कश्मीर पर कहर(पार्ट-3): जनता के किले में तब्दील हो गया है सौरा

सौरा, श्रीनगर। हम लोगों के लिए सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण था सौरा जाना। श्रीनगर से 9 किमी की दूरी पर स्थित सौरा सुरक्षाबलों के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। सौरा के ही एक हिस्से में वह मशहूर शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेंज अस्पताल है जिसे एसकेईएम के लोकप्रिय नाम से जाना जाता है। और जिसके निर्माण के लिए शेख अब्दुल्ला ने लोगों से चंदा मांगा था और लोगों का कहना है कि उसमें ढेर सारी गांव की महिलाओं ने अपने गहने तक दे दिए थे। 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 और 35 ए समाप्त करने के केंद्र के फैसले के खिलाफ कश्मीर में पहला विरोध-प्रदर्शन इसी सौरा में हुआ था।

9 अगस्त को हुए इस प्रदर्शन में तकरीबन 10 हजार लोग शामिल थे। इलाके में स्थित ईदगाह में नमाज के बाद हुए इस प्रदर्शन में एक बच्चे की मौत हो गयी थी। सबसे पहले इसकी खबर बीबीसी ने दी थी। लेकिन भारत सरकार ने उसका खंडन कर दिया था। और उसे पूरी तरह से मनगढ़ंत बताया था। बावजूद इसके बीबीसी अपने रुख पर कायम रहा। बाद में मीडिया के दूसरे संस्थानों ने भी उस खबर को प्रकाशित और प्रसारित किया। और आखिर में गृहमंत्रालय ने भी माना कि कुछ लोग सड़कों पर आए थे। हालांकि उसने उनकी संख्या 20 से ज्यादा नहीं बतायी थी।

एक प्रवेश द्वार पर लगाया गया बैरिकेड।

यहां जाने के लिए पहले हम लोगों के साथ कोई स्थानीय पत्रकार तैयार नहीं हो रहा था। संयोगवश प्रेस क्लब में एक पत्रकार खुद ही हम लोगों के पास आया और पूछा क्या आप सौरा जाना चाहते हैं। हमारी सहमति जताने पर उसने हम लोगों से अगले दिन नियत समय पर तैयार रहने को कहा। अगले दिन वह आया तो लेकिन यह सूचना देने के लिए कि वहां उस दिन नहीं जाया जा सकता है। क्योंकि सौरा में फिर सुरक्षा बलों और नागरिकों के बीच झड़प हुई है। लिहाजा माहौल बहुत गर्म है और जाना उचित नहीं है। ऐसे में हम लोग फिर लाल चौक और उसके आस-पास के इलाकों में घूमे और उनका जायजा लिया। (इस दिन की कहानी फिर कभी आगे आज सौरा की यात्रा का विवरण।)। दरअसल सौरा को वहां के नागरिकों ने बिल्कुल किले में तब्दील कर दिया है। और उसके भीतर सुरक्षा बलों का कोई जवान नहीं घुस सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यहां दोनों पक्षों के बीच एक तरह का युद्ध चल रहा है।

सौरा की एक दीवार पर बुरहान के पक्ष में लिखी इबारत।

स्थानीय पत्रकार की कार में बैठकर जब हम सौरा पहुंचे तो देखा कि इलाके के बाहर सुरक्षा बलों के जवानों का भारी बंदोबस्त था। आमतौर पर यहां मीडिया के किसी शख्स का भी पहुंच पाना मुश्किल है। सौरा के भीतर घुसने के लिए अलग से कुछ रास्ते बनाए गए हैं जिन्हें इलाके के लोग ही जानते हैं क्योंकि सौरा के भीतर जाने वाले सात प्रवेश द्वारों को खुद नागरिकों ने ही बैरिकेड के जरिये बंद कर रखा है। लिहाजा उनसे होकर जाना किसी के लिए मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। ऐसे में हम लोगों को पीछे के रास्ते से ले जाया गया। यह भी एक प्रवेश द्वार ही था। जिस पर बड़ा बैरिकेड लगा था।

और उसे लकड़ी के पटरों और स्टील की चादरों से बिल्कुल ब्लॉक कर दिया गया था। उनको बांधने के लिए खंभों पर लगे जियो के केबिलों का इस्तेमाल किया गया था। आगे बढ़ने के क्रम में एक तिराहे पर कुछ लोग मिले जिनसे बातचीत शुरू हो गयी। इसी बीच देखते-देखते वहां 15 से 20 लोग एकत्रित हो गए। और फिर उन लोगों ने पूरी कहानी बतानी शुरू कर दी। उनकी बातचीत का एक वीडियो भी मैंने तैयार किया। जिसमें उनके चेहरे की जगह उनके पैरों को फोकस किया गया है जिससे किसी की तस्वीर बाहर न आने पाए। वरना उनके लिए संकट खड़ा हो सकता है।

एक और दीवार पर लिखी इबारत।

उनका कहना था कि 24 घंटे सुरक्षा बलों का खौफ बना रहता है। लिहाजा उन्हें दिन-रात जागना पड़ता है। कई बार ऐसा होता है कि सुरक्षा बलों के जवान एकाएक धावा बोल देते हैं। ऐसी स्थिति में घरों की सभी महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को बाहर निकल कर भागना पड़ता है। फिर दोनों पक्षों के बीच पथराव शुरू हो जाता है। इस दौरान कई बार सुरक्षा बलों की ओर से पैलेट गन चलायी गयी। जिसमें बताया जा रहा है कि 50 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। उन्हीं में से एक युवक ने अपने पैर और कमर के ऊपर लगे पैलेट गनों के निशान को भी दिखाया।

अस्पताल से सटे गेट पर बैरिकेड।

लोगों का कहना है कि उन्हें अपनी बस्ती से निकले 50 दिन से ज्यादा हो गए। यहां से निकलने का मतलब है गिरफ्तारी। लड़के तो लड़के जवान लड़कियों को भी सीआरपीएफ वाले नहीं छोड़ रहे हैं। उनका कहना था कि बाहर किसी काम से गयी एक लड़की को जवानों ने पकड़ लिया और उसे पुलिस के हवाले कर दिया। इस बीच, अब लोगों के अनाज और खाने के दूसरे सामानों का संकट खड़ा हो गया है। जो उनके लिए बेहद परेशानी का सबब बनता जा रहा है। सौरा से सटी एक झील है, जो डल झील से भी बड़ी है। इसमें कमल के फूलों से लेकर दूसरी सब्जियों के उगाने का काम होता है। इसके अलावा कुछ खेती है जिसमें सौरा के लोग अनाज पैदा करते हैं। आपको बता दें कि कमल की जड़ों की एक सब्जी बनती है जो बेहद महंगी होने के साथ ही स्वादिष्ट भी होती है।  इसे नार्दू कहा जाता है। ये लोग उसी को उगाने का काम करते हैं। इसके अलावा बस्ती में पशमीना शालों के बुनने का काम होता है। जो बेहद महंगी होती हैं।

महिलाएं पानी भरती हुईं। सामने वह प्रवेश द्वार जिस पर तीन बैरिकेड लगे हुए हैं।

दरअसल इलाके के बाशिंदों का अनुच्छेद-370 खत्म करने के सरकार के फैसले का विरोध पहला मकसद है। लेकिन उसके साथ ही अब उन्हें अपने युवकों की गिरफ्तारी और फिर उनके उत्पीड़न की आशंका है। जिससे बचने के लिए वह लगातार विरोध के इस सिलसिले को जारी रखे हुए हैं। और किसी भी कीमत पर पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि अगर एक बार कमजोर हुए तो फिर बड़े उत्पीड़न का शिकार होना पड़ेगा। क्योंकि पिछले 53 दिनों से पल रहा सुरक्षा बलों का गुस्सा किस रुप में निकलेगा उसके बारे में कुछ भी कह पाना मुश्किल है।

इस तरह से बारी-बारी से हम लोगों ने सात में से तकरीबन 4 प्रवेश द्वारों का दौरा किया। सड़क से सीधे अंदर आने वाले एक प्रवेश द्वार पर एक के बाद एक तीन बैरिकेड लगे हुए थे। और उससे भी पहले पक्की सड़क को खोदकर वहां गड्ढा कर दिया गया था। जिससे सुरक्षा बलों की गाड़ियों को अंदर प्रवेश करने से रोका जा सके।

तीन बैरिकेडों वाला प्रवेश द्वार।

उसी प्रवेश द्वार पर उस घटना का एक चश्मदीद मिल गया जब सुरक्षा बलों ने प्रवेश करने की कोशिश की थी। वो मौका इलाके के लोगों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गया था। लिहाजा सारे लोग इकट्ठा हो गए थे और उस दिन दोनों पक्षों के बीच जमकर पत्थरबाजी हुई थी। और आखिर में सुरक्षा बलों को पीछे हटना पड़ा था।

स्थानीय युवकों ने बताया कि इलाके के लोग रात-रात भर पहरे देते हैं। इसके लिए सातों प्रवेश द्वारों पर लोगों की ड्यूटी लगती है। साथ ही पूरी बस्ती में रात भर इधर से उधर नौजवानों का जत्था घूमता रहता है। और यह सब कुछ बेहद संगठित तरीके से अंजाम दिया जाता है। इसके लिए बाकायदा एक कम्यूनिटी समूह बनाया गया है। जिसका कि एक हेड है। और फिर उसी के नेतृत्व में सभी लोगों की जिम्मेदारियां तय की जाती हैं। इसमें शामिल होने वाले लोगों में ज्यादातर नौजवान हैं। और किसी को भी मिली जिम्मेदारी का वह कड़ाई से पालन करता है।

बहरहाल कश्मीर में रहते अनहोनी हमेशा आपका पीछा कर रही होती है। और सौरा जैसे इलाकों में होने पर इसकी आशंका और बढ़ जाती है। लिहाजा यहां बहुत देर तक रुकना उचित नहीं था। लिहाजा हम लोगों ने जल्द से जल्द बाहर निकलने का फैसला किया।

इलाके से लौटने के लिए हम लोगों ने एसकेइएम अस्पताल से सटे छोटे गेट का इस्तेमाल किया और फिर अस्पताल के भीतर से होते हुए बाहर निकले। जिससे सुरक्षा बलों को पता भी नहीं चल सका कि हम किधर से गए और किधर से निकले।

एसकेईएम अस्पताल।

अस्पताल से होकर गुजरने के बाद भी हम वहां न तो किसी से कुछ पूछ सकते थे और न ही कोई तस्वीर या फिर वीडियो बना सकते थे। क्योंकि उसके चप्पे-चप्पे पर पुलिस के जवान तैनात थे। और वो हर गतिविधि पर नजर रखे हुए थे। स्थानीय लोगों ने बताया कि पैलेट गन लगने के बाद अगर कोई अस्पताल गया तो उसे पुलिस पत्थरबाज मानकर गिरफ्तार कर लेती है। लिहाजा पैलेट गन से घायल होने के बाद भी कोई अस्पताल जाना उचित नहीं समझता। क्योंकि उसकी गिरफ्तारी का खतरा बना रहता है। इसके साथ ही यहां यह भी पता चला कि पैलेट गन लगे युवकों को अस्पताल में बिल्कुल अलग रखा जाता है। लिहाजा उनसे मिल पाना भी किसी के लिए मुश्किल है।

बहरहाल अस्पताल से निकलने के बाद जीवन रक्षक दवाओं के संकट के बारे में भी हम लोगों ने पूछताछ की। उसके लिए अस्पताल परिसर के बाहर स्थित मेडिकल की दुकानों पर गए। दुकानदारों का कहना था कि ज्यादातर जीवन रक्षक दवाएं सीधे अस्पतालों में आती हैं और मेडिकल हाल वाले उन्हें बहुत कम रखते हैं। बावजूद इसके उन्होंने बताया कि दवाओं का संकट खड़ा हो गया था। हालांकि अब चीजें कुछ ठीक हुई हैं। एक दुकानदार ने बताया कि “पहले अगर इसमें 70 फीसदी की कमी थी तो वह अब घटकर 35 फीसदी हो गयी है। लेकिन संकट अभी भी बना हुआ है।”

लोगों से बातचीत।

(कश्मीर से लौटकर जनचौक के संस्थापक संपादक महेंद्र मिश्र की रिपोर्ट।)

महेंद्र मिश्र
Published by
महेंद्र मिश्र