जी-20 को लेकर मोदी सरकार के प्रचार युद्ध और दिल्ली की चमक-दमक के पीछे क्या छिपा है?

जी-20 के आयोजन को लेकर भारतीय सरकार जमकर प्रचार कर दावे कर रही है कि जल्द ही विश्व में भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। अपनी इस कवायद में सरकार ने छह वर्ष पूर्व जर्मनी में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन की तुलना में 700 प्रतिशत अधिक धन फूंक डाला है।  

दिल्ली शहर का भी एक अलग आकर्षण है, जो इसे विश्व के अन्य शहरों से विशिष्ट बनाता है। हालांकि कुछ दशक पहले तक दिल्ली को जिस शानदार हरियाली के लिए याद किया जाता था, उसमें गिरावट आई है, इसके बावजूद इसने अतीत की अपनी महिमा को काफी हद तक बचाकर रखा है। 

वे अतिथि जिन्हें हाल ही सजाये गये शहर के सिर्फ बाहरी हिस्से का दीदार करने का मौका मिलेगा, निश्चित रूप से इसकी रोशनी और फव्वारों से मंत्रमुग्ध हो सकते हैं। एअरपोर्ट से लुटियन दिल्ली की दीवारों को हाल ही में पेंट किया गया है, जगह-जगह मूर्तियां स्थापित की गई हैं और जी-20 की होर्डिंग्स लगाई गई हैं। 

सरकार ने दिन-रात एक कर यह प्रभाव उत्पन्न करने की कोशिश की है कि देखने में लगे कि भारत वास्तव में विश्वगुरु बनने की राह पर है, जहां पर सभी लोग खुशहाल हैं और सब बहुत बढ़िया चल रहा है।

दिल्ली की महानता इसकी विलक्षण जिंदगी की लय में छिपी है। विभिन्न जीवन-स्तर और भिन्न-भिन्न धार्मिक एवं मत को मानने वाले लोग इस शहर की अनोखे लय के सूत्रधार हैं। 

इनमें से अधिकांश लोग गरीब हैं, जो बदहाल स्थितियों में अपना जीवन गुजार रहे हैं। भले ही सरकार की ओर से उन्हें सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने की हरचंद कोशिशें जारी रहती हैं, लेकिन वे भाईचारे के साथ जीवन जीने को प्राथमिकता देते हैं।

कच्चे-पक्के घरों में रहने वाले इन लोगों के बच्चों को प्रदूषित एवं अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। उनके पास पीने का साफ़ पानी मयस्सर नहीं है, और उन्हें बुनियादी साफ़-सुथरी सुविधायें तक उपलब्ध नहीं हैं। इस सबके बावजूद वे जिंदगी के जश्न को अपने तरीके से मनाते हैं और भारत को विशिष्ट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। 

जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियों के हिस्से के तौर पर उनमें से दसियों हजार लोगों को दूर-दराज के इलाकों में स्थानापन्न कर दिया गया है। जो शेष बचे हैं उन्हें नए-नए खड़े किये गये कपड़ों के आवरण से विश्व की निगाहों से ओझल कर दिया गया है या बाड़ लगा दी गई है। लेकिन विडंबना यह है कि, इन नव-निर्मित “दीवारों” पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उपदेशात्मक उद्धरण लगा दिए गये हैं, जिनमें एकता, खुशहाली, शांति और प्रगति का वादा किया गया है।

पिछले एक वर्ष से भी अधिक समय से मोदी सरकार की ओर से जी-20 को लेकर प्रचार अभियान की झड़ी लगी हुई है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि जल्द ही भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बनने जा रहा है। इस कवायद के लिए सरकार ने छह वर्ष पूर्व जर्मनी में आयोजित जी-20 शिखर वार्ता की तुलना में 700 प्रतिशत अधिक खर्चा कर डाला है। 

मोदी-स्टाइल प्रचार की धूर्तता का आलम यह है कि लोगों को यह बताया जा रहा है कि भारत के हिस्से में जी-20 की अध्यक्षता के पीछे नरेंद्र मोदी के “करिश्माई नेतृत्व” का कमाल है। जबकि हकीकत यह है कि जी-20 में रोटेशन के आधार पर अध्यक्षता 20 देशों के हिस्से में बारी-बारी से आनी ही है, जिस तथ्य को आम भारतीय से संकट मोचकों द्वारा दफना दिया है।

पर्यावरणीय सुरक्षा, मानवीय स्पर्श के साथ विकास, महिला सशक्तीकरण, गरीबी उन्मूलन, धन के न्यायसंगत वितरण जैसे बड़े-बड़े दावों को अक्सर दोहराया गया है। लेकिन उनके द्वारा इस तथ्य के प्रति अपनी आंखें मूंद ली जाती हैं कि अपने देश के भीतर मोदी सरकार द्वारा इन दावों के ठीक विपरीत काम किया जा रहा है।   

हाल ही में वन संरक्षण अधिनियम में जिन सुधारों को पारित करवाया गया है और वृहत्तर निकोबार द्वीप समूह में विनाशकारी कदम उठाये गये हैं वे साबित करते हैं कि यह सरकार जलवायु परिवर्तन और वनों पर आश्रित लोगों के अधिकारों के प्रति कितनी संवेदनहीन है। 

भारत के हिस्से में कुछ गंभीर मुद्दे हैं जिन पर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इसमें देश के भीतर चौंका देने वाली आर्थिक विषमता बनी हुई है, जिसमें चोटी के 1% लोगों के पास 58 प्रतिशत दौलत और 10% के पास 80 प्रतिशत का मालिकाना बना हुआ है, और आय में यह अंतर लगातार बढ़ रहा है।

संपत्ति कर को खत्म करने और कॉर्पोरेट टैक्स में कमी लाने जैसी सरकार की नीतियों ने जहां एक ओर संपन्न वर्ग के हितसाधन का काम किया है, वहीं दूसरी ओर हाशिये पर पड़े लोगों की जरूरतों की लगातार अनदेखी जारी है। सार्वजनिक कल्याण की स्थिति भी चिंताजनक बनी हुई है, जैसा कि भारत के बारे में चिंताजनक आंकड़े बता रहे हैं। शिशु मृत्यु दर अभी भी प्रति 1000 नवजात शिशुओं में 27.695 के उच्च स्तर पर बनी हुई है। बच्चों के लिए पूरक पोषाहार, खाद्य सब्सिडी और मिड-डे मील जैसे बेहद आवश्यक कार्यक्रमों के बजट में कटौती कर दी गई है, जिसके चलते भुखमरी और कुपोषण की स्थिति कम होने के बजाय बढ़ गई है।   

भारत में महिलाओं की लेबर मार्केट में बेहद कम हिस्सेदारी की दर भी चिंता का सबब बनी हुई है, और आंकड़े बता रहे हैं कि कोविड-19 महामारी के बाद से इसमें और गिरावट आई है। इसके अलावा, कई महत्वाकांक्षी वायदों, जैसे कि प्रत्येक परिवार को जल, बिजली और शौचालय मुहैया कराने के वादे के साथ-साथ कुपोषण के खात्मे, सभी गांवों के लिए ब्रॉडबैंड तक पहुंचाने, किसानों की आय को दोगुना करने जैसे कई वायदे अभी भी अधूरे हैं, जो इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के प्रति सरकार की वचनबद्धता के बारे में सवालिया निशान खड़े करते हैं। जी-20 की शोशेबाजी के बजाय इन बेहद जरूरी चिंताओं का समाधान निकालने पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए थी।  

जैसा कि जी-20 शिखर वार्ता के लिए प्रतिनिधि दिल्ली में पहुंचे हुए हैं, पूर्वोत्तर राज्यों में मणिपुर राज्य आज भी लंबे समय से उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई और बड़े पैमाने पर संपत्ति तहस-नहस हुई है। 

भारत का मस्तक शर्म से झुक गया जब मणिपुर में आदिवासी महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड के लिए मजबूर किया गया। सारे विश्व को इस बात की जानकरी है कि भारत सरकार इस विषय पर संसद में चर्चा करने से भाग रही थी। 

इसी तरह, सरकार की ओर से कुछ कॉरपरेट घरानों द्वारा बड़े-पैमाने पर किये गये भ्रष्टाचार, जिसे सरकार के शीर्ष पर बैठे लोगों के द्वारा राजनीतिक वरदहस्त हासिल है, को छुपाने की कोशिश की गई। जो लोग आज सत्ता में हैं, उनके लिए जी-20 शिखर वार्ता किसी चमचमाते कंबल के समान है, जिससे उनकी राजनैतिक खामियां छुपाई जा सकती हैं और चुनावी लाभ हासिल करने के लिए दोहन किया जा सकता है। 

हाल ही में जी-20 शिखर सम्मेलन में रात्रि भोज के आमंत्रण पत्र में पारंपरिक ‘प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया’ के स्थान पर ‘प्रेसिडेंट ऑफ़ भारत’ का इस्तेमाल साफ़-साफ़ दिखाता है कि विपक्षी पार्टियों के द्वारा ‘INDIA’ नाम को ग्रहण किये जाने से मोदी सरकार कितनी डरी हुई है।

‘INDIA’ नाम को लेकर भाजपा की बैचेनी इस कदर बढ़ी है कि इसने अचानक से ‘India’ शब्द को ही अप्रिय बना डाला है।   

इसी का अनुसरण करते हुए कुछ मीडिया आउटलेट्स द्वारा ‘INDIA’ को ‘I.N.D.I.A’ के तौर पर हर अक्षर के पीछे ‘बिंदी’ लगाने का फैसला, इस बात का पुख्ता सबूत प्रदान करता है कि विपक्षी गठबंधन द्वारा नाम रखे जाने के चुनाव ने सरकार को कितनी बुरी तरह से चोट पहुंचाई है। 

दिल्ली में फिलहाज जो भी चमक-दमक दिख रही है, वह सिर्फ एक मुलम्मा है जो दिखाने से अधिक छुपाने का काम कर रहा है।

(राज्यसभा सांसद और सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव बिनोय विश्वम का लेख; द टेलीग्राफ से साभार।)

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