क्या गुल खिलाएगा रेड ब्रिगेड?

इन दिनों बंगाल की सियासत में एक सवाल बड़ी संजीदगी से पूछा जा रहा है कि रेड ब्रिगेड क्या गुल खिलाएगा? ब्रिगेड मैदान में डीवाईएफआई की कप्तान मीनाक्षी मुखर्जी ने अभूतपूर्व रिकॉर्ड बनाया है। इससे पहले भी वाम मोर्चा ने ब्रिगेड भरा है, पर यह पहला मौका है जब केवल डीवाईएफआई के दम पर ब्रिगेड मैदान भर गया था। माकपा के कद्दावर नेता मंच के सामने चेयर पर बैठे थे और मीनाक्षी की टीम मंच पर काबिज थी।

ब्रिगेड की इस कामयाबी के बाद अब यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या इंसाफ यात्रियों को जनता से भी इंसाफ मिलेगा यानी इसका असर वोट के रूप में लोकसभा चुनाव के बाद उभर कर सामने आएगा? आलोचक तो यह भी दलील देते हैं कि 2021 के विधानसभा चुनाव के पहले वाममोर्चा कांग्रेस और आईएसएफ की अपील पर ब्रिगेड मैदान भर गया था। पर चुनाव बाद तो माकपा और कांग्रेस का खाता ही नहीं खुला। अलबत्ता आईएसएफ को एक सीट पर विजय मिली थी।

इसका जवाब तलाश करने के लिए हमें पश्चिम बंगाल के 1969 की राजनीतिक स्थिति और 2021 से 2024 के बीच के तीन साल के फासले पर नजर डालना पड़ेगा। बंगाल में 1969 के चुनाव के बाद कांग्रेस के सारे वरिष्ठ नेता घरों में बैठ गए थे। इस खालीपन को प्रिय रंजन दास मुंशी और सुब्रत मुखर्जी आदि के नेतृत्व में छात्र परिषद ने भरा था।

इसके बाद युवा कांग्रेस का गठन हुआ और युवा कांग्रेस और छात्र परिषद के कार्यकर्ता बंगाल के चुनावी मैदान पर छा गए। जब वरिष्ठ नेतृत्व मैदान छोड़ देता है युवा इस खालीपन को भर देते हैं। बंगाल की मौजूदा स्थिति भी यही है। बंगाल में 2011 से लगातार चुनाव हारते हारते माकपा के वरिष्ठ नेता थक गए हैं। ऐसे में मीनाक्षी की टीम ने मोर्चा संभाला है। इसमें दासमुंशी की जमाने की तस्वीर अगर तलाश करते हैं तो गलत क्या है।

दूसरा सवाल है कि 2021 और 2024 के बीच के तीन साल के फासले के दौरान बहुत कुछ बदल गया है। उन दिनों तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के दामन पर दाग नहीं थे। पूरे राज्य में ममता बनर्जी के आदमकद फ्लेक्स लगाए जाते थे जिनके नीचे लिखा होता था ईमानदारी की प्रतीक। अब ये फ्लेक्स नहीं लगाए जाते हैं।

इन दिनों नियुक्ति घोटाला और राशन घोटाला के मामले में राज्य सरकार के तीन मंत्री जेल में हैं, कई विधायक भी जेल में और उनके साथ ही शिक्षा विभाग के कई अफसर भी जेल में हैं। पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की महिला मित्र के आवास से 50 करोड़ नगद बरामद किए गए थे। जाहिर है कि तृणमूल कांग्रेस का नैतिक आत्मबल अब उस कदर मजबूत नहीं है जितना 2016 और 2021 में था।

तृणमूल कांग्रेस के मंत्रियों और विधायकों को हाईकोर्ट से जमानत नहीं मिल रही है। मंत्रियों और नेताओं को हर पल यह आशंका सताती रहती है कि अब किसकी बारी है। अभी दो दिन पहले ईड़ी के अफसरों ने दमकल विभाग के मंत्री के घर पर 14 घंटे तक तलाशी ली थी। अब मजबूरी में ममता बनर्जी सहित अन्य नेता उनका सार्वजनिक रूप से बचाव कर रहे हैं।

बंगाल की जमीनी राजनीति से नावाकिफ लोग यह सवाल करेंगे कि पंचायत चुनाव में तो तृणमूल कांग्रेस के नब्बे फ़ीसदी उम्मीदवार विजयी रहे थे। इसका जवाब यह है कि राज्य के चुनाव आयुक्त, तत्कालीन मुख्य सचिव, गृह सचिव और डीजीपी के खिलाफ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के डिवीजन बेंच ने कंटेंप्ट का रूल जारी किया है। इसी जनवरी में चीफ जस्टिस अपना फैसला सुनाएंगे।

यहां गौरतलब है की चीफ जस्टिस उनके जवाब से अपनी असहमति जाता चुके हैं। पंचायत चुनाव में चीफ जस्टिस की बेंच ने सभी बूथों पर सेंट्रल फोर्स तैनात किए जाने का आदेश दिया था। इसका अनुपालन नहीं किया गया था। सरेआम बूथ लूटे गए थे, नामांकन दाखिल करने से रोका गया था और मतगणना में हंगामा किया गया था। जाहिर है कि पंचायत चुनाव के परिणाम को जनता का मत नहीं माना जा सकता है। पर लोकसभा चुनाव में यह छूट कहां मिलेगी।

जाहिर है कि आप हैरान हो रहे होंगे कि बंगाल की इस कहानी में अभी तक भाजपा का जिक्र नहीं आया है। जबकि 2019 में भाजपा के उम्मीदवार 19 सीटों पर विजयी रहे थे। दूसरी तरफ पांच साल बीत जाने के बावजूद आज भी भाजपा का संगठन बेहद कमजोर स्थिति में है। माकपा के समर्थकों का भाजपा के साथ जुड़ जाने के कारण यह सफलता मिली थी।

यही तो बंगाल की सियासत का सबसे बड़ा कमाल है। वाम से राम और राम से वापस वाम में आने का खेल मजबूरी में यहीं होता है। 2011 के बाद लगातार हमला झेल रहे माकपा कार्यकर्ताओं ने 2019 में भाजपा का दामन थाम लिया था। मीनाक्षी मुखर्जी और उनकी टीम के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है। जो वाम से राम में गए थे उन्हें वापस वाम में ले आना है।

दूसरी बात यह है कि माकपा के कार्यकर्ता सभी गांवों में हैं पर शासक दल के खौफ के कारण निष्क्रिय हो कर बैठ गए हैं। उन्हें भी चंगा करके पार्टी में वापस ले आना है। हां एक बदलाव जरूर आया है। सत्तारूढ़ दल की आंखों के खौफ का असर अब कम होने लगा है।

दूसरी बात यह है कि भाजपा के सभी सांसद उत्तर बंगाल से चुनकर आए हैं। इसीलिए 22 सौ किलोमीटर की इंसाफ यात्रा उत्तर बंगाल के कूचबिहार से शुरू हुई थी। इसका समापन कोलकाता के जादवपुर में हुआ। 50 दिनों की यात्रा में डीवाईएफआई के करीब 450 कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया था।

इस इंसाफ यात्रा की एक और खासियत थी। इसमें लाल झंडा के साथ-साथ तिरंगा झंडा भी चल रहा था। ऐसा पहली बार हुआ है। माकपा के सचिव मोहम्मद सलीम का कहना है कि हमने पौध लगाई है और खाद पानी देकर सींचा है। अगर मीनाक्षी मुखर्जी अपने मिशन में सफल रहीं तो ब्रिगेड से गांव तक ले गए हर पौध में गुल खिलेगा।

(जितेंद्र कुमार सिंह की रिपोर्ट।)

जेके सिंह
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