भागवत और भाजपा का हृदय परिवर्तन हो गया या ये अमेरिकी दबाव का है नतीजा?

आखिर यह क्या हो रहा है! अचानक हृदय परिवर्तन। पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वे सर्वा मोहन भागवत ने सफाई दी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब कोई नया मंदिर आंदोलन नहीं शुरू करेगा और अपील कर रहे हैं कि मस्जिद-मस्जिद में कृपया शिवलिंग ना ढूंढें। अभी मोहन भागवत के बयान की तरह-तरह से व्याख्या हो रही थी कि भाजपा ने 5 जून को एक विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि किसी भी धर्म के पूजनीयों का अपमान भाजपा स्वीकार नहीं करती। भारतीय जनता पार्टी को ऐसा कोई विचार स्वीकार नहीं है जो किसी भी धर्म संप्रदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाए। आखिर क्या मामला है भाई, एक हफ्ते के ही भीतर सरसंघचालक और भाजपा एक ही सुर में प्रकारांतर से धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करने की वकालत करते दिखाई दे रहे हैं। कहीं यह अमेरिका का दबाव तो नहीं है जिससे संघ और भाजपा में भय पैदा हो गया है कि उससे जुड़े संगठनों और उनके जहर उगलने वाले नेताओं पर अन्तरराष्ट्रीय प्रतिबन्ध लग सकता है।

इस बीच भारतीय जनता पार्टी ने नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया है। बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने हाल ही में पैगंबर मोहम्मद पर विवादित बयान दिया था जिसके बाद इसको लेकर काफी विरोध भी जताया गया। बयान पर मचे हंगामे के बाद बीजेपी की ओर से एक्शन लिया गया है। नूपुर शर्मा के साथ ही बीजेपी मीडिया प्रभारी नवीन जिंदल को भी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया है।

दरअसल 22 मई को अमेरिकी कांग्रेस द्वारा गठित एक अर्ध-न्यायिक निकाय, यूएससीआईआरएफ, ने बाइडन प्रशासन से भारत, चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और 11 अन्य देशों को धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति के संदर्भ में ‘विशेष चिंता वाले देश’’ के तौर पर वर्गीकृत करने की सिफारिश की थी। यूएससीआरएफ ने पिछले साल भी अमेरिकी सरकार को इसी तरह की सिफारिश की थी जिसे बाइडन प्रशासन ने स्वीकार नहीं किया था। इस रिपोर्ट में राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन को धार्मिक स्वतंत्रता के दर्जे के संबंध में भारत, चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और 11 अन्य देशों को ”खास चिंता वाले देशों” की सूची में डालने की सिफारिश की गयी है।

रिपोर्ट में यूएससीआईआरएफ ने अमेरिकी सरकार से सिफारिश की थी कि अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (आईआरएफए) द्वारा परिभाषित धार्मिक स्वतंत्रता के व्यवस्थित, चल रहे, और घोर उल्लंघनों में शामिल होने और सहन करने के लिए भारत को “एक विशेष चिंता का देश” या सीपीसी के रूप में नामित करें, इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों और संस्थाओं पर लक्षित प्रतिबंध लगायें,उन व्यक्तियों या संस्थाओं की संपत्ति को फ्रीज करके और/या संयुक्त राज्य में उनके प्रवेश पर रोक लगाकर धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन; और भारत में सभी धार्मिक समुदायों के मानवाधिकारों को आगे बढ़ायें और द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से धार्मिक स्वतंत्रता, गरिमा और अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा दें।

अब जून 22 में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और आस्थाओं की विविधता के घर भारत में हमने लोगों और पूजा स्थलों पर बढ़ते हमले देखे हैं। दो महीने से भी कम समय में यह दूसरी बार है जब अमेरिका ने भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन की बढ़ती प्रवृत्ति के बारे में सीधे तौर पर चिंता व्यक्त की है। इस रिपोर्ट पर भारत की ओर से कहा गया है कि पक्षपातपूर्ण विचारों के आधार पर तैयार आकलन से बचा जाना चाहिए।

भाजपा ने 5 जून को एक विज्ञप्ति जारी कर यह कहा है कि भारत की हजारों वर्षों की यात्रा में हर धर्म पुष्पित पल्लवित हुआ है। भारतीय जनता पार्टी सर्वपंथ समभाव को मानती है। किसी भी धर्म के पूजनीयों का अपमान भाजपा स्वीकार नहीं करती। भारतीय जनता पार्टी को ऐसा कोई भी विचार स्वीकृत नहीं है जो किसी भी धर्म-संप्रदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाए। भाजपा ना ऐसे किसी विचार को मानती है और ना ही प्रोत्साहन देती है।

बयान में कहा गया है कि देश के संविधान की भी भारत के प्रत्येक नागरिक से सभी धर्मों का सम्मान करने की अपेक्षा है। आजादी के 75वें वर्ष में इस अमृतकाल में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना निरंतर मजबूत करते हुए, हमें देश की एकता, देश की अखंडता और देश के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी है। यह विज्ञप्ति, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव, अरुण सिंह, के हस्ताक्षर से 05 जून, 22 को जारी की गई है।

अमेरिकी विदेश विभाग ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संसद को सौंपी गई अपनी वार्षिक रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि भारत में 2021 में अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों पर पूरे साल हमले हुए, जिनमें हत्याएं और धमकाने के मामले भी शामिल हैं। दो महीने से भी कम समय में यह दूसरी बार है जब अमेरिका ने भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन की बढ़ती प्रवृत्ति के बारे में सीधे तौर पर चिंता व्यक्त की है।

धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में साल 2021 में पूरे साल अल्पसंख्यकों पर हमले हुए। अभी 2 जून को खबर आई कि अमेरिकी विदेश विभाग ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संसद को सौंपी गई अपनी वार्षिक रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि भारत में 2021 में अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों पर पूरे साल हमले हुए जिनमें हत्याएं और धमकाने के मामले भी शामिल हैं। विदेश विभाग के ‘फॉगी बॉटम’ मुख्यालय में विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन द्वारा जारी की गई रिपोर्ट दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति और उल्लंघन के लिए अपना दृष्टिकोण देती है और इसमें प्रत्येक देश पर अलग-अलग अध्याय हैं।

भारत ने इसके पहले अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उसे किसी विदेशी सरकार द्वारा अपने नागरिकों के संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों के बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है। रिपोर्ट का भारत खंड धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति पर कोई राय देने से बचता है, लेकिन इसके विभिन्न पहलुओं का दस्तावेजीकरण करता है जैसा कि भारतीय प्रेस और भारत सरकार की रिपोर्ट में छपा है। यह रिपोर्ट विभिन्न गैर-लाभकारी संगठनों और अल्पसंख्यक संस्थानों द्वारा उन पर हमलों के आरोपों को भी उदारतापूर्वक उद्धृत करती है, लेकिन ज्यादातर समय अधिकारियों द्वारा की जा रही जांच के परिणामों, सरकार की प्रतिक्रियाओं पर काफी चुप रहती है।

रिपोर्ट के भारत खंड में कहा गया कि धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों पर हमले, मारपीट और डराने-धमकाने सहित, पूरे साल होते रहे। इनमें गोहत्या या गोमांस के व्यापार के आरोपों के आधार पर गैर-हिंदुओं के खिलाफ ‘गौ सतर्कता’ की घटनाएं शामिल थीं।

रिपोर्ट आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान का भी उल्लेख करती है कि भारत में हिंदुओं और मुसलमानों का डीएनए एक ही है और उन्हें धर्म के आधार पर अलग नहीं किया जाना चाहिए। रिपोर्ट कहती है कि जुलाई 21 में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत, जिन्हें आमतौर पर भारत की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के वैचारिक संरक्षक के रूप में माना जाता है, ने सार्वजनिक रूप से कहा कि भारत में हिंदुओं और मुसलमानों का डीएनए एक ही है और उन्हें धर्म के आधार पर अलग नहीं किया जाना चाहिए।

भागवत ने कहा था कि देश में कभी भी हिंदुओं या मुसलमानों का प्रभुत्व नहीं हो सकता है, केवल भारतीयों का ही प्रभुत्व हो सकता है। उन्होंने कहा था कि मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को इस बात से डरना नहीं चाहिए कि भारत में इस्लाम खतरे में है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने यह भी कहा कि गोहत्या के लिए गैर-हिंदुओं की हत्या हिंदू धर्म के खिलाफ है।

रिपोर्ट में उल्लेख है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 12 सितंबर 21 को सार्वजनिक रूप से कहा था कि उत्तर प्रदेश में पहले की सरकारों ने लाभ वितरण में मुस्लिम वर्ग का पक्ष लिया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने गैर-हिंदुओं को मीडिया या सोशल मीडिया पर ऐसी टिप्पणी करने के लिए गिरफ्तार किया, जिन्हें हिंदुओं या हिंदू धर्म के लिए अपमानजनक माना जाता था।

इससे पहले अप्रैल में भी ब्लिंकन ने भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात कही थी। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा था कि उनका देश भारत में मानवाधिकरों के हनन के बढ़ते मामलों पर नजर रखे हुए है। इस रिपोर्ट का भारतीय खंड प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के अधिकार के उल्लंघन से जुड़ा हुआ था।

रिपोर्ट में कहा गया था कि फ्रीडम हाउस एंड ह्यूमन राइट्स वॉच सहित अंतरराष्ट्रीय निगरानी संगठनों ने भारत में मीडिया के लोकतांत्रिक अधिकारों में गिरावट और उनके लगातार उत्पीड़न का दस्तावेजीकरण किया है।

अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट में कहा गया था कि ऐसे भी मामले हैं, खासकर राज्यों में, जहां पत्रकारों को उनके पेशेवर काम के चलते मार दिया गया या निहित स्वार्थों के चलते निशाना बनाया गया। जून में उत्तर प्रदेश में एक अखबार कम्पू मेल के पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी की कथित तौर पर अवैध रेत खनन को लेकर उनकी खोजी रिपोर्ट के लिए दो बंदूकधारियों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। यूनेस्को के महानिदेशक ऑड्रे अजोले ने मामले पर संज्ञान लिया और प्रशासन से ‘गनप्वॉइंट सेंसरशिप’ को खत्म करने को कहा।

अमेरिकी रिपोर्ट के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में आस्था के कुछ मुद्दे शामिल हैं और इस पर अदालत का फैसला सर्वमान्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग तलाशने और रोजाना एक नया विवाद खड़ा करने की जरूरत नहीं है। भागवत ने कहा कि आरएसएस पहले ही यह स्पष्ट कर चुका है कि अयोध्या आंदोलन में संगठन की भागीदारी एक अपवाद थी और संघ भविष्य में ऐसे आंदोलन में शामिल नहीं होगा। भागवत ने कहा कि ज्ञानवापी विवाद में आस्था के कुछ मुद्दे शामिल हैं और इस पर अदालत के फैसले को सभी को स्वीकार करना चाहिए।

संघ प्रमुख ने कहाकि अब ज्ञानवापी मस्जिद (वाराणसी) का मामला चल रहा है। इतिहास को हम बदल नहीं सकते। वो इतिहास हमारे द्वारा नहीं बनाया गया और न ही आज के हिंदुओं और मुसलमानों द्वारा बनाया गया। यह उस समय हुआ, जब इस्लाम आक्रांताओं के साथ भारत आया। आक्रमण के दौरान स्वतंत्रता चाहने वाले लोगों के धैर्य को कमजोर करने के लिए मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। इस तरह के हजारों मंदिर हैं।

उन्होंने कहा कि रोजाना एक नया मुद्दा नहीं उठाना चाहिए। हमको झगड़ा क्यों बढ़ाना? ज्ञानवापी के बारे में हमारी श्रद्धा परंपरा से चलती आई है। हम करते आ रहे वो ठीक है। पर हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना? वो भी एक पूजा है। ठीक है बाहर से आई है, लेकिन जिन्होंने अपनाया है वो मुसलमान बाहर से संबंध नहीं रखते, ये उनको भी समझना चाहिए। यद्यपि पूजा उनकी उधर की है, उसमें वो रहना चाहते हैं तो अच्छी बात है। हमारे यहां किसी पूजा का विरोध नहीं है। उन्होंने कहा कि आरएसएस ज्ञानवापी मुद्दे पर कोई आंदोलन शुरू करने के पक्ष में नहीं था। अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर, 2019 के फैसले के बाद भागवत ने सुझाव दिया कि संघ मथुरा और काशी से दूर रहेगा और ‘चरित्र निर्माण’ पर ध्यान केंद्रित करेगा।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह का लेख।)

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