देप्सांग में चीनी घुसपैठ पर भारत चुप क्यों? मामले को लेकर सुरक्षा तंत्र के एक हिस्से में चिंता

नई दिल्ली। भारत-चीन सीमा झड़प के बाद कमांडरों के बीच हुई चार चक्रों की वार्ता में भारत ने अभी तक देप्सांग के मैदानी इलाके में चीनी घुसपैठ के मसले को नहीं उठाया है। जबकि उत्तरी लद्दाख का यह इलाका सामरिक तौर पर किसी भी दूसरे इलाके से ज्यादा महत्वपूर्ण है। और पैंगांग त्सो झील के मुकाबले यहां चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण (एलएसी) रेखा के बहुत भीतर तक घुस आयी है।

सुरक्षा व्यवस्था से जुड़े तंत्र के एक हिस्से में इसको लेकर चिंता शुरू हो गयी है क्योंकि अगर देप्सांग पर भारत की चुप्पी बनी रहती है तो इसका मतलब है कि इस सामरकि रूप से बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र में एक नई यथास्थिति को पैदा करना जहां चीनी सैनिक पहले ही कारगर तरीके से वास्तविक नियंत्रण रेखा के 18 किमी पश्चिम भारतीय इलाके में घुस आए हैं। और अगर यह नई स्थिति बनती है तो यह दौलतबेग ओल्डी वायुसेना क्षेत्र के एक बड़े हिस्से तक भारत की पहुंच को रोक देगी। और इस तरह से चीनियों को दरबुक-श्योक-डीबीओ (डीएसडीबीओ) के सामरिक रोड के बिल्कुल नजदीक लाकर खड़ा कर देगी।

उत्तरी क्षेत्र के आर्मी कमांडर रहे लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) डीएस हूडा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि “देप्सांग रणनीतिक और सामरिक दोनों रूपों में हमारे लिए पैंगांग झील से ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह भारत की दौलत बेग ओल्डी वायुपट्टी और काराकोरम इलाके तक पहुंच के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। डीएसडीबीओ रोड केवल 6 किमी दूर है। एलएसी में किसी भी तरह की शफ्टिंग हमारे लिए बेहद हानिकारक होगी। ” 

उन्होंने कहा कि “एलएसी को और पश्चिम में धकेल देने के जरिये चीन सोचता है कि यह आगे पश्चिमी हाईवे को सुरक्षित कर रहा है जो उसके दो क्षेत्रों जिंजियांग और तिब्बत से जोड़ने का काम करता है।”

सेना के एक वरिष्ठ अफसर ने बतयाा कि देप्सांग को अभी इसलिए नहीं उठाया गया है क्योंकि वहां एलएसी पर स्थित दूसरे चार बिंदुओं की तरह सैनिकों के आमने-सामने खड़े होने और गतिरोध की स्थिति नहीं बनी है जहां डिसएनगेजमेंट की बातचीत चल रही है। अफसर ने बताया कि इस बात की पूरी संभावना है कि जब एलएसी से पीछे हटने की बात होगी तब देप्सांग के मसले को उठाया जाएगा।

सुरक्षा तंत्र का एक हिस्सा हालांकि इस बात को लेकर संतुष्ट है कि भारतीय पक्ष ने सामरिक महत्व का होने के बावजूद जान बूझकर देप्सांग मामले को नहीं उठाया क्योंकि वह चाहता है कि चीनी सेना पहले पैंगांग इलाके से वापस जाए। देप्सांग पर चुप्पी बनाए रखने के जरिये उसको उम्मीद है कि वह पैंगांग इलाके में चीनी पक्ष में यथास्थिति बनाए रखने की सोच को और मजबूत कर सकता है।

देप्सांग और पैंगांग दोनों में एलएसी को लेकर दोनों पक्षों के बीच विवाद है और यहां दोनों की सेनाएं इलाके की पेट्रोलिंग तनाव के बीच करती हैं। और जब से मौजूदा संकट पैदा हुआ है चीनियों ने भारतीय पेट्रोल्स को एलएसी तक जाने पर रोक लगा दी है। लेकिन पैंगांग त्सो इलाका देप्सांग के मुकाबले ज्यादा राष्ट्रीय चर्चे के केंद्र में रहता है। ऐसा अपनी बसाहट और झील के नजदीक होने के चलते होता है। पैंगांग एक लोकप्रिय और प्रमुख पर्यटन स्थल भी है जहां लेह से बेहद आसानी से पहुंचा जा सकता है। यही वजह है कि झील के पास चीनी घुसपैठ ने सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान आकर्षित किया।

एक खुफिया अधिकारी ने बताया कि भारत ने देप्सांग पर इसलिए चुप्पी साध रखी है क्योंकि इलाके को लेकर दोनों पक्षों के बीच सालों से विवाद है और वहां के संकट को हाल में पैदा हुए संकट के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। उसने दावा किया कि 2017 से ही भारतीय पेट्रोल इन इलाकों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।

हालांकि सेना के अफसर ने कहा कि यह सही बात नहीं है। और भारत देप्सांग इलाके में नियमित तौर पर अपनी पेट्रोलिंग की सीमाओं में पेट्रोल कर रहा है।

लेफ्टिनेंट जनरल (रि) हूडा ने सितंबर 2015 में एलएसी के भारतीय क्षेत्र में चीनियों द्वारा बनाए गए एक वॉच टावर का उदाहरण दिया। इसे सेना ने ध्वस्त कर दिया था बाद में चीनियों ने भी इस बात को स्वीकार किया कि यह भारतीय सीमा में था।

 बॉटिलनेक या फिर वाई जंक्शन वह स्थान जहां चीनी सेना ने भारतीय पेट्रोल को जाने से रोक दिया है, डीबीओ वायुसेना क्षेत्र से 30 किमी से भी कम है और सामरिक डीएसडीबीओ रोड पर स्थित बर्टस कस्बे से तकरीबन 7 किमी दूर है। चट्टानों के कटान से अपना नाम हासिल करने वाला बॉटिलनेक जिसने देप्सांग के मैदानी इलाके में गांड़ियों की आवाजाही पर रोक लगा दिया है, एलएसी से भारतीय सीमा में 18 किमी अंदर है।

भारतीय पेट्रोल को बॉटिलनेक पर रोक कर चीनी सैनिकों ने भारत की पहुंच को उसके पांच पेट्रोलिंग बिंदुओं तक रोक दिया है। इसमें पीपी-10, पीपी-11, पीपी-11A, पीपी-12 और पीपी-13 शामिल हैं। 

यह ठीक वही स्थान है जहां चीनी सैनिकों ने अप्रैल 2013 में घुसपैठ के बाद अपने टेंट लगाए थे। और यथास्थिति बनने से पहले यह गतिरोध तीन हफ्ते तक चला था।  

(इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित सुशांत सिंह की रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद।)

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