क्या कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ से लहराएगी हिंदू राष्ट्र की ध्वजा?

18-19 फरवरी, 2023 को कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में हिंदू राष्ट्र की मांग को लेकर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने पदयात्रा की घोषणा की है। उसके बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या भारत के मध्य भाग के इस राज्य से ही हिन्दू राष्ट्र का निर्माण कार्य होगा।

विहिप ने अपनी घोषणा मे यह भी कहा था कि राज्य के चारो कोनों से पदयात्रा निकालेगी और सात सौ किमी की दूरी तय करेगी। सूचना के अनुसार 18 फरवरी से प्रदेश के चार शक्तिपीठ महामाया, चंद्रहासिनी, दंतेश्वरी, बम्लेश्वरी के मंदिर से पदयात्रा शुरु होगी। यह यात्रा प्रदेश के सभी 33 जिलों से होकर गुजरेगी। इस आयोजन में देशभर से 500 से ज्यादा हिन्दू संत जुटेंगे।

देश में जब से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार केंद्र में बनी, तब से कई हल्कों में यह आशंका जताई जा रही है कि एक धर्मनिरपेक्ष और जनतांत्रिक इंडिया को हिन्दू भारत की ओर धकेल दिया जाएगा।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि “हिंदू स्वाभिमान जागरण संत पदयात्रा” नामक इस आयोजन का उद्देश्य न केवल सम्माज में सांप्रदायिक उन्माद पैदा करना है, बल्कि सामजिक सौहार्द को बिगाड़ना भी है। एक सेक्यूलर देश के आदिवासी बहुल प्रदेश में ऐसे आयोजनों से एक धर्म विशेष का प्रचार-प्रसार ही नहीं बल्कि एक लक्षित राजनितिक उद्देश्य की पूर्ति करना है। इसके अलावा यह यात्रा कानून व्यवस्था और संविधान के मूल आधारों पर ही आघात पंहुचाने वाली है। 

बघेल सरकार पर मंडराता खतरा 

इस वर्ष के अंत में छत्तीसगढ़ में चुनाव होना है। भाजपा सीधे तैयारी करने के बजाय दूसरे तरीके की तैयारी में लगी है, जो इस तरह के आयोजन अपने मातृ संगठन आरएसएस के जरिये करवा रही है।

छत्तीसगढ़ में चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस के खिलाफ एक व्यापक माहौल तैयार करना भी भाजपा के लिए जरूरी है। चार साल के कार्यकाल में जहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक तरफ छत्तीसगढ़िया पहचान को उभारा है, वहीं उन्होंने ओबीसी कार्ड को भी सही तरीके से इस्तेमाल किया है। ऐसे में बघेल को पार पाना भाजपा के लिए इतना आसान नहीं होगा। 

इन परिस्थितियों में राजनीतिक विशेषज्ञ की माने तो भाजपा के पास प्रदेश चुनाव के लिए कोई ठोस मुद्दा नहीं है। उसके बाद सिर्फ धर्मांतरण, डीलिस्टिंग और नक्सलवाद इत्यादि मुद्दे ही हैं। भाजपा के पास बुनियादी मुद्दों की कमी की वजह से विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में एक ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है, जिसके अनुसार कांग्रेस पार्टी को हिन्दू विरोधी के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। यही वजह है कि इस किस्म की गतिविधियां तेजी से बढ़ रहीं है।

प्रभावित जिलों के अधिकारियों के मुताबिक इस पूरे क्षेत्र में छल, बल या धन के माध्यम से धर्मांतरण का एक भी मामला सामने नहीं आया है। इसलिये इस साल के अंत में राज्य विधानसभा के चुनाव के कार्यक्रम को देखते हुए स्पष्ट रूप से ऐसी पदयात्राओं के पीछे एक सुनिश्चित राजनीतिक एजेंडा है। आशंका है कि इस पदयात्रा की आड़ मे नफरत और भड़काऊ भाषणों, झूठी सूचनाओं और अफवाहों और सांप्रदायिक प्रचार का उपयोग करके सांप्रदायिक तनाव को भड़काने की कोशिश की जा सकती है।

बघेल सरकार और आरएसएस का एजेंडा

सामाजिक कार्यकर्ता इस बात से सहमत नहीं है कि प्रदेश में भूपेश बघेल सरकार बनाम आरएसएस का कोई माहौल है। उनका मानना है कि हालात ठीक इसके उलट हैं। पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान के अनुसार छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ कांग्रेस की सरकार ने सरकारी बजट से राम वन गमन पथ का निर्माण कर दिया है और अब साधु-संत यहां अपने यात्रा के ज़रिए प्रदेश की जनता को विराट हिन्दू राष्ट्र और त्रेता युग का अहसास कराएंगे।

छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के साथ ही प्रदेश मे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ा है। साल 2018 में राज्य में कांग्रेस की सरकार आई और दक्षिणपंथी सांप्रदायिक संगठन और अधिक सक्रिय हो गए। ईसाई अल्पसंख्यकों, विशेषकर आदिवासी इसाईयों के खिलाफ लगातार अधिक सक्रिय हुए हैं और प्रदेश की कांग्रेस सरकार का इन पर कोई कार्यवाही नहीं करना इस अंदेशा को सही ठहरता हुआ नजर आता है।

प्रदेश में ईसाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ साल 2022 मे हिंसा और प्रताड़ना की 150 से अधिक घटनाएं हुई हैं, जो कि प्रदेश के सेक्यूलर स्वभाव को बनाए रखने के लिए गंभीर चुनौती है।

नवगठित छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन काउन्सल के संयोजक अखिलेश एडगर के अनुसार बीते नवंबर और दिसंबर के महीनों में नारायणपुर, कोंडागांव और कांकेर जिलों में आदिवासी इसाईयों के खिलाफ हिंसा, प्रताड़ना और सामाजिक बहिष्कार की 60 से अधिक घटनाएं हुई हैं।

बीते दिसंबर माह में नारायणपुर जिले के लगभग 2000 प्रभावित आदिवासी इसाईयों को जबरन अपने गांव से भागने के लिए मजबूर किया गया। इन सारे घटनाओं मे कोई ठोस कार्यवाही पुलिस प्रशासन की ओर से नहीं की गई। 

बताते चलें कि बीते साल 2022 में 17 मार्च को छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के मद्देड थाना क्षेत्र के अंगमपल्ली गांव के रहने वाले पास्टर यालम शंकर की धारदार हथियार और गोली मारकर बेरहमी से हत्या कर दी गई थी, जिनके हत्यारों को आज तक पुलिस नहीं पकड़ पाई।

इस हत्या को नक्सलियों द्वारा अंजाम दिया गया मानकर पुलिस ने इसे ठंडे बस्ते मे डाल दिया है। 50 वर्ष के शंकर की हत्या तब हुई थी जब 17 मार्च की शाम लगभग 7 बजे सारा गांव होलिका दहन कर रहा था, तभी 6 नकाबपोश व्यक्तियों के अज्ञात गिरोह ने उन्हें मार दिया। धटना बीजापुर जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर मद्देड थाना क्षेत्र में घटी है।

कांग्रेस-भाजपा के गठजोड़ में नफरत और घृणा का प्रयोगशाला बनता छत्तीसगढ़ 

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार राज्य की बघेल सरकार आरएसएस के हिन्दू राष्ट्र के सपने को खुद ही छत्तीसगढ़ में लागू कर रहे हैं। इस तरह प्रदेश एक ऐसा प्रयोगशाल बन गया है जहां एक तरफ हिन्दू राष्ट्र का भगवा झण्डा लहराया जा रहा है, तो दूसरी ओर घर वापसी कर आदिवासी इसाईयों को वापस हिन्दू बनाया जा रहा है या फिर उनके खिलाफ डीलिस्टिंग का आंदोलन चलाया जा रहा है।

वास्तव में यह सारा मामला संविधान विरोधी आर्थत देश द्रोह का है, पर इनमें से किसी पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। बात बिल्कुल साफ है कि सेक्यूलर कहे जाने वाले कांग्रेस के राज्य में सांप्रदायिकता में महारत हासिल कर चुके भाजपा के हिन्दू राष्ट्र का एजेन्ड पूरा होता नजर आ रहा है।

आदिवासी बाहुल्य प्रान्त को साम्प्रदायिक उन्माद का प्रयोगशाला बनाया जाना बहुत बड़ी चिंता का कारण है, जिसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों हिस्सेदार हैं। यह साफ है कि जब-जब समाज में जातिवादी और पितृसत्तात्मक ताक़तों का प्रभाव कमजोर होता जाता है, तब-तब जनमानस को धार्मिक उन्माद की अफीम पिलाने और इस तरह के आडंबरी कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। इस यात्रा का मकसद विशेष राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था तथा उसे बनाए रखने के आस-पास केंद्रित है।

सीपीआई (एमएल) के प्रदेश सचिव विजेंद्र तिवारी कहते हैं कि यह मामला संविधान विरोधी है। हां वैसे यह सही भी लग रहा है कि ये सारे लोग डॉ. अंबेडकर के नेतृत्व में निर्मित संविधान को नहीं मानते।

भारत एक जनतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां न्याय, स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व, पारस्परिकता, सहिष्णुता, विविधता, गरिमा आदि  मूल्य भारतीय संविधान में गहराई से निहित हैं।

आरएसएस-विहिप-भाजपा अब विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संघ बनाने और सभा करने के संवैधानिक अधिकार की आड़ में नफरत, घृणा, अफवाह, सांप्रदायिकता और हिंसा को उकसाने का अपराध कर रहे हैं। बघेल सरकार राज्य में ऐसे सभी तत्वों को सजा न देकर और खुली छूट देकर या किसी तरह का रोक-टोक नहीं कर छत्तीसगढ़ को पूरी तरह नफरत और घृणा के प्रयोग के लिए छोड़ दिया है।

आरएसएस के ध्वजवाहक

लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और विशेषकर उसके वर्तमान प्रमुख और सरसंघचालक मोहन भागवत बार बार कहते आ रहे हैं कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और इस पर कोई बहस नहीं हो सकती। वैसे हिंदू राष्ट्र बनाने की कानूनी, सामाजिक पेचीदिगियां तो एक तरफ़ हैं ही, इस मांग को आगे बढ़ाने में हिंदुत्ववादी संगठनों और नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका भी रही है।

कई सूत्रों और रिपोर्टों के मुताबिक इन संगठनों की संख्या पिछले सालों में बढ़ी है। लेकिन कितनी बढ़ी है, इस बारे में कोई ठोस आंकड़ा अब तक उपलब्ध नहीं है। 

2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से भारतीय समाज के सभी क्षेत्रों में इस एजेंडे को आक्रामक रूप से लागू किया जा रहा है। इस मामले को लेकर कई दशकों से आरएसएस, भाजपा, विहिप, इत्यादि घटक संगठन काफी सक्रिय हैं।

अगस्त 2022 में गोवा में हुए अखिल भारतीय हिंदू राष्ट्र अधिवेशन के आयोजक हिंदू जनजागृति समिति के बयान के अनुसार भारत में साल 2025 तक हिंदू राष्ट्र की स्थापना हो जाएगी। याद दिलाते चलें कि साल 2025 में आरएसएस की स्थापना के 100 साल पूरे हो जाएंगे। इस अवसर के लिए ही यह सारा खेल चल रहा है।

बीबीसी कि एक रिपोर्ट के अनुसार इन गुटों की कोशिश रहती है कि वो अपनी नियमित गतिविधियों, विवादित और सांप्रदायिक भाषणों से आम हिंदुओं के बीच ख़ुद को प्रासंगिक बनाए रखें।

उन्हें पता है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया चैनलों का इस्तेमाल कैसे किया जाए और मीडिया में कैसे प्राइम टाइम पर पकड़ बनाई जाए। कई हलकों में इन्हें ‘फ़्रिंज एलेमेन्ट’ और ‘शैडो आर्मी’ कहा जाता है, जिनके असर सीमित हैं। लेकिन एक दूसरी सोच ये है कि ये गुट फ्रिंज यानी हाशिए पर नहीं बल्कि मुख्यधारा में हैं।  

(डॉ. गोल्डी एम जॉर्ज लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

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