योगी बने मजदूरों के नये सौदागर, कहा-रोजगार देने के लिए दूसरे राज्यों को लेनी होगी यूपी सरकार की इजाजत

नई दिल्ली। यूपी की योगी सरकार अब राजे और रजवाड़ों से भी आगे बढ़ गयी है। बसुधैव कुटुंबकम की सांस्कृतिक परंपरा के कथित वारिस जो राष्ट्रवाद का भजन करते नहीं थकते उनकी असलियत अब सामने आ गयी है। योगी के लिए यूपी अब भारत का हिस्सा नहीं बल्कि वह जंबो द्वीप हो गया है जिस पर वह शासन कर रहे हैं। उन्होंने फरमान जारी किया है कि किसी दूसरे सूबे को यूपी के लोगों को नौकरी देने से पहले उनकी इजाजत लेनी होगी। अब कोई पूछ सकता है कि क्या यूपी के नागरिक योगी के बंधुआ मजदूर हैं या फिर दास जो उनके ही इशारे पर अपना श्रम बेंचने के लिए तैयार होंगे। इस तरह से योगी यूपी के मजदूरों के नये सौदागर हैं। और सूबा किसी 21वीं सदी नहीं बल्कि यूरोप के दास प्रथा के दौर में पहुंच गया है। वैसे भी योगी मोदी को यूरोप-अमेरिका से विशेष प्यार है।

हालांकि योगी सरकार ने यह फरमान मजदूरों की सुरक्षा के नाम पर जारी किया है। कल पत्रकारों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बातचीत में उन्होंने कहा कि “अगर कोई राज्य मानव श्रम चाहता है तो राज्य सरकार द्वारा उसको सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने के साथ ही कामगारों के इंश्योरेंस की गारंटी करनी होगी। बगैर हमारी इजाजत के वो हमारे लोगों को ले जाने में सफल नहीं होंगे….ऐसा कुछ राज्यों द्वारा किए जा रहे व्यवहार के चलते किया जा रहा है। ”  

उन्होंने कहा कि लौटे सभी प्रवासी मजदूरों की स्किल की माप हो रही है और उनका रजिस्ट्रेशन किया जा रहा है। और अगर कोई स्टेट उनको हायर करना चाहता है तो उसे उनके सामाजिक, कानूनी और वित्तीय अधिकारों को ध्यान में रखना होगा।

इसके साथ ही उन्होंने प्रवासी आयोग के गठन की बात कही। जो मजदूरों से जुड़े विभिन्न पक्षों का ख्याल रखेगा और इस बात को सुनिश्चित करेगा कि उनका शोषण न होने पाए।

नई दिल्ली आधारित एक थिंक टैंक के सीनियर फेलो प्रोफेसर अमिताभ कुंडू ने कहा कि दूसरे राज्यों के मजदूरों को रोजगार देने के लिए अनुमति हासिल करने के रास्ते में संविधान और कानूनी रोड़ा बन सकते हैं। देश का संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है। देश का कोई भी व्यक्ति रोजगार करने के लिए स्वतंत्र है। वह कहीं भी और किसी भी तरह का रोजगार कर सकता है। 

उन्होंने बताया कि “अनुच्छेद 19 (1)(D) लोगों को कहीं भी आने जाने की स्वतंत्रता देता है और 19 (1)(E) देश के किसी भी राज्य में बसने की आजादी देता है……इसलिए अनुमति की जरूरत को कानूनी तौर पर चुनौती दी जा सकती है।“

उन्होंने कहा कि यूपी के पास यह क्षमता नहीं है कि बाहर से आए अपने ही मजदूरों को रोजगार दे सके। क्योंकि यहां आबादी की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। और उसके हिसाब से न तो उद्योग हैं और ही कोई दूसरा रोजगार का क्षेत्र और साधन विकसित किया जा सका है।

दिलचस्प बात यह है कि मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा, इंश्योरेंस और तमाम अधिकारों की बात वह सरकार कह रही है जिसने अभी एक हफ्ते पहले ही मजदूरों के सारे अधिकारों को छह महीने के लिए स्थगित किया है। और सभी श्रम कानूनों पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही उसने काम के घंटों को भी 8 से 12 कर दिया था। हालांकि बाद में हाईकोर्ट में वर्कर्स फ्रंट के याचिका दायर करने और चौतरफा दबाव के बाद उसे अपना यह फैसला वापस लेना पड़ा। लेकिन इससे सरकार की नीयत का अंदाजा जरूर लग गया है। दरअसल सरकार अपने पूंजीपतियों और सामंतों को सस्ते दर पर श्रम मुहैया कराने के लिए यह सब नौटंकी कर रही है जिसमें किसी अधिकार की बात तो दूर बंधुआ मजदूर और दास बनने की आशंका ज्यादा है।

वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने कहा है कि प्रदेश के मजदूरों को दूसरे राज्यों में काम पर ले जाने से पहले सरकार से अनुमति लेने का मुख्यमंत्री का फरमान संविधान के विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश का कामगार (सेवायोजन एवं रोजगार) कल्याण आयोग भी हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ द्वारा केन्द्र व राज्य सरकार से प्रवासी मजदूरों को दिए जाने वाले लाभ की सूचना शपथपत्र पर देने की पृष्ठभूमि में बनाया गया है। जिससे सरकार हाईकोर्ट में बच सके।

(हिंदुस्तान टाइम्स से कुछ इनपुट लिए गए हैं।) 

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