सुप्रीम कोर्ट ने पूछा-बिना बहस ख़ारिज प्रावधानों के साथ ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स बिल क्यों?

स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) पर आयोजित समारोह में चीफ जस्टिस एनवी रमना ने संसद में बहस का स्तर गिरने, बिना बहस के अस्पष्ट कानून बनाये जाने की कड़ी आलोचना करते हुए कहा था कि देश की संसद में बुद्धिजीवियों की कमी है, इसीलिए अस्पष्ट उद्देश्य और बिना बौद्धिक और रचनात्मक चर्चा के कानून पास हो रहे हैं। इसका असर आज ही उच्चतम न्यायालय में उस समय दिखाई पड़ गया जब चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने सोमवार को संसद द्वारा पारित ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स बिल 2021 के खिलाफ तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालत द्वारा अमान्य करार दिए गए प्रावधानों के साथ बिल क्यों पेश किया गया। चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि इतना सब होने के बावजूद, दो दिनों में फिर से अध्यादेश जारी किया गया। मुझे संसद में कोई बहस नहीं दिखाई पड़ी। कानून बनाना विधायिका का विशेषाधिकार है, लेकिन हमें इस कानून को बनाने के कारणों को जानने का अधिकार है।

संसद द्वारा पारित ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स बिल 2021 में मद्रास बार एसोसिएशन मामले में कोर्ट द्वारा रद्द किए गए समान प्रावधानों को फिर से लागू किया गया है। पीठ ने कहा कि मद्रास बार एसोसिएशन मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले के तुरंत बाद, केंद्र सरकार ने सदन में बिना किसी उचित बहस के ट्रिब्यूनल सदस्यों की सेवा शर्तों के बारे में निर्णय लेने के लिए एक अध्यादेश लाया।

पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि अदालत द्वारा अमान्य करार दिए गए प्रावधानों के साथ बिल क्यों पेश किया गया। पीठ ने यह भी कहा कि केंद्र ट्रिब्यूनल के उचित कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय द्वारा बार-बार जारी किए गए निर्देशों का पालन नहीं कर रहा है।

चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि इन सभी (अदालत के निर्देशों) के बावजूद, कुछ दिन पहले हमने देखा है, जिस अध्यादेश को रद्द कर दिया गया था, उसे फिर से लागू किया गया है। हम संसद की कार्यवाही पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। बेशक, विधायिका के पास कानून बनाने का विशेषाधिकार है। कम से कम हमें पता होना चाहिए कि सरकार ने इस न्यायालय द्वारा खारिज किए जाने के बावजूद विधेयक क्यों पेश किया है।

चीफ जस्टिस ने उन समाचार-रिपोर्टों का जिक्र किया, जिसमें बहस के दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा दिए गए बयानों का हवाला दिया गया था। चीफ जस्टिस ने पूछा कि  माननीय मंत्री ने सिर्फ एक वाक्य कहा है, कि अदालत ने असंवैधानिकता के आधार पर प्रावधानों को रद्द नहीं किया है। हमें इस विधेयक का क्या बनाना चाहिए? न्यायाधिकरणों को काम करना चाहिए या बंद कर देना चाहिए?

पीठ ने  पूछा कि क्या मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए कारणों का बयान कोर्ट को दिखाया जा सकता है। चीफ जस्टिस ने एसजी से पूछा कि सरकार ने बिल पेश किया। मंत्रालय ने कारणों का एक नोट तैयार किया होगा। क्या आप हमें दिखा सकते हैं?

 सॉलिसिटर जनरल ने उत्तर दिया कि जब तक विधेयक को अधिनियम का दर्जा प्राप्त नहीं हो जाता, तब तक उनकी ओर से प्रतिक्रिया देना उचित नहीं होगा। एसजी ने जवाब दिया कि जब तक विधेयक, अधिनियम में परिपक्व नहीं हो जाता है, तब तक मेरी ओर से जवाब देना उचित नहीं होगा। जहां तक वैधता पर सवाल नहीं है, मैं अभी जवाब देने की स्थिति में नहीं हूं।

एसजी ने कहा कि भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ट्रिब्यूनल से संबंधित मामलों में पेश हो रहे थे। इसलिए, एसजी ने बयान देने के लिए एजी के साथ परामर्श करने के लिए समय की मांग की।

पीठ ने ट्रिब्यूनल में रिक्त पदों से संबंधित एक मामले पर विचार करते हुए ये टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने खाली पदों पर जताई चिंता सुनवाई के दौरान बेंच ने ट्रिब्यूनल में खाली रह गई रिक्तियों पर चिंता व्यक्त की। देशभर के विभिन्न ट्रिब्यूनलों में नियुक्तियों के मामले में पीठ ने नाराजगी जताते हुए केंद्र सरकार को इसके लिए 10 दिन का वक्त दिया है।

इससे पहले विभिन्न ट्रिब्यूनलों में सदस्यों की नियुक्ति में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने 8 अगस्त को हुई सुनवाई में केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी।  

चीफ जस्टिस ने पिछले साल के मद्रास बार एसोसिएशन मामले में फैसले की कुछ टिप्पणियों को पढ़कर सॉलिसिटर जनरल को सुनाया, जहां कोर्ट ने ट्रिब्यूनल को कार्यकारी प्रभाव से मुक्त रखने की आवश्यकता पर जोर दिया था। मद्रास बार एसोसिएशन के फैसले से चीफ जस्टिस ने पढ़ा, “न्यायाधिकरण द्वारा न्याय की व्यवस्था तभी प्रभावी हो सकती है, जब वे किसी भी कार्यकारी नियंत्रण से स्वतंत्र कार्य करते हैं: यह उन्हें विश्वसनीय बनाता है और जनता का विश्वास पैदा करता है। हमने सरकार के भीतर इस न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों को लागू नहीं करने की एक परेशान प्रवृत्ति देखी है।

पिछली सुनवाई के दौरान, चीफ जस्टिस ने ट्रिब्यूनल की रिक्तियों का एक चार्ट पढ़ा था और देखा था कि न्यायालय को यह आभास हो रहा है कि नौकरशाही नहीं चाहती कि ट्रिब्यूनल कार्य करें। जब सॉलिसिटर जनरल ने रिक्तियों को भरने के संबंध में एक बयान देने के लिए दस दिनों का समय मांगा, तो चीफ जस्टिस  ने कहा था कि हमने पिछली बार रिक्तियों की संख्या भी दी थी। यदि आप नियुक्त‌ि करना चाहते थे, तो आपको कुछ भी नहीं रोकता है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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