विश्व खाद्य दिवस 2022: भूख के मेले में सुपरफ़ूड की चमकती दुकानें

भौतिक देह को अंतिम सत्य मानने वाला चार्वाक दर्शन कहता है: परान्नं प्राप्य दुर्बुद्धे! मा प्राणेषु दयां कुरु, परान्नं दुर्लभं लोके प्राण: जन्मनि जन्मनि।। इसका अर्थ है कि शरीर तो बार-बार जन्म लेगा, उस पर दया करना मूर्खता है। दूसरों का अन्न दुर्लभ है और उसे पाने का अवसर नहीं चूकना चाहिए। लोकायत दार्शनिकों ने ऋण लेकर भी घी पीने की हिदायत दी थी, क्योंकि क्षणभंगुर जीवन में घी पीने से बड़ा सुख और कोई नहीं। आज के आहार विशेषज्ञ और दूध से दूर भागने वाले वीगन जो चाहे कह लें।

पेड़-पौधों समेत कोई भी प्रजाति सही भोजन के बिना नहीं जी सकती। पर सामाजिक अन्याय और भेदभाव की आग में जलती हुई अन्यायपूर्ण, प्रेमविहीन, विराट बस्ती है हमारी दुनिया, जहाँ एक तरफ अगिनत लोगों के लिए मुट्टी भर चना भी उपलब्ध नहीं और दूसरी ओर धनलोलुप बाजार को आकर्षक पैकिंग में सुपर फ़ूड बेचने से फुर्सत नहीं। वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम को वर्ष 2020 का नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। खाद्य सुरक्षा का प्रश्न के महत्व को यह दर्शाता है। दुनिया में खाऊपन के कारण मरे जा रहे पेटू भी हैं, और साथ ही में दो रोटी को तरसते करोड़ों लोग भी।

विश्व खाद्य कार्यक्रम धरती से भूख खत्म करने के लिए काम करता है। 2015 में उसने 88 देशों में करीब दस करोड़ लोगों की मदद की जो कि भूख और खाद्य असुरक्षा के शिकार थे। इसके प्रयासों के बावजूद भूखों की संख्या 2019 में बढ़ कर तेरह करोड़ पचास लाख हो गई। ज़्यादातर भूखे लोग उन देशों में रहते हैं जहाँ युद्ध और सशत्र संघर्ष होते रहते हैं। कुटिल राजनीति, युद्ध की क्रूरता, वैचारिक असंवेदनशीलता पहले युद्ध के हालात बनाती है, पीड़ितों को भुखमरी तक पंहुचाती है और उसके बाद भूखों के लिए काम करने वालों के लिए नोबेल पुरस्कार का ऐलान करती है! यह हमारा ही रचा हुआ जाल है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन के स्थापना दिवस को विश्व खाद्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। भुखमरी, कुपोषण और मोटापे की मौजूदा समस्या के प्रति लोगों को यह जागरूक करता है। यह भूखों की मदद करता है। दुनिया एक साथ प्रचुरता और अभाव दोनों की समस्याओं से जूझ रही है। दो अरब लोगों के पास पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं, और एक अरब से ज्यादा लोग ज्यादा खाकर बीमार पड़ते हैं या जंक फ़ूड खा-खाकर मर जाते हैं। अपने पर्यावरणीय, आर्थिक, सामाजिक-सांस्कृतिक आयामों के साथ भोजन हमारे समय के सबसे गंभीर मुद्दों में से है। कोविड काल में यह और भी स्पष्ट हो गया है।

ऑक्सफैम की जुलाई 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक यदि तुरंत कोई उपाय नहीं किए गए तो भुखमरी वायरस की तुलना में ज्यादा लोगों की जानें लेगी। रिपोर्ट बताती है: “वैश्विक महामारी करोड़ों लोगों के लिए ताबूत की आखिरी कील साबित होगी। ऐसे ही लोग क्लाइमेट परिवर्तन, असमानता और एक विखंडित खाद्य प्रणाली से जूझ रहे हैं”। गौर करें कि भूख का कारण अन्न का अभाव नहीं, अन्याय है।

गौरतलब है कि सेहत के लिए उपयोगी कहे जाने वाले आहार को अब कई तरह से परिभाषित किया जा रहा है। प्राकृतिक भोजन, जड़ी-बूटियाँ, खनिज, विटामिन की दवाइयां, सप्लीमेंट और अब सुपरफ़ूड के रूप में उनका नवीनतम चेहरा हमारे सामने है। इस नामकरण का कोई कानून या वैज्ञानिक आधार नहीं है। अलग अलग संस्कृतियों में भोजन का अर्थ भी अलग है। वुहान के वेट मार्केट में बिकने वाला भोजन हमारे यहाँ खाने की चीज़ ही नहीं, और इसी तरह उत्तर प्रदेश और बिहार में रोज़ खाया जाने वाला भोजन नगालैंड और मेघालय में विचित्र समझा जायेगा। वीगन के लिए दूध और उससे बनी चीज़ें वही हैं जो शाकाहारी के लिए मांस है। पर इन सभी विरोधाभासी बातों के बीच यहाँ यही समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे सुपर फ़ूड के नाम पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है।

बेंगलुरु में रहने वाले पोषण एवं आहार विशेषज्ञ संजीव शर्मा मानते हैं कि सुपर फ़ूड इन दिनों एक तरह का अन्धविश्वास बने हुए हैं। जब तक आप किसी बीमारी की जड़ पर काम नहीं करते, तब तक उसके ख़त्म होने की संभावना बहुत कम होती है। सुपर फ़ूड को ऐसे भोजन के रूप में विज्ञापित किया जाता है मानों उससे मोटापा, खनिज वगैरह की कमी, रक्तचाप, थायरॉइड, मधुमेह जैसी बीमारियाँ रफूचक्कर हो जाएंगी। संजीव बताते हैं कि ‘बाजार की कृपा’ से लहसुन से लेकर सिरका, किनोआ, हल्दी, मेथी और ऑलिव आयल, अलसी, तरबूज, खरबूज के बीज और नारियल तेल, सभी सुपर फ़ूड की श्रेणी में आ गए हैं। इसके अलावा फ़ूड सप्लीमेंट भी हैं। वह कहते हैं कि यह जानने के लिए हमें विशेषज्ञ बनने की दरकार नहीं कि जब तक कारण मौजूद रहेगा, उसका असर भी देह पर आएगा ही। नींबू से कोई पतला होने से रहा, और मेथी दाने से मधुमेह जाने से रहा। सेहत के लिए जीवन शैली में बड़ा बदलाव लाना जरूरी है, न कि सुपर फ़ूड खाना।

सुपर फ़ूड के विज्ञापन आम जनता को बुरी तरह गुमराह कर रहे हैं। साधारण से दिखने वाले कुट्टू का आटा जिसका उपयोग लोग व्रत में करते हैं, अब बकवीट के अंग्रेजी नाम से सुपर फ़ूड में तब्दील हो गया है। जई जो कि सबसे पुराना अनाज है, ओट के अवतार में स्टेटस का प्रतीक बन गया है। कभी आम आदमी की थाली से हल्दी, लहसुन जैसी चीज़ें गायब होकर अचानक सुपर फ़ूड बन कर ग्राहकों के बीच मारामारी का कारण बन जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए! कइयों को गेंहूँ के ग्लूटेन से एलर्जी है। गेंहू की ज़्यादातर किस्में ख़त्म हो चुकी हैं और दस हज़ार साल पहले उगाया गया यह अनाज पिछले कुछ वर्षों से एक ख़ास वर्ग के लिए त्याज्य अनाज बन चुका है। कई रसोइघरों में गेंहू के दर्द का फायदा उठाते हुए तेजी से बाजरा, रागी, जौ, जई और चना तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं। कई तरह के अनाज से बनने वाली मल्टी ग्रेन रोटी खाने वाले गर्व के साथ चलते हैं, क्योंकि आहार के मामले में यह उनकी बोधिप्राप्त दशा को दर्शाती है। नवउदारवाद की भाषा कारोबार और विज्ञापन की भाषा है और सुन्दरता बढाने के अपने नारों से वह स्त्रियों को लुभाने की कोशिश करता है।

सुपर फ़ूड को लेकर फैले भ्रम की वजह से कुछ संगठनों ने कानून बनाने की मांग की है। गौरतलब है कि किसी भी ‘सुपर फ़ूड’ का इस्तेमाल एक चिकित्सकीय औषधि की तरह नहीं किया जाना चाहिए। कई सुपर फ़ूड में ये दावे भी किये जाते हैं कि वे कैंसर के लिए भी एक बढ़िया इलाज हैं! मार्केटिंग की दुनिया में सुपर फ़ूड का सीधा अर्थ है ऐसा भोजन जिसकी सुपर बिक्री होती हो। नीलसन के एक सर्वे के मुताबिक यदि लोगों को भरोसा हो जाए कि कोई ख़ास भोजन स्वास्थ्य के लिए अच्छा है तो वे उसकी ज्यादा कीमत देने के लिए तुरंत तैयार हो जाते हैं। दुनिया में सबसे अधिक बिकने वाले सुपर फ़ूड में इन दिनों मटर, अदरख, हल्दी, जई, जौ और काबुली चना शामिल है।

सुपर फ़ूड के दीवानों को यह समझने की जरूरत है कि शरीर को सिर्फ एक तरह के बीज, रेशे और ख़ास तरह के एक ही अनाज की नहीं बल्कि कई तरह के खनिज, सूक्ष्म खनिज और विटामिन की भी दरकार है।सुपर फ़ूड के दीवाने नारियल के तेल को लेकर मानते हैं कि अल्झाइमर रोग, मधुमेह और थाइरॉइड को ठीक करने में यह कारगर है। यह वजन कम करने में भी सहायक है जबकि पोषण विशेषज्ञ इसे अन्य किसी भी अन्य तेल की श्रेणी में रखते हैं।

संजीव यह भी कहते हैं कि बेहतर यही है कि हम अलग अलग रंग के फल और सब्जियां खाएं क्योंकि उनमे से हरेक में ख़ास खनिज और विटामिन होते हैं। इन्द्रधनुषी भोजन लेने की वह सलाह देते हैं। एक ही तरह का भोजन अक्सर पोषण संबंधी परेशानियाँ पैदा करता है। उनके अनुसार यदि आप सलाद खाते हैं, तो कोशिश करें कि उनमे इन्द्रधनुष के सभी रंग हों। डिब्बाबंद सब्जियां और फल से दूर रहने की सलाह है, क्योंकि उनमें नमक या चीनी की मात्रा अधिक हो सकती है। आहार विशेषज्ञ बिना पोषण की खाली कैलरी लेने के खिलाफ हैं। उदहारण के लिए कोक या कोई और कोल्ड ड्रिंक में न ही खनिज होता है, न विटामिन और न ही रेशे या फाइबर। इसे एम्प्टी कैलरी या डर्टी कैलरी कहा जाता है क्योंकि यह सिर्फ वज़न बढाता है।

भोजन के प्रति जागरूकता बहुत छोटी उम्र से ही जरूरी है। आम तौर पर दाल, रोटी,सब्जी और चावल का भारतीय भोजन बहुत ही पोषक और उम्दा होता है। प्रोटीन की कमी को तरह तरह के बीजों और सूखे मेवे से या फिर चने और दालों से पूरा किया जा सकता है। अंडे भी प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं और अब जर्दी भी कोलेस्ट्रॉल बढाने वाली नहीं मानी जाती, जैसा कि पहले माना जाता था। आहार के संबंध में स्कूलों में ही जानकारी दी जानी चाहिए चाहिए, क्योंकि शारीरिक सेहत के अलावा यह मन की सेहत भी बनता बिगाड़ता है। इसे लेकर शिक्षकों, अभिभावकों सभी को सामान रूप से सजग रहने की जरूरत है।
(चैतन्य नागर वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)

चैतन्य नागर
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