लोकसभा चुनाव की धुरी बनता उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश एक बार फिर 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण बन चुका है। जहां राम मंदिर के आयोजन को लेकर भाजपा-संघ घर-घर पहुंच रहा है और इस अवसर को अपने वोटबैंक में बदलता देखना चाहता है। वहीं विपक्ष की केंद्रीय शक्ति बन चुकी कांग्रेस ने भी लामबंदी तेज कर अपने इरादे साफ कर दिए हैं।

कांग्रेस ने अपने कुशल व अनुभवी संगठनकर्ता राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडे को उत्तर प्रदेश का प्रभारी नियुक्त किया है। विगत दिनों उन्होंने यूपी जोड़ो यात्रा के समापन समारोह को सम्बोधित करते हुए 6 जनवरी को लखनऊ के शहीद स्मारक पर पार्टी की प्राथमिकताओं को स्पष्ट किया।

भाजपा द्वारा पेश राम मंदिर के धार्मिक मुद्दे की काट के बतौर यूपी की जनता के जीवन से जुड़े मूलभूत सवालों का दस सूत्रीय एजेंडा पेश करते हुए उन्होंने इन मुद्दों के इर्द-गिर्द राजनैतिक ध्रुवीकरण तेज करने की अपील की और कांग्रेस कार्यकर्ताओं से जमीनी स्तर पर अभियान चलाने का आह्वान किया।

बतौर प्रदेश प्रभारी उन्होंने इंडिया गंठबंधन में कांग्रेस के साथ अखिलेश यादव, जयंत चौधरी और मायावती की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया। कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में केंद्रीय भूमिका इसलिए भी बन गई है क्योंकि सपा-बसपा की खींचतान में वह भाजपा को कोई मौका नहीं देना चाहती। अगर उत्तर प्रदेश में गठबंधन वैसा ही रूप लेता है जैसा कांग्रेस चाहती है तो वह इंडिया गंठबंधन के जरिये भाजपा के 2024 के विजय रथ पर यहीं से लगाम लगा सकती है और उससे 20-25 लोकसभा सीटें छीन सकती है।

इस आलोक में अखिलेश यादव और मायावती की भूमिका पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं जिन्होंने अपने-अपने तल्ख रुख में नरमी बरतना भी शुरू कर दिया है। यह साफ दिखने लगा है कि उत्तर प्रदेश जैसे संवेदनशील राज्य में इंडिया गंठबंधन कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता और भाजपा के राम मंदिर जैसे धार्मिक मुद्दे के बरक्स जनता के सवालों पर चुनाव को केंद्रित करना चाहता है।

वहीं भाजपा राम मंदिर अयोध्या में किये जाने वाले प्राण प्रतिष्ठा के अवसर को चुनाव पूर्व का सबसे भव्य आयोजन बनाने में लगी है। संघ और भाजपा के कार्यकर्ता घर-घर जाकर निर्माणाधीन मंदिर की तस्वीर और उसकी लंबाई-चौड़ाई-ऊंचाई आदि की व्याख्या करता पम्फलेट और अक्षत (चावल) बांट रहे हैं। वे लोगों से 22 जनवरी को अयोध्या पंहुचने और अपने घरों को दीया और झालर से सजाने की नरेंद्र मोदी की अपील दोहरा रहे हैं। लेकिन उसकी यह चाल पिटती हुई नजर आने लगी है।

पूरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया को शास्त्र सम्मत नहीं होने और उसे धार्मिक कम राजनैतिक गतिविधि ज्यादा करार दिया है और स्वयं वहां जाने से इंकार कर चुके हैं।

राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री व विवादित विहिप उपाध्यक्ष चंपत राय के बयान कि “राम मंदिर रामानन्द सम्प्रदाय का है और शैव (अर्थात भगवान शिव उपासक) और शाक्त (अर्थात शक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा के उपासक) संप्रदाय वाले आएं न आएं उनसे क्या फर्क पड़ता है”, ने धर्माधिकारियों में घोर विवाद को जन्म दिया है। हिन्दू धर्मावलंबियों में बहुतायत लोग भगवान शिव और शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की आराधना करते हैं।

इस विवाद में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने हस्तक्षेप करते हुए कहा है कि मंदिर अगर रामानन्द सम्प्रदाय का है तो चंपत राय और संघ के लोग वहां क्या कर रहे हैं? उन्होंने उनसे अविलम्ब मंदिर का अनाधिकृत अधिकार छोड़ने और उसे रामानंद सम्प्रदाय को सौंपने की भी मांग की है।

उन्होंने साथ-साथ यह भी कहा है कि 22 जनवरी को चुनावी लाभ के उद्देश्य से प्रेरित होकर अधूरे मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा की जा रही है जो धर्म और शास्त्र विरुद्ध है।

इस कार्य के लिए रामनवमी की तिथि को सर्वोत्तम बताते हुए उन्होंने कहा है कि रामनवमी अप्रैल में है और नरेन्द्र मोदी राम मंदिर के सहारे चुनाव लड़ना चाहते हैं इसलिए भाजपा यह धर्मविरोधी कृत्य अंजाम दे रही है। अविमुक्तेश्वरानंद ने चारों पीठों के शंकराचार्यों के राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होने की घोषणा भी कर डाली।

भाजपा की विभाजनकारी राजनीति देश-समाज के साथ-साथ हिन्दू धर्मावलंबियों में भी विघटन का उत्कृष्ट उदाहरण पेश कर रही है। आसन्न लोकसभा चुनाव में जहां उसका मंदिर का एजेंडा और उनकी सरकारी तैयारियां फ्लॉप शो साबित होने को अभिशप्त दिख रही हैं वहीं मोदी सरकार की उपलब्धियों के लिए निकाली गयी विकसित भारत संकल्प यात्रा महाराष्ट्र सहित देश के अन्य हिस्सों में जगह-जगह किसानों द्वारा रोकी जा रही है।

विकसित भारत संकल्प यात्रा के आयोजकों से जनता द्वारा सवाल-जवाब करना एक अच्छे और जागरूक लोकतंत्र की तरफ इशारा करता है, साथ ही यह जनता में सरकार से उपजे विक्षोभ को भी रेखांकित करता है। यात्रा को रोक कर लोग पूछ रहे हैं कि सरकारी खर्च पर निकली गई इस यात्रा को भाजपा कार्यकर्ता क्यों और कैसे संचालित कर रहे हैं? और मोदी सरकार की गारंटी को कटघरे में खड़ा कर जनता पूछ रही है कि भारत सरकार का नाम कब और कैसे मोदी सरकार पड़ गया?

उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए जितना महत्वपूर्ण है उससे ज्यादा यह विपक्ष की शक्तियों के लिए मायने रखता है। उम्मीद है सपा-बसपा-कांग्रेस-रालोद का मोर्चा यहां से उसके 2024 के सफर को दुरूह बनाने वाला है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा 14 फरवरी से उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 1074 किलोमीटर चलेगी और कदम-कदम पर भाजपा के लोकतंत्र और संविधान विरोधी चेहरे को उजागर करेगी।

यह यात्रा भाजपाई विभाजन की राजनीति के खिलाफ हक़ और न्याय के लिए प्रदेश की जनता के हितों का प्रतिनिधित्व करेगी और उसे मुखर आवाज देगी जिसमें विपक्ष की सभी शक्तियां अपना योगदान सुनिश्चित करेंगी।

कांग्रेस ने इस यात्रा को बेरोजगार युवाओं, कर्ज में डूबे किसानों और मंहगाई की मार के बीच पढ़ाई, कमाई और दवाई के लिए संघर्ष करते गरीबों के साथ न्याय, वंचितों के अधिकारों और बेटियों के आत्मसम्मान के साथ न्याय, तथा स्वतंत्रता-समानता और मानवीय गरिमा के आदर्शों के साथ न्याय जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं पर केंद्रित रखा है।

देखना यह है कि उत्तर प्रदेश की जनता पूर्व की भांति भाजपा द्वारा पेश की जा रही धार्मिक और विभाजनकारी राजनीतिक अफ़ीम की चुस्की की उन्माद और मदहोश राह चुनती है या फिर बेपटरी हो चुकी अपने जीवन की गाड़ी को अपने मूलभूत सवालों के हल के लिए इंडिया गंठबंधन के साथ खड़ी हो कर उसे पटरी पर लाने को अपनी प्राथमिक बनाती है।

(क्रांति शुक्ल का लेख। लेखक वर्ल्ड विजन फॉउंडेशन के निदेशक और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं।)

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