वोट की नगद फसल के लिए पीओके में बमबारी और सोशल मीडिया पर लगा मुस्लिमों के बहिष्कार का तड़का

नई दिल्ली। हद से ज्यादा नशा आत्मघाती होता है। शख्स कभी अपने आप मौत की चपेट में आ जाता है या फिर आगे बढ़कर उसे गले लगा लेता है। भारत में सत्ता के संरक्षण में जारी मुस्लिम विरोध का नशा अब कुछ उन्हीं सीमाओं को पार करता दिख रहा है।

आज ट्विटर पर #boycottmuslim यानि मुस्लिमों का पूर्ण बहिष्कार ट्रेंड हो रहा है। यह शुद्ध रूप से सत्तारूढ़ पार्टी और उसके समर्थकों द्वारा प्रायोजित है। और इसका विशुद्ध मकसद हरियाणा और महाराष्ट्र समेत देश के दूसरे इलाकों में होने वाले उपचुनावों में सत्तारूढ़ दल को राजनीतिक लाभ दिलाना है। लेकिन यह किस कदर खतरनाक है शायद नफरत और घृणा के उन्माद के शिकार अंधभक्त कत्तई नहीं समझ सकते। उन्हें नहीं पता कि वह किसी और नहीं बल्कि खुद के पैर में कुल्हाड़ी मार रहे हैं।

किसी भी देश के भीतर इतनी बड़ी आबादी को काटकर भला क्या उसे चलाया जा सकता है। ऐसा दो ही लोग सोच सकते हैं। पहला जिन्हें इसके नतीजों को अहसास नहीं है। या फिर दूसरा ऐसा कोई हो सकता है जो अपने निहित स्वार्थ में अंधा हो गया हो। वह पार्टी हो या कि व्यक्ति।

ऐसा नहीं है कि देश में लोगों ने अंधकार की इन काली ताकतों के आगे समर्पण कर दिया है। लोग इसके खिलाफ बेहद मजबूती से खड़े हैं। और सोशल मीडिया पर ही मोर्चा ले रहे हैं।

दिलचस्प बात यह है कि पहली बार खुद बीजेपी के भीतर भी इस बात को लेकर हलचल है। खासकर ऐसे मुसलमान जो अभी तक किसी सत्ता के लाभ या फिर दूसरे कारणों से उससे जुड़े हुए थे। पहली बार बोलने के लिए सामने आए हैं। शायद ऐसा इसलिए है कि उन्हें भी इस बात का एहसास हो रहा है कि आग अब उनके दामन तक पहुंच गयी है।

गुजरात के जफर सरेसवाल जिन्होंने कभी प्रधानमंत्री मोदी का खुल कर समर्थन किया था, उन्हीं में से एक हैं। उन्होंने ट्विटर पर लिखा है कि बहुत सारा इससे घृणा करो, उससे घृणा करो; बायकाट मुस्लिम ट्रेंड करता हुआ देखा जा रहा है। हममें से किसी को भी इस तरह की मूर्खतापूर्ण कारगुजारियों से ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। सभी तरह की घृणा और कट्टर प्रवृत्तियों की अपनी उम्र बहुत कम होती है। केवल प्यार, सद्भावना, क्षमा ही शाश्वत है।

हालांकि इनको और कुछ ज्यादा खुलकर बोलने और आगे आने की अपील करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने कहा कि सर, आप लोगों को ये भी बोलना चाहिए कि ये सब इतना हो क्यों हो रहा है? नफरत की खेती क्यों परवान चढ़ रही है? क्यों इतना हिन्दू-मुसलमान होने लगा..देश वही है..लोग वहीं हैं। समाज वही है ..फिर क्या हुआ कि नफरतों का बाजार हर शहर और गांव में सजने लगा है। सोचने की ज़रूरत है।

अजीत अंजुम ने इस पर कई ट्वीट किए हैं। एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा कि ये देश हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सबका है….जो सच में देश से प्यार करेगा, वो सभी धर्मों का सम्मान करेगा….#मुस्लिमों का संपूर्ण बहिष्कार जैसी नफरती मुहिम चलाने वाले लोग देश की संस्कृति और हिंदू धर्म की आत्मा पर चोट कर रहे हैं….सर्व धर्म समभाव ही भारतीयता है।

इतना ही नहीं बीजेपी के मुस्लिम नेताओं मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन से उन्होंने आगे आने और इसको रुकवाने की अपील की है। उन्होंने कहा कि उम्मीद करता हूं कि मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज जैसे नेता ऐसी मुहिम चलाने वालों के खिलाफ बोलने की हिम्मत दिखाएंगे ..#मुस्लिमों_का_संपूर्ण_बहिष्कार जैसे हैशटैग चलाने वाले ‘राष्ट्रवादी ‘ जमात के ही हैं .. देश में जो ज़हर बोया जा रहा है , उसका अंजाम हम सब भुगतेंगे।

सोशल मीडिया पर सक्रिय जैनब सिकंदर ने कहा है कि मुस्लिमों का संपूर्ण बहिष्कार ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा है। मुस्लिमों को आखिरी तौर पर बहिष्कृत करने की संघी फंटेसी को हर कोई देख सकता है। अगर पीएम मोदी इस संघी प्रचार को नहीं रुकवाते हैं तो सबका साथ सबका विश्वास पूरी तरह से फर्जी है।

पत्रकार राणा अयूब ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है। फासिज्म के खिलाफ वोट डालने के अपने पंजे की फोटो वाली ट्वीट से पहले उन्होंने लिखा है कि बहुत खूब। ट्विटर इंडिया पर मुस्लिमों का संपूर्ण बहिष्कार ट्रेंड कर रहा है। इसे कवेल ट्रेंड के तौर पर मत देखिए। यह एक भावना है जिसे हमारी राजनीति और मीडिया ने पाला-पोसा है। इस पर हौले से ताली बजाइये।

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