आदिवासी सेंगेल अभियान ने किया 30 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान, सरना धर्म को मान्यता देने की मांग

नई दिल्ली। आदिवासी संगठन आदिवासी सेंगेल अभियान (आदिवासी सशक्तिकरण अभियान के लिए संथाली शब्द) ने भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र द्वारा अलग सरना धर्म कोड की घोषणा नहीं करने के विरोध में 30 दिसंबर को भारत बंद की धमकी दी है।

आदिवासी संगठन अब अपनी अलग धार्मिक पहचान को लेकर आर-पार की लड़ाई लड़ने को मूड में दिख रहे हैं। आदिवासी लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि जनगणना के समय धर्म वाले कॉलम में छह धर्मों के साथ सरना धर्म को भी जोड़ा जाए। ऐसा नहीं होने से आदिवासियों को हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन और सिख धर्म में से किसी एक धर्म को चुनने के लिए विवश किया जा रहा है।

15 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उलिहातु यात्रा के बाद आदिवासियों का धैर्य जवाब दे गया। आदिवासियों को विश्वास था कि पीएम मोदी जनजातीय गौरव यात्रा के शुभारम्भ करते समय सरना धर्म को मान्यता देने की घोषणा करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मयूरभंज (ओडिशा) से पूर्व भाजपा सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि “हमने केंद्र को एक अलग सरना धर्म कोड की घोषणा करने के लिए साल के अंत तक का समय दिया था और उम्मीद थी कि उलिहातु यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री कम से कम सरना धर्म कोड के लिए आदिवासियों की लंबे समय से चली आ रही मांग का उल्लेख करेंगे। लेकिन दुर्भाग्य से इस बात का कोई जिक्र नहीं था। अब हम 30 दिसंबर को भारत बंद आंदोलन के साथ आगे बढ़ेंगे।”

प्रधानमंत्री की झारखंड यात्रा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि “आत्मदाह की धमकी देने वाले हमारे कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया। मुझे घर में नजरबंद कर दिया गया और यहां तक कि जमशेदपुर में बिरसा मुंडा की प्रतिमा के पास अनशन पर भी नहीं बैठने दिया गया। हमारे पास 30 दिसंबर को भारत बंद के अलावा कोई विकल्प नहीं है।”

आदिवासी नेता ने धमकी दी कि वे 30 दिसंबर को उन सात राज्यों में परिवहन, सड़क और रेलवे दोनों को ठप कर देंगे जहां वे सक्रिय हैं।

मुर्मू ने धमकी दी कि “हम सात राज्यों झारखंड, ओडिशा, बंगाल, बिहार, असम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश से खनिजों और कोयले के परिवहन की अनुमति नहीं देंगे। इन सभी राज्यों में हमारे कार्यकर्ता हैं और वे इन राज्यों में परिवहन को बाधित करने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे।”

गौरतलब है कि झारखंड में आदिवासी, जिनमें से अधिकांश सरना अनुयायी और प्रकृति उपासक हैं, दशकों से भारत में एक अलग धार्मिक पहचान के लिए लड़ रहे हैं और हाल के वर्षों में उन्होंने दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में आंदोलन किया है।

आदिवासियों का तर्क है कि जनगणना सर्वेक्षणों में एक अलग सरना धार्मिक कोड के कार्यान्वयन से आदिवासियों को सरना धर्म के अनुयायियों के रूप में पहचाना जा सकेगा।

झामुमो के केंद्रीय महासचिव और प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने भी भाजपा के ‘आदिवासियों और झारखंड, मणिपुर और मिजोरम जैसे आदिवासी बहुल राज्यों के प्रति वास्तविक प्रेम’ पर कटाक्ष किया।

भट्टाचार्य ने कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए और योजनाओं की घोषणा की, लेकिन सरना पर एक शब्द भी नहीं बोला, जिसे 2020 में राज्य विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया और केंद्र को भेजा गया। लेकिन अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। यह प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी (भाजपा) का आदिवासियों के प्रति सच्चा प्रेम दर्शाता है। दुर्भाग्य से, रांची में बीमार पीएसयू हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन (एचईसी) के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा गया, जिसके कर्मचारियों को 19 महीने से वेतन नहीं मिला है। ऐसा लगता है कि मोदी जी एचईसी को भी अपने पसंदीदा कॉर्पोरेट मित्रों को बेचना चाहते हैं।”

आदिवासियों के सरना धार्मिक कोड पर निर्णय केंद्र के पास लंबित

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी का झारखंड में स्वागत है लेकिन आदिवासियों के लिए ‘सरना’ धार्मिक कोड को मान्यता देने का फैसला केंद्र के पास लंबित है। हमने उन्हें (आदिवासियों के लिए अलग सरना धार्मिक कोड की मांग से संबंधित) सभी कागजात पहले ही भेज दिए हैं… अब, उन्हें इस पर निर्णय लेना है।

उन्होंने कहा कि यह संहिता यह पहचानने के लिए आवश्यक है कि आदिवासी अन्य धर्मों के अनुयायियों से अलग हैं, साथ ही उनके संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी।

सितंबर में पीएम को लिखे पत्र में उन्होंने आदिवासियों के धार्मिक अस्तित्व और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए उनके लिए ‘सरना’ कोड को मान्यता देने की मांग की थी और दावा किया था कि पिछले आठ दशकों में झारखंड में आदिवासियों की आबादी 38 फीसदी से घटकर 26 फीसदी रह गई है।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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