खेड़ा कोड़े मारने की घटना: 4 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराने वाले न्यायाधीशों ने की थी 2002 दंगों की सुनवाई

नई दिल्ली। न्यायमूर्ति अरविंदसिंह ईश्वरसिंह सुपेहिया और न्यायमूर्ति गीता गोपी, जो उस दो-न्यायाधीश पीठ में शामिल थे, जिसने पिछले साल गुजरात के खेड़ा के उंधेला गांव में दंगा मामले में आरोपी मुस्लिम पुरुषों को सार्वजनिक रूप से पीटने के लिए चार पुलिसकर्मियों को 14 दिनों की जेल की सजा सुनाई थी। इससे पहले ये पीठ 2002 के दंगों, आवारा मवेशियों, कथित फर्जी मुठभेड़ों और अन्य मामलों से निपटा चुका है।

दास्तां-ए-न्यायमूर्ति सुपेहिया

जुलाई में, पीठ की अध्यक्षता करने वाले न्यायमूर्ति सुपेहिया ने जूनागढ़ के दो लोगों की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए 32 आरोपी पुलिसकर्मियों को नोटिस जारी किया। याचक ने पुलिसकर्मियों पर सार्वजनिक रूप से पिटाई का आरोप लगाया था।

गलत साइड में ड्राइविंग को रोकने के लिए एक पायलट पहल के रूप में न्यायमूर्ति सुपेहिया के निर्देश पर अहमदाबाद और अन्य शहरों में ‘टायर-किलर’ स्थापित किए गए थे।

सितंबर 2020 में, कोविड-19 महामारी के कारण आभासी कार्यवाही के दौरान, न्यायमूर्ति सुपेहिया ने एक वकील पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया था। वकील को एक आपराधिक और अवमानना मामले से निपटने वाले आभासी अदालत सत्र में भाग लेने के दौरान अपनी कार में धूम्रपान करते हुए पाया गया था। जिसके बाद, बार काउंसिल ऑफ गुजरात और हाई कोर्ट के बार एसोसिएशन के सदस्य अधिवक्ताओं को सूचित करने का निर्देश दिया गया कि वर्चुअल कार्यवाही में या तो वकील के आवास से या उनके कार्यालय से भाग लेंगे, न कि खुले मैदान से या किसी वाहन से।

कुछ दिनों बाद, उन्होंने आभासी अदालती कार्यवाही के दौरान खुले तौर पर थूकने के लिए एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एक याचिकाकर्ता पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया था।

1995 में एक वकील के रूप में नामांकित, न्यायमूर्ति सुपेहिया को 2012 में गुजरात उच्च न्यायालय के लिए एक पैनल वकील के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें अप्रैल 2016 में उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था और फरवरी 2018 में पदोन्नति के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश के बाद मार्च 2018 में स्थायी न्यायाधीश के रूप में पुष्टि की गई थी।

न्यायमूर्ति सुपेहिया की पीठ ने जुलाई में लगातार मौतों और दुर्घटनाओं के बावजूद आवारा मवेशियों की समस्या से निपटने में निष्क्रियता के लिए राज्य की खिंचाई की थी, जिसके बाद अहमदाबाद नगर निगम ने आवारा मवेशी नीति लागू की।

जून में, एक खंडपीठ का नेतृत्व करते हुए, न्यायमूर्ति सुपेहिया ने उन नियमों को खोजने और अपलोड करने में विफल रहने के लिए अहमदाबाद शहर के पुलिस आयुक्त के कार्यालय की खिंचाई की, जिनके तहत पुलिस सार्वजनिक समारोहों की अनुमति मांगने वाले आवेदनों पर निर्णय लेती है।

उन्होंने कई हाई-प्रोफाइल मामलों के पैरोल, जमानत और आपराधिक मामलों को निपटाया है। जिसमें बिलकिस बानो मामले के दोषी राधेश्याम शाह की पैरोल, स्व-घोषित धर्मगुरु नारायण साईं की छुट्टी भी शामिल है, और भाजपा विधायक पबुभा मानेक समेत अन्य के खिलाफ 2017 की आपराधिक शिकायत को खारिज कर दिया।

2019 में, न्यायमूर्ति सुपेहिया ने कथित क्रिकेट सट्टेबाज अनिल जयसिंघानी के खिलाफ एक शिकायत को रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिस पर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस की पत्नी अमृता फड़नवीस को कथित तौर पर ब्लैकमेल करने और जबरन वसूली करने की कोशिश करने का भी आरोप है।

न्यायमूर्ति गीता गोपी

न्यायमूर्ति गीता गोपी, जो इस महीने की शुरुआत से खंडपीठ का हिस्सा हैं, उनको 2020 में उच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया था। जब वह अहमदाबाद शहर की अदालत में विशेष नामित सीबीआई न्यायाधीश थीं, तब उन्होंने इशरत जहां मुठभेड़ मामले की सुनवाई की थी। 2012 में, न्यायमूर्ति गोपी साबरकांठा के प्रधान जिला न्यायाधीश थी और 2002 के दंगों के दौरान प्रांतिज में तीन ब्रिटिश नागरिकों की हत्या से संबंधित मामले में सुनवाई कर रही थी जो नौ एससी-पर्यवेक्षित एसआईटी द्वारा दोबारा जांच किए गए मामलों में से एक है। तब उन्हें अहमदाबाद सिटी कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया था हालांकि इस वक्त तक न्यायमूर्ति गोपी मामले की सुनवाई समाप्त करने वाली थी।

(‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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