रिया के जज्बे को सलाम!

अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती के जज्बे को सलाम। सैल्यूट उनके उस हौसले को जिसने उनको यह ताकत दी। उनकी यह जिजीविषा उस समय भी दिखी जब वह गिरफ्तार हो रही थीं। उनके चेहरे पर थोड़ी भी शिकन नहीं थी, न ही किसी तरह का निराशा का भाव था। वह पूरे आत्मविश्वास से लवरेज थीं। इसको उन्होंने छुपाया भी नहीं बल्कि एक तरीके से उसका खुलकर बयान किया। जब उन्होंने “स्मैश द पैट्रियार्की” यानी “पितृ सत्ता को ध्वस्त करो” अंग्रेजी में लिखी काले रंग की टी शर्ट पहनी। अपनी गिरफ्तारी के दौरान भी इतनी बड़ी लड़ाई का आह्वान करने वाली आत्मविश्वास से भरी यह लड़की आज पूरे देश में महिला सशक्तीकरण का प्रतीक बन गयी है। पिछले एक महीने से इस महिला को तीन केंद्रीय तथा बिहार और महाराष्ट्र की पुलिस को मिला दिया जाए तो कुल पांच एजेंसियां प्रताड़ित कर रही हैं।

और इस मामले में देश का मीडिया खूंखार एजेंसी मोसाद से भी बढ़कर भूमिका निभा रहा है। सुबह से लेकर शाम तक चैनलों के पास एक ही एजेंडा होता है- रिया चक्रवर्ती। इसमें उनको डायन से लेकर हत्यारी और न जाने क्या-क्या तक ठहराया जा चुका है। न अदालत लगी, न मुकदमा चला और न ही सरकारी और बचाव पक्ष के वकीलों को बहस करने की जरूरत पड़ी। मीडिया ने रिया को गुनहगार घोषित कर दिया। और उसका बस चले तो वह अभी उसको फांसी पर लटका दे। लेकिन अफसोस है कि जल्लाद की भूमिका में होते हुए भी उसे उसका काम नहीं मिल पा रहा है। और इस मामले में अगर मीडिया दोषी है और वह गिद्धों सरीखा व्यवहार कर रहा है तो उससे किसी भी रूप में जनता कम जिम्मेदार नहीं है। जो पूरे मामले का चटखारा लेकर आनंद ले रही है। और इस बात का इंतजार कर रही है कि कब रिया को फांसी पर लटकाया जाएगा।

दरअसल पूरा देश ही एक हत्यारे समाज में तब्दील हो चुका है। कहने को तो ड्रग सुशांत राजपूत लेता था। लेकिन देश की जनता ने नफरत और घृणा के जिस नशीले पदार्थ का सेवन कर रखा है उसका नशा उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है। देश के बुद्धू बक्से से निकलने वाले उन्मादी बयान उनके सुबह-शाम की खुराक हो गए हैं। और आलम यह है कि इस नशे में उन्हें किसी भी तरफ मोड़ा जा सकता है। कभी वह मुसलमानों की लिंचिंग के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। तो कभी एनआरसी और सीएए का समर्थन करने लगते हैं। कभी देश के बुद्धिजीवियों को देशद्रोही करार देकर अपनी बुद्धिहीनता के गौरव बोध में डूब जाते हैं। और इस तरह से भक्त होने का अहसास उन्हें एक स्वर्गिक दुनिया में ले जाकर खड़ा कर देता है।

देश के लिए इससे बड़ी शर्म की बात क्या होगी कि 70 हजार लोग एक महामारी से काल कवलित हो चुके हैं और भविष्य में हजारों लोगों को यह लील जाने के लिए तैयार है। लेकिन इन सारी मौतों पर पूरा देश मौन है लेकिन एक सुशांत की मौत पूरे देश पर भारी पड़ गयी है। लोगों के दिन और रात का चैन खो गया है। और माहौल कुछ ऐसा है जैसे रिया को फांसी के तख्ते पर चढ़ाने के बाद ही अब गहरी नींद आएगी। भारतीय समाज के दिवालियेपन की इससे बड़ी खुली बयानी और क्या होगी? देश की जीडीपी 23 फीसदी के नीचे चली गयी है। लेकिन प्राइम टाइम में रिया चक्रवर्ती और सुशांत एजेंडा होते हैं।

और दुस्साहस से किसी पैनल का गेस्ट अगर जीडीपी का नाम भर ले ले तो एंकर यह कहते हुए डपट लेते हैं कि इन फालतू विषयों के लिए उनके पास समय नहीं है और इस पर बहस करनी है तो कोई दूसरा चैनल तलाश लें। और यह सब कुछ देश की जनता देख रही है और न केवल हां में हां मिला रही है बल्कि पूरी तरह से खुश है। यह ऐसा दौर है जिसमें जनता को उसके वजूद से ही काट दिया गया है। उसकी एक दूसरी दुनिया बना दी गयी है और इस आभासी दुनिया में वह खुश है। नशे की इस दुनिया का कारोबार नफरत और घृणा से चलता है। जिसमें खून और हत्या उसके अभिन्न हिस्से हैं। जो बीच-बीच में कभी दिल्ली दंगे के तौर पर तो कभी लिंचिंग और कभी रिया जैसी अभिनेत्री को खलनायिका बनाकर उसे हासिल किया जाता है।
इस हिस्से को आज रिया की गिरफ्तारी से ज़रूर थोड़ी तसल्ली मिली होगी। उसके कलेजे को ठंडक पहुंची होगी। भले रिया को मौत नहीं मिली लेकिन उस दिशा में एक कदम बढ़ने की शुरुआत तो हुई।

लेकिन इन नामुरादों को यह नहीं पता कि लाख कोशिशों के बाद भी एजेंसिंया रिया के खिलाफ कुछ हासिल नहीं कर सकीं। सीबीआई और ईडी पूरी तरह से खाली हाथ हैं। सीबीआई ने तो बाकायदा बयान जारी कर कहा कि मीडिया में उसके हवाले से जो भी चीजें आयी हैं सब मनगढ़ंत हैं। और अब जबकि नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने रिया की गिरफ्तारी की है तो उसके लिए भी यह बता पाना मुश्किल हो रहा है कि आखिर किस बात को लेकर रिया को गिरफ्तार किया गया है। यह ड्रग्स के सेवन का मामला है या फिर उसकी खरीद-फ़रोख्त का? सुशांत की हत्या अब पीछे छूट गयी है। क्योंकि अगर हत्या मामले में किसी भी तरह का कोई साक्ष्य या तथ्य पाया जाता तो उसकी गिरफ्तारी सीबीआई करती। या फिर पैसे के लेन-देन के मामले में कोई गड़बड़ी होती तो ईडी अपनी भूमिका निभा रही होती। लेकिन इन दोनों ने ऐसा कुछ नहीं किया।

जब इन दोनों मोर्चों पर एजेंसिंया फेल होती नजर आयीं तब उन्हें एनसीबी का सहारा लेना पड़ा। और रिया को किसी दूसरे शख्स के नशा सेवन के लिए बलि का बकरा बना दिया गया। रिया जिससे प्यार करती थी और जिसकी मौत को लेकर देश की यह पूरी जनता और मीडिया परेशान है और जिसे सब मिलकर खड़े-खड़े न्याय दिला देना चाहते हैं। उसके ड्रग सेवन के चलते रिया को गिरफ्तार किया गया है। अब यही कहना बाकी रह गया है कि रिया ने ही सुशांत को ड्रग की आदत दिलायी। जबकि बताया जा रहा है कि सुशांत की ड्रग लेने की लत बहुत पुरानी थी। रिया के संपर्क में आने से पहले वह ड्रग ले रहा था। और इस मामले में उसके पांच-पांच मनोचिकित्सक थे जिनकी निगरानी में उसकी जिंदगी चल रही थी। और बीच-बीच में अक्सर वह अवसाद का शिकार हो जाता था। और यह सब बातें उसके परिवार के लोग भी जानते थे लेकिन अब उससे पूरी तरह से मुकर रहे हैं। 

दरअसल भारतीय समाज एक पाखंडी समाज है। यह मूलत: एक ब्राह्मणवादी-सामंती संस्कृति और पितृ सत्ता का पोषक है। जिसमें महिलाओं का स्थान हमेशा दोयम दर्जे का रहा है। और एक ऐसे समय में जबकि धर्म की सत्ता अपने उरूज पर है। और देश में वर्ण व्यवस्था का गौरव गान हो रहा है। स्वाभाविक है कि उसमें महिलाओं को उनका स्थान भी बताया जाएगा। देश की पुरुष प्रधान व्यवस्था इसी काम को कर रही है। और उसके लिए वह हर चीज का इस्तेमाल करेगी जो उसकी जीत के लिए जरूरी है।

और इन सबसे अलग पूरे मामले की जड़ राजनीतिक सत्ता और उसकी जरूरत है। जिसके लिए सुशांत मामला एक मुंह मांगी मुराद है। एक ऐसे समय में जबकि बिहार का चुनाव होने जा रहा है। और एनडीए का पूरा भविष्य दांव पर लगा हुआ है। उसमें सुशांत की मौत का मुद्दा उसके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसमें एक खास जातीय हिस्से के वोट की गारंटी के साथ ही चुनाव को जनता के बुनियादी मुद्दों से काटने की पूरी ताकत है। लिहाजा सुशांत के अगर बिहार विधानसभा का पुलवामा बनने की क्षमता है तो फिर भला सत्ता उसे क्यों छोड़ने जा रही है। उसके लिए किसी एक रिया की बलि तो बहुत छोटी बात है। जरूरत पड़ने पर वह हजारों रियाओं को भी कुर्बान कर सकती है।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के संपादक हैं।)

महेंद्र मिश्र
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