भारतीय न्यायपालिका की सामंती संस्कृति के क्या मायने हैं मी लार्ड!

भारत की वर्तमान न्यायिक प्रणाली की उत्पत्ति का स्रोत एक प्रकार से न्यायपालिका की औपनिवेशिक प्रणाली में देखा जा सकता है जो कमोबेश स्वामी-सेवक के दृष्टिकोण से स्थापित की गई थी, न कि जनता के दृष्टिकोण से। इसके अलावा न्यायालयों की कार्यप्रणाली और शैली भारत की जटिलताओं के साथ मेल नहीं खाती है। औपनिवेशिक मूल के होने के कारण यह व्यवस्था, प्रथा और नियम भारतीय आबादी की ज़रूरतों के लिये ही नहीं बल्कि एक ईमानदार और निडर,संविधान और कानून के शासन के प्रति प्रतिबद्ध न्यायाधीश के लिए भी उपयुक्त नहीं हैं।जहाँ सरकार के लिए यानि कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के लिए संवैधानिक निर्णय असहज हों तो ऐसा निर्णय देने वाले को अकारण ट्रान्सफर करके दंडित किया जाता हो तो कौन और कैसे न्याय करेगा।

मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव बनर्जी ने मेघालय ट्रान्सफर के बाद अपने फेयरबेल मैसेज में यह कहकर न्यायपालिका की दुखती रग पर हाथ रख दिया है कि मुझे खेद है कि मैं सामंती संस्कृति को पूरी तरह से खत्म नहीं कर पाया। अब लाख टके का सवाल है कि न्यायपालिका में सामंती संस्कृति व्याप्त होने के निहितार्थ क्या हैं ?

आज जस्टिस एनवी रमना देश के चीफ जस्टिस हैं और उन्होंने अब तक के कार्यकाल में साफ और न्यायोचित न्यायपालिका की अवधारणा का विश्वास आम जन में उत्पन्न किया है ऐसे में बिना कारण बताये जस्टिस बनर्जी का तबादला एक बड़े हाईकोर्ट से एक अत्यंत छोटे हाईकोर्ट में किये जाने से न्यायपालिका की शुचिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

चीफ जस्टिस बनने के पहले उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम जजों में से एक जस्टिस एन वी रमना ने कहा था कि न्यायपालिका में जनता का भरोसा उसकी सबसे बड़ी ताकत है और जजों को सभी दबावों व प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद निडर होकर फैसला लेना चाहिए। जजों को अपने सिद्धांतों पर अटल रहना चाहिए। उच्चतम न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस एआर लक्ष्मणन की शोकसभा में जस्टिस रमना ने कहा था कि न्यायपालिका की सबसे बड़ी शक्ति है, लोगों का इसमें विश्वास। निष्ठा, विश्वास और स्वीकार्यता को अर्जित करना पड़ता है।

उन्होंने कहा था कि एक जज के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने सिद्धांतों पर डटा रहे और बिना डरे फैसला ले। किसी भी जज की यह विशेषता होनी चाहिए कि वह सभी बाधाओं व दबावों के बावजूद हिम्मत के साथ खड़ा हो। जस्टिस लक्ष्मणन को याद करते हुए उन्होंने कहा था कि हम सभी को उनके शब्दों से प्रेरणा लेनी चाहिए और न्यायपालिका की स्वतंत्रता कायम रखने की कोशिश करनी चाहिए, जिसकी आज के समय में सबसे ज्यादा जरूरत है। साथ ही कहा हमारे मूल्य हमारी सबसे बड़ी दौलत हैं और हमें उन्हें कभी नहीं भूलना चाहिए।

क्या जस्टिस बनर्जी का मद्रास हाईकोर्ट से मेघालय हाईकोर्ट के लिए हुआ तबादला माननीय चीफ जस्टिस के उक्त कथन के अनुरूप है, कारण न बताये जाने से कहीं न कहीं जस्टिस बनर्जी द्वारा पारित उन निर्णयों को जिम्मेदार बताया जा रहा है जो सरकार यानि कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के लिए असहज रहे हैं।

मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव बनर्जी का फेयरवेल मैसेज काफी सुर्खियों में है। उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि मुझे खेद है कि मैं सामंती संस्कृति को पूरी तरह से खत्म नहीं कर पाया। मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव बनर्जी ने अपनी फेयरवेल पार्टी में बड़ी बात कह दी है। पहले से ही चीफ जस्टिस के ट्रांसफर का विरोध यहां जमकर हो रहा है। जस्टिस बनर्जी का ट्रांसफर मेघालय उच्च न्यायालय में कर दिया गया है।

अपने सहयोगियों को फेयरवेल मैसेज में मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी ने अपने कार्यस्थल की “सामंती संस्कृति को ध्वस्त” करने में सक्षम नहीं होने के लिए खेद व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि मुझे खेद है कि आपको मुझे लंबे समय तक रखना पड़ा। मैं आपके पूर्ण सहयोग की सराहना करता हूं। मुझे खेद है कि मैं उस सामंती संस्कृति को पूरी तरह से नष्ट नहीं कर सका जहां आप नौकरी करते हैं।

फेयरवेल मैसेज के तौर पर जस्टिस संजीव बनर्जी ने एक खत लिखा था। जिसमें वो आगे लिखते हैं-रानी और मैं इस खूबसूरत और गौरवशाली राज्य में हर किसी के लिए हमेशा ऋणी हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से आपको अलविदा न कहने के लिए माफी मांगता हूं। आप देश के सर्वश्रेष्ठ लोगों में से हैं।

इस दौरान उन्होंने सिस्टम और प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने के लिए रजिस्ट्री के प्रयासों की सराहना की। उन्हें पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के अपने प्रयास को जारी रखने की भी सलाह दी। अपने विदाई संदेश को समाप्त करते हुए न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा कि वह सबसे सुखद यादों के साथ जा रहे हैं।

दरअसल 16 सितंबर को हुई बैठक में चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस बनर्जी के तबादले की सिफारिश की थी। हालांकि इस फैसले को 9 नवंबर को सार्वजनिक कर दिया गया था। इस फैसले पर जमकर विवाद हुआ। मद्रास हाईकोर्ट के वकील इस फैसले के विरोध में उतर गए। मद्रास बार एसोशियन भी इस फैसले के विरोध में प्रस्ताव पास कर चुका है।

हालांकि विवादों के बीच मद्रास उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी, मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभालने के लिए 17 नवंबर की सुबह चेन्नई से निकल गए। जस्टिस बनर्जी को 22 जून, 2006 को एक स्थायी न्यायाधीश के रूप में कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंडपीठ में पदोन्नत किया गया था। जिसके बाद इसी साल उन्हें मद्रास उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था।

इससे पहले 2019 में मद्रास हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रहीं जस्टिस विजया के. ताहिलरमानी का तबादला भी मेघालय हाईकोर्ट में ही किया गया था और उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।उन्होंने मेघालय हाईकोर्ट में अपने तबादले और मामले में पुनर्विचार की अपनी याचिका खारिज किए जाने के बाद विरोध दर्ज कराने के लिए छह सितंबर को त्यागपत्र सौंप दिया और राष्ट्रपति ने 20 सितंबर, 2019 को उसे स्वीकार कर लिया था।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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