पंजाब में काबिज है इस तरह ‘दिल्ली’ की समानांतर सत्ता !

पंजाब की अफसरशाही इन दिनों खासी बेचैन है। शासन व्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली उच्च स्तरीय अफसरशाही की बेचैनी की सबसे बड़ी वजह है ‘दिल्ली’ से आई वह विशेष टोली जो रफ्ता-रफ्ता पूरे प्रशासन तंत्र पर हावी हो रही है। सत्ता के राजनीतिक गलियारों में विशेष रुप से पंजाब भेजी गई इस टोली को आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की भरोसेमंद टीम कहा जा रहा है। जबकि टोली अथवा टीम खुद को ‘विशेषज्ञ’ बताती है तथा बाकायदा अपनी ही पार्टी के समानांतर शासन व्यवस्था चला रही है। इसका पुख्ता सुबूत तब सामने आया जब पंजाब के मुख्य सचिव की दो विशेष बैठकों में दिल्ली टीम के अहम सदस्य नवल अग्रवाल एवं उनके कुछ साथी बैठे नजर आए। तब से खुद ‘आप’ के कुछ वरिष्ठ नेता और विधायक दबी जुबान में कहते पाए जा रहे हैं कि अब यह बात अफवाह नहीं बल्कि सच्चाई के एकदम करीब है कि दरअसल पंजाब की सरकार को बाकायदा दिल्ली से नियंत्रित किया जा रहा है।

बहुचर्चित दिल्ली टीम तो कार्यरत है ही, केजरीवाल मंत्रिमंडल के दो वजीर भी दखलअंदाज हैं। चर्चाओं ने पिछले हफ्ते तब रफ्तार पकड़ी, जब दिल्ली सरकार के (कई महत्वपूर्ण विभाग संभाले हुए) उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया शिक्षा से संबंधित तथा कुछ अन्य ‘व्यवस्थाएं’ देखने के लिए खास तौर पर पंजाब दौरे पर आए। उनके साथ भी अधिकारियों की विशाल टीम थी। इस टीम ने शिक्षा से संबंधित मामलों के अलावा कई अन्य ‘प्रोजेक्ट्स’ का खास जायजा लिया और मीडिया से पूरी तरह बचकर स्थानीय अधिकारियों के साथ कई सत्र की बैठकें कीं।

ज्यादा सुगबुगाहट स्थायी रूप से सूबे की राजधानी चंडीगढ़ में डेरा जमाए बैठी दिल्ली टीम को लेकर है। चंडीगढ़ में पंजाब के मुख्यमंत्री के नाम कुछ कोठियां आवंटित हैं। इनमें से एक में मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनके परिवार का बसेरा है। एक में उनका निजी स्टाफ कार्यरत रहता है। शेष तीन बड़ी-बड़ी (मुख्यमंत्री के नाम आवंटित) बंगलेनुमा कोठियों पर दिल्ली टीम और उसके शीर्षस्थ अधिकारियों का कब्जा है। इन तीन कोठियों में से एक में जालंधर से वाबस्ता दर्जा तीन का कर्मचारी सेवारत है। नाम न छापने की शर्त पर उसने बताया कि दिल्ली टीम के कब्जे वाली कोठियों के इर्द-गिर्द राज्य पुलिस का सख्त पहरा रहता है और एक खास किस्म का रहस्य भरा माहौल वहां बना हुआ है। दिल्ली और पंजाब नंबर की गाड़ियां जब मेन गेट से प्रवेश करती हैं तो पहरेदारों गेट खोलने की और किसी किस्म की पूछताछ न करने की हिदायत पहले से दे दी जाती है। तीनों कोठियों में दिन-रात गतिविधियां जारी रहती हैं। ‘खास’ किस्म के लोगों की आवाजाही अक्सर देखने को मिलती है।

गौरतलब है कि जब पंजाब में भगवंत मान की अगुवाई में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी तो आकस्मिक लेकिन बगैर किसी को भनक लगे, पूर्व सरकारों के कार्यकाल में बंद पड़े लोक संपर्क विभाग से संबंधित एक निगम को खोल दिया गया। इसमें चुपके से 90 अधिकारियों तथा कर्मचारियों की नियुक्ति की गई। अच्छे वेतन के साथ नियुक्ति पाने वाले उक्त अधिकारी और कर्मचारी दिल्ली से आए थे! छानबीन में सामने आया है कि बचाव के लिए इन्हें सरकार ने ‘तदर्थ नियुक्तियां’ दी हैं। इन्हीं में ज्यादातर वे अधिकारी और विशेषज्ञ हैं जो पंजाब सरकार के रोजमर्रा के काम पर पैनी निगाह रखते हैं तथा दखलअंदाजी करते हैं। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि दिल्ली टीम के अधिकारी व उनके सहयोगी मुख्य सचिव की महत्वपूर्ण बैठकों में भी शामिल होते हैं तथा निर्देश देते हैं।

पंजाब के एक वरिष्ठ आला अधिकारी ने इस पत्रकार को बताया कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि राज्य में समानांतर अफसरशाही काम कर रही है और जो अनाधिकारिक तौर पर स्थानीय कैडर की अफसरशाही से कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। पंजाब के उन्हीं वरिष्ठ आला अधिकारी का कहना है कि यह सरासर प्रशासनिक संस्थानों के संवैधनिक अधिकारों का खुला हनन है और ऐसे में तो और भी ज्यादा, जब दिल्ली टीम कम से कम पंजाब में तो किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। इस दिल्ली टीम के आला लोग राज्य के प्रिंसिपल सेक्रेटरी सहित सचिवों तथा अपर सचिवों को जब चाहें तलब कर लेते हैं।

भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक पंजाब की अफसरशाही में इसे लेकर गहरा असंतोष पाया जा रहा है। स्थानीय अफसर इसकी खिलाफत में लामबंद हो रहे हैं। पंजाब के कुछ अधिकारियों को दिल्ली से आए कथित विशेषज्ञों और अनजाने अधिकारों से लैस ऐसे लोगों के सामने पेश होना पड़ता है, जिनके नाम तक वे नहीं जानते और न उनकी भूमिका स्पष्ट अथवा तय है। दिल्ली टीम पंजाब सरकार की अति गोपनीय व गोपनीय फाइलें देखने के लिए भी पूरी तरह आजाद है। एक अन्य स्थानीय अधिकारी का कहना है कि यह संविधान प्रदत्त ‘ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट’ का भी खुला उल्लंघन है। फिलवक्त कोई अधिकारी मौजूदा सरकार के खौफ से इस पर खुलकर कुछ बोलने-बताने को तैयार नहीं।

मंत्रियों तक का यह हाल है कि वह भी कुछ कहने बोलने को तैयार नहीं जबकि उनके विभागों में दिल्ली टीम का खुला दखल अब पर्दे की बात नहीं रहा। यानी रफ्ता-रफ्ता बात दूर तक जा रही है। कतिपय ‘आप’ विधायकों, मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं की चिंता का सबब यह है कि दिल्ली टीम पंजाब के ईथोस (यानी मानसिक मौसम) से पूरी तरह अनजान है। यह चिंता तब और बढ़ जाती है जब किसान मसलों, आंदोलनों तथा पंजाब की कुछ अन्य समस्याओं में दिल्ली टीम मामलों को ‘हैंडल’ करने लगती है। ऐसा नहीं है कि दिल्ली टीम पंजाब में जो कर रही है वह सिर्फ आम आदमी पार्टी या विपक्ष के लोग ही जानते हैं बल्कि मीडिया का एक सीमित हिस्सा भी इसे जगजाहिर करने में लगा है। जिन वजहों से अजीत समूह और ट्रिब्यून ग्रुप के अखबारों के विज्ञापनों पर अचानक रोक लगा दी गई, उनमें यह भी एक बड़ी वजह थी। इनमें से एक अखबार के पत्रकार ने इसकी पुष्टि की है।

पंजाब की ब्यूरोक्रेसी इसे लेकर भी खासी आशंकित है कि उसे दिल्ली टीम के कथित विशेषज्ञों तथा अन्य बाहरी लोगों के एजेंडों व योजनाओं/नीतियों पर काम करना पड़ रहा है और विसंगतियों की स्थिति में स्थानीय ब्यूरोक्रेसी को केंद्र की एजेंसियों के सामने जवाबदेह होना पड़ेगा। पंजाब सरकार केंद्र के सीधे निशाने पर है। सरकार चलती है अफसरशाही के सहारे। सो स्थानीय ब्यूरोक्रेसी को सीबीआई तथा ईडी आदि का खौफ बेतहाशा सताए हुए है। इसीलिए कई आईएएस और आईपीएस अधिकारी डेपुटेशन पर पंजाब से बाहर चले गए हैं या उन्होंने लंबी छुट्टी ले ली है। कुछ समय से पहले रिटायरमेंट लेना चाहते हैं। वजह यही है।

पंजाब में आप आलाकमान के इशारे पर जो दिल्ली टीम काम कर रही है–जानकारों के मुताबिक राज्य में वह भगवंत मान को रिपोर्ट नहीं। एक तरह से सूबे में अरविंद केजरीवाल एंड पार्टी की समानांतर सत्ता पंजाब में चल रही है और इसकी अगुवाई के आरोप (सच्चे या झूठे) जिस शख्स पर लग रहे हैं, उसका नाम है राघव चड्ढा! अरविंद केजरीवाल के खासम खास चड्ढा ने बहुत पहले केजरीवाल का ‘मिशन पंजाब’ संभाल लिया था। विधानसभा चुनाव में उन्होंने मेहत्ती भूमिका अदा की। हर कोई जानता है। उन्होंने पर्दे के पीछे से खूब काम किया। भगवंत मान को चुनाव प्रचार में व्यस्त रखा गया। आम आदमी पार्टी को वोट भी उन्हीं की वजह से रिकॉर्ड संख्या में मिले।

जिक्रेखास है कि टिकट अलाट के लिए लगभग तमाम फाइलें वाया राघव चड्ढा अरविंद केजरीवाल तक जाती थीं। विपक्ष ने टिकट बंटवारे को लेकर ‘आप’ पर गंभीर आरोप भी लगाए। अपराधिक छवि वाले कुछ लोगों को भी धन के बूते टिकट देने की खबरें पेड न्यूज़ न छापने वाले कुछ अखबरों ने तथ्यों के साथ प्रकाशित कीं। इस सिलसिले में जालंधर के दो बदनाम नेता उन दिनों खूब चर्चा में रहे। एक पर तो बाकायदा अपराधिक मामले दर्ज हैं। इन संगीन मामलों में जबर–जिनाह, कत्ल की कोशिश तथा अपहरण के संगीन आरोपी हैं। ‘आप’ के ही कुछ नेताओं ने दलबदल करके पार्टी में आए और आनन-फानन में टिकट के दावेदार बने उस नेता का खुला विरोध किया था लेकिन राघव चड्ढा ने एक नहीं सुनी। फिर अरविंद केजरीवाल क्यों सुनते! चंद आप नेता खुलेआम कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल ने राघव चड्ढा को, ‘जागीरदार’ के तौर पर पंजाब दिया हुआ है।

केजरीवाल दरबार में मुख्यमंत्री भगवंत मान से ज्यादा सुनवाई चड्ढा की होती है। चड्ढा पंजाब से राज्यसभा सांसद भी हैं। राघव चड्ढा की कथित समानांतर सत्ता जब छोटी–मोटी सुर्खियां बनीं तो भगवंत मान पूरी तरह खामोश रहे लेकिन खुद चड्ढा मीडिया के सामने आकर बोले कि मुख्यमंत्री उनके बड़े भाई हैं, इसलिए सरकार चलाने में वह उनका ‘सक्रिय सहयोग’ कर रहे हैं। यही सक्रिय सहयोग तो विवादों को जन्म दे रहा है और आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता आपस में पूछते हैं कि क्या पंजाब इकाई में कोई भी नेता इतना समझदार नहीं की मुख्यमंत्री को वैसा सक्रिय सहयोग दे सके, जैसा राघव चड्ढा देने का दावा कर रहे हैं!

विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ उम्मीदवारों को भगवंत मान ने सशर्त टिकट दिलवाए थे कि जीत के बाद उन्हें यकीनन मंत्रिमंडल में लिया जाएगा या अन्य प्रभावशाली पदों पर बिठाया जाएगा। ऐसा कुछ नहीं हुआ। पूर्व आईपीएस अधिकारी और आईजी की नौकरी छोड़ कर आम आदमी पार्टी में आए कुंवर विजय प्रताप सिंह से कहा गया था की सत्ता आने पर उन्हें पार्टी निश्चित तौर पर गृहमंत्री (अथवा गृह राज्यमंत्री बनाएगी)। हुआ उल्टा। उन्हें एकदम प्रभावहीन करके हाशिए पर डाल दिया गया और विधानसभा में वह बोलने तक को तरसते हैं। यही सब कुछ अन्य विधायकों के साथ किया गया।

प्रिंसिपल बुधराम मानसा जिले के बुढलाडा हल्के से आम आदमी पार्टी के सशक्त और बेहद जनप्रिय विधायक हैं। उनका एक शैक्षणिक इतिहास रहा है। माना गया था कि भगवंत मान मंत्रिमंडल गठन में उन्हें शामिल करेंगे और प्रिंसिपल बुधराम को शिक्षा मंत्री बनाया जाएगा। ऐसा नहीं हुआ। महत्वाकांक्षा से कोसों दूर बुधराम से फिर कहा गया कि विस्तार के वक्त उन्हें मंत्रिमंडल में शुमार कर लिया जाएगा लेकिन भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल से अच्छे संबंधों के बावजूद उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। इसके पीछे के कारणों में एक उनकी बेहद ‘ईमानदारी’ बताई जाती है। दूसरा कारण वह राघव चड्ढा दरबार में मत्था नहीं टेकते। ये दो उदाहरण काफी है यह बताने–समझाने के लिए कि इंकलाबी और बदलाव के नारे के साथ सत्ता में आई आम आदमी पार्टी का असली चेहरा क्या और कैसा है?

इसी के साथ जुड़ा सच यह भी है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान में बेशक बेशुमार खामियां हूं लेकिन उनकी छवि एकदम ईमानदार राजनेता की है। मुख्यमंत्री की अतिरिक्त ईमानदारी भी ‘दिल्ली’ से पैराशूट बनकर पंजाब आए चंद लोगों को हजम नहीं हो रही। उन लोगों के आका का नाम ज्यादातर को मालूम है, जिन्हें नहीं मालूम–यथाशीघ्र हो जाएगा! हम जानबूझकर लिखना नहीं चाहते…!!
(पंजाब से अमरीक की विशेष रिपोर्ट)

अमरीक
Published by
अमरीक