देश का बहुसंख्यक ‘हिंदू खतरे में है’ से अपने परिवार की रोजी-रोटी को खतरे में पा रहा है

भाजपा की ओर से ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा जोर-शोर से चलाया जा रहा है, जिसे मीडिया ने इतना चलाया कि इंडिया गठबंधन के लिए भी अपना आकलन कर पाना मुश्किल हो रहा है। एक तरफ गरज-गरज कर ये मोदी की गारंटी है, बताई जा रही है तो उससे दुगुनी रफ्तार से विपक्षियों पर ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स के छापों का दौर जारी है। कुल-मिलाकर समां ऐसा बांधा गया है कि राहुल-तेजस्वी और कुछ हद तक स्टालिन को छोड़ दें तो विपक्षी दलों की ओर से केंद्र सरकार के खिलाफ एक भी जवाबी हमला नहीं किया जा रहा है।

सपा की ओर से अभी तक एक भी पब्लिक रैली नहीं की गई है, जबकि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं। बसपा का हाथी मरणासन्न स्थिति में पड़ा हुआ है, और इंडिया गठबंधन के द्वारा लाख कोशिशों के बावजूद वह उनके अलग-अलग आकर्षक प्रस्ताव पर आंखें मूंदे हुए है। बिहार से नीतीश कुमार लंबी छलांग के लिए निकले थे, लेकिन आज कटी पतंग की स्थिति को प्राप्त होने की स्थिति में बिहार का राजपाट गठबंधन भरोसे छोड़ विदेश निकल चुके हैं।

इस बार विपक्ष संभलकर कदम बढ़ा रहा तो आम जनता मुस्तैद

असल में विपक्षी गठबंधन की शक्ल-सूरत तो बनती दिख रही है, लेकिन शबाब पर आने के लिए उसे चुनाव आयोग की अधिसूचना का इंतजार है। भाजपा के उम्मीदवारों की पहली सूची जारी होने के बाद से 2 उम्मीदवार नाम वापस ले चुके हैं। राजस्थान, हरियाणा और पश्चिम बंगाल से एक-एक मौजूदा सांसद पार्टी छोड़ विपक्षी गठबंधन की शरण में जाने की तैयारियों में जुटे हैं। लेकिन विपक्ष की तुलना में भाजपा ने इस बार विपक्षी खेमे में जितने बड़े पैमाने पर सधे अंदाज में गोले दागे हैं, वह अपनेआप में बेमिसाल है। करीब 150 लोकसभा योग्य उम्मीदवारों को विपक्षी खेमे से अपने पक्ष में लाया जा चुका है।

सीधा गणित है। अगर जनता समझती है कि इस बार विपक्ष को वोट देना है तो उनके संभावित उम्मीदवार ही छीन लो, और खुद को विकल्पहीन बना दो। लेकिन असली मुसीबत तब आने वाली है, जब चुनाव आयोग चुनावों की अधिसूचना जारी करेगा और भाजपा अपने सभी प्रत्याशियों की घोषणा कर देगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार बड़ी संख्या में नेता और कार्यकर्ता दलबदल कर गणित बिगाड़ने का काम करेंगे।

संविधान बदलने की तैयारी

लेकिन अकेले भाजपा ही 370 पार की रणनीति क्यों बना रही है, के बारे में बड़ा खुलासा खुद भाजपा के कर्नाटक सांसद अनंत हेगड़े के मुंह से निकल गया है, जिसे आज भाजपा की ओर से उनका निजी विचार बताया जा रहा है। हेगड़े के अनुसार, उनकी पार्टी को लोकसभा और राज्य सभा में दो तिहाई बहुमत हर हाल में चाहिए, ताकि संविधान के मूल ढांचे को बदला जा सके। यह एक ऐसी सच्चाई है, जिसे आरएसएस का कोई भी जानकार भलीभांति जानता है।

लेकिन जिस 38% वोटों के सहारे 2019 में पूर्ण बहुमत के साथ मोदी सरकार धारा 370 या तीन तलाक और 3 नए विवादास्पद कृषि कानून लागू कर पाई थी, उसमें 50% वोट तो ओबीसी, दलित और देश के आदिवासियों के थे। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के द्वारा बनाये गये संविधान की जगह आरएसएस के मन में मनुस्मृति को लागू करने की बात तभी संभव है जब दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत हो।  

इस सच्चाई को देश को बताना नहीं था, लेकिन अति-उत्साह में भाजपा के कट्टर दक्षिणपंथी धड़े का प्रतिनिधित्व करने वाले अनंत हेगड़े के मुंह से निकल गई। इसे आधार बनाकर आज यदि राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन सड़क पर उतरता है तो भाजपा 370 सीट की जगह 170 से भी नीचे खिसक सकती है।

हाल ही में यह खबर भी चलाई गई कि पीएम मोदी ने रूस-यूक्रेन युद्ध में ऐन मौके पर पुतिन को यूक्रेन में परमाणु बम हमले से रोककर दुनिया को तीसरे विश्व-युद्ध की विभीषिका से बचा लिया है। मोदी-भक्तों के लिए निश्चित ही यह खबर किसी संजीवनी से कम नहीं। लेकिन अगर वे जरा भी भूराजनैतिक विषय पर अपडेट से परिचित होंगे तो उन्हें पता होगा कि पिछले दो वर्षों में दुनिया कितनी बदल चुकी है, और अब ईसाई समुदाय के सबसे बड़े धर्मगुरु पोप ऑफ़ वेटिकन यूक्रेन को सलाह दे रहे हैं कि वह अपनी और बर्बादी को रोकने के लिए रूस के साथ समझौते के लिए हाथ बढाये।

आज हालत यह है कि इस युद्ध में पूरा यूरोप और अमेरिका यूक्रेन के पीछे लामबंद होने के बावजूद रूस का मुकाबला कर पाने में खुद को अक्षम पा रहा है। रूस पर कठोरतम आर्थिक प्रतिबंधों का कुल नतीजा यह निकला है कि तीसरी दुनिया के देशों का चीन-रूस के साथ आर्थिक और रणनीतिक गठजोड़ मजबूत हुआ है। जी-7 के मुकाबले आज लोग ब्रिक्स को कहीं अधिक मजबूत गठजोड़ के रूप में देख रहे हैं, यूरोप की अर्थव्यस्था लगातार आर्थिक तंगी से जूझ रही है, और वहां की जनता यूक्रेन युद्ध के दुष्परिणामों के लिए अपने देश की सरकारों को दोषी मान रही हैं। 

लेकिन कोई बात नहीं। आम चुनाव तक ऐसी खबरों में कोई कमी नहीं आने वाली है। पीएम मोदी आजकल रोज देश के किसी न किसी इलाके में हजारों करोड़ रूपये की परियोजना का शिलान्यास या उद्घाटन करते देखे जा सकते हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तो गुजरात से लेकर अरुणाचल प्रदेश का वे पिछले 15 दिनों में चक्कर लगा चुके हैं। इसी काम को राहुल गांधी 7 महीने में पूरा कर पा रहे हैं। बीच-बीच में अपने संसदीय क्षेत्र बनारस में भी वे कई चक्कर लगा चुके हैं, और इस प्रकार माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि अगर मोदी न हो तो देश का डायनामिज्म तो पूरी तरह से चरमरा जायेगा।  

2024 में जनता को गुमराह कर पाना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है 

लेकिन दुखद खबर यह है कि आम भारतीय आज अपनी जेब उलट कर देख रहा है। महंगाई डायन खाए जाये वाला गीत भले ही भाजपा की नुक्कड़ टोली शहरों में न दिखा रही हो, लेकिन उसकी बड़ी मार हर गरीब, निम्न और मध्य वर्ग को बुरी तरह से कचोट रही है। हर कामगार के लिए 2014 से पहले और आज के दौर का तुलनात्मक अध्ययन, रोजगार की संभावना और अपने आने वाले भविष्य की सूरत डरा रही है।

अपने बच्चों के भविष्य को इजराइल, रूस में दफ्न होते देख रहा है। अमेरिका और यूरोप पलायन के लिए उसकी भागदौड़ उसे पुरखों की जमीन बेचने को मजबूर कर रही है।

जब आम हिंदू खुद को देश में आर्थिक रूप से इतना असुरक्षित पा रहा है तो उसके लिए ‘हिंदू खतरे में है’ का नारा कहां तक जज्ब हो सकता है। राहुल गांधी ने कल ही गुजरात में 30 छोटे व्यपारियों से हुई अपनी मुलाक़ात के बारे में बताया कि गुजरात के छोटे और मझौले व्यवसायी भी मानते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी ने उनकी कमर तोड़ दी है। इन उपायों को मोदी सरकार ने लाखों एमएसएमई सेक्टर को बर्बाद करने के लिए लाया था।

छात्र और युवा नहीं जानते कि उनका भविष्य क्या होने जा रहा है। आईटी उद्योग में ग्रोथ खत्म हो चुकी है। फिनटेक और एडटेक जिसे मोदी सरकार दुनिया में अव्वल होने का दावा का ररही थी, आज बुरी तरह से पिट रहे हैं। नोटबंदी के साथ ही भारत के वित्तीय बाजार में फिनटेक अग्रणी के रूप में पेटीएम के विज्ञापनों में देश के पीएम मोदी की तस्वीर को आगे कर करोड़ों लोगों के बीच में पेटीएम ने अपनी पकड़ बनाई और देखते ही देखते यह कंपनी बाजार में छा गई। आज आरबीआई एक के बाद एक सख्त कदम उठाकर पेटीएम को लगभग अवैध घोषित कर चुकी है। इस क्षेत्र में विदेशी निवेश कई बिलियन डॉलर का आया, लेकिन आज यह पूरी तरह से ठप पड़ा हुआ है। इसका अर्थ है यह बाजार गहरे जोखिम में चला गया है।

इसी प्रकार बायजू कंपनी शिक्षा क्षेत्र में दूरस्थ शिक्षा के तौर पर एक नई क्रांति लेकर आई, जिसका जलवा हालतक लाखों लोगों के सर चढ़कर बोल रहा था। इसके द्वारा बीसीसीआई और आईपीएल में हजारों करोड़ रूपये के विज्ञापन दिए जा रहे थे, क्योंकि कंपनी पर दांव लगाने के लिए दुनियाभर से निवेश आ रहा था। लेकिन कोविड महामारी के खत्म होने के बाद से जो गिरावट इस बाजार में देखने को मिली है, उसके चलते बायजू का पूरा कारोबार ही ध्वस्त हो चुका है। बड़ी संख्या में इसने लोगों को रोजगार से निकाला है, और कंपनी के मालिक बायजू रविंद्रन के उपर गिरफ्तारी का खतरा मंडरा रहा है।

बीच के वर्षों में जो तेजी देखने को मिली, उसमें उल्लेखनीय हिस्सा रूस से तेल के आयात और रिफाइंड तेल को यूरोप के बाजारों में बेचकर कमाई से आया। सस्ते तेल का भारतीय उपभोक्ताओं को कितना फायदा मिला, यह रहस्य बना हुआ है। इसका बड़ा लाभ किसके खाते में गया, यह भी एक पहेली है।

भारत में जीडीपी के आंकड़े कैसे आकर्षक दिखें, इसके लिए सरकार की ओर से दो काम किये गये। मेक इन इंडिया के तहत पीएलआई स्कीम को लांच किया गया। विदेशी निवेश को भारत में प्रोत्साहित किया गया, जिसके लिए उन्हें उत्पादन पर इंसेंटिव को लिंक किया गया। इसके लिए यह शर्त नहीं थी कि फिनिश्ड गुड्स में इस्तेमाल होने वाले सभी कल-पुर्जों को भी भारत में रहकर ही तैयार करना होगा। हुआ क्या? बड़ी मात्रा में चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से आयात किया गया। भारत में सिर्फ 15% मूल्य संवर्धन कर घरेलू खपत के साथ-साथ इन वस्तुओं का निर्यात किया गया। इस आयात-निर्यात को भी जीडीपी का हिस्सा बनाया गया। लेकिन इससे असल में कितना भारत के विकास में लगा, इसका आकलन करने वाला कोई नहीं।

इसी प्रकार आईफोन जैसे महंगे उत्पादों या शेयर बाजार में निवेश को सुलभ बनाने के लिए एनबीएफसी (नॉन बैंकिंग फाइनेंस कम्पनीज) को बैंकों से जमकर ऋण दिया गया। यही नहीं फिन टेक क्षेत्र में कार्यरत अधिकांश कंपनियों ने भी उधार कर्ज पर ही फोकस बनाये रखा, क्योंकि उनके उत्पादों (जैसे कि यूपीआई) में उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता। हालत यह हो गई कि बैंकों में डिपाजिट धनराशि रिकॉर्ड गिरावट को दिखा रही है। बैंकों में लिक्विडिटी अचानक से गिर गई। आज भी बैंकों को तरलता बजाए रखने के लिए उच्च ब्याज दर पर फिक्स्ड डिपाजिट के आकर्षक स्कीम के माध्यम से ग्राहकों को अपनी ओर आकृष्ट करने के प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन एक तरफ ऊंचे ब्याज दर पर सावधि जमा, तो दूसरी तरफ बगैर किसी गारंटी के आसानी से उपलब्ध होने वाला पर्सनल लोन, एजुकेशन लोन आज देश के युवाओं के लिए एक आदत सा बनता जा रहा है।

इन उपायों से देश में महंगे और लक्ज़री उत्पादों की मांग पैदा की गई, और देश को बताया गया कि भारत संपन्न हो रहा है। हम खुद को तो बेवकूफ बना ही रहे थे, हम दूसरों के लिए ईर्ष्या और आकर्षण का विषय बभी पैदा कर रहे थे। एनएचएआई के तहत देश में राष्ट्रीय राजमार्गों की एक नई श्रृंखला शुरू की गई।

कुल मिलाकर भंवर में फंसती नाव को राम मंदिर के सहारे की आवश्यकता थी, लेकिन 22 जनवरी के एक सप्ताह पूरा होते ही लोगों ने इस विषय पर चर्चा करनी ही बंद कर दी। इंडिया गठबंधन पर तमाम हमलों के बावजूद मार्च आते-आते उसने एक निश्चित आकार लेना शुरू कर दिया है।

बिहार में आज लड़ाई बराबर की नजर आती है, और चिराग पासवान कह रहे हैं कि उनके पास हर तरफ से अपने खेमे में शामिल होने के प्रस्ताव हैं। 6% दलित वोट बिहार में एनडीए और इंडिया गठबंधन को बड़ी जीत या हार की दहलीज पर लाने में सक्षम है। उत्तर प्रदेश में भाजपा इस बार 80 में से कम से कम 70 सीटों को हासिल करने का लक्ष्य रखती है, जिसे 2019 में उसे 62 हासिल हुई थीं।

लेकिन सपा+कांग्रेस इस बार सामजिक न्याय के मुद्दे पर मजबूती से खड़े नजर आते हैं, और उनकी ओर से लगातार पिछड़ों, दलितों आदिवासियों और अल्प्संस्ख्य्कों को एकजुट किये जाने का आह्वान एक नया आवेग प्रदान का रहा है। 2019 की तुलना में इस बार रणनीतिक तैयारियों के लिहाज से इंडिया गठबंधन काफी चाक-चौबंद नजर आ रहा है।

रामजी नहीं सीएए के सहारे बेड़ा पार की जुगत

राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश में भी इस बार मामला सिफर होने नहीं जा रहा है। इसी को मद्देनजर रखते हुए पिटारे से एक बार फिर सीएए के जिन्न को बाहर निकालने की योजना है, जो एक-दो दिन में सामने आ जायेगा। इस मुद्दे से पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय को आश्वस्त करने में भाजपा को सफलता मिल सकती है, जो पिछले कुछ वर्षों से इस विषय को लेकर भाजपा से बुरी तरह से बैचेन है। लेकिन असम में इसका उल्टा असर भी पड़ सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए अभी से असम के मुख्यमंत्री सभी राजनीतिक दलों को चेतावनी जारी कर रहे हैं कि यदि उन्होंने सीएए विरोध में हिस्सा लिया, तो उनका पंजीकरण रद्द कर दिया जायेगा।

जब सीएए को लागू करने की बात की जाती है तो इसके साथ एनआरसी का मुद्दा अपनेआप जुड़ जाता है। असल में मोदी सरकार देश में एनआरसी को लागू करने को लेकर कृत संकल्पित है। हालांकि असम में इसका प्रयोग राज्य के लाखों लोगों के लिए भारी मुसीबत का सबब बना है, और आजतक इसका कोई परिणाम नहीं निकल सका है। इस कवायद में असम के नागरिकों को असीम तकलीफों का सामना करना पड़ा है। पिछले एक दशक से नागरिकता छिनने के जिस दंश को असम के नागरिकों ने भुगता है, वह ठोस रूप से शेष भारत के मुस्लिम समुदाय के सामने सबसे बड़ा आघात बन कर कभी भी सामने आ सकता है।

असम में एनआरसी के लिए नागरिकता से जुड़े कागजातों की त्फ्शीस में देखने को मिला कि राज्य के बहुसंख्यक आबादी बड़ी संख्या में एनआरसी की जद में आ रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने सीएए कानून को पारित किया, जिसमें मुसलमानों को छोड़कर हिंदुओं सहित बाकी सभी अल्पसंख्यक समुदाय को पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल भूटान इत्यादि से भारत में बसने की छूट हासिल है।

इसका अर्थ हुआ, मुसलमानों को छोड़कर शेष धर्मावलम्बियों के पास यदि अपनी नागरिकता को प्रमाणित करने के साक्ष्य मौजूद न भी होंगे तो उनके लिए सीएए कानून का सहारा रहेगा। सिर्फ मुस्लिमों को इससे बाहर रखने से वस्तुतः उन्हीं के खिलाफ एनआरसी कानून लागू होगा।

आज चुनाव की बेला से ठीक पहले इसे एक बार फिर लागू करने की बात से अगर मुस्लिम समाज आंदोलित होता है तो हिंदुओं के बीच भी प्रतिक्रियास्वरूप बड़े पैमाने पर ध्रुवीकरण को संभव बनाया जा सकता है। एक बार यह हो गया तो, बेरोजगारी, महंगाई, किसानों को एमएसपी, देश की अर्थव्यस्था और सरकारी नौकरी इत्यादि की बातें एक बार फिर से बोतल के भीतर आ जाएँगी और सांप्रदायिकता का जिन्न अगले दो महीने में देश को एक बार फिर अपने आगोश में ले लेगा।

भाजपा ने 2014 का चुनाव युवाओं को प्रतिवर्ष 2 करोड़ रोजगार, किसानों को फसल के दोगुने दाम और मध्य वर्ग के लिए अच्छे दिन के नाम पर लड़ा था, जिसका लोगों ने तहेदिल से स्वागत किया था। 2019 में इनमें से कोई भी बात पूरी नहीं की जा सकी, लेकिन ऐन चुनाव से पूर्व पुलवामा में घात लगाकर आतंकियों ने हमारे कई दर्जन जवानों को सैकड़ों किलो आरडीएक्स के हमले में मार डाला। अचानक पूरा देश देश की सुरक्षा और भारत बनाम पाक मुद्दे पर मुड़ गया, और भाजपा इसी एक मुद्दे को आगे कर पहले से भी बड़े अंतर से लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब रही।

आज 2024 में 10 साल की एंटी इनकम्बेंसी कहीं अधिक घनीभूत हो चुकी है। मोदी समर्थक भी अब पहले की तरह आक्रामक नहीं हैं। बिहार में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह तक को भाजपा समर्थक ही काले झंडे दिखाकर विरोध जता रहे हैं। ऐसे में 370+ नहीं मोदी जी 272+ कैसे हो, के लिए सीएए कानून को लागू करने की घोषणा कर इस बार घर के भीतर ही नफरत की चिंगारी के सहारे नैया पार लगने की आस लगा सकते हैं। दिक्कत सिर्फ एक है, पिछले 10 वर्षों में विपक्ष ही नहीं देश की जनता भी काफी परिपक्व हो चुकी है, इसलिए कई बार दांव-पेंच फेल भी होते दिखे हैं।  

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

रविंद्र पटवाल
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