बिहार में 34 साल के नौजवान राजनेता ने स्वघोषित चाणक्यों का चोला उतार दिया

पटना। ‘अब हम बिहार में ही रहेंगे, कहीं नहीं जायेंगे। इन्हीं लोगों के साथ हमेशा रहेंगे।’ बिहार राजनीति में बार-बार सत्ता पलटने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई बार ऐसा कह चुके हैं। नीतीश का यह पाला बदल महज एक और पलटी नहीं है। एक तरह से यह उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं पर पूर्णविराम भी है, जो 2013 से या सच पूछिए तो 2010 की बंपर जीत के बाद से उनके सिर पर सवार था। 

बिहार की राजनीति बदलने से केंद्र की राजनीति पूरी तरह बदल गई है। अब न नारे लगेंगे कि देश का पीएम कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो। न कोई विश्लेषक यह कहेगा कि मोदी को चुनौती देने का दम खम अगर है तो नीतीश के पास है। 

इस पूरी घटना ने मीडिया को ज़रूर एक नया विषय दे दिया हो लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने बिहार को उसी दौर में वापस ले आया है, जब कोई भी सरकार गलती से 5 साल पूरा कर पाती थी। नीतीश कुमार को सुशासन बाबू के नाम से ज्यादा अब पलटू राम के नाम से जाना जाने लगा है। भाजपा को संभावित लाभ ज़रूर हुआ है लेकिन तेजस्वी यादव एक बेहतरीन चेहरे के तौर पर उभर चुके हैं।

आज क्या-क्या हुआ सदन में?

आज के सदन में विधानसभा की कार्यवाही में राजद के 3 विधायक चेतन आनंद, प्रह्लाद यादव और नीलम देवी एनडीए के पक्ष में आ गए। तेजस्वी यादव ने इस पर एतराज जताया। आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद कल तेजस्वी यादव के घर में क्रिकेट खेल रहे थे। राजनीति के खेल में क्या-क्या खेल होगा क्या पता। 

राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर जब विधानसभा के सेंट्रल हाल में अभिभाषण के दौरान सरकार की उपलब्धियां गिनवा रहे थे, तब अभिभाषण के दौरान तेजस्वी यादव के लिए जिंदाबाद के नारे लग रहे थे। फिर विधानसभा अध्यक्ष ने अपना पद छोड़ा फिर वोटिंग में विधानसभा अध्यक्ष अविश्वास प्रस्ताव पास करने के लिए महेश्वर हजारी विधान सभा उपाध्यक्ष ने कुर्सी संभाली है।

फ्लोर टेस्ट पर बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि, “मुख्यमंत्री हमारे लिए आदरणीय थे, हैं और हमेशा रहेंगे। कई बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमें बोलते रहे कि तुम हमारे बेटे की तरह हो। हम भी नीतीश कुमार को राजा दशरथ की तरह ही पिता मानते हैं, इनकी मजबूरी रही होगी जैसे राजा दशरथ की रही थी कि भगवान राम को वनवास भेज दिया गया। हालांकि हम इसे वनवास नहीं मानते हैं। हमें तो इन्होंने (नीतीश कुमार) जनता के बीच भेजा है, उनके सुख और दुख का भागीदार बनने के लिए।”

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने पर तेजस्वी यादव ने कहा कि “कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिला, बहुत खुशी की बात है। कर्पूरी ठाकुर और मेरे पिता के साथ नीतीश कुमार काम कर चुके हैं। आपको तो ये पता था कि जब कर्पूरी ठाकुर ने आरक्षण बढ़ा दिया तो जनसंघ वालों ने ही कर्पूरी ठाकुर को मुख्यमंत्री पद से हटाया… आप कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते हैं, फिर भी आप कहां बैठ गए… वही भाजपा और जनसंघ वाले कहते थे कि आरक्षण कहां से आएगा?”

समाजवादी राजनीति पर लिखने वाले प्रियांशु कुशवाहा कहते हैं कि, “नीतीश कुमार जी ने 28 जनवरी को गठबंधन तोड़ा था। उसी दिन तेजस्वी यादव ने कहा था खेला अभी बाकी है। फिर दो हफ़्ते के भीतर ही पटना से लेकर दिल्ली और राजगीर से लेकर बोधगया तक भागम-भाग शुरू हो चुका है। बीजेपी अपने विधायकों को लेकर होटल-होटल घूम रही है। जदयू बार-बार विधायक दल की बैठक बुला रही है। स्वघोषित चाणक्यों का चोला उतर चुका है। इसका रिजल्ट जो भी हुआ हो लेकिन एक 34 साल के नौजवान राजनेता ने फिर इनकी साँसें फूला दी है। देश की निगाहें हम पर हैं। हमने भी उड़ती हुई चिड़िया को हल्दी लगा दिया है।”

उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि जो 5 विधायक गायब हुए हैं उनका इलाज होगा, लालू जी चारा खा गए और रेलवे में गए तो नौकरी खा गए। 

अधिकांश विधायक रबड़ स्टाम्प

जेएनयू के भानु लिखते हैं कि नीतीश कुमार 2005 से अब तक 9 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं, इनमें अब कोई अपनी आत्मा नहीं बची है, जिधर जाते हैं, उसी का सॉफ्टवेयर इंस्टॉल कर लेते हैं । इस दौरान भाजपा, राजद, कांग्रेस भी पलटी है। मुझे पता था कि कोई खेला नहीं होने जा रहा, क्योंकि अधिकांश विधायक रबड़ स्टाम्प हैं।

लालू और तेजस्वी यादव इस बात को अच्छे से जानते हैं कि नीतीश एक ही गमले में गुलाब और नागफनी दोनों उगाने में माहिर हैं। बावजूद इसके नीतीश के साथ उन्होंने सरकार बनाया। नीतीश कुमार जानते हैं कि 2024 के चुनाव में उनके हाथ वो नहीं आने वाला, जिसकी चाह वो कई साल से पालकर बैठे हैं। ऐसे में 2025 में उनके हाथ से बिहार वाली कुर्सी खिसक जाएगी। ऐसे ही कुछ सच ने नीतीश कुमार को करवट लेते-लेते सीधे पलट जाने पर मजबूर कर दिया होगा।

(पटना से राहुल कुमार की रिपोर्ट।)

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