सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ राजघाट पर धरना दे रहे दर्जन भर से ज्यादा ट्रेड यूनियन नेता गिरफ्तार

नई दिल्ली। राजघाट पर धरना दे रहे केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के नेताओं को पुलिस ने आज गिरफ्तार कर लिया।इनमें  7 महिलाएं भी शामिल हैं। आज ये सभी नेता और कार्यकर्ता कोविड 19 की आड़ में देश में मजदूरों के अधिकारों पर होने वाले हमलों के खिलाफ घोषित राष्ट्रव्यापी विरोध-प्रदर्शन के तहत यहां पहुंचे थे। इन सभी के हाथों में प्लेकार्ड थे और उन पर मजदूरों से जुड़ी मांगें लिखी थीं।

इन मांगों में सर्वप्रमुख रूप से कोविड महामारी की मार के चलते अपने घरों को जाने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए तत्काल वाहन मुहैया कराने की मांग शामिल थी। नेताओं का कहना है कि सरकार ने मजदूरों के साथ दोहरा व्यवहार किया है उसने राष्ट्र के इन निर्माताओं को बिल्कुल बेसहारा छोड़ दिया। मजदूरों का यह प्रदर्शन पूरे देश में हो रहा है।

राजघाट से गिरफ्तार लोगों में विद्या सागर गिरि, अशोक सिंह, हरभजन सिंह, तपन सेन, आर के शर्मा, जवाहर सिंह, त्रिलोक सिंह, राजीव डिमरी आदि शामिल हैं।

इसके पहले इन ट्रेड यूनियनों ने एक अपील जारी की थी। जिसमें उन्होंने विस्तार से अपनी मांगों को रखा था। पेश है पूरी अपील-

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने 14 मई, 2020 को अपनी मीटिंग में देशभर में लॉक डाउन के चलते मेहनतकशों के लिए पैदा हुई विकट स्थिति का जायज़ा लिया और यह फ़ैसला किया कि इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एकजुट कार्यवाहियों को मजबूत किया जायेगा।

कोविड-19 महामारी का बहाना बनाते हुए सरकार हर रोज़ मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश लोगों पर हमला करने वाले एक के बाद एक फ़ैसले लिए जा रही है, जबकि देश का मज़दूर वर्ग और आम लोग लॉक डाउन के चलते, पहले से ही गहरे संकट और दुखों का सामना कर रहे हैं। इस संदर्भ में तमाम ट्रेड यूनियनों ने स्वतंत्र रूप से और एकजुट होकर कई बार प्रधानमंत्री और श्रममंत्री के पास प्रतिनिधिमंडल भेजा है, और साथ ही लॉक डाउन के दौरान मज़दूरों को पूरा वेतन दिए जाने और मज़दूरों की छंटनी न करने से संबंधित सरकार के निर्देशों/परामर्शों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किये जाने का मसला उठाया है। लेकिन सरकार पर इसका कोई असर नहीं हुआ है। इसी तरह से राशन के वितरण और महिलाओं के खाते में कुछ रुपये डाले जाने, इत्यादि जैसी सरकार की खुद की घोषणाओं का ज़मीनी स्तर पर कोई असर नहीं हुआ है, और अधिकांश लाभार्थियों तक यह सुविधाएं पहुंची ही नहीं हैं।

48 दिनों के लॉक डाउन के चलते रोज़गार छीने जाने, वेतन न मिलने और किराये के घर से निकाले जाने, इत्यादि की वजह से जब मेहनतकश लोगों को अमानवीय त्रासदियों का सामना करना पड़ रहा है। तब सरकार बड़े ही आक्रमक तरीके से उन्हें भुखमरा अस्तित्वहीन बनाकर गुलामी की ओर धकेल रही है। इस हालात से परेशान होकर लाखों प्रवासी मज़दूर सैकड़ों मील दूर सड़कों, रेलवे लाइनों और खेतों से गुजरते हुए अपने गांवों की ओर पैदल ही जाने को मजबूर हैं। भूख, थकान और सड़क हादसों में सैकड़ों मज़दूर अपनी जान गवां चुके हैं। लेकिन लॉक डाउन की तीन अवधियों के बाद भी, 14 मई की सबसे नयी घोषणा सहित, सरकार की तमाम घोषणाओं में आम लोगों को उनके दुख-तकलीफों से राहत देने की बात करने की जगह, झूठे बयान दिये गये हैं व अपनी उपलब्धियों की डींगें मारी गई हैं।

यही दिखता गया है कि बहुसंख्यक आबादी की दुख-तकलीफों के प्रति सरकार का रवैया बेहद क्रूर और असंवेदनशील है। अब सरकार बड़े ही संदेहास्पद तरीके से इस लंबे लॉक डाउन का इस्तेमाल करते हुए मज़दूरों और ट्रेड यूनियनों के अधिकारों पर हमला कर रही है और तमाम श्रम कानूनों को ख़त्म करने की दिशा में काम कर रही है। ऐसा करने के लिए वह अपनी दब्बू राज्य सरकारों को बड़ी क्रूरता से श्रम-विरोधी और जन-विरोधी क़दम उठाने की खुली छूट देने की रणनीति चला रही है, जिसके चलते अन्य राज्य सरकारों को भी इन क़दमों का अनुसरण करना पड़ रहा है, जो कि सरासर मज़दूरों के अधिकारों और रोज़गार के ख़िलाफ़ है। हिन्दोस्तानी सरकार के श्रम व रोज़गार मंत्रालय की ओर से इस तरह की सिफारिशें राज्य सरकारों को भेजी जा रही हैं। 

आर्थिक गतिविधियों को सरल बनाने के नाम पर उत्तर प्रदेश सरकार ने एक काला अध्यादेश पारित किया है जिसका नाम है “उत्तर प्रदेश विशिष्ट श्रम कानूनों से अस्थायी छूट अध्यादेश 2020”। उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ही झटके में 38 श्रम कानूनों को 1000 दिनों के लिए निष्क्रिय कर दिया है। अब केवल वेतन का भुगतान कानून 1934 का खंड 5 (पेमेंट ऑफ वजेस एक्ट 1934, सेक्शन 5), निर्माण मज़दूर कानून 1996 (कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट 1996), बंधुआ मज़दूर कानून 1976 (बोंडेड लेबर एक्ट 1976) ही बचे रह गए हैं। जिन कानूनों को निष्क्रिय कर दिया गया है उनमें शामिल हैं – ट्रेड यूनियन एक्ट, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट, एक्ट ऑन ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ, कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट, इंटर-स्टेट माइग्रेंट लेबर एक्ट, इक्वल रेमुनरेशन एक्ट, मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट, इत्यादि। 

मध्य प्रदेश सरकार भी फैक्ट्रीज़ एक्ट, कॉन्ट्रैक्ट एक्ट और इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट में बड़े बदलाव लाई है जिनके चलते कंपनी मालिक अपनी मनमर्ज़ी से मज़दूरों को किसी भी समय नौकरी से निकाल सकता है, औद्योगिक विवाद खड़ा करने या शिकायत करने के अधिकार पर पाबंदी लगायी जायेगी, 49 संख्या तक मज़दूरों की सप्लाई करने वाले ठेकेदारों को लाइसेंस की ज़रूरत नहीं होगी, और वह बिना किसी नियमन या नियंत्रण के काम कर सकता है; कारखाने की निगरानी क़रीब-क़रीब ख़त्म कर दी जाएगी और श्रम कानून लागू करने के लिए बनायी गयी मशीनरी को बंद कर दिया जायेगा, जिसके चलते वेतन, मुआवज़ा, सुरक्षा इत्यादि से संबंधित जो भी कानून बाकी हैं वे पूरी तरह से निरर्थक बन जायेंगे। इतना ही नहीं बल्कि कंपनी मालिकों को मध्य प्रदेश श्रम कल्याण बोर्ड को जो 80 रुपये प्रति मज़दूर देने होते थे, उससे भी छूट मिल जाएगी। मध्य प्रदेश सरकार ने शॉप्स एंड इस्टैब्लिश्मेंट एक्ट में जो संशोधन किये हैं उनके मुताबिक अब दुकानें सुबह 6 बजे से रात 12 बजे तक खुली रह सकेंगी, यानी कि लगातार 18 घंटे। 

गुजरात सरकार ने भी काम के घंटे को 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करने का गैर कानूनी फैसला लिया है, और उत्तर प्रदेश सरकार के नक्शे क़दमों पर चलते हुए 1200 दिनों के लिए कई श्रम कानूनों को निलंबित करना चाहती है। असम और त्रिपुरा की सरकार और कई अन्य राज्य सरकारें इसी रास्ते पर चलने की तैयारी कर रही हैं।

यह प्रतिगामी मज़दूर-विरोधी क़दम लाॅक डाउन के दूसरे पड़ाव में आये जिसके पहले 8 राज्य सरकारों ने लॉक डाउन की स्थिति का इस्तेमाल करते हुए, एक कार्यकारी आदेश के ज़रिये, फैक्ट्री एक्ट का सरासर उल्लंघन करते हुए, प्रतिदिन काम की अवधि को 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया था।

यह क्रूर क़दम न केवल मज़दूरों के सामूहिक सौदेबाजी, वेतन के मसलों पर मतभेद उठाने, काम की जगह पर सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी के अधिकारों से वंचित करते हुए उनके वहशी शोषण को बढ़ाने के लिए उठाये गए हैं, बल्कि लगातार जारी लॉक डाउन की अवस्था में अत्याधिक मुनाफे़ बनाने के मक़सद से उन्हें गुलामी में ढकेल देने के लिये किये गए हैं। इन बदलावों के चलते महिलाओं और अन्य कमजोर तबकों से जबरदस्ती से श्रम कराया जायेगा, जिससे उनका शोषण और अधिक बढ़ जायेगा।

इस सब का यही मतलब है कि मज़दूरों को बिना किसी अधिकार के बंधुवा बनाकर पूंजी के हित में उनको वेतन की गारंटी, सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक सुरक्षा और सबसे महत्वपूर्ण, आत्मसम्मान से वंचित करना ताकि मज़दूरों के खून-पसीने से मुनाफ़ा बनाने वालों के मुनाफे़ सर्वाधिक हो जायें। यह मानवाधिकारों के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।

हिन्दोस्तानी मज़दूर वर्ग को अंग्रेजों के जमाने की शोषण व्यवस्था में ढकेला जा रहा है। ट्रेड यूनियन आंदोलन ऐसे अतिदुष्ट क़दमों को चुपचाप स्वीकार नहीं कर सकता है और इन मज़दूर-विरोधी, जन-विरोधी नीतियों को हराने के लिये दृढ़ निश्चय करता है कि अपनी पूरी ताक़त लगाकर एकजुटता से लड़ेगा। गुलामी को वापस लाने की कोशिश के खिलाफ़ आने वाले दिनों में हम देशव्यापी प्रतिरोध मज़बूत करेंगे।

केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें संतोष प्रकट करती हैं कि इन वहशी तथा मज़दूर-विरोधी व जन-विरोधी काले क़दमों के खिलाफ़ पहले से ही मज़दूरों व ट्रेड यूनियनों ने मिलकर अनेक राज्यों व उद्योगों में विरोध प्रदर्शन आयोजित किये हैं जो मेहनतकश लोगों की लड़ाकू मनोदशा को दर्शाता है।

इन हालातों में, केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने शुरुआती तौर पर 22 मई को मज़दूर-विरोधी व जन-विरोधी हमलों के खि़लाफ़ देशव्यापी विरोध दिवस मनाने का निश्चय किया है। राष्ट्रीय स्तर के ट्रेड यूनियन के नेता एक दिवसीय भूख हड़ताल का आयोजन दिल्ली में गांधी समाधि, राजघाट पर करेंगे। इसके साथ-साथ सभी राज्यों में संयुक्त विरोध प्रदर्शन किये जायेंगे। इसके बाद यूनियनों और सदस्यों की तरफ से सरकार को लाखों आवेदन भेजे जायेंगे। तात्कालिक मांगों में शामिल होंगी – फंसे हुए मज़दूरों को उनके घर सुरक्षित पहुंचाना, सभी को भोजन उपलब्ध कराना, राशन का सर्वव्यापी वितरण व पूरे लॉक डाऊन के दौरान के वेतन सुनिश्चित करना, असंगठित क्षेत्र के सभी श्रमिकों को (चाहे वे पंजीकृत हों या न हों या स्वरोज़गार प्राप्त हों) कैश पहुंचाना, सरकारी कर्मचारियों व पेंशनरों के मंहगाई भत्तों को स्थिर रखना रद्द करना, स्वीकृत पदों का त्यागना बंद करना।

इस बीच राज्य स्तर और अलग-अलग क्षेत्रों के मुद्दों के आधार पर जारी कार्यवाइयों को तीव्र करना होगा, इस नज़रिये के साथ कि आने वाले दिनों में एकजुट संघर्ष को तेज़ करके सरकार द्वारा प्रतिगामी नीतियों को रोका जा सकेगा जिनके ज़रिये श्रम अधिकारों को रौंदा जा रहा है।

केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने हिन्दोस्तानी सरकार द्वारा किये जा रहे श्रम मानकों व मानव अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वायदों के उल्लंघनों के बारे में आई.एल.ओ. को संयुक्त प्रतिनिधिमंडल भेजने का निश्चय किया है।

केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों व फेडरेशनों का संयुक्त मंच बुलावा देता है कि देह से दूरी और सामाजिक भाईचारा बनाकर रखते हुए, देशव्यापी विरोध दिवस को पूरे देश में शानदार तरीके से सफल बनाये।

इंटक, एटक., एच.एम.एस., सीटू, ए.आई.यू.टी.यू.सी., टी.यू.सी.सी., सेवा, ए.आई.सी,सी.टी.यू., एल.पी.एफ., यू.टी.यू.सी. तथा विभिन्न क्षेत्रों की फेडरेशन और संगठन

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