सुप्रीमकोर्ट ने ज़ुबैर को दी अंतरिम जमानत लेकिन अभी जेल में ही रहेंगे, एंकर रोहित को भी राहत

उच्चतम न्यायालय एक ओर जहाँ शुक्रवार को ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक और पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर को एक मामले में 5 दिनों के लिए सशर्त अंतरिम जमानत दी दे दी,वहीं दूसरी ओर उसने शुक्रवार को ही ज़ी न्यूज़ के एंकर रोहित रंजन को राहुल गांधी के भाषण के कथित छेड़छाड़ वाले वीडियो को लेकर उनके खिलाफ दर्ज कई एफाईआर के खिलाफ अंतरिम सुरक्षा प्रदान की। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की अवकाश पीठ ने एक अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें प्रतिवादी अधिकारियों को 1 जुलाई, 2022 को डीएनए शो के प्रसारण के संबंध में रंजन को हिरासत में लेने के कठोर कदम उठाने से रोक दिया गया।

इधर अंतरिम जमानत मिलने के बाद भी ज़ुबैर जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे। क्योंकि दिल्ली पुलिस की ओर से दर्ज मामले में उन्हें अभी जमानत नहीं मिली है।अंतरिम जमानत के साथ यह शर्त लगाई गई है कि जु़बैर दिल्ली से बाहर नहीं जाएंगे और कोई ट्वीट नहीं करेंगे। इस मामले में पांच दिन बाद फिर सुनवाई होगी। यह मामला ज़ुबैर के खिलाफ उत्तर प्रदेश के सीतापुर में दर्ज हुई एफआईआर का है।

 जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जेके माहेश्वरी की पीठ ने जुबैर मामले की सुनवाई की। अदालत ने यह शर्त भी लगाई है कि याचिकाकर्ता बेंगलुरु में या किसी अन्य जगह पर इलेक्ट्रॉनिक सुबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेंगे। जस्टिस बनर्जी ने आदेश में कहा है कि उन्होंने जांच पर कोई रोक नहीं लगाई है। इस मामले में ज़ुबैर के वकील कोलिन गोंजाल्विस ने ज़ुबैर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोलिन गोंजाल्विस ने याचिका में कहा था कि ज़ुबैर को मौत की धमकियां मिल रही हैं।

सुनवाई के दौरान कोलिन गोंजाल्विस ने अपनी दलील रखते हुए अदालत से कहा कि ऐसे लोगों को देखिए जिन्होंने नफरत फैलाने वाले भाषण दिए हैं, उन्हें रिहा किया जा चुका है जबकि उनका मुवक्किल जेल में है। गोंजाल्विस का मतलब यति नरसिंहानंद सरस्वती, बजरंग मुनि और स्वामी आनंद स्वरूप से था। ज़ुबैर ने अपने ट्वीट में इन तीनों लोगों को नफरत फैलाने वाला करार दिया था।

गोंजाल्विस ने कहा कि इन तीनों ही लोगों को पुलिस ने नफरती भाषण देने के चलते गिरफ्तार किया था और बाद में जमानत पर रिहा कर दिया। सीनियर एडवोकेट गोंजाल्विस ने कहा कि ज़ुबैर ने जब उनको नफरत फैलाने वाला कहा तो उन्हें ग़लत ठहरा दिया गया। उन्होंने सवाल उठाया कि पुलिस को उनके मुवक्किल के फोन की जांच करने की आखिर क्या जरूरत है।

गोंजाल्विस ने इस बात को जोर देकर कहा कि जिन लोगों ने नफरत फैलाने वाले भाषण दिए उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया है और जिसने उन्हें एक्सपोज किया वह शख्स जेल में है, यह देश क्या बन गया है। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल के खिलाफ लगी धारा 295 ए के तहत किसी धर्म का अपमान करना अपराध है। अगर उनके मुवक्किल ने धर्म का अपमान किया होता तो वह उनका बचाव नहीं करते। उन्होंने पूछा कि यहां धर्म का अपमान कहां हुआ है। इसके अलावा उनके मुवक्किल के खिलाफ आईटी एक्ट की धारा 67 लगायी गयी है और इस धारा का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।

उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक हैं और यह संस्थान देश में नफरत फैलाने वाले भाषणों पर नजर रखता है और इस संस्थान के लिए इस साल के नोबेल पुरस्कार की सिफारिश की गई है।गोंजाल्विस ने यह भी कहा कि उनके मुवक्किल की जान खतरे में है और कई लोग पुलिस को ज़ुबैर का उत्पीड़न करने की सलाह दे रहे हैं और इसीलिए वह अदालत में पहुंचे हैं। उन्होंने ज़ुबैर को सीधे गोली मारे जाने के कुछ बयानों और इसके लिए इनाम दिए जाने का भी जिक्र अदालत में किया। उन्होंने इस दौरान हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को भी सामने रखा।

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह एक ट्वीट का मामला नहीं है और क्या ज़ुबैर उस सिंडिकेट का हिस्सा हैं, जिसकी ओर से देश को अस्थिर करने के इरादे से लगातार इस तरह के ट्वीट किए जा रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कई तथ्यों को छुपाया गया है। मोहम्मद ज़ुबैर का कहना है कि वह फैक्ट चेकिंग वेबसाइट चलाते हैं, दिल्ली की अदालत ने उन्हें रिमांड पर लिया है और इसमें पैसे का भी एंगल है कि क्या भारत के विरोधी देशों से उन्हें चंदा मिला है। उन्होंने कहा कि इसकी भी जांच की जा रही है।

सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल मिस्टर राजू ने कहा कि मोहम्मद ज़ुबैर ने बजरंग मुनि के समर्थकों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है और क्या ऐसा जानबूझकर किया गया है, यह जांच का विषय है। एएसजी ने कहा कि किसी धार्मिक नेता को नफरत फैलाने वाला शख्स बताना दो समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ाने की कोशिश है और मोहम्मद ज़ुबैर को इस बारे में पुलिस को पत्र लिखना चाहिए था उन्होंने ट्वीट क्यों किया।

सीतापुर में ज़ुबैर के खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने का मुकदमा दर्ज किया गया था। मुकदमे में आरोप लगाया गया था कि मोहम्मद ज़ुबैर ने 3 लोगों- महंत बजरंग मुनि, यति नरसिंहानंद सरस्वती और स्वामी आनंद स्वरूप को नफरत फैलाने वाला करार दिया था। इस मामले में 27 मई को भगवान शरण नाम के शख्स की ओर से मोहम्मद ज़ुबैर के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई थी। स्थानीय अदालत ने इस मामले में ज़ुबैर को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। मोहम्मद  जुबैर ने एक ट्वीट किया था ,जिसमें उन्होंने कथित तौर पर 3 हिंदू संतों- यति नरसिंहानंद सरस्वती, बजरंग मुनि को हेट मोंगर्स यानी नफरत फैलाने वाला कहा था। इसके खिलाफ यूपी पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया था। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया था। इसी के खिलाफ जुबैर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था ।

उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 295-ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य, जिसका उद्देश्य किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को उसके धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करना) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करना) के तहत एफआईआर दर्ज की थी।

उधर एंकर रोहित रंजन की याचिका में कहा गया था कि कथित वीडियो एएनआई नामक एक तीसरे पक्ष की एजेंसी से प्राप्त हुआ था और यह महसूस करने पर कि शो की सामग्री में कुछ तथ्यात्मक गलतियां और अनजाने में त्रुटि थी, ज़ी न्यूज़ ने तुरंत समाचार हटा दिया और इसके प्रसारण के लिए माफी मांगी। इसे तुरंत ही सभी सोशल मीडिया पोस्ट से भी हटा दिया गया।

रंजन की ओर से सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने दलील दिया कि चूंकि एक ही अपराध के लिए कई एफआईआर दर्ज की गई हैं, टीटी एंटनी मामला लागू होगा, जिसमें कहा गया था कि एक ही संज्ञेय अपराध या एक या एक से अधिक संज्ञेय अपराधों को जन्म देने वाली एक ही घटना या घटना के संबंध में कोई दूसरी एफआईआर नहीं हो सकती है और परिणामस्वरूप बाद में दर्ज की गई प्रत्येक एफआईआर पर कोई नई जांच नहीं हो सकती।

ज़ी न्यूज़ के एंकर ने याचिका में आगे तर्क दिया कि उन्होंने उक्त शो में त्रुटियों के लिए माफ़ी मांगी और अपने प्राइम टाइम शो, डीएनए के साथ-साथ अपने ट्विटर हैंडल पर भी अत्यंत खेद व्यक्त किया, लेकिन बाद में उनके खिलाफ विभिन्न एफआईआर/शिकायतें दर्ज की गईं। याचिका में यह तर्क दिया गया कि कार्रवाई के एक ही कारण से उत्पन्न होने वाली कई एफआईआर कानून के तहत स्वीकार्य नहीं हैं और यह मुद्दा प्रसारक के खिलाफ केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 और प्रोग्रामिंग नियमों की धारा 16 और 17 के प्रावधानों के तहत कवर किया गया।

याचिका में कहा गया कि जब प्रश्नगत मुद्दों से निपटने के लिए विशेष कानून है तो आपराधिक क़ानून लागू करने या एफआईआर दर्ज करने का कोई सवाल ही नहीं था। तदनुसार यह प्रस्तुत किया गया कि विभिन्न राज्यों में कई एफआईआर और कई और शिकायतें दर्ज की जा रही हैं। याचिकाकर्ता और समाचार चैनल को अनुचित उत्पीड़न करने के लिए एक पूर्व निर्धारित उद्देश्य के साथ ये एफआईआर दर्ज की जा रही हैं।

कई एफआईआर पहले से ही दर्ज हैं और विभिन्न राज्यों में कई शिकायतें दर्ज की गई हैं, जिन्हें एफआईआर में भी परिवर्तित किया जा सकता है, याचिकाकर्ता को पुलिस द्वारा पीछा किया जा रहा है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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