पंजाब में निर्णायक मोड़ पर भाजपा-अकाली गठबंधन

भाजपा-अकाली गठबंधन में अलगाव का नया अध्याय शुरू हो गया है और लगता है कि इस बार यह निर्णायक मोड़ पर आकर खत्म होगा। इस बार बेहद ज्यादा तीखे तेवर भाजपा ने दिखाए हैं और दो टूक कहा है कि पंजाब में भाजपा अब छोटे नहीं बल्कि बड़े भाई की भूमिका निभाएगी तथा पूरा जोर लगाएगी कि राज्य का अगला मुख्यमंत्री भारतीय जनता पार्टी का हो। भाजपा के तेवरों से अकाली हक्के-बक्के हैं और आला से लेकर अदना अकाली नेताओं को मानों सांप सूंघ गया है।

भाजपा की पंजाब इकाई के वरिष्ठ नेताओं की इस बयानबाजी के बाद अकाली-भाजपा गठबंधन में लंबे अरसे से चली आ रही खटास का सच भी सामने आ गया है। इससे पहले एक-दूसरे को गरियाने का खेल इशारों-इशारों में चलता था। पहल अकालियों की ओर से होती थी, लेकिन इस बार जबरदस्त तल्खी भाजपा लीडरशिप ने दिखाई है।

जानकारों का मानना है कि पार्टी आलाकमान की शह और इशारे पर पंजाब भाजपा ने इसलिए भी अपने ‘दम खम’ का जुबानी प्रदर्शन किया है कि नागरिकता संशोधन विधेयक के मामले में शिरोमणी अकाली दल पूरी तरह से उनके साथ नहीं है। अकाली इस विधेयक में मुसलमानों को भी शामिल करने की मांग करने लगे हैं और यह मोदी-शाह की जोड़ी को रास नहीं आ रहा। ‘पंजाब में भाजपा का मुख्यमंत्री’ बनाने की बात को शिरोमणी अकाली दल को दी गई गंभीर चुनौती और चेतावनी की तरह लिया जा रहा है।

अंदरखाने खुद अकाली भी इसे इसी तरह ले रहे हैं। पंजाब में भाजपा का मुख्यमंत्री बनाने की बात पर जोर राज्य भाजपा के नए अध्यक्ष अश्विनी शर्मा की ताजपोशी के मौके पर, उनकी सहमति से दिया गया। उन्होंने भी ‘पंजाब में अगला मुख्यमंत्री भाजपा का’ नारा पुरजोर तरीके से लगाया।

17 जनवरी को जालंधर में अश्वनी शर्मा के नए भाजपा अध्यक्ष बनने पर पार्टी की समूची राज्य इकाई इकट्ठा हुई थी। तमाम वरिष्ठ नेता मौजूद थे। यहीं आठ साल प्रदेशाध्यक्ष और गठबंधन सरकार में दो बार मंत्री रहे कद्दावर नेता मदन मोहन मित्तल ने कहा कि पंजाब में भाजपा हमेशा छोटे भाई की भूमिका निभाती आई है, लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि वह बड़े भाई की भूमिका निभाएगी। कोशिश करेंगे कि सूबे में अपने दम पर सरकार बनाएं। वह बोले कि हमें 59 सीटों से कम पर चुनाव नहीं लड़ना चाहिए, अकाली दल के साथ अगर समझौता करना भी पड़ता है तो 58 से कम हरगिज नहीं जाना चाहिए।

उन्होंने हरियाणा और महाराष्ट्र की मिसाल देते हुए कहा कि वहां कौन सोचता था कि एक दिन भाजपा की सरकार बनेगी। सो अब हम पंजाब में अपने बूते पर सरकार बनाने की पूरी कोशिश करेंगे। मदन मोहन मित्तल पहले भी अकाली भाजपा-गठबंधन तोड़ने की बात कई बार कह चुके हैं और उन्हें आलाकमान का वरदहस्त हासिल है।

एक अन्य पूर्व भाजपा प्रधान बृजलाल रिणवा ने खुले शब्दों में कहा कि भाजपा का संगठन प्रदेश में काफी मजबूत हो चुका है और पार्टी को अब शिरोमणि अकाली दल से अलहदा होकर अपने तईं सरकार के गठन के लिए आगे बढ़ना चाहिए। आम कार्यकर्ता अकाली दल के साथ गठजोड़ से नाखुश और मायूस है। 2022 में हम अपने बूते पंजाब में सरकार बनाएंगे। पूर्व कैबिनेट मंत्री मास्टर मोहनलाल ने कहा कि हरियाणा तथा जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर भाजपा को पंजाब में आगे बढ़ना चाहिए और ‘पिछलग्गू’ होने का दाग भी धो देना चाहिए।

पंजाब में विधानसभा के 117 हल्के हैं। गठबंधन के तहत भाजपा के हिस्से 23 सीटें आती रही हैं। अब भाजपा ने बराबरी के नए सुर अलापे हैं और 50 फीसदी के हिसाब से 59 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह कर सियासी तूफान खड़ा कर दिया है।

प्रदेश भाजपा के नए बने अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने भी वरिष्ठ और कनिष्ठ भाजपा नेताओं की इस मांग पर ‘फूल चढ़ाने’ का वादा किया है और साफ कहा है कि वह पूरी मेहनत करेंगे कि अगला मुख्यमंत्री भाजपा से हो। पंजाब के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि भारतीय जनता पार्टी ने ‘अपना मुख्यमंत्री’ होने की बात कही हो। माना जा रहा है कि दिल्ली के इशारे की बगैर इतनी बड़ी बात नहीं कही जा सकती।

बीते कुछ अरसे से अकाली भाजपा गठबंधन रिश्तों में लगातार दरार आ रही है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा से गठबंधन तोड़ा था। इसे तब ‘क्षेत्रीय मामला’ कहकर पूरे विवाद को दफन करने की कवायद की गई थी। अब हालात बदले हैं। वह भी ‘राष्ट्रीय’ स्तर से। केंद्र के नागरिकता संशोधन विधेयक पर शिरोमणि अकाली दल पूरी तरह भाजपा से सहमत नहीं है, बल्कि इसके कई बिंदुओं पर खुला विरोध जताने लगा है। राज्य भाजपा ने सीएए के समर्थन में जगह-जगह रैलियां कीं और जुलूस निकाले, लेकिन शिरोमणि अकाली दल ने इससे जबरदस्त दूरी बनाए रखी।

भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक खुद अमित शाह ने अकाली सरपरस्त प्रकाश सिंह बादल और शिरोमणि अकाली दल प्रधान सुखबीर सिंह बादल से इस बाबत बात की, लेकिन दोनों बादल जमीनी स्तर पर साथ चलने को राजी नहीं हुए। उल्टा लगातार कहा कि मुसलमानों को नागरिकता संशोधन विधेयक से बाहर नहीं रखना चाहिए। इस सबसे नरेंद्र मोदी और अमित शाह चिढ़े हुए हैं। पंजाब इकाई के जरिए नाराजगी जाहिर की जा रही है और बादलों वाली शिरोमणि अकाली दल का विकल्प तलाशा जा रहा है।

बादल परिवार की एक मजबूरी का फायदा भी उठाया जा रहा है कि हरसिमरत कौर बादल को बादल घराना किसी भी सूरत में फिलहाल केंद्रीय काबिना से बाहर नहीं देखना चाहता। अब सवाल यह है कि सत्ता मोह, पंजाब भाजपा की ताजा घुड़की के बाद कब तक कायम रहता है?

तल्ख सवाल यह भी है कि आने वाले दिनों में मोदी-शाह की ‘पॉलिटिकल ब्लैकमेलिंग’ क्या गुल खिलाएगी? यह आकस्मिक नहीं है कि इन दिनों बगावत करके, सुखदेव सिंह ढींडसा और परमिंदर सिंह ढींडसा सरीखे बादल परिवार के पुराने वफादार और शिरोमणि अकाली दल के दिग्गज नेता एक-एक करके बादलों का साथ छोड़ रहे हैं, उनकी भाजपा आलाकमान से नजदीकियां जगजाहिर हैं। कहा जा रहा है कि उन्हें भाजपा की शह है।

भाजपा बागी हुए बादल के पुराने विश्वासपात्र साथियों-सहयोगियों के जरिए रवायती शिरोमणि अकाली दल का विकल्प तैयार कर रही है। बगैर विकल्प और रणनीति के सोचा भी नहीं जा सकता था कि भाजपा एक दिन पंजाब में ‘अपने मुख्यमंत्री’ के एजेंडे की बात करेगी!

(अमरीक सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल जालंधर में रहते हैं।)

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