गुरदासपुर से लापता सनी देओल दिखे गदर-2 में

पिछले कुछ दिनों से यह खबर प्रमुखता से चर्चा में है कि मसाला फिल्म ‘गदर-2’ ने इस साल प्रदर्शित हुई तमाम हिंदी फिल्मों के बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड तोड़ दिए। पाकिस्तान इस फिल्म से बहुत चिढ़ा हुआ है। सनी देओल फिल्म के नायक हैं। ‘गदर’ के नायक भी वही थे। पिछले दिनों उन्हें याद आया कि वह नायक अथवा महानायक ही नहीं बल्कि कथित राजनायक भी हैं। पंजाब का सरहदी जिला गुरदासपुर खास सुर्खियों में रहता है।

पिछले दिनों वहां हर गली हर नुक्कड़ पर बड़े-बड़े पोस्टर लगे कि उनके सांसद ‘लापता’ हैं। ढूंढ कर लाने वाले को मुनासिब इनाम दिया जाएगा। सांसद पिछले लोकसभा चुनाव के बाद सिर्फ धन्यवादी दौरा करने जिले में गए थे और उसके बाद शायद भूल ही गए कि उन्होंने वहां से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता था। इस पत्रकार ने 2019 में सनी देओल को गुरदासपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आते पठानकोट में पहली बार देखा था। बल्कि इंटरव्यू के लिए उनसे मिला था। वह बहुत शर्मीले स्वभाव के हैं। तब तो थे। अब का मालूम नहीं। 

सनी देओल ने बीते दिनों आकस्मिक घोषणा की कि सियासत उन्हें रास नहीं और वह इसे छोड़ रहे हैं। वह एक लाख 687 मतों से चुनाव जीते थे। उनसे पहले विनोद खन्ना गुरदासपुर से चुनाव लड़ा करते थे। सनी देओल ने तब के पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील कुमार जाखड़ को हराया था। जाखड़ अब भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष हैं। यकीनन वह उसी गुरदासपुर से 2024 में लोकसभा चुनाव लड़ेंगे जहां से भाजपा प्रत्याशी सनी देओल ने उन्हें शिकस्त दी थी।

सनी की जीत के महज चंद महीनों बाद भाजपा को वोट देने वाली जिला गुरदासपुर की जनता को लगने लगा था कि वह ठगे गए हैं। सनी देओल का कई जगह कथन दर्ज है कि वह एक महीने में एक बार अपने लोकसभा क्षेत्र में अवाम की तकलीफें जानने और विकास कार्यों का जायजा लेने जरूर आया करेंगे। खासतौर से पठानकोट और सुजानपुर के लोगों को उनसे बेहताशा उम्मीदें थीं। यहां हिंदू वोट निर्णायक हैं लेकिन सनी देओल की स्टारडम छवि ने उन्हें अच्छे वोट दिलवाए जबकि वह जट्ट सिख के तौर पर जाने जाते हैं।

चुनाव में जीत हासिल करने के बाद वह सिर्फ एक बार अपने संसदीय क्षेत्र में आए। वह भी औपचारिक धन्यवादी दौरा ही था। वह यह सबक कुछ ही दिनों में भूल गए कि भाजपा आलाकमान का निर्देश है कि हर सांसद समय-समय पर अपने निर्वाचन क्षेत्र का हाल-चाल जरूर लेगा और वहां दो से तीन दिन बिताएगा। 

सनी देओल पहले ‘गायब’ हुए और फिर ‘लापता’। अपने कामकाज के लिए उन्होंने वहां एक सहायक एल पलिहारी को रखा था जो पठानकोट से था लेकिन साल-डेढ़ साल के बाद वह भी किसी को नजर नहीं आया। यह एहसास भी लोगों को बहुत दिनों के बाद हुआ कि सनी देओल ने फिल्मी डायलॉग बोलने के अंदाज में कहा था कि मैं इस इलाके के लिए जो कुछ करूंगा, दिल से करूंगा।

‘दिल से’ यह किया कि उन्होंने गुरदासपुर न आने की गोया कस्म ही खा ली। लोकसभा चुनाव के दौरान सनी देओल के यहां जो दोस्त बने थे, उनके फोन उठना भी बंद हो गए। लोगों ने पहले-पहल सनी देओल के खिलाफ धरना-प्रदर्शन किया। उसके बाद चार या पांच बार पठानकोट, गुरदासपुर और सुजानपुर में उनके ‘लापता’ होने के पोस्टर लगे। आखिरी बार पोस्टर महीने भर पहले लगाए गए थे।

इसलिए की तब उन्हें ‘गदर-2’ के लिए पंजाब आना था और लोगों का मानना था कि वह अमृतसर तक आ रहे हैं तो गुरदासपुर ज्यादा दूर नहीं है। थोड़ा फासला है। वह अपना शर्मीलापन लिए हुए यहां आएंगे और लोगों से गायब रहने के लिए माफ़ी मांगेंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। वह अमृतसर गए और वहीं से लौट आए। गुरदासपुर के लोगों को उनसे मिलने तक नहीं दिया गया। 

सनी देओल से पहले भाजपा के टिकट पर दिवंगत विनोद खन्ना लोकसभा चुनाव लड़ा करते थे और लगातार जीतते रहे। वह क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय थे। साल में कम से कम छह बार आते थे और हफ्ता भर से ज्यादा रहकर जाते थे। मतदाताओं को लगता था कि सनी देओल, विनोद खन्ना के सही राजनीतिक वारिस होंगे। जहां विनोद खन्ना संसद का एक सत्र मिस नहीं करते थे, वहीं सनी देओल ने वहां नहीं जाने का रिकॉर्ड कायम किया। अब बड़ी आसानी से कह दिया कि उन्होंने राजनीति से तौबा कर ली है। वैसे, पूछा जाए तो उन्होंने राजनीति की ही कब? सिर्फ चुनाव लड़ा और जीता बल्कि लड़वाया और जितवाया गया। क्या चुनाव जीतकर घर बैठ जाने को सियासत कहते हैं? 

राजनीतिक पैंतरेबाजी के लिहाज से खुद को मासूम दिखाने वाले सनी देओल क्या इस मामले में खलनायक नहीं हैं कि उन्होंने विशाल संसदीय क्षेत्र गुरदासपुर की जनता को पौने पांच साल तक लगभग लावारिस रखा। विकास क्या होता है, यह भुला दिया। चलते विकास कार्य रुक गए। इसका गुनहगार कौन है? इस सवाल का जवाब देते हैं वहां के वरिष्ठ पत्रकार संजीव सरपाल। दो-टूक शब्दों में कि सनी देओल को मासूम नहीं बल्कि ‘गुनहगार’ माना जाना चाहिए। “उनकी वजह से यह संसदीय क्षेत्र बहुत ज्यादा पीछे गया। विकास कार्य बंद हो गए।” संजीव सरपाल कहते हैं। 

सनी देओल के पिता अभिनेता धर्मेंद्र भी चुनाव लड़ चुके हैं। हेमा मालिनी अब भी सांसद हैं। सनी देओल गुरदासपुर की अपनी चुनावी रैलियों में कहा करते थे कि वह जन्मजात भाजपाई हैं। यह गलत तथ्य है। उनके दादा घोर जनसंघी थे। गुरदासपुर और पठानकोट में उनकी नई फिल्म का विरोध हो रहा है।                              

‘गदर-2’ मसाला फिल्म तो है ही साथ ही समावेशी विरोधी भी। पूरी फिल्म पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के खिलाफ नफरत फैलाती है। प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव डॉ सुखदेव सिंह सिरसा कहते हैं कि जानबूझकर इस फिल्म को लोकसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर बनाया और रिलीज किया गया। सिवा नफरत के इस फिल्म में है ही क्या? इससे पहले भी कुछ ऐसी फिल्में हाल ही में आईं हैं। सनी देओल का नायक होना अचरज की बात नहीं।

‘गदर’ को भी मूल कहानी से तोड़फोड़ करके और पाकिस्तान के खिलाफ अथाह नफरत भरकर दर्शकों के आगे प्रस्तुत किया गया था। तब जिन बच्चों ने ‘मैं चल्लया गड्डी लै के’ गीत पर तालियां बजाईं थीं- वे अब बड़े हो गए हैं और उन्हें अब नलका उखाड़ने के घृणित दृश्य याद आते हैं और पाकिस्तान के खिलाफ बोली गई नफरत भरी भाषा भी। सांस्कृतिक सरोकारों के आईने में देखें तो ये प्रतीकात्मक घृणा है। किसके प्रति? कहने की जरूरत नहीं।

उनमें से कुछ बच्चों के हाथों में अब तलवारें रहतीं हैं या त्रिशूल। उस मुल्क के प्रति आक्रामकता। पैसे किसी और ने नहीं बल्कि पाकिस्तान के प्रति जबरदस्त नफरत और इसमें सनी देओल के ‘मूढ़ अभिनय’ ने कमाए हैं। एक तरह से जब से पैसे खर्च करके लोगों ने अकेले तारा सिंह की हमारे ‘शाश्वत दुश्मन’ देश मान लिए गए पाकिस्तान पर ‘चढ़ाई’ देखी। कुछ पता नहीं कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले-पहले ‘गदर-3’ का तमाशा आ जाए।

यह पत्रकार देश की तो नहीं जानता लेकिन पंजाब की बाबत वाकिफ है कि संघ परिवार व्हाट्सएप के जरिए संदेश भेजता रहा कि ‘गदर-2’ किसी भी सूरत में पिटनी नहीं चाहिए। कई महानुभावों ने एक ही शो के प्रति व्यक्ति चार-चार टिकट खरीदे। यह तब की बात है जब सनी देओल ने खुद को राजनीति के लिए निहायत असहज बताया था।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

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