अब सुप्रीमकोर्ट ने कहा-कृषि कानूनों का मामला लंबित होने पर भी किसानों को प्रदर्शन का अधिकार

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की एक अन्य पीठ के इस विचार जिसमें पीठ ने कहा था कि कानूनों की वैधता को न्यायालय में चुनौती देने के बाद ऐसे विरोध प्रदर्शन करने का सवाल ही कहां उठता है? आज जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने इसके विपरीत राय व्यक्त करते हुए कहा कि कृषि कानूनों के खिलाफ कानूनी रूप से चुनौती लंबित है, फिर भी न्यायालय विरोध के अधिकार के खिलाफ नहीं है।

जस्टिस कौल और जस्टिस सुंदरेश कि पीठ ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को केंद्र के कृषि कानूनों का विरोध करने का अधिकार है लेकिन वे अनिश्चितकाल के लिए सड़क अवरुद्ध नहीं कर सकते। पीठ ने कहा कि कानूनी रूप से चुनौती लंबित है, फिर भी न्यायालय विरोध के अधिकार के खिलाफ नहीं है लेकिन अंततः कोई समाधान निकालना होगा।

पीठ ने कहा कि किसानों को विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है लेकिन वे अनिश्चितकाल के लिए सड़क अवरुद्ध नहीं कर सकते। आप जिस तरीके से चाहें विरोध कर सकते हैं लेकिन सड़कों को इस तरह अवरुद्ध नहीं कर सकते। लोगों को सड़कों पर जाने का अधिकार है लेकिन वे इसे अवरुद्ध नहीं कर सकते।

सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने कहा कि 17 दिसंबर, 2020 को उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने कहा था कि प्रदर्शन का अधिकार अहम है और हम प्रदर्शनकारियों को हटाने का आदेश पारित नहीं कर सकते हैं। इस दौरान जस्टिस एसके कौल ने कहा कि कानून बना हुआ है। हम यहां सड़क जाम की बात कर रहे हैं। कानून साफ है कि प्रदर्शन का अधिकार है लेकिन सड़क जाम नहीं किया जा सकता है। ऐसे में प्रदर्शनकारियों को बताया जाए कि वह इस मामले में समस्या के समाधान में सहयोग करें।

पीठ ने कहा कि वह 2020 दिसंबर के आदेश में नहीं जाना चाहते हैं। इस दौरान केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दिसंबर, 2020 में उच्चतम न्यायालय के चीफ जस्टिस ने जो आदेश पारित किया था उसमें प्रदर्शनकारियों के सड़क जाम का मुद्दा नहीं था, वह मामला कृषि कानून को चुनौती देने से संबंधित मामला था। इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि कानून साफ है कि आपको प्रदर्शन का अधिकार है लेकिन आप सड़क ब्लॉक नहीं कर सकते हैं।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जब मामला कोर्ट के सामने आया और कृषि कानून को चुनौती दी गई तो किसान यूनियन को बुलाया गया था। लेकिन वह कोर्ट के सामने नहीं आए। उच्चतम न्यायालय ने कृषि कानून के अमल पर रोक लगा दी थी। लेकिन फिर भी किसी अन्य कारणों से प्रदर्शन जारी है। इस पर दुष्यंत दवे ने कहा कि प्रदर्शन कृषि कानून के खिलाफ है। सॉलिसिटर जनरल मामले को अलग दिशा में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं।

तब सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि दवे आवेश में लग रहे हैं। फिर दवे ने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है। 100 दिन बाद हम फिजिकल कोर्ट में मिले हैं सब खुश हैं। जस्टिस कौल ने कहा कि हमें प्रसन्न होना चाहिए। आप सभी को काफी दिनों बाद हमने देखा है। हमें इस समस्या का समाधान करना होगा। जस्टिस कौल ने कहा कि हमारा मत है कि किसानों को प्रदर्शन का अधिकार है लेकिन लोगों को भी सड़क पर चलने का अधिकार है। इस पर दवे ने कहा कि पुलिस ने सड़कों को ब्लॉक कर रखा है।

तब कोर्ट ने सवाल किया कि आपका मतलब है कि सड़कों को ब्ल़ॉक नहीं किया गया है। दवे ने कहा कि इस समस्या का समाधान यह है कि प्रदर्शनकारियों को रामलीला मैदान में आने दिया जाए। प्रदर्शनकारी किसानों को रोका गया है और बीजेपी रामलीला मैदान में पांच लाख लोगों की रैली कर रही है इस तरह से सेलेक्टिव इजाजात क्यों? इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जब उन्हें अंदर आने की इजाजत दी गई तो कुछ गंभीर समस्याएं हुई। दवे ने कहा कि वह सब मुद्दे बनाए गए। लालकिला पर जो कुछ भी हुआ उसमें सबको बेल तक मिल चुकी है और कोई मसला नहीं बचा।

दवे ने यह भी कहा कि इस मामले को मौजूदा दो जजों की पीठ द्वारा नहीं सुना जाना चाहिए, इसे उसी तीन जजों की पीठ के पास भेजा जाए, जो इसी तरह के मामलों को सुन रहे हैं। हालांकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस पर आपत्ति भी जताई।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह पीठ को डराने का एक प्रयास है और इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। जब दवे ने रामलील मैदान जाने की अनुमति से इनकार करने के बारे में बताया, तो एसजी ने टिप्पणी की कि कुछ लोगों के लिए रामलीला मैदान को एक स्थायी निवास बनाया जाना चाहिए। जैसे ही वरिष्ठ अधिवक्ता दवे और एसजी तुषार मेहता के बीच तेज बहस शुरू हुई, जस्टिस कौल ने हस्तक्षेप किया और कहा कि मुझे अपनी अदालत में एक सुखद माहौल पसंद है। यह शारीरिक सुनवाई का पहला दिन है और एक सुखद वातावरण होना चाहिए। दवे ने कहा, “मेहता की मौजूदगी से मेरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन होता है”।

जस्टिस कौल ने जवाब दिया कि “आप दोनों को एक-दूसरे को सहन करना सीखना होगा।” पीठ ने कहा कि वह बड़े मुद्दों से संबंधित नहीं है, लेकिन केवल इस मुद्दे से चिंतित हैं कि पहले के आदेशों को देखते हुए सड़कों को जाम नहीं किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि वह पहले मामले की रूपरेखा तय करेगी और इस पर फैसला करेगी कि क्या दूसरी पीठ को भेजा जाए। पीठ ने किसान संघ को जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया और उसके बाद केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा प्रत्युत्तर के लिए तीन सप्ताह का समय दिया। मामले की अगली सुनवाई 7 दिसंबर को है।

पीठ ने किसान यूनियनों से इस मुद्दे पर तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले को सात दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। पीठ नोएडा की निवासी मोनिका अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई कर रहा थी, जिसमें कहा गया है कि किसान आंदोलन के कारण सड़क अवरुद्ध होने से आवाजाही में मुश्किल हो रही है।

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों द्वारा सड़क बाधित किए जाने का जिक्र करते हुए सवाल किया था कि राजमार्गों को हमेशा के लिए बाधित कैसे किया जा सकता है। इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा था कि जब तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगा दी गई है, तो किसान संगठन किसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की एक अन्य पीठ ने कहा था कि कानूनों की वैधता को न्यायालय में चुनौती देने के बाद ऐसे विरोध प्रदर्शन करने का सवाल ही कहां उठता है।

दरअसल, कई किसान संगठन पिछले करीब एक साल से तीन कानूनों- किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 और मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020 पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता, 2020 के पारित होने का विरोध कर रहे हैं। इन कानूनों का विरोध पिछले साल नवंबर में पंजाब से शुरू हुआ था, लेकिन बाद में मुख्य रूप से दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फैल गया। अब तक किसान यूनियनों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन गतिरोध जारी है, क्योंकि दोनों पक्ष अपने-अपने रुख पर कायम हैं। 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो सकी है।

इस बीच राकेश टिकैत ने मीडिया से बातचीत में कहा कि ‘हमने रास्‍ता नहीं रोक रखा, पुलिस ने रोक रखा है। हमने कहा हम भी हटा रहे हैं, तुम भी हटा लो।’ उन्‍होंने कहा कि ‘पूरा रास्‍ता खोल देंगे। इसके बाद उन्‍होंने कहा कि किसान अब दिल्‍ली जाकर संसद घेरेंगे’।

भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक ने कहा कि कुछ समय से यह अफवाह फैलाई जा रही है कि गाजीपुर बॉर्डर खाली किया जा रहा है, यह पूर्णतया निराधार है। उन्‍होंने कहा कि हम यह दिखा रहे हैं कि रास्ता किसानों ने नहीं, दिल्ली पुलिस ने बंद किया है। मलिक के अनुसार, गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन जारी रहेगा। आंदोलन हटाने का कोई निर्णय नहीं है।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

जेपी सिंह
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