आदिवासी युवक पर पेशाब करने की घटना से स्तब्ध भारतीय समाज क्या वास्तव में व्यथित है?

मध्य प्रदेश के सीधी जिले की एक घटना ने देश की अंतरात्मा को झिंझोड़कर रख दिया है। आज देश के राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र भी मध्य प्रदेश की इस शर्मनाक घटना पर खबर करने से खुद को रोक नहीं पा रहे हैं। सभी जानते हैं कि टेलीविजन न्यूज़ मीडिया सहित हिंदी-अंग्रेजी सहित सभी क्षेत्रीय अखबारों के लिए अब सिर्फ पाठकों के बूते मीडिया में बने रह पाना असंभव हो चुका है।

केंद्र और राज्य सरकारों से प्रतिदिन फुल पेज के मिलने वाले विज्ञापनों से ही आज सभी अखबार निकाले जा रहे हैं। लेकिन यह खबर ही इतनी भयानक है कि जैसे ही सोशल मीडिया पर एक नशे में धुत व्यक्ति का वीडियो एक आदिवासी युवक पर पेशाब करते हुए लोगों के संज्ञान में आया, देश भर में यह वायरल हो गया। मजबूरन अखबारों को इसे प्रमुखता में छापने की मजबूरी बन गई।

यह शर्मनाक हरकत भारतीय जनता पार्टी से जुड़े एक नेता के द्वारा की गई है। मध्य प्रदेश में भाजपा विधायक केदार शुक्ला का विधायक प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला इस तस्वीर में एक हाथ में सिगरेट लिए एक आदिवासी युवक के सिर पर पेशाब कर रहा है। उसकी यह हरकत साफ बता रही है कि वह सामने बैठे व्यक्ति को इंसान तक नहीं मान रहा है। यदि इंसान के बजाए जानवर भी होता तो यह हरकत किसी भी मायने में बर्दाश्त लायक नहीं थी। सत्ता का यह घमंड किस कदर भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं पर हावी है, यह उसकी सिर्फ छोटी सी बानगी भर है।

भाजपा विधायक केदार शुक्ला इस व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि मानने से इंकार कर रहे हैं। कुछ महीने बाद ही मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं। भाजपा के पास पहले ही आदिवासी क्षेत्रों से अपनी सीटों का टोटा है। केंद्रीय स्तर पर आदिवासी समुदाय को अपने पक्ष में बनाये रखने के लिए बड़ी योजनायें हैं। राष्ट्रपति पद के लिए माननीय द्रौपदी मुर्मू का चयन देशभर में बड़े पैमाने पर आदिवासी बहुल इलाकों में अपने पूर्ण वर्चस्व को स्थापित करने की योजना का एक हिस्सा रहा है।

मंगलवार को जब यह वीडियो देश में वायरल हो रहा था, राष्ट्रपति मुर्मू तेलंगाना में आदिवासियों के एक बड़े नायक अल्लूरी सीताराम राजू की मूर्ति का अनावरण कर रही थीं। सीताराम राजू का समूचा जीवन अंग्रेज शासक द्वारा आदिवासियों के प्राकृतिक रूप से प्राप्त अधिकारों के हनन और शोषण के खिलाफ रहा है।

उनके छापामार युद्ध और अत्याचारी पुलिस बल के खिलाफ मुठभेड़ और हथियारों की लूट उन्हें स्थानीय आदिवासियों के बीच “मन्यम वीरूदू” अर्थात जंगल का हीरो ख़िताब से लोकप्रिय बना गई। आजाद भारत में आज आदिवासी अंग्रेज राज से भी भयानक स्थितियों से दो-चार हो रहे हैं। लेकिन मध्य प्रदेश की यह घटना तो आधुनिक भारत के माथे पर वह बदनुमा दाग छोड़ती है, जिसे मिटाने के लिए देश को सामूहिक रूप से अपने भीतर झांकने की जरूरत है।

इस घटना ने मध्य प्रदेश के सियासी राजनीति को हिलाकर रख दिया है। शाम तक ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पुलिस को निर्देश दिए कि आरोपी के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत कार्रवाई की जाये। अपने ट्वीट में शिवराज सिंह ने कहा है, “मैंने प्रशासन को निर्देश दिए हैं कि अपराधी पर ऐसी कार्रवाई की जाये जो उदाहरण बने। अपराधी की न तो कोई जाति होती है और न धर्म। अपराधी किसी पार्टी का नहीं होता, अपराधी केवल अपराधी होता है।”

स्पष्ट है कि शिवराज सिंह उक्त अपराधी को भाजपा के नाम से जोड़े जाने के पक्ष में नहीं हैं। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्र के अनुसार किसी भी पार्टी का कार्यकर्ता हो, लेकिन अगर गलत कृत्य में शामिल है तो उस पर कार्रवाई होगी। भाजपा के महासचिव और वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीज ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।

प्रवेश शुक्ला से जुड़े परिवार के लोगों को आगे कर पूरे मामले पर लीपा-पोती करने की वही पुरानी तकनीक यहां भी शुरू हो चुकी है। भाजपा सबसे पहले मामले से खुद को अलग करती है। आरोपी को सजा दिए जाने के समर्थन में खड़ी होती है, फिर धीरे-धीरे मीडिया के माध्यम से नया नैरेटिव तैयार करती है। यही काम एक दिन के भीतर ही शुरू हो चुका है। आरोपी के पिता की मीडिया बाइट देना शुरू कर चुकी है।

बताया जा रहा है कि यह मामला 10 दिन पुराना है, जबकि आरोपी के रिश्तेदार बता रहे हैं कि ऐसा ही एडिट किया गया वीडियो दो साल पहले भी प्रवेश शुक्ला को बदनाम करने के मकसद से जारी किया गया था। 25 जून को यह वीडियो वायरल हुआ, जिसके बाद से वह डिप्रेशन में चल रहा था और ख़ुदकुशी करने की बात कह रहा था। 28 जून से प्रवेश शुक्ला घर से गायब बताया जा रहा है, और 29 जून को उसकी गुमशुदगी के लिए थाने में रिपोर्ट की गई थी।

पुलिस ने मंगलवार को सीधी से 20 किमी दूर आरोपी के गांव कुबरी में एक टीम भेजी, लेकिन आरोपी घर पर नहीं मिला।

एमपी के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अरुण सुभाष यादव ने अपने ट्वीट में सवाल किया है, “भाजपा राज में आदिवासी भाइयों का कैसे सम्मान करते हैं नज़ारा देखिये। मुख्यमंत्री जी- गृहमंत्री जी- आप दोनों ज़बानी जमा खर्च तो खूब करते हो मगर कार्रवाई कुछ नहीं होती। अभी तक यह व्यक्ति गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ? पुलिस ने क्या इसीलिए गिरफ्तार नहीं किया कि यह एक विधायक प्रतिनिधि है?”

खबर है कि देर रात मध्य प्रदेश पुलिस की पकड़ में आरोपी आ गया है। भगवा गमछे में अपने मुंह को लपेटे जिस शान से उसने थाने में प्रवेश किया, वह साफ़ बता रहा है कि जल्द ही देश का गुस्सा शांत होते ही यह व्यक्ति उतनी ही शान से बाइज्जत बरी होकर निकलेगा। इस देश में बर्बर दमन की खबरों की एक्सपायरी डेट इतनी जल्दी आ जाती है कि कभी-कभी संदेह होने लगता है कि जिस समय मीडिया इन खबरों की बाइट बना रहा होता है, वह उसी समय इसे दबाने के लिए एक नए प्लाट पर काम तो नहीं कर रहा होता?

भारत में आज आबादी के बड़े हिस्से को आदिवासी कौन हैं के बारे में कोई खास खबर नहीं है। चूंकि वे महानगरों में रहते हैं इसलिए खुद को मुख्यधारा में समझते हैं। जबकि आदिवासी भारतीय समाज की सबसे प्रामाणिक प्रजाति है। आदिवासी कोई जाति नहीं बल्कि एक प्रजाति है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या बौद्ध की तरह उनका धार्मिक स्वरूप नहीं है। वे किसी एक ईश्वर या अनेकों ईश्वर के बजाय प्रकृति के उपासक हैं। प्रकृति से छेड़छाड़ के वे सख्त विरोधी हैं।

यदि कोई आदिवासी अपना धर्म बदल भी ले, इसके बावजूद वह जेनेटिक तौर पर खुद को बदल नहीं सकता। ऐसा माना जाता है कि दुनिया में जब किसी धर्म की उत्पत्ति भी नहीं हुई थी, तब से आदिवासी धरती पर प्राकृतिक रूप से रहने के साथ प्रकृति के नियमों के अनुरूप अपना जीवन जी रहे हैं। प्रकृति ही किसी भी आदिवासी की सच्ची गुरु है।

2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में आदिवासियों की संख्या करीब 10 करोड़ है। भारत में मुख्य रूप से आदिवासी बड़ी संख्या में झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में पाए जाते हैं। इसके अलावा राजस्थान, यूपी, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र, तेलंगाना, बिहार और पश्चिम बंगाल में भी इनकी अच्छी खासी तादाद है। पूर्वोत्तर के राज्यों सहित असम में भी आदिवासी एवं जनजातीय समाज बसता है।

संविधान में इनके लिए विशेष आरक्षण और वनाधिकार दिए गये हैं, लेकिन उदारवादी अर्थव्यवस्था और तेजी से प्रगति की रफ्तार पकड़ने की भूख आज जल, जंगल, जमीन और आदिवासियों के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है। आज आदिवासी समाज के पास कोई बिरसा मुंडा, अल्लूरी सीताराम राजू जैसा नायक नहीं है, जो उनके जल, जंगल, जमीन और धरती को इस लूट से बचाने के लिए खड़ा हो।

जो खड़ा होता है उसे देशद्रोही, खूंखार माओवादी करार देकर राज्य पुलिस और सेना की बटालियन का सामना करना पड़ता है। जो बचे हैं, उनमें अधिकांश आदिवासी लूट और शोषण से ठीक उसी हालत में पहुंच गये हैं, जैसा वायरल वीडियो में पीड़ित व्यक्ति को देखा जा सकता है। जिसके पास विरोध करने का आत्मबल ही नहीं बचा। उसके सिर पर पेशाब करने वाला आरोपी असल में खुद को अधिकार-संपन्न समझ रहा है, जिसके लिए आदिवासी सभ्य-समाज के लिए एक कोढ़ है।

हाल के दिनों में भारतीय मध्य-वर्ग की सड़ांध मारती मानसिकता मुख्यधारा से दूर हाशिये पर खड़े लोगों, वंचितों और कई बार तो आंख, नाक और अपरिचित भाषा को देखकर ही नाक-भौं सिकोड़ने के उदाहरण आम हैं। इस समाज को सर्जरी की जरूरत है, लेकिन इसके लिए किसी बाहरी सर्जन की जरूरत नहीं है बल्कि यह शल्य चिकित्सा उसे खुद ही करनी होगी, वरना वह दिन दूर नहीं जब शंभूनाथ रैगर, प्रवेश शुक्ला आपको अपने ही घर और पड़ोस में दिखेगा। 

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

रविंद्र पटवाल
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