शुएब को लोकतंत्र सेनानी मानने वाली यूपी सरकार ने जम्हूरियत की हत्या कर जेल में डाला

रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुएब एडवोकेट को लखनऊ पुलिस ने गैरसंवैधानिक नागरिकता अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आह्वान करने के आरोप में 19 दिसंबर की रात में करीब 12 बजे बातचीत के बहाने थाने पर बुलाकर गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले पहले 18 दिसंबर 2019 से उन्हें घर पर ही नज़रबंद रखा गया था।

छात्र जीवन से समाजवादी आदर्शों के लिए संघर्ष करने वाले शुएब एडवोकेट को पहली बार गिरफ्तार नहीं किया गया। जाति-संप्रदाय से ऊपर उठकर पीड़ित और निरीह जनता की पक्षधरता के कारण वे हमेशा सत्तासीनों की आंख की किरकिरी रहे। कई बार फर्जी मुकदमों में उन्हें फंसाया गया, लेकिन उन्होंने कभी अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। 1975 में आपातकाल के दौरान भी उन्हें डीआईआर के तहत गोंडा में दो महीने तक जेल काटनी पड़ी थी।

लखनऊ में वकालत शुरू करने के बाद भी उन्होंने अपने पेशे से अपने आदर्शों को जोड़े रखा। समाज के दबे-कुचले वर्ग के पीड़ितों के मुकदमों की मुफ्त पैरवी ही नहीं करते थे, बल्कि उनकी आर्थिक मदद भी करते थे। कानून की मर्यादा के मुताबिक उन्होंने कभी फीस के लिए किसी मुवक्किल को वापस नहीं किया।

आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार किए गए युवकों के मुकदमे लड़ने के खिलाफ जब बार एसोसिएशनों के फरमान जारी हो रहे थे, तब भी उन्होंने उनके मुकदमे किए। उनके ऊपर लखनऊ कचहरी में आरएसएस मानसिकता के वकीलों ने हमला भी किया, लेकिन उन्होंने अंत तक हार नहीं मानी और 14 बेकसूरों को रिहाई दिलवाई। संविधान और कानून में अटूट आस्था और उसकी मर्यादा कायम रखने वाले शुएब एडवोकेट ने हिंसक हमलों तक का सामना किया, लेकिन किसी के खिलाफ बदले की भावना से कुछ नहीं किया।

यह देश और समाज के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए स्वंय लोकतंत्र सेनानी का दर्जा दिया हो उस पर संविधान की परिधि से बाहर जाकर हिंसा का सहारा लेने का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया जाए।

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