सकाळ अखबार सर्वेक्षण: NCP में विभाजन से महाराष्ट्र की जनता आक्रोशित, भाजपा के सामने बढ़ा हार का खतरा

मुंबई में सियासी हलचल खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। कल महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री अजित पवार सहित एनसीपी अजित पवार गुट के सभी बड़े नेता शरद पवार से मिलने मुंबई के वाई बी चाह्वाण सेंटर पर मौजूद थे। बाहर निकल कर प्रेस से अपनी मुलाकात का जिक्र करते हुए अजित पवार गुट के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल ने जो बताया उसका लब्बो-लुआब यही था कि किसी तरह एनसीपी के दिग्गज नेता शरद पवार बची हुई पार्टी के साथ भाजपा गठबंधन में शामिल हो जायें।

लेकिन उनके चेहरे बता रहे थे कि मामला नहीं बना। यही कारण है कि आज फिर शरद पवार के साथ मुलाक़ात के लिए भाजपा का एक सहयोगी दल वाई बी चाह्वाण सेंटर में एकत्र है। शरद पवार ने संयुक्त विपक्षी दल की बेंगलुरु बैठक में हिस्सा लेने को कल तक के लिए टाल दिया है। अब वे 18 जुलाई को बेंगलुरु में उपस्थित रहेंगे। महाराष्ट्र की सियासत में एक के बाद दूसरा भूचाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।

केंद्र में मौजूद भाजपा नेतृत्व के लिए महाराष्ट्र को साधना अब सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। यही वजह है कि हाल ही में दो-दो बार भारी उथलपुथल मचाने के बाद भी उसे फिर से उलटपुलट के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अजित पवार गुट में शामिल सभी बड़े चेहरों पर ईडी सीबीआई का केस चिपका हुआ है। भाजपा के साथ गठबंधन में हर दल से दागदार चेहरे जुड़कर उसकी छवि को राज्य में निखारने के बजाय धूमिल ज्यादा कर रहे हैं।

यही वजह है कि कल 16 जुलाई को मराठी दैनिक सकाळ ने जब मराठी न्यूज़ साम और सरकारनामा के साथ मिलकर ओपिनियन पोल प्रकाशित किया तो महाराष्ट्र की राजनीति में फिर से सनसनी मच गई। महाराष्ट्र के क्षेत्रीय अखबार दैनिक सकाळ ने 16 जुलाई के अपने नए जनमत संग्रह ने एक बार फिर से भारी खलबली मचा दी है। सब कुछ उलट-पुलट करने के बावजूद स्थितियां कमोबेश सत्तारूढ़ दल के लिए और भी ज्यादा बुरी बन गई हैं।

इसी कड़ी में कल अजित पवार गुट के सभी नेता शरद पवार से मुलाक़ात करने और उन्हें मनाने पहुंचे। गोदी मीडिया के सूत्र खबर उड़ा रहे हैं कि यदि शरद पवार मान जाते हैं तो सुप्रिया सुले के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान मिलना तय है। ‘अपने तो आखिर अपने होते हैं’, की तर्ज पर कथित राष्ट्रीय मीडिया शरद पवार के लिए आधार बनाने में जुटा है। यह वही कथित मीडिया है जिसे कांग्रेस में गांधी परिवार की राजसत्ता देश की सबसे बड़ी कमजोरी नजर आती है।

पीएम नरेंद्र मोदी के पास भी यदि खुद को एकमात्र विकल्प के पैरोकारी करने का कोई आधार दिखाई देता है, तो वह है परिवारवाद के खिलाफ अपना चेहरा। लेकिन अब चूंकि कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी गांधी-नेहरु परिवार का कोई सदस्य नहीं है, और राहुल गांधी की संसद सदस्यता तो खुद भाजपा के सायास तिकड़मों से छूट गई है। यहां तक कि उनके चुनाव में खड़े होने पर पर भी बड़ा सवालिया निशान लगा हुआ है।

उसके साथ यह नारा भी खुद उससे छीन गया है। लेकिन अब खुद भाजपा शरद पवार को परिवार की महत्ता समझाने में पालतू मीडिया और अपने सिपहसालारों को मीडिया में बाईट देने के लिए भेज रही है।

महाराष्ट्र के लोकप्रिय मराठी समाचार पत्र सकाळ ने पिछले माह 1 जून और अब 16 जुलाई को अपने समाचारपत्र में महाराष्ट्र का जनमत सर्वेक्षण कर ऐसे खुलासे किये हैं, जिससे दिल्ली में बैठी मोदी-शाह सरकार की नींद हराम हो चुकी है। जून के सर्वेक्षण के बाद ही एनसीपी के नेताओं की फाइलें खोलने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मध्य प्रदेश में दिए गये चर्चित भाषण का ही यह असर था कि शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले को छोड़ समूचा नेतृत्व ही अलग गुट बनाकर भाजपा-शिवसेना शिंदे गुट की सरकार में शामिल हो गया और ऐसा लगने लगा कि अब विपक्षी खेमे (महाराष्ट्र विकास अघाड़ी) में से दो प्रमुख पार्टियों को तोड़कर राज्य की जनता के सामने भाजपा ने कोई विकल्प नहीं छोड़ा है। अब झक मारकर राज्य की जनता को भाजपा और केंद्र में नरेंद्र मोदी के नाम पर अपना वोट देना होगा।

शरद पवार को उनके ही भतीजे ने 82 वर्ष की उम्र में ऐसी पटखनी दी है, कि वे अब शायद ही इस आघात से खुद को और एनसीपी को फिर से खड़ा कर सकें। उनके विश्वस्त और दशकों से पाले-पोसे नेता तक रातोंरात पाला बदलकर विपक्षी एकता की खिल्ली उड़ाते नजर आये।

लेकिन कल शाम ये सभी 9 नेता जिन्हें महाराष्ट्र राज्य सरकार में महत्वपूर्ण पद हासिल हैं, अचानक शरद पवार से मुलाक़ात करने और उन्हें मनाने आ गये। सुप्रिया सुले के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल में पद दिए जाने के कयास तक लगाये जा रहे हैं। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह सकाळ अखबार में आये नए जनमत सर्वेक्षण को माना जा रहा है।

सत्ता का खेल महाराष्ट्र की जनता को पसंद नहीं। इस शीर्षक के साथ मराठी दैनिक सकाळ का रविवार 16 जुलाई का अखबार एक बार फिर से जनमत सर्वेक्षण के साथ उतरा है, जिसने महाराष्ट्र के सत्ताधारी नेताओं से कहीं अधिक केंद्र की भाजपा नेतृत्व की नींद उड़ा रखी है। यही कारण है कि कल शाम से ही गोदी मीडिया के भोंपू लगातार अजित पवार और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों के शरद पवार से मुलाक़ात के बारे में तरह-तरह की खबरें उड़ा रहे हैं। माना जा रहा है कि भले ही एनसीपी के अधिकांश विधायक भाजपा तोड़ने में सफल रही हो, लेकिन एनसीपी के समर्थक और कार्यकर्ता आज भी शरद पवार के पक्ष में ही खड़े हैं, और इस घटना को महाराष्ट्र के अपमान के साथ जोड़ रहे हैं।

सकाल का सर्वेक्षण

आइये देखते हैं सकाळ का ताजातरीन सर्वेक्षण महाराष्ट्र में क्या समीकरण बता रहा है। इसके अनुसार भाजपा को 33.8%+शिवसेना शिंदे 5.5%= 39.4% वोट मिल रहे थे। महा विकास अघाड़ी के हिस्से में कांग्रेस 19.9%+एनसीपी 15.3%+शिवसेना उद्धव गुट 12.5% वोट= 47.7% वोट हासिल हो रहे थे। इस प्रकार महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के पास सत्तारूढ़ भाजपा+शिंदे से 8.4% की स्पष्ट बढ़त बनी हुई थी। यह न सिर्फ राज्य सरकार बल्कि 2024 में यूपी के बाद लोकसभा के लिहाज से दूसरा सबसे बड़ा राज्य (48) में नरेंद्र मोदी सरकार की वापसी के लिए सबसे बड़ी बाधा बना हुआ था।

अमेरिकी यात्रा से लौटते ही नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता में महाराष्ट्र यूं ही नहीं आ गया था। इस प्रकार अजित पवार गुट की बगावत को अंजाम दिया गया। लेकिन सकाळ अखबार का ताजातरीन सर्वेक्षण केंद्र सरकार और कॉर्पोरेट की नींद उड़ाने के लिए पर्याप्त है।

15 जुलाई का सर्वेक्षण महाराष्ट्र की आम जनता का मूड स्पष्ट करता है। इस ताजा सर्वे के मुताबिक अभी भी भाजपा प्रदेश के लोगों की पहली पसंद बनी हुई है। इस सर्वेक्षण में भाजपा के पक्ष में 26.8%+राष्ट्रवादी अजित पवार के पक्ष में 5.7%, शिवसेना एकनाथ शिंदे के पक्ष में 4.9%= के साथ भाजपा+ के पक्ष में 37.4% वोट ही आ रहे हैं। आश्चर्यजनक रूप से एक महीने पहले की तुलना में अब मोदी सरकार के लिए कुल समर्थन में 2% की कमी आई है, और भाजपा को इसमें सबसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। सकाळ के सर्वेक्षण को मानें तो भाजपा का लगभग 7% समर्थन घटा है।

वहीं दूसरी तरफ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के पक्ष पर नजर डालें तो कांग्रेस 19.1%, राष्ट्रवादी शरद पवार 14.9% और शिवसेना उद्धव ठाकरे 12.7% के साथ कुल 46.7% समर्थन के साथ स्पष्ट बहुमत बनाती दिख रही है। भाजपा+ की तुलना में एमवीए के पास 9.3% अधिक समर्थन हासिल है। पिछले सर्वेक्षण की तुलना में विपक्षी दलों के समर्थन में कमी आने के बजाय उल्टा 1% का इजाफा हुआ है। इसमें राज ठाकरे और प्रकाश आंबेडकर के मनसे और वंचित बहुजन अघाड़ी के 2.8% बराबर-बराबर वोटों को दोनों पक्ष में डाल भी दें तो स्थिति जस की तस होती है।

यही वह वजह है जो भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को हैरान-परेशान और माथा रगड़ने पर विवश कर रही है। इसकी असल वजह महाराष्ट्र में आम लोगों का भाजपा आलाकमान के द्वारा धन बल से लोकतंत्र की खुलेआम चीरहरण को माना जा रहा है। पिछले वर्ष इसे शिवसेना में दो फाड़ के रूप में देखा गया। लेकिन जब इससे भी काम बनता नहीं दिखा तो एनसीपी में एक और फाड़ के बाद आम लोग लोकतंत्र में अपने वोट की निरर्थकता को शिद्दत से महसूस करने लगे हैं। उन्हें भी समझ आने लगा है कि किस प्रकार नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार न सिर्फ विपक्षी दलों को ईडी और सीबीआई का डर और धन-बल से अपने शरण में लाने के लिए मजबूर कर रही है, बल्कि विपक्ष की आवाज को खामोश कर दरअसल महाराष्ट्र के लिए आने वाले निवेश को भी गुजरात में लगातार स्थानांतरित कर भाजपा के स्थानीय नेताओं के लिए भी कोई स्थान नहीं छोड़ रही है।

भाजपा के लिए राहत की बात सिर्फ यह है कि देवेन्द्र फडनवीस के पक्ष में अभी भी 21.9% लोग हैं, जो उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में देखते हैं। इसके बाद दूसरे स्थान पर उद्धव ठाकरे 19.4%, 9.5% के साथ अजित पवार, एकनाथ शिंदे और सुप्रिया सुले को समान रूप से 8.5%, कांग्रेस के अशोक चव्हाण 6.6%, बाला साहेब थोराट के पक्ष में 4.2% और जयंत पाटिल के पक्ष में 3.6% लोग हैं। 17.8% लोग अभी मन नहीं बना पाए हैं।

शिवसेना शिंदे गुट के 16 नेता और अजित पवार गुट के एनसीपी के 9 वरिष्ठ नेताओं पर दलबदल कानून की तलवार लटकी पड़ी है। इनमें से अधिकांश नेता महाराष्ट्र की विधानसभा में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं। एक झटके में ही इनसे न सिर्फ मंत्री पद छिन सकता है, बल्कि विधायकी से भी इन्हें हाथ धोना पड़ सकता है।

सकाळ अखबार का सर्वेक्षण यह भी बताता है कि अधिकांश मराठी लोग इन दागी और पलटीमार नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाये जाने के पक्ष में हैं। इनका वर्तमान भले ही सुनहरा नजर आता हो, लेकिन इनका भविष्य अंधकारमय है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

रविंद्र पटवाल
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