सिद्धारमैया सरकार ने बीजेपी के सांप्रदायिक फैसलों को पलटना शुरू किया

कर्नाटक राज्य में पिछले 2 वर्षों से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की गति इस रफ्तार से बढ़ गई थी कि गुजरात, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश तक में उसकी गूंज सुनाई पड़ने लगी थी। हिजाब और टीपू सुल्तान-सावरकर विवाद की आंच से गुजरात और यूपी के चुनावों में भी दिखाई दी। इसका नतीजा इन राज्यों में भाजपा को तो अवश्य मिला, लेकिन शायद कर्नाटक की आम जनता का मिजाज इतने बदतरीन और विद्रूपता के नग्न प्रदर्शन से मितला गया। 

शायद इसी मिजाज को भांपते हुए कर्नाटक राज्य कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में सांप्रदायिकता के दोनों ध्रुवों पीएफआई और बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की बात कही थी। हर बार की तरह प्रधानमंत्री ने इसमें अपने लिए मौका तलाशा और चुनाव के अंतिम दौर में तो उन्होंने बजरंग दल को बजरंग बली से जोड़कर कांग्रेस के खिलाफ जोरदार मुहिम ही छेड़ दी। एकबारगी तो लगा कि भाजपा ने कांग्रेस को पूरी तरह से हिंदू धर्म के विरोधी के रूप में अंकित ही कर दिया है, और कर्नाटक का मतदाता 40% भ्रष्टाचार को भूल अपनी धार्मिक आस्था पर प्रहार करने वाली कांग्रेस को फिर से सता से दूर कर देगा।

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। कर्नाटक क्यों उत्तर भारत की तरह भावनात्मक मुद्दों की रौ में नहीं बहा, और उसे बजरंग दल के उत्पात को बजरंग बली से जोड़ने वाले पीएम मोदी की बात नहीं रुची, भाजपा संघ के लिए यह एक गहन चिंतन-मनन का विषय हो सकता है। 

कर्नाटक राज्य सरकार का गठन हो चुका है और मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री सहित प्रमुख राजनेताओं को मंत्रिमंडल में स्थान मिल चुका है, लिहाजा कांग्रेस के नेतृत्व की ओर से राज्य में सांप्रदायिकता के विषैले दंत को एक-एक कर उखाड़ने की तैयारी लगता है शुरू हो गई है। हालांकि सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार फिलहाल दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं के साथ मिलकर कैबिनेट में अन्य 20 मंत्रियों की नियुक्ति को लेकर माथापच्ची कर रहे हैं, लेकिन अभी से राज्य में सांप्रदायिक शक्तियों के लिए खतरे की घंटी बजनी शुरू हो गई है।

इसकी शुरुआत 12 फरवरी को भाजपा नेता एवं पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. सी.एन. अस्वथ नारायण के मांड्या जिले के सथानुरु में एक जनसभा में दिए गये एक भड़काऊ बयान के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज करने से हुई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सिद्धारमैया को उसी प्रकार से खत्म किया जाना चाहिए, जैसा कि टीपू सुल्तान को किया गया था। बुधवार को प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता एम. लक्ष्मण की शिकायत पर देवराज पुलिस ने आईपीसी की धारा 153 (दंगा भड़काने के इरादे से भड़काऊ बयानबाजी), और 506 (आपराधिक तौर पर डराने धमकाने) के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है।

बताया जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी की ओर से 17 फरवरी को पहली बार देवराज पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया था, लेकिन तब इस बारे में कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। इसी वजह से यह ताजा शिकायत दर्ज की गई है, और इस बार पुलिसिया कार्रवाई मुस्तैदी से होनी तय है। 

इसी प्रकार मैंगलूर के बेल्थांगडी पुलिस थाने में भी भाजपा विधायक हरीश पूंजा के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज की गई है। एक कथित वीडियो में भाजपा विधायक हरीश पूंजा, सिद्धारमैया को 24 हिंदुओं का हत्यारा बता रहे हैं, जिसके खिलाफ एक कांग्रेस कार्यकर्त्ता द्वारा शिकायत दर्ज कराई गई है। यह विवादास्पद वीडियो सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है, जिसे 22 मई को जीत के बाद एक विजय जुलूस के दौरान दिया गया है।

दक्षिण कन्नड़ पुलिस अधीक्षक विक्रम अमाठे ने इस घटनाक्रम के बारे में पुष्टि की है। कर्नाटक कांग्रेस पदाधिकारी प्रतिभा कुलाई ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए अपने बयान में कहा है कि मुख्यमंत्री के खिलाफ तथ्यहीन आरोप मढ़ने के अलावा हरीश पूंजा ने पार्टी के वरिष्ठ नेता बीके हरिप्रसाद सहित उनके परिवार के खिलाफ भी मनगढ़ंत आरोप लगाये हैं। इस विषय में वे आज डीजी और आईजी से मुलाक़ात करने जा रही हैं। 

इससे पहले उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के पुलिस प्रशासन के भगवाकरण से बाज आने और अपने संवैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन वाले वक्तव्य पर भाजपा के नेताओं सहित पूर्व मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने आपत्ति जताते हुए इसे पुलिस विभाग को हतोत्साहित करने वाला बयान बताकर आलोचना की है। बोम्मई ने कहा है कि कांग्रेस ने सत्ता में आते ही अपनी तुष्टीकरण की नीति शुरू कर दी है, जोकि एक अच्छी शुरुआत नहीं है।

शिवकुमार अपने बयान पर अड़े हुए हैं, और उन्होंने इसके जवाब में कहा है, “तीन-चार अवसरों पर पुलिसकर्मियों को एक राजनीतिक पार्टी की वेशभूषा में देखा गया है, जो उन्होंने फोटोशूट के लिए धारण किया था।” उपमुख्यमंत्री ने सवाल दागते हुए पूछा है, “उन्होंने प्रियांक खड़गे को क्यों समन भेजा? प्रियांक खड़गे ने तो भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था। इस बारे में अब तक कितने लोगों को समन किया गया है? उन्होंने कांट्रेक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष केम्पन्ना को क्यों समन नहीं किया? पुलिस अधिकारियों को देश के कानून के हिसाब से काम करना ही होगा।”

वहीं मंत्री प्रियांक खड़गे ने भाजपा कार्यकाल में लागू नीतियों की समीक्षा करने, राज्य हित के खिलाफ जो नीतियां या आदेश पारित किये गये थे, उनमें संशोधन या उन्हें रद्द करने की बात कहकर कांग्रेस के इरादे स्पष्ट कर दिए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में किये गये संशोधन, धर्मांतरण सहित गौ-हत्या कानून पर भी पुनर्विचार किया जायेगा।

प्रियांक खड़गे ने कहा कि इन सभी नीतियों को आर्थिक एवं प्रगतिशील नजरिये से समीक्षा की जायेगी और शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबन्ध जैसे नियम हटाए जायेंगे, जिसके चलते अल्पसंख्यक समुदाय की छात्राओं को बड़ी संख्या में कालेज की पढ़ाई छोड़नी पड़ी है। शिक्षा का क्षेत्र सरकार की प्राथमिकता में है, और समीक्षा के बाद पाठ्यपुस्तकों में जो सामग्री हटा दी गई थी, उसे वापस लिया जायेगा।

खड़गे ने कहा, “गौ-हत्या कानून के बारे में वित्त विभाग ने खुद अपनी समीक्षा में कहा है कि विधेयक तर्कसम्मत नहीं है, इससे उद्योग के लिए मुश्किलें खड़ी होंगी, और सबसे महत्वपूर्ण यह करदाताओं के लिए एक बड़ा आर्थिक बोझ का कारण बन सकती है।”

उन्होंने आगे कहा, “कर्नाटक को एक बार फिर से पहले स्थान पर ले जाना, राज्य सरकार की प्राथमिकता है, और हम उस दिशा में उचित कदम बढ़ाने जा रहे हैं। भाजपा सरकार के कार्यकाल में कई कार्यकारी फैसले पारदर्शी नहीं थे, और कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाये गये थे। इन सबकी भी समीक्षा की जायेगी, जिसे कांग्रेस के हित के लिए नहीं बल्कि राज्य के हित में तैयार किया जायेगा।”

राज्य का कार्यभार संभालते ही पहले ही दिन जिस प्रकार से सिद्धारमैया सरकार ने अपने 5 वादों को अमली जामा पहनाने का काम किया है, उसे देखते हुए लगता है कि पूरी टीम ही कर्नाटक को एक नए कलेवर में बदलने के लिए कटिबद्ध है। भाजपा, संघ की ओर से इसे हिंदुओं के खिलाफ मुस्लिम तुष्टीकरण का जीता-जागता सबूत बताया जायेगा, लेकिन कर्नाटक में आम जनता का जनादेश ही सांप्रदायिक उन्माद के खिलाफ आया है।

यदि कांग्रेस इसे कर्नाटक में सफलतापूर्वक लागू कराकर उन्मादी तत्वों पर लगाम लगाने में सफल हो जाती है, तो शेष राज्यों में उसके ढुलमुल नेतृत्व के लिए आवश्यक सबक और जमीनी मुद्दों पर खड़े होने के काफी काम आ सकता है। देखना है क्या प्रचंड बहुमत के साथ जीतकर आई इस नई कांग्रेस के पास यह जोशोखरोश आगे भी कायम रहता है या वह अपनी पुरानी घिसीपिटी परिपाटी पर लौट जाती है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

रविंद्र पटवाल
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