वाम की नहीं “वामपंथ के भारतीय पोस्टर” की हार!

उपेंद्र चौधरी

ग़ैरबराबरी से सराबोर दुनिया और समाज को जबतक समरसता की ज़रूरत है, वामपंथ का इक़बाल बुलंद रहेगा। ‘उदारचरितानाम् वसुधैव कुटुम्बकम'(उदार लोगों के लिए पूरी दुनिया ही अपना परिवार है) और परोपकार: पुण्याय, पापाय परपीडनम् (दूसरों के परोपकार से बढ़कर कोई पुण्य नहीं, दूसरों को पीड़ा देने से बढ़कर कोई पाप नहीं) जैसी सूक्तियों से भी वामपंथ का ही नारा बुलंद होता है।

 

त्रिपुरा की हार वामपंथ की हार नहीं है, बल्कि ‘वामपंथ के भारतीय पोस्टर’ की हार है। इस पोस्टर का रंग भले ही लाल हो, मगर भारतीय संदर्भ में इसे उकेरने वाले, सोच के पीलिया रोग से ग्रस्त हैं। वह एक ऐसे भारत की व्याख्या करने में दिन रात जुटे हुए हैं, जिनकी भाषा स्वयं भारत नहीं समझ पा रहा है; उदारता के सिद्धांत को आप कट्टरता के साथ जनता तक नहीं पहुंचा सकते, क्योंकि इस कला में आपके प्रतिद्वन्द्वी कहीं ज़्यादा भारी पड़ता है; जनता से संवाद करने की महफ़िल पूरी तरह मोदी लूट ले जा रहे हैं।

 

बिना गहन संवाद राजनीति की दुनिया आबाद नहीं होती। आप नारे गढ़ते रहिये, आपका गढ़ ढहता रहेगा। अतीत बचाते रहिये, वर्तमान पिघलता जायेगा। मेहनत-मजूरी करने वालों को भी खोखले वामपंथी नेतृत्व की विश्वसनीयता ख़ूब दिखती है।

 

माणिक सरकार की सादगी एक व्यक्तित्व का बड़प्पन ज़रूर है, मगर एक व्यक्ति के जीतने की एक सीमा होती है। 20 बरस कम नहीं होते, लालू जैसे मास लीडर को भी यह वक़्फ़ा नसीब नहीं हुआ था। माणिक सरकार की सादगी और उनकी विश्वसनीयता पर मुहर लगाने के लिए यह समायांतराल पर्याप्त है। इसलिए यह हार माणिक सरकार की भी हार नहीं है। यह हार वामपंथ जैसी मज़बूत और ज़रूरी विचारधारा के लचर, अदूरदर्शी, अपने दृष्टिकोण में कट्टर नेतृत्व और उसके साथ चलने वाले अंखमुदवा वामपंथियों की हार है।

 

वामपंथ की राह चलने और गढ़ने वालों में तो कृष्ण, राम, मुहम्मद और ईसा मसीह जैसी शख़्यिसत भी रही है, जिसकी संवेदनशीलता और ‘उचित’ को लेकर होती लड़ाइयों ने उनके जीवनकाल में ही पौराणिक या ऐतिहासिक रूप से भगवान,देवदूत या पैग़म्बर बना दिया था।

आज भी ‘उचित’ को लेकर संघर्ष करता हर व्यक्ति वामपंथ की राह ही चलता है। यह देश भी भीतर-भीतर वामपंथ की राह ही चल रहा है। मौजूदा ‘वामपंथियों’ की हार की राख पर ही वामपंथ की साख बचना है। यक़ीन मानिये,शुरुआत हो चुकी है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

Janchowk
Published by
Janchowk