भूमाफियाओं और दबंगों से अफसरों की साठ-गांठ का नतीजा है सोनभद्र का नरसंहार

भले ही इंसान जिंदगी के अंतिम समय में दो गज जमीन में ही सिमट कर रह जाए मगर जमीन पाने और उसे बढ़ाने के लिए कभी-कभी न केवल अपने जमीर को मार देता है बल्कि कई बार वह करीबी रिश्ते नातों को भी तिलांजलि देने से बाज नहीं आता। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो विवादित जमीनों को औने-पौने दामों में खरीद कर उस पर कब्जा करने के लिए हर तरह की दबंगई और गुंडागर्दी के लिए तैयार रहते हैं, वैसे तो कमोवेश यह स्थिति पूरे देश की है लेकिन यूपी और बिहार में इसका बोलबाला है।

अनायास नहीं अदालतें जमीन विवाद से भरी पड़ी हैं, यहां निस्तारण की स्थितियां किसी खत्म न होने वाली अंधेरी सुरंग की मानिंद हैं। इसलिए विवादित जमीनों पर कब्जा जमाने के लिए दबंग भूमाफिया मारपीट, हत्या तक करने से नहीं चूकते और पुलिस प्रशासन तब तक चुप्पी साधे रहता है जब तक कि विवाद खूनी संघर्ष में न बदल जाए। सोनभद्र की घटना कुछ यही कहती है।

यह 16 जुलाई का दिन मंगलवार घोरावल के उम्भा गांव के वनवासियों के लिए अमंगलकारी साबित हुआ। जब उनके कब्ज़े वाली जमीन से उन्हें बेदखल करने और उस पर कब्जा जमाने के उद्देश्य से दबंग ग्राम प्रधान यज्ञदत्त बत्तीस ट्रेक्टरों पर सवार तीन सौ हथियार बन्द लोगों के साथ पहुंचा और उसने दबंगई और जमीन कब्जाने का विरोध कर रहे निर्दोष वनवासियों पर अंधाधुंध फायरिंग कर 10 लोगों की जान ले ली और पच्चीस लोगों को गंभीर रूप से घायल कर दिया। इसके बाद सोनभद्र से लेकर देश-प्रदेश में कोहराम मच गया।

पूरे घटनाक्रम को बारीकी से देखा जाए तो इसमें पुलिस-प्रशासन की अकर्मण्यता और लापरवाही हद दर्जे की है।

सोनभद्र का घोरावल नक्सल प्रभावित इलाका होने के चलते पुलिस हमेशा अलर्ट मोड में रहता है। बावजूद इसके अचरज की बात यह है कि इसके उलट घटना वाले दिन इतनी संख्या में ट्रैक्टरों पर लद कर हथियार बन्द लोग उम्भा गांव पहुंच गए मगर पुलिस तो पुलिस लोकल इंटेलिजेंस यूनिट तक को इसकी खबर नहीं लगी। सूत्र बताते हैं कि घटना के वक्त वनवासियों ने स्थानीय पुलिस प्रशासन के उच्चाधिकारियों को फोन लगाया। मगर फोन या तो बन्द मिले या तो कनेक्ट नहीं हुआ। जब तक पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तब तक हत्यारे नरसंहार को अंजाम देकर निकल चुके थे। सबसे आश्चर्यजनक बात यह रही कि जरा सी सामान्य घटना या दुर्घटना पर किसी के घर शोक प्रगट करने पहुंच जाने वाले सत्तारूढ़ दल के बड़े नुमाइंदे इस घटना के बाद संवेदना तक व्यक्त करने नहीं पहुंचे।

हैरतअंगेज बात यह भी है कि सोनभद्र जैसे संवेदनशील जिले में इतनी बड़ी घटना हो गयी मगर जिले के डीएम कप्तान पर कार्रवाई की आंच तक नहीं पहुंची। जबकि इनका कसूर भी कम नहीं है। इतने गैरजिम्मेदार और लापरवाह अफसरों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा रहम के क्या कारण हो सकते हैं। भले ही सरकार पीड़ित वनवासियों को मुआवजा दे दे दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का निर्देश दे दे। मगर सच यही है कि अपनी जमीन बचाने के फेर में उन गरीब बेबस वनवासियों की दुनिया लुट चुकी है। विधवाओं की मांगें सूनी हो चुकी हैं।

किसी का पति गया है तो किसी ने भाई को खोया है और किसी ने हमेशा-हमेशा के लिए आसमान सरीखे अपने पिता को खो दिया। कहना गलत न होगा कि भूमाफिया और रसूखदार दबंगों के साठ-गांठ से सरकार एंटी भूमाफिया सेल अब फ्रेंडली भू माफिया सेल बन चुका है। समय रहते अगर सरकार नहीं चेती तो प्रदेश में कई जगहों पर जारी ऐसे ही भूमि विवाद के मामलों में घोरावल दोहराया जा सकता है।

फसाद की जड़ में एक पूर्व आईएएस है। बात तब की है जब सोनभद्र-मिर्जापुर जिले का हिस्सा हुआ करता था। उस समय इस ग्राम समाज की जमीन को तत्कालीन तहसीलदार ने आदर्श सोसायटी के नाम कर दी। बाद में सहकारिता समिति अधिनियम खत्म हो गया। उस वक्त से ही वनवासी इस पर काबिज रहे। तब तत्कालीन डीएम मिर्जापुर प्रभात मिश्रा ने ऐन-केन तरीके से कई बीघा जमीन पत्नी सहित कई लोगों के नाम करवा ली और दो साल पूर्व उसमें से 140 बीघा जमीन यह जानते हुए भी प्रधान यज्ञदत्त को बेच दी कि जमीन पर वनवासियों का कब्जा है और वो लगभग सात दशक से मुकदमा लड़ते हुए उस पर काबिज हैं। और आखिर में उसका परिणाम नरसंहार के रूप में मिला।

(अमित मौर्या वाराणसी से प्रकाशित होने वाले दैनिक “गूंज उठी रणभेरी” के संपादक हैं।)

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  • बहुत ही निंदनीय और शर्मनाक घटना। मानवता के ऊपर काला धब्बा। दोषियों को न्याय के दायरे में लाकर सख्त से सख्त सजा देनी चाहिए।

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