बंग के रंग में भंगः कांग्रेस-वाम को कमजोर करने की कड़ी में ममता ने ही तैयार की थी भाजपा की जमीन

तृणमूल कांग्रेस में टूट का सिलसिला जारी है। इधर भाजपा के नेता भी आमंत्रण भेजने में कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं। रोजाना कोई न कोई नेता या मंत्री मीडिया या फेसबुक पर कुछ कहता है, जिससे लगता है कि वे भाजपा में बस अब चले ही गए। इसके बाद तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद सौगत राय डैमेज कंट्रोल करने में लग जाते हैं। दरअसल बंगाल में पार्टी बदलने की परंपरा कभी नहीं थी। इस खेल की शुरुआत ममता बनर्जी ने ही 2011 में सत्ता में आने के बाद की थी। अब इसी का दंश उन्हें भुगतना पड़ रहा है।

हाल ही में सांसद एवं फिल्म स्टार शताब्दी राय ने फेसबुक पर अपनी पीड़ा का इजहार करते हुए लिखा कि वह दिल्ली जा रही हैं। अब कयास लगने लगा कि वे अमित शाह से मिलने जा रही हैं। इसके बाद ही तृणमूल कांग्रेस में डैमेज कंट्रोल का सिलसिला शुरू हो गया। खैर सांसद अभिषेक बनर्जी से मिलने के बाद फिलहाल उनके गिले-शिकवे दूर हो गए। वन मंत्री राजीव बनर्जी ने भी अब गए कि तब गए का माहौल बना रखा है। सांसद प्रसून बैनर्जी एलान करते रहते हैं कि वह भाजपा में नहीं जाएंगे।

दूसरी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष रोजाना एलान करते हैं कि आने वालों की कतार में अभी बहुत से मंत्री सांसद और विधायक लगे हैं। राजनीतिक जर्सी बदलने के इस खेल का सबसे दिलचस्प पहलू तो यह है कि विधानसभा चुनाव के करीब तीन माह पहले ही सभी को यह ख्याल आया है कि वह जनता के लिए कुछ कर नहीं पाए, पार्टी के बड़े नेता उनकी नहीं सुनते हैं, उन्हें काम नहीं करने दिया जाता है आदि आदि।

मजे की बात तो यह है कि पौने 10 साल तक मंत्री बने रहने के दौरान उन्हें यह ख्याल नहीं आया था। परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी, खेल मंत्री लक्ष्मी रतन शुक्ला और वन मंत्री राजीव बनर्जी का बयान कमोबेश इसी तरह का है। स्वर्गीय जगमोहन डालमिया की बेटी एवं विधायक वैशाली डालमिया के गिले-शिकवे के अल्फाज भी इसी तरह के हैं। तृणमूल कांग्रेस में इन दिनों जो चल रहा है, उससे 1977 के जगजीवन राम और उनकी कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी की याद ताजा हो जाती है।

इंदिरा गांधी की कैबिनेट मीटिंग में हिस्सा लेने और लोकसभा चुनाव कराए जाने पर मुहर लगाने के बाद जब जगजीवन राम बाहर आए तो उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देने और कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी का गठन करके चुनाव में हिस्सा लेने की घोषणा कर दी। अब ममता बनर्जी के मंत्रिमंडल का कौन सा प्रमुख नेता जगजीवन राम बनकर बाहर आएगा यह नहीं मालूम।

पर इतना तो सच है कि कांग्रेस और वाम मोर्चा को मिटा देने की ममता बनर्जी की जिद के कारण ही पश्चिम बंगाल की राजनीति में भाजपा का उदय तेजी से हुआ है। मसलन 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 44 और वाममोर्चा के 32 विधायक जीते थे। दल-बदल विरोधी कानून को ठेंगा दिखाते हुए ममता बनर्जी ने कांग्रेस के 16 और वाममोर्चा के 2 विधायकों को तृणमूल कांग्रेस में शामिल कर लिया। जरा शामिल करने का अंदाज़ तो देखिए।

कांग्रेसी विधायक मानस भुइया के खिलाफ छात्र परिषद के एक कार्यकर्ता की हत्या के मामले में एफआईआर दर्ज हुई। गिरफ्तारी का वारंट जारी हुआ और जैसे ही वह तृणमूल में शामिल हो गए सब बातें हवा हो गईं। कमोबेश सभी इसी राह पर चलकर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए थे। तो फिर मोदी की सीबीआई और ईडी से एतराज क्यों है दीदी को!

अब जरा बंगाल को विपक्ष शून्य करने के दीदी के अंदाज को तो देखिए। मुर्शिदाबाद को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर चौधरी का गढ़ माना जाता है। इसे तोड़ने के लिए दीदी ने शुभेंदु अधिकारी समेत पूरी फौज को तैनात किया था। इसमें नाकाम रहीं। पर हां स्वर्गीय प्रियरंजन दास मुंशी की पत्नी दीपा दास मुंशी को मिटाने की जिद में उन्होंने रायगंज से भाजपा उम्मीदवार देवश्री राय को सांसद बना दिया। इसी तरह मालदह को भी कांग्रेस का गढ़ माना जाता है।

कांग्रेस की मौसम बेनजीर नूर को हराने की जिद में उन्होंने भाजपा के खगेन मुर्मू को सांसद बना दिया। अगर बाकी 16 सीटों का विश्लेषण करें को उनमें भी कई ऐसी सीटें निकल आएंगी, जहां भाजपा को जिताने में दीदी का योगदान रहा है। दीदी ने कांग्रेस औरर वाम मोर्चा को कमजोर किया और इस तरह जो खालीपन पैदा हुआ उसे केंद्र में सरकार होने के दम पर भाजपा ने भर लिया। सो दीदी अब परेशान हो रही हैं, जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पश्चिम बंगाल में रहते हैं।)

जेके सिंह
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