सुप्रीम कोर्ट का सीएए पर स्टे देने से इंकार, केंद्र को भेजा एक हफ्ते में जवाब देने का नोटिस

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नये नागरिकता संशोधन कानून पर स्टे देने से इंकार कर दिया है। उसने कहा कि इस मसले पर सबसे पहले वह केंद्र के पक्ष को सुनना चाहेगा। इस लिहाज से उसने केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी कर दी है। इसके साथ ही उसने इस मसले पर 5 सदस्यीय बेंच भी गठित करने का इशारा किया।

आज चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कोर्ट में इससे संबंधित दायर 143 याचिकाओं की सुनवाई शुरू की। पीठ ने उत्तर देने के लिए केंद्र को एक हफ्ते का समय दिया है। सीजेआई बोबडे ने कहा कि मामले को संविधान पीठ के हवाले किया जा सकता है। इसके साथ ही उसने सभी हाईकोर्टों को इस मसले पर सुनवाई करने से रोक लगा दी है। बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा दूसरे दो सदस्यों में जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे।

सुनवाई के दौरान एटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार को अभी तक 143 में से केवल 60 याचिकाओं की ही कापी मिली है। इसलिए पूरे मामले का जवाब देने के लिए उसे सभी याचिकाओं की कापी चाहिए। साथ ही समय भी चाहिए जिससे उन सभी का कारगर तरीके से जवाब दिया जा सके। सरकार ने इसके लिए छह हफ्ते का समय मांगा था। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील एएम सिंघवी और कपिल सिब्बल ने सीएए को लागू करने पर रोक लगाने तथा एनपीआर को कुछ समय के लिए टाल देने की गुजारिश की। लेकिन कोर्ट ने उनकी बात को मानने से इंकार कर दिया।

याचिकाओं में कहा गया है कि सीएए संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है। कुछ याचिकाओं में इसे तत्काल वापस करने की मांग की गयी है। याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस नेता जयराम रमेश, असम स्टूडेंट्स यूनियन, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और उसके सांसद तथा लोकसभा एमपी और एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन औवैसी आदि शामिल हैं।

इसके साथ ही बेंच ने कहा कि त्रिपुरा और असम में सीएए से जुड़ी याचिकाओं की वह अलग से सुनवाई करेगी क्योंकि यहां के मामले शेष भारत से बिल्कुल अलग हैं।

वरिष्ठ वकील सिंघवी ने कहा कि बहुत सारे राज्यों ने एनपीआर को लागू भी करना शुरू कर दिया है। सीनियर वकील विकास सिंह ने इस मामले में एक अंतरिम आदेश देने की मांग की। उनका कहना था कि कानून असम समझौते का खुला उल्लंघन कर रहा है।

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