, छह पहियों वाले 26 किलोग्राम के रोवर ने, जो बेहद धीमी रफ्तार से 500 मीटर की दूरी तक जाने में सक्षम है, चन्द्रमा से जुड़े अन्वेषण के अपने काम को आरंभ कर देगा। यह लैंडिंग चंद्र भोर में हुई है और चूंकि चंद्रयान पर छह पेलोड हैं, ऐसे में लैंडर और रोवर एक चंद्र दिवस या पृथ्वी के 14 दिनों में जितना संभव हो जल्द से जल्द उतनी वैज्ञानिक जानकारी हासिल करने के लिए डेटा एकत्र करने का काम शुरू कर देंगे, क्योंकि इतने अंतराल के लिए ही वे संचालन योग्य रहेंगे।

चंद्रयान-3 पेलोड अपने से पूर्व के मिशनों से हासिल चंद्र भूकंपों, खनिज संरचनाओं और चंद्रमा की सतह के पास इलेक्ट्रॉनों और आयनों के बारे में वैज्ञानिक सीख को आगे बढ़ाने का काम करेगा। इस मिशन में जल-बर्फ के अध्ययन का प्रयास किया जायेगा, जिसकी उपस्थिति के बारे में चंद्रयान-1 के द्वारा पता लगाया गया था।

मिशन किन चीजों पर प्रयोग करेगा?

लैंडर के पास चार परीक्षणों का कार्यभार है।

  • रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फीयर एंड एटमॉस्फियर (रंभा) के जरिये चंद्रमा की सतह के पास इलेक्ट्रॉनों और आयनों के अध्ययन और समय के साथ वे कैसे परिवर्तित होते हैं, के बारे में पता लगाने का कार्यभार है।
  • चंद्र सरफेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट (ChaSTE) के माध्यम से ध्रुवीय क्षेत्र के पास चंद्र सतह के थर्मल गुणों की जानकारी जुटाई जायेगी। चंद्रयान-3 लगभग 70 डिग्री दक्षिणी अक्षांश पर उतरा है, जो अभी तक किसी भी अंतरिक्ष यान द्वारा चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के सबसे निकटतम पहुंचा है।
  • चंद्र भूकंपीय गतिविधि उपकरण (आईएलएसए) का काम लैंडिंग स्थल के समीप चंद्र भूकंप को मापने की होगी, और इसके साथ चंद्रमा की परत और आवरण की संरचना के अध्ययन का काम शामिल है।
  • लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर ऐरे (एलआरए) नासा के द्वारा भेजा गया एक निष्क्रिय प्रयोग है, जिसका लक्ष्य भविष्य के मिशनों के लिए लेजर्स के बेहद सटीक माप के तौर पर कार्य करने का है।

इसके साथ ही रोवर पर दो वैज्ञानिक प्रयोग किये जाने हैं।

  • लेजर एंड्यूसड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (एलआईबीएस) चंद्र सतह की रासायनिक एवं खनिज संरचना को निर्धारित करने का काम करेगा।
  • अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस) चंद्रमा की सतह पर मौजूद मिट्टी और चट्टानों में मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, पोटेशियम, कैल्शियम, टाइटेनियम और लौह तत्वों की संरचना के बारे में ठोस जानकारी प्रदान करेगा।

पानी की खोज

चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र बेहद गहरे गड्ढों से आबाद है, जहां पर स्थायी रूप से अंधकार का राज है और यहां पर बर्फ पाए जाने की उच्च संभावना मौजूद है। संभवतः चंद्रयान-1 के उपकरणों की सबसे महत्वपूर्ण खोजों में चांद के झीने वायुमंडल (एक्सोस्फीयर) के साथ-साथ चंद्रमा की सतह पर पानी एवं हाइड्रोक्सिल (ओएच) अणुओं की खोज कही जा सकती है।

भारत के मून इम्पैक्ट प्रोब (एमआईपी) को सायास चंद्रमा की सतह पर दक्षिणी ध्रुव के पास दुर्घटनाग्रस्त किया गया था, जिसके चलते चांद के वातावरण में जल एवं हाइड्रॉक्सिल अणुओं के संकेंद्रण के अध्ययन में मदद प्राप्त हुई।

इसी प्रकार मिनी-एसएआर नामक एक अन्य पेलोड के जरिये दक्षिणी ध्रुव के निकट गड्ढों के भीतर स्थायी रूप से छायादार क्षेत्रों में बर्फ की उप सतह के ढेर का पता लगाने में मदद मिली थी।

नासा द्वारा विकसित एक तीसरे पेलोड, जिसे मून मिनरालाजी मैपर या एम3 के नाम से जाना जाता है, के द्वारा भी चंद्रमा की सतह पर इन अणुओं का पता लगाने में मदद मिली।

जहां तक चंद्रयान-2 का प्रश्न है, जिसे चंद्रमा पर पानी के बारे में और अधिक जानकारी हासिल करने के लिए डिजाइन किया गया था, ने पानी और हाइड्रॉक्सिल अणुओं की अलग-अलग पहचान करने और पहली बार चंद्रमा पर पानी की विशेषताओं की मैपिंग करने में मदद की।

दफन लावा ट्यूब की खोज

चंद्रयान-1 पर लगाये गये भूभाग मैपिंग कैमरे एवं हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजर की मदद से एक भूमिगत लावा ट्यूब का पता लगा था, जिसके बारे में वैज्ञानिकों का मत है कि भविष्य में मानव निवास के लिए यह एक सुरक्षित वातावरण प्रदान कर सकता है। इतना ही नहीं चंद्रमा की सतह पर खतरनाक विकिरण, छोटे उल्कापिंड के प्रभाव, अत्यधिक तापमान और धूल भरी आंधियों से भी रक्षा कर सकता है।

ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा का निर्माण धरती के एक प्रारंभिक टुकड़े के झटके के प्रभाव के कारण जुदा हो जाने के बाद हुआ है। इस झटके से उत्पन्न ऊर्जा के बारे में माना जाता है कि इसके चलते चंद्रमा की सतह पिघल गई। इसे मैग्मा महासागर प्रकल्पना कहा जाता है। चंद्रयान-1 के एम3 पेलोड ने चंद्रमा की सतह पर एक विशेष प्रकार के हल्के-घनत्व वाले स्फटिक उठाये थे, जिनके सतह पर पाए जाने की संभावना उसी सूरत में संभव है जब ये कभी तरल स्वरूप में रहे हों।

एक गतिशील चांद

चंद्रयान-1 मिशन के निष्कर्षों से इस बात का भी पता चला था कि चंद्रमा का आंतरिक हिस्सा गतिशील था और अपने बाह्यमंडल के साथ संपर्क में था, जबकि इससे पहले धारणा इसके विपरीत बनी हुई थी कि यह निष्क्रिय था।

भू-भाग मैपिंग कैमरे को इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि चांद पर 10 करोड़ वर्ष पुराने ज्वालामुखी छिद्र, लावा तालाब और लावा चैनल आज भी मौजूद हैं, जो हाल की ज्वालामुखी गतिविधि का संकेत देते हैं। एमआईपी द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का मापन भी सतह से डी-गैसिंग की ओर इंगित करता है। यह उल्कापिंडों के प्रभाव की अनुपस्थिति में भी चंद्रमा के सतह की वाह्यमंडल के साथ अंतःक्रिया को दर्शाता है।

सौर ज्वाला

चंद्रयान-2 ऑर्बिटर पर स्थापित सोलर एक्स-रे मॉनिटर की मदद से सक्रिय क्षेत्र के बाहर भी कई सौर सूक्ष्म ज्वालाओं का ही नहीं बल्कि कम चमकीले सौर कोरोना की मौलिक प्रचुरता का निरीक्षण करने में सक्षम था।

ये पर्यवेक्षण जिन्हें अभी तक सिर्फ बड़े सौर ज्वालाओं पर किया गया था, अब वैज्ञानिकों को कोरोनल हीटिंग के रहस्य का सुराग प्रदान कर सकते हैं- जिसमें यह जानकारी कि सूर्य की वायुमंडलीय परत (कोरोना) दस लाख डिग्री गर्म है, जबकि सूर्य की सतह सिर्फ 5,700 डिग्री सेल्सियस से कुछ अधिक है, के बारे में ठोस जानकारी हासिल कर पाना संभव है।

खनिज पदार्थों की मैपिंग

क्लास एक्स-रे प्रकाश के परीक्षण ने पहली बार चंद्र सतह के लगभग 95% हिस्से को एक्स-रे में मैप किया है। इसरो के मुताबिक, पिछले 50 वर्षों के दौरान चंद्रमा पर भेजे गए एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर ने अभी तक चंद्रमा की सतह के मात्र 20% से भी कम हिस्से को कवर किया है। दोनों चंद्रयान मिशनों ने उन क्षेत्रों की भी मैपिंग की है जहां से सैंपल वापसी मिशन पूरे नहीं हो पाए हैं।

(इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट पर आधारित।)

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