उत्तरायणी मेले का भोटिया बाजार, जड़ी बूटियों से दुर्लभ बीमारियों का अचूक इलाज

बागेश्वर में चल रहे उत्तरायणी मेले में दारामा, जोहार, व्यास, चौंदास, दानपुर से आए जड़ी बूटी के व्यापारियों के सामानों की भोटिया बाजार में जबरदस्त मांग हो रही है। पेट, सिर, घुटने आदि दर्द के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में होने वाली गंदरेणी, जम्बू, कुटकी, डोला, गोकुलमासी, ख्यकजड़ी आदि जड़ी बूटी को अचूक इलाज माना जाता है।

उत्तरायणी मेले में पिथौरागढ़ जिले के धारचूला, दार्चुला, मुनस्यारी, जोहार, दारमा, व्यास और चौंदास आदि क्षेत्रों के व्यापारी हर साल व्यापार के लिए आते हैं। हिमालयी जड़ी-बूटी को लेकर आने वाले इन व्यापारियों का हर किसी को बेसब्री से इंतजार रहता है। हिमालय की जड़ी-बूटियां ऐसी दवाइयां हैं जो रोजमर्रा के उपयोग के साथ ही बीमारियों में दवा का भी काम करती हैं। दारमा के बोन गांव निवासी किशन सिंह बोनाल बताते हैं कि जंबू की तासीर गर्म होती है। इसे दाल में डाला जाता है। गंदरायण भी बेहतरीन दाल मसाला है। यह पेट, पाचन तंत्र के लिए उपयोगी है। कुटकी-बुखार, पीलिया, मधुमेह, न्यूमोनिया में, डोलू-गुम चोट में, मलेठी-खांसी में, अतीस-पेट दर्द में, सालम पंजा-दुर्बलता में लाभदायक होता है।

हिमालयी जड़ी-बूटी

जड़ी-बूटी कारोबारी आशा देवी बताती है कि वे तीस सालों से उत्तरायणी मेले में स्थानीय जड़ी-बूटियां लेकर आती हैं, मेले में व्यापार काफी अच्छा हो जाता है इसलिए वो आती हैं। जड़ी-बूटी का उत्पादन घर पर ही करती हैं। समूहों के साथ मिलकर जड़ी-बूटी उत्पादन व व्यापार करती हैं। बागेश्वर के साथ ही अन्य राज्यों व जनपदों में भी व्यापार के लिए जाते हैं
और वहां से आजीविका कमाते हैं।

उत्तरायणी मेले में जंबू, गंदरायण, डोलू, मलेठी आदि दस ग्राम 50 रुपये में, कुटकी 60 रुपये तोला के हिसाब से बिक रहा है। इसके साथ ही भोज पत्र, रतन जोत सहित कई प्रकार की धूप गंध वाली जड़ी बूटियां भी बिक रही हैं। हिमालयी इलाकों में पैदा होने वाली कीमती जड़ी-बूटियां सदियों से परंपरागत मेलों के जरिए विभिन्न इलाकों तक जाती रही हैं।

जड़ी बूटी कारोबारी किशन सिंह बोनाल कहते हैं कि पन्द्रह सालों से मेले में आ रहा हूं जड़ी-बूटी बेचता हूं अपने गांव में जड़ी-बूटी की खेती करता हूं। 1200 फीट की उंचाई में गंदरायण, जंबू, डोलू, मलेड़ी जैसी औषधियों का उत्पादन करता हूं। जड़ी-बूटियों का व्यापार हम बचपन से कर रहे हैं इसलिए हमें जड़ी-बूटियों की अच्छी समझ है।

व्यापारी चैत सिंह ने बताया कि मूली के ये चिप्स बर्फ की हवा में सुखाए जाते है। इनकी सब्जी स्वादिष्ट, स्वास्थ्यवर्धक होती है। बताया की कुमाऊं की काशी कहे जाने वाले बागेश्वर में उत्तरायणी मेले में हिमालयी क्षेत्रों से जड़ी बूटी लाने वाले व्यापारियों का सालभर बेसब्री से इंतजार करते हैं। माघ माह की उत्तरायणी में यहां व्यापारियों और खरीददारों का तांता लगा रहता है।

चैत सिंह बताते हैं कि 25 साल से मेले में आ रहा हूं, कोरोना से पहले जितना अच्छा व्यापार चलता था उसमें काफी हद तक गिरावट आयी हैं। जितना हम उम्मीद लेकर आए थे उतना मुनाफा नहीं हुआ है। बाजार में ग्राहक तो है लेकिन खरीदारी में कमी है। हम सरकार से गुजारिश करते हैं कि दुर्गम क्षेत्र के लोग अपनी मेहनत से जड़ी-बूटी का उत्पादन करते हैं जिस कारण सामान को व्यवसायिक क्षेत्र तक लाना काफी खर्चीली प्रकिया हैं। इस प्रक्रिया में मदद के लिए सरकार को उन्हें ट्रांसपोर्टेशन में छूट देनी चाहिए। इस बार मेले में भी नगरपालिका की ओर से दुकानों का शुल्क बड़ा दिया है। कई काश्तकार इन शुल्कों का भुगतान करने में भी असमर्थ हैं।

उत्तरायणी मेला देखने आने वालों के लिए भोटिया बाजार मुख्य आकर्षण है। आज भी स्थानीय व बाहर से आने वाले मेलार्थी भोटिया बाजार के उत्पादों को विश्वसनीयता की नजर से देखते हैं। मेले का स्वरूप बदलने के बावजूद यह बाजार अपनी साख को पूर्ववत बनाए रखने में सफल रहा है।

लता प्रसाद
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