बिहार: सीपीआई (एमएल) ने भेजा महागठबंधन के पास 25 जनवरी को मानव श्रृंखला बनाने का प्रस्ताव

भाकपा-माले ने देशव्यापी किसान आंदोलन के समर्थन में महागठबंधन की पार्टियों राष्ट्रीय जनता दल, सीपीआई और सीपीआईएम से गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या 25 जनवरी को पूरे बिहार में संयुक्त रूप से मानव शृंखला बनाने की अपील की है। भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने पत्र लिख कर यह अपील की है। उन्होंने यह भी कहा कि कार्यक्रम पर सहमति बन जाने के बाद जल्द ही महागठबंधन की पार्टियों की बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जाएगा।

पार्टी राज्य सचिव के हस्ताक्षरयुक्त पत्र को लेकर भाकपा-माले के वरिष्ठ नेता और राज्य स्थायी समिति के सदस्य राजाराम और राज्य कमिटी के सदस्य कुमार परवेज ने महागठबंधन की पार्टियों के कार्यालयों का दौरा किया। राष्ट्रीय जनता दल के कार्यालय में प्रदेश अध्यक्ष की अनुपस्थिति में राजद के वरिष्ठ नेता और प्रदेश उपाध्यक्ष तनवीर हसन, सीपीआई के राज्य सचिव कॉ. रामनरेश पांडेय और सीपीआईएम के वरिष्ठ नेता गणेश शंकर सिंह को पत्र सौंपकर मामले की पूरी जानकारी दी। माले प्रतिनिधिमंडल ने कांग्रेस दफ्तर का भी दौरा किया और नेताओं की अनुपस्थिति में कार्यालय सचिव को पत्र सौंपा।

महागठबंधन की पार्टियों को लिखे पत्र में माले ने कहा है कि किसान विरोधी तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने, बिजली बिल 2020 वापस लेने और स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसाओं को लागू करते हुए सभी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी की मांग पर चल रहा किसान आंदोलन अब देशव्यापी स्वरूप ग्रहण कर चुका है। दिल्ली के बॉर्डर पर कड़ाके की ठंड के बावजूद किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अब तक कई दर्जन किसानों की मौत भी हो चुकी है, लेकिन मोदी सरकार अपने अड़ियल रवैये पर कायम है। उनकी मांगों पर ईमानदारीपूर्वक विचार करने के बजाए वार्ताओं का दिखावा कर रही है और आंदोलन को बदनाम करने और उसमें फूट डालने की ही कोशिशें चला रही है।

पत्र में कहा गया है कि भाजपा किसान आंदोलन को बड़े फार्मरों और मूलतः पंजाब का आंदोलन बताकर उसकी धार कमजोर कर देना चाहती है, लेकिन विगत दिनों बिहार में भी विपक्षी पार्टियों के नेतृत्व में लगातार कई आंदोलन हुए हैं। 8 दिसंबर के भारत बदं में हम सभी साथ थे। बिहार की राजधानी पटना में 29 दिसंबर को दसियों हजार किसानों ने उपर्युक्त मांगों पर ऐतिहासिक राजभवन मार्च करके साबित कर दिया कि देश के किसान मोदी सरकार की असली मंशा को समझ चुके हैं कि वह दरअसल खेती-किसानी को कॉरपोरेटों के हवाले कर देश को कंपनी राज की ओर धकेल देना चाहती है। इस राजभवन मार्च में छोटे-मझोले-बटाईदार किसानों और कृषक मजदूरों की बड़ी संख्या शामिल हुई। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ बिहार में लगातार जारी आंदोलनों ने निश्चित रूप से दिल्ली बॉर्डर का घेराव कर रहे किसानों को नई ताकत प्रदान की है।

फिर यह कहा गया है कि आज से एक साल पहले देश में सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ चल रहे आंदोलन को भी भाजपा ने यह कहकर अलगाव में डालने की कोशिश की थी कि यह तो मुस्लिमों का आंदोलन है। इस चुनौती को हम सबने स्वीकार किया था और कहा था कि सीएए-एनआरसी-एनपीआर जैसे प्रावधान अल्पसंख्यकों के साथ-साथ गरीबों, मजदूरों, जनता के व्यापकतम हिस्से और संविधान व लोकतंत्र के खिलाफ हैं। बिहार में हमने एकजुट होकर लड़ाई लड़ी थी और 25 जनवरी 2020 को बिहार में विपक्षी दलों ने अपनी एकजुटता जाहिर करते हुए पूरे बिहार में मानव शृंखला का निर्माण किया था।

ठीक उसी तर्ज पर इस बार भी खेत-खेती और किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ एक ऐसी ही पहलकदमी की आवश्यकता महसूस हो रही है। हम एक बार फिर से गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मानव शृंखला का निर्माण कर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ बिहार के किसान आंदोलन को एक नई ऊंचाई प्रदान कर सकते हैं और देश में चल रहे आंदोलन को बल प्रदान कर सकते हैं।

पत्र में कहा गया है कि हमारी पार्टी का विचार है कि इस प्रस्ताव पर बात करने के लिए बिहार में महागठबंधन की पार्टियों की अविलंब ही एक बैठक होनी चाहिए। सहमति के आधार पर हम तिथि और जगह तय कर सकते हैं।

Janchowk
Published by
Janchowk