‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के लखनऊ सम्मेलन का ऐलान- 26 से 28 नवंबर तक राजभवन घेरेंगे

लखनऊ। 21 अक्टूबर 2023 को गांधी प्रेक्षागृह लखनऊ में ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ उत्तर प्रदेश का प्रथम राज्य सम्मेलन संपन्न हुआ। सम्मेलन में 23 संगठनों के साढ़े आठ सौ से ज्यादा किसान कार्यकर्ता प्रदेश के विभिन्न जिलों आकर सम्मलित हुए। सम्मेलन ने ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ की राष्ट्रीय समन्वय समिति के आह्वान पर 26 से लेकर 28 नवंबर तक राजभवन की घेराबंदी के फैसले का पूर्ण समर्थन किया। साथ ही नवंबर में सम्मेलन द्वारा तैयार किए गए मांगों के साथ जन अभियान चलाने की घोषणा हुई।

सम्मेलन में राष्ट्रीय समिति के सदस्यों के साथ प्रदेश के किसान संगठनों के प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। पांच सदस्यीय अध्यक्ष मंडल के गठन के साथ सम्मेलन की कार्रवाई शुरू हुई। सम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रीय समन्वय समिति के सदस्य और अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह ने किया।

राजाराम सिंह ने अपने विस्तृत और सुचिंतित वक्तव्य के द्वारा केंद्र सरकार की कॉर्पोरेट परस्त और कृषि विरोधी नीतियों की व्याख्या करते हुए कहा कि यह सरकार खेती किसानी को कॉरपोरेट कंपनियों के हाथ में देने के लिए सभी तरह का षड्यंत्र रच रही है।  जिससे भारतीय कृषि में लगे करोड़ों परिवारों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है।

उन्होंने ‌कहा कि ऐतिहासिक किसान आंदोलन के समक्ष घुटने टेकते हुए मोदी सरकार ने ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के साथ लिखित समझौता किया था। लेकिन अपने चरित्र के अनुकूल मोदी सरकार ने किसानों के साथ उसी तरह से विश्वासघात किया है जैसे उसने चुनाव जीतने के बाद देश की जनता के साथ किया। अब समय आ गया है कि विश्वासघाती मोदी सरकार को किसान दंडित करें।

इसके साथ ही उनका कहना था कि किसान आंदोलन की क्रांतिकारी परंपरा को आगे बढ़ते हुए ही मोदी सरकार की कॉरपोरेट परस्त नीतियों का मुकाबला किया जा सकता है। 13 महीने तक दिल्ली बॉर्डर पर चले किसान आंदोलन को विश्व का सबसे महान किसान संघर्ष बताते हुए उन्होंने किसानों की शहादत और साहस की परंपरा को उन्नत करने पर जोर दिया। मोदी-योगी सरकार द्वारा किसानों पर किए जा रहे हमले के विभिन्न रूपों को चिन्हित करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे सरकार ने किसानों के खिलाफ फिर युद्ध छेड़ दिया है।

उप्र में विकास के नाम पर चल रही भूमि की लूट और वर्षो से आबाद लाखों किसानों को भूमाफिया के नाम पर उजाड़ने की योजना पर तीखा प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ को इस सवाल पर एकजुट संघर्ष करने की जरूरत है। इन हमलों के शिकार ज्यादातर गरीब, छोटे मझोले किसान, आदिवासी-दलित और पिछड़ी जातियों के परिवार हो रहे हैं। बुलडोजर द्वारा गरीब किसानों-आदिवासियों के गांवों घरों को उजाड़ने के खिलाफ चल रहे संघर्षो को सुदृढ़ करने की जरूरत है।

राजाराम सिंह ने विस्तार से मोदी सरकार की किसान विरोधी नीतियों की व्याख्या करते हुए कहा कि अब सरकार टुकड़े-टुकड़े में कॉर्पोरेट परस्त नीतियों को लागू कर रही है। जो ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के साथ किए गए समझौते के साथ विश्वासघात है। उन्होंने एमएसपी के लिए गारंटी का कानून बनाने, प्रस्तावित ‌बिजली बिल 2022 के कानून को वापस लेने और आंदोलन में शहीद हुए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने तथा लखीमपुर में किसानों की हत्या की साजिश रचने वाले गृहराज्य मंत्री की बर्खास्तगी की मांग को लेकर आंदोलन तेज करने का आह्वान किया।

न्यूज़ पोर्टल न्यूज़ क्लिक पर हमले के दौरान पूछे गए सवालों से साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि मोदी सरकार किसानों के खिलाफ किस तरह की शत्रुता पाले हुए हैं। उसने किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए विदेशी फंडिंग द्वारा साजिश और आतंकवाद जैसी घटनाओं से जोड़ने की कोशिश की। राजाराम सिंह का कहना था कि सरकार द्वारा रचे जा रहे इस किसान विरोधी नैरेरिट के खिलाफ आंदोलन तेज करते हुए उसे माफी मांगने को मजबूर करना होगा।

उन्होंने संविधान, लोकतंत्र और प्रेस की आजादी को कुचलने और संस्थाओं का दुरुपयोग कर किसान नेताओं से लेकर पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, छात्रों-नौजवानों और विपक्षी‌ राजनीतिक दलों को परेशान करने के अपराध के लिए मोदी सरकार को आने वाले चुनाव में सबक सिखाने की जरूरत को रेखांकित किया।

उद्घाटन के बाद 21 सूत्रीय मांगों का प्रस्ताव किसान सभा के प्रदेश सचिव मुकुट सिंह ने पेश किया। इसके साथ ही दो कार्यक्रम भी कन्वेंशन के सामने रखे गए। प्रस्ताव और कार्यक्रम पर अनेक वक्ताओं ने अपने-अपने विचार रखे। कई नए सुझाव प्रस्ताव में शामिल कराने को रखे गए। सम्मेलन में राष्ट्रीय नेताओं- एआईकेएस के पी. कृष्ण प्रसाद, एएकेएमएमएस के सत्यवान, क्रांतिकारी किसान संगठन के डॉ दर्शन पाल, एआईकेएमएस के डॉ आशीष मित्तल, तराई किसान सभा के अध्यक्ष तेजेंद्र सिंह विर्क, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के राष्ट्रीय सचिव युद्धवीर जादौन ने अपने विचार रखें।

सम्मेलन की अध्यक्षता किसान महासभा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष जयप्रकाश नारायण, अखिल भारतीय किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष भारत सिंह, तराई किसान यूनियन के तेजिंदर सिंह विर्क, भारतीय किसान यूनियन टिकैत के युद्धवीर जादौन के अध्यक्ष मंडल ने की। प्रस्ताव पेश करने के बाद संचालक ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा ने एक-एक कर किसान संगठनों के नेताओं को प्रस्ताव पर विचार रखने के लिए आमंत्रित किया।

प्रस्ताव पर भारत सिंह, जयप्रकाश नारायण, अफलातून देसाई, तेजेन्द्र सिंह विर्क, बेचन अली, अजय सिंह, बचाऊ राम, सत्यदेव पाल‌, राजनेत यादव, कमलेश यादव, डॉ बृज बिहारी सहित एक दर्जन किसान नेताओं ने अपने विचार रखे। सभी का जोर मोदी सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष करने पर केंद्रित था।

सम्मेलन में खेती में बढ़ रही बटाईदारी की प्रवृत्ति को देखते हुए बटाईदार किसानों- जो मूलतः गरीब भूमिहीन मजदूर किसान हैं- के हितों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने और बटाईदारों को किसान के बतौर मान्यता देने की मांग की। जिससे बटाईदार किसानों को सरकारी सुविधाओं के दायरे में लाया जा सके।

साथ ही किसानों के धान, गेहूं की एमएसपी से कम कीमत पर हो रही खरीद, आवारा पशुओं से फसलों की बर्बादी (जो मोदी-योगी सरकार की नीतियों का स्वाभाविक परिणाम है।) पर नेताओं ने तत्काल प्रभावी कदम उठाने की मांग की।गरीब, छोटे मझौल किसानों के घर और नलकूपों पर जबरदस्ती स्मार्ट मीटर लगाकर भारी बिजली बिल थोपकर उनका उत्पीड़न दैनिक समस्या हो गई है। संपूर्ण बिजली बिल माफी सहित 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने के सरकारी वादे पूरे करने की मांग पर डटकर प्रतिरोध करने का सुझाव सम्मेलन के प्रतिनिधियों ने रखे।

आजमगढ़, लखीमपुर खीरी सहित प्रदेश के अनेक स्थानों पर विकास और भू-माफिया के नाम पर भूमि अधिग्रहण और बेदखली के खिलाफ चल रहे आंदोलन के प्रति सरकार के रुख को लेकर प्रतिनिधियों में भारी आक्रोश देखा गया। भविष्य में हाईवे के किनारे औद्योगिक गलियारा बनाने के लिए हजारों किसानों की जमीन छीने जाने की योजना पर गहरी चिंता व्यक्त की गई।

सम्मेलन में मोदी और योगी सरकार की सांप्रदायिक विभाजनकारी नीतियों को लेकर भारी चिंता व्यक्त की गई। सम्मेलन की समझ थी कि किसान आंदोलन के लिए सामाजिक सौहार्द, भाईचारा, आपसी एकता को बचाना सबसे जरूरी कार्यभार है। हरियाणा के नूंह में भाजपा, विहिप, बजरंग दल द्वारा प्रायोजित दंगे के खिलाफ किसानों की एकता एक ऐतिहासिक मिसाल है। जिसने सरकार द्वारा रचे गए बड़े षड्यंत्र को नाकाम कर दिया और हरियाणा के किसानों की एकता को बचाये रखा। इस अनुभव से पूरे देश में किसान संगठनों को अवश्य ही शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।

सम्मेलन ने शिदृत के साथ महसूस किया कि महान किसान आंदोलन के समक्ष घुटने टेकने के बाद मोदी सरकार हठ पूर्वक कॉर्पोरेट घरानों के लिए किसानों के खिलाफ काम कर रही है। उसने लिखित समझौते के बाद भी विश्वासघात किया है। और ढिठाई पूर्वक किसान विरोधी नीतियों को आगे बढ़ा रही है। इसलिए किसान आंदोलन का अगला चैप्टर  खड़ा करने के लिए गंभीरता पूर्वक विचार करना होगा।

सम्मेलन ने कहा कि हमें अपनी कमजोरियों को दुरुस्त करते हुए सरकार के नीतिगत हमलों को नाकाम करने के लिए संघर्ष के नए रूपों को विकसित करना होगा तभी हम मोदी सरकार को शिकस्त दे सकते हैं। फासीवाद के हमले के  दौर में मोदी सरकार दुनिया को दिखाने के लिए “भारत में लोकतंत्र है” का आवरण बनाए रखने का नाटक करेगी। अकूत काले धन, कॉर्पोरेट समर्थन तथा नफरती विध्वंसक वातावरण का निर्माण करते हुए विपक्ष की ताकतों को डर और आतंक के वातावरण में जीवित रहने के लिए मजबूर कर यह सरकार 2024 के लोकसभा चुनाव की तरफ जाने की तैयारी में है।

लेकिन सरकार अपनी जन विरोधी नीतियों के कारण 2024 तक आते-आते जन आंदोलनों, जन संघर्षों और जनता की प्रबल लोकतांत्रिक आकांक्षाओं की लपटों के बीच घिरती जा रही है। इसलिए 2024 भारत के लाखों किसानों, मजदूरों और मेहनतकश जनगण के जीवन, जीविका के साथ उनकी आजादी, संविधान और लोकतंत्र के भविष्य के लिए निर्णायक होने जा रहा है।

इसलिए किसान आंदोलन और संयुक्त किसान मोर्चे को भी इस दौर की राजनीतिक विशेषता और ‘फासीवाद बनाम लोकतंत्र’ के प्रधान अंतर्विरोध को पकड़ते हुए मोदी सरकार पर निर्णायक चोट करने के लिए अपनी तैयारी को तेज कर देना होगा। इस संघर्ष की विजय पर कृषि और किसानों का भविष्य निर्भर करेगा। आमतौर पर किसान प्रतिनिधियों के विचार विमर्श में यह भावना प्रकट हो रही थी।

सम्मेलन ने मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ किसान आंदोलन को तेज करने की जरूरत पर शिद्दत से विचार किया। अंत में सर्वसम्मति से कुछ संशोधनों के साथ प्रस्ताव और कार्यक्रम को सम्मेलन ने पास कर दिया। सम्मेलन का समापन अध्यक्ष मंडल के सदस्य राजवीर सिंह जादौन के आभार वक्तव्य के साथ हुआ। अंत में उत्साह पूर्ण वातावरण में प्रतिनिधियों के जोशीले नारों के साथ कि हम- 26, 27, 28 नवंबर को “राजभवन घेराव के समय संघर्ष के मैदान में फिर मिलेंगे साथियों” के आह्वान के साथ संपन्न हो गया।

(जयप्रकाश नारायण किसान नेता और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

  

जयप्रकाश नारायण
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जयप्रकाश नारायण