छत्तीसगढ़ में चौतरफा रही आदिवासी दिवस की धूम, सरकारी आयोजन पर लोगों ने जताया एतराज

तामेश्वर सिन्हा

रायपुर। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा 9 अगस्त को घोषित विश्व आदिवासी दिवस पूरे छत्तीसगढ़ में धूम-धाम से मनाया गया। बस्तर संभाग, रायपुर, दुर्ग/भिलाई, कवर्धा, जशपुर के जिला मुख्यालयों से लेकर तहसील गांव तक छत्तीसगढ़ के अन्य क्षेत्रों में भी बाइक रैली, सभा समेत कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए गए। परंपरागत नृत्य और आदिवासी लोक कलाओं से सजी विश्व आदिवासी दिवस की महफिल पूरी तरह से रंगीन हो गई। पारंपरिक वाद यंत्रों के साथ सड़कों पर नृत्य करते रैली निकली गयी।

जगह-जगह जल-जंगल-जमीन के संरक्षण को लेकर प्रण लिया गया। पूंजीवादी नीति के तहत कॉरपोरेट लूट जल,जंगल, जमीन के दोहन , आदिवासियों को दिए अधिकारों के हनन, संवैधानिक व्यवस्था को कायम रखने और नक्सल उन्मूलन के नाम पर आदिवासियों की हत्याओं को लेकर लड़ाई तेज करने की बात कही गई। 

इस मौके पर रमन सरकार की ओर से भी राजधानी रायपुर में कार्यक्रम रखा गया था। जिसको लेकर आदिवासियों में बड़ा विरोध था। उनका कहना था कि ये विश्व आदिवासी दिवस के सरकारीकरण की कोशिश है और बिल्कुल वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित है। लिहाजा इस पर तत्काल रोक लगायी जानी चाहिए।  

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और राज्यपाल बलराम दासजी टंडन ने गुरुवार को विश्व आदिवासी दिवस की बधाई व शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भारत सहित पूरी दुनिया की विविधतापूर्ण जनजातीय संस्कृति संपूर्ण मानव समाज की अनमोल धरोहर है। आधुनिक युग में आदिवासी समाज भी शिक्षा, ज्ञान, विज्ञान, कला, संस्कृति समेत जीवन के हर क्षेत्र में तेजी से तरक्की कर रहा है।

आपको बता दें कि विश्व के इंडीजेनस पीपुल (आदिवासियों) के मानवाधिकारों को लागू करने और उनके संरक्षण के लिए 1982 मेँ संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने एक कार्यदल (यूएनडब्ल्यूजीईपी) के उप आयोग का गठन हुआ जिसकी पहली बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई थी और यूएन ने अपने गठन के 50वें वर्ष मे यह महसूस किया कि 21 वीं सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत आदिवासी समाज अपनी उपेक्षा, गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, बेरोजगारी एवं बंधुआ व बाल मजदूरी जैसी समस्याओं से ग्रसित है।

अतः 1993 में यूएनडब्ल्यूजीईपी कार्यदल के 11 वें अधिवेशन में आदिवासी अधिकार घोषणा प्रारुप को मान्यता मिलने पर 1993 को आदिवासी वर्ष व 9 अगस्त को आदिवासी दिवस घोषित किया गया। और आदिवासियों को अधिकार दिलाने और उनकी समस्याओं के निराकरण, भाषा संस्कृति, इतिहास के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा 9 अगस्त 1994 को जेनेवा शहर में विश्व के आदिवासी प्रतिनिधियों का विशाल एवं विश्व का प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस सम्मेलन आयोजित किया गया।

आदिवासियों की संस्कृति, भाषा, आदिवासियों के मूलभूत हक को सभी ने एक मत से स्वीकार किया और आदिवासी भी बराबर का हक रखते हैं इस बात की पुष्टि कर दी गई। इसके साथ ही विश्व राष्ट्र समूह ने ” हम आपके साथ हैं ” यह वचन आदिवासियों को दिया। आश्चर्य इस बात का है कि घोषणा के इतने वर्ष बाद भी भारत के अधिकांश आदिवासियों और उनके जनप्रतिनिधि, समाज चिन्तक, बुध्दिजीवियों व अधिकारियों को पूर्ण रुप से यह ज्ञात भी नहीं हुआ कि आदिवासी दिवस क्या है? 

आज भी प्राचीन विरासत और उससे जुड़े लोगों, संस्कृतियों, जीवन शैली, प्रकृति और इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस का कोई नामलेवा नहीं है। इससे जनजातियों के प्रति भेदभाव स्पष्ट है। पर अब अपने अधिकारों को लेकर आदिवासियों में चेतना आ गई है। सोशल मीडिया ने यह जागरूकता बढ़ाई है। इस वर्ष छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने आदिवासी जिलों में बृहस्पतिवार को स्थानीय अवकाश घोषित किया था। यह स्वागत योग्य है।

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