सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की दलील खारिज, देना होगा कोविड पीड़ितों के परिजनों को मुआवजा!

 पिछले चार चीफ जस्टिसों, जस्टिस जगदीश सिंह खेहर, जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एसआर बोबडे, के कार्यकाल में सरकार पर मेहरबान जस्टिस अशोक भूषण जाते जाते केंद्र सरकार को झटका दे गये। केंद्र सरकार द्वारा कोविड-19 महामारी से जान गंवाने वालों के परिजनों को मुआवजा देने में असमर्थता जताने के बावजूद जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने मंगलवार को सुनाये गये फैसले में कहा कि कोविड महामारी के शिकार मृतक के परिजनों को 4 लाख रुपये का ही मुआवजा मिले यह जरूरी नहीं है, लेकिन उन्हें मुआवजा जरूर देना होगा क्योंकि यह सरकार का संवैधानिक दायित्व है। पीठ ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) एक्ट की धारा-12 का उल्लेख करते हुए कहा कि आपदा में मृत्यु पर मुआवजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है जिसे पूरा करना सरकार का दायित्व है।

गौरतलब है कि जस्टिस अशोक भूषण की अगुआई वाली पीठ ने पिछले दो दिन में कोरोना से जुड़े दो बड़े फैसले दिए हैं। मंगलवार को राज्यों से कहा था कि 31 जुलाई तक वन नेशन-वन राशन कार्ड स्कीम लागू करें। बुधवार को कहा कि कोरोना से मौत होने पर परिजन मुआवजे के हकदार हैं। सरकार उन्हें मुआवजा दे। अशोक भूषण उच्चतम न्यायालय से आज रिटायर हो रहे हैं।

पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का संवैधानिक दायित्व है कि वह कोविड-19 महामारी के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों के लिए मुआवजा की सिफारिश करने के लिए दिशा निर्देश तैयार करे। पीठ ने गौरव कुमार बंसल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और रीपक कंसल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य मामलों में फैसला सुनाते हुए कहा कि आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 12 राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से राष्ट्रीय आपदा के पीड़ितों के लिए न्यूनतम राहत की सिफारिश करने के लिए एक वैधानिक दायित्व डालती है। इस तरह की न्यूनतम राहत में धारा 12 (iii) के अनुसार अनुग्रह राशि भी शामिल है।

पीठ ने केंद्र सरकार के इस तर्क को खारिज किया कि धारा 12 अनिवार्य प्रावधान नहीं है। कोर्ट ने कहा कि धारा 12 में ‘होगा’ (shall) शब्द का इस्तेमाल किया गया है और इसका मतलब अनिवार्य है। पीठ ने कहा कि वह केंद्र सरकार को मुआवजे के रूप में एक विशेष राशि का भुगतान करने का निर्देश नहीं दे सकता है। पीठ  ने राष्ट्रीय प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि वह छह सप्ताह के भीतर कोविड-19 पीड़ितों के परिजनों को अनुग्रह राशि प्रदान करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करे।

याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिकाओं में केंद्र और राज्यों को उन लोगों के परिवार के सदस्यों को 4 लाख रूपये की अनुग्रह राशि प्रदान करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी, जिन्होंने कोविड-19 बीमारी के कारण दम तोड़ दिया। याचिकाकर्ताओं ने कोविड के कारण जान गंवाने वाले व्यक्तियों के मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया के सरलीकरण के संबंध में भी राहत मांगी।

एनडीएमए पर पीठ ने केंद्र से कहा कि आपका कर्तव्य है कि आप राहत के न्यूनतम पैमाने बताएं। ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है जिससे पता चले कि कोविड पीड़ितों के लिए आपने ऐसी राहत या मुआवजे की कोई गाइडलाइन जारी की हो। आप अपना वैधानिक कर्तव्य निभाने में विफल रहे हैं। किसी भी देश के पास अपार संसाधन नहीं होते। मुआवजे जैसी चीज हालात और तथ्यों पर आधारित होती है। ऐसे में ये सही नहीं है कि हम केंद्र को निर्देश दें कि मुआवजे के लिए इतनी तय रकम दी जाए। ये रकम केंद्र को तय करनी होगी। आखिरकार प्राथमिकताएं केंद्र ही तय करता है।

पीठ ने न्यायिक पुनर्विचार की शक्ति के दायरे पर चर्चा करने के बाद कहा कि वह सरकार को मुआवजे के रूप में एक विशेष राशि का भुगतान करने का निर्देश नहीं दे सकता है। सरकार की अपनी प्राथमिकताएं हैं और विभिन्न जरूरतों और क्षेत्रों को पूरा करना है, जैसे कि सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल, महामारी से प्रभावित प्रवासियों का कल्याण और सरकार को अर्थव्यवस्था पर महामारी के प्रभाव से भी निपटना है। पीठ ने कहा कि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि अनुग्रह सहायता से सरकार पर वित्तीय दबाव पड़ेगा। इसलिए मामले को राष्ट्रीय प्राधिकरण के विवेक पर छोड़ दिया गया है।

पीठ ने कहा कि किसी भी देश या राज्य के पास असीमित संसाधन नहीं हैं। इसका वितरण कई परिस्थितियों और तथ्यों पर आधारित है। इसलिए, हमें नहीं लगता कि केंद्र को एक विशेष राशि का भुगतान करने का निर्देश देना उचित है। यह सरकार द्वारा तय किया जाना है। अंततः प्राथमिकताएं भी सरकार द्वारा तय की जानी हैं।

पीठ ने एनडीएमए को डीएमए की धारा 12 (iii) के तहत अनिवार्य रूप से कोविड- 19 के कारण मरने वाले व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों के लिए अनुग्रह राशि के लिए दिशा-निर्देशों के साथ आने का निर्देश दिया। अनुग्रह सहायता के रूप में कितनी राशि दी जानी है, यह राष्ट्रीय प्राधिकरण के विवेक पर छोड़ दिया गया है। वे अदालत द्वारा की गई टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए राशि तय करने पर विचार कर सकते हैं। वे आवश्यकता, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ के तहत फंड की उपलब्धता और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण केंद् द्वारा निर्धारित प्राथमिकताओं, राहत के न्यूनतम मानकों के लिए किए गए फंड आदि पर भी विचार कर सकते हैं। इन निर्देशों को 6 सप्ताह की अवधि के भीतर समायोजित किया जाना चाहिए।

पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि मौत का सही कारण यानी कोविड- 19 के कारण मृत्यु का कारण बताते हुए मृत्यु प्रमाण पत्र / आधिकारिक दस्तावेज जारी करने के लिए सरल दिशानिर्देश तैयार किए जाएं।

केंद्र सरकार ने केंद्र और राज्य सरकारों की आर्थिक तंगी का हवाला देते हुए कोविड-19 पीड़ितों के लिए 4 लाख रुपये मुआवजे की याचिका का विरोध किया। केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि, “यह एक दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन महत्वपूर्ण तथ्य है कि सरकारों के संसाधनों की सीमाएं हैं और अनुग्रह राशि के माध्यम से किसी भी अतिरिक्त बोझ से अन्य स्वास्थ्य और कल्याणकारी योजनाओं के लिए उपलब्ध धन कम हो जाएगा। केंद्र ने यह स्वीकार किया कि प्रभावित परिवारों को सहायता की आवश्यकता है।

गृह मंत्रालय ने कहा कि यह कहना गलत है कि सहायता केवल अनुग्रह सहायता के माध्यम से प्रदान की जा सकती है क्योंकि यह एक संकीर्ण दृष्टिकोण होगा। गृह मंत्रालय के अनुसार प्रभावित समुदायों के लिए स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सुधार को लेकर अधिक विवेकपूर्ण, जिम्मेदार और टिकाऊ दृष्टिकोण होगा। गृह मंत्रालय ने इसके अलावा कहा है कि किसी चल रही बीमारी के लिए या लंबी अवधि की किसी भी आपदा घटना के लिए कई महीनों या वर्षों के लिए अनुग्रह राशि देने और एक बीमारी के लिए अनुग्रह राशि देने की कोई मिसाल नहीं है। मृत्यु दर के बड़े हिस्से को नहीं देना उचित नहीं होगा और अनुचितता और अविवेकपूर्ण भेदभाव पैदा करेगा।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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