रानी गार्डेन की महिलाओं ने दी सुप्रीम कोर्ट के सामने दस्तक, मार्च के बाद धरने पर बैठीं

नई दिल्ली। महिलाओं का एक जत्था न्याय की गुहार लगाता हुआ रात में रानी गार्डेन से सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। और वहां जाकर धरने पर बैठ गया है। इसमें शामिल महिलाओं ने अपने हाथों में अपने प्ले कार्ड ले रखा है और उसमें सीएए के खिलाफ तरह-तरह के नारे लिखे हुए हैं। बताया जा रहा है कि ये महिलाएं रानी गार्डेन की हैं। और उन्होंने रात में ही एकाएक सुप्रीम कोर्ट की तरफ मार्च करने का फैसला किया।

दरअसल तकरीबन 38 दिनों तक लगातार धरने के बाद भी न तो सरकार की तरफ से कोई पहल हुई और न ही केंद्रीय प्रशासन से जुड़े किसी जिम्मेदार शख्स ने उनसे मुलाकात करने की कोशिश की। लिहाजा थक हार कर प्रदर्शनकारियों ने देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था के आगे गुहार लगाने का फैसला किया। इसी कड़ी में रात में ही महिलाओं ने रानी गार्डेन से सुप्रीम कोर्ट के लिए पैदल मार्च कर दिया। इस मार्च में सैकड़ों की तादाद में महिलाएं शामिल थीं।

आधी रात को जब राजधानी दिल्ली की सड़कें शांत और वीरान थीं तब महिलाओं का यह समूह अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए उन पर मार्च कर रहा था। ठंड और गलन की इस रात में जब कोई घर से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं कर रहा है तब महिलाओं ने यह पहल कर अपने फौलादी इरादों का परिचय दे दिया है। उनके साथ बच्चों की भी एक तादाद थी जिसके जरिये वह शायद सुप्रीम कोर्ट के जजों को यह बताना चाहती हों कि यह मामला कितना अहम है और इस लिहाज से इस पर सुनवाई भी उतनी ही जरूरी हो जाती है।

सुप्रीम कोर्ट के सामने पहुंचने के बाद इन महिलाओं ने वहां धरना शुरू कर दिया है।दरअसल अभी तक सीएए के मामले में सुप्रीम कोर्ट का रवैया बेहद अचरज भरा रहा है। चीफ जस्टिस एसए बोबडे के इस पर दो बयान आए हैं दोनों ही किसी भी रूप में आंदोलनकारियों को आश्वस्त करते नहीं दिखते। पहले में उन्होंने कहा था कि पहले आंदोलनकारी दंगा खत्म करें उसके बाद मामले की सुनवाई होगी। जबकि दूसरे बयान में उन्होंने अधिकारों से ज्यादा नागरिकों के कर्तव्यों पर जोर दिया था।

आपको बता दें कि सीएए के खिलाफ सैकड़ों याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित पड़ी हैं लेकिन कोर्ट उनकी सुनवाई के लिए तैयार नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि संविधान के रक्षक के तौर पर देखा जाए या फिर लोगों के न्याय हासिल करने के स्वाभाविक अधिकार के तौर पर तो सुप्रीम कोर्ट ही वह संस्था है जो इसकी गारंटी कर सकती है। लेकिन आंदोलन को महीनो बीत गए हैं और अब जबकि पूरा देश सीएए के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है।

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